SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . 8 मेरुगिरि शिखर उपरि जो पंगुअ चढीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० ॥६२।। तरल तरुफल भूमिषु वामणो ग्रही जो सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० ।। ६३।। निज खंधई आरोहणं तुम्ह गुण गणना गुरुराज मंदबुद्धि हुं हुंसी गुण गणवा हुओ आज रे । प्रभु० ॥६४॥ गुरुजी तुम्ह गुण मीठडा मइ बोल्या नवि जाय । गुंगइ खाधी खंड जिम रस हृदय जणाय रे । प्रभु० ॥६५॥ राग धन्यासी दूहा समुद्र दोत मेरुलेखनी गगन कागल कराय । लिखई बृहस्पति तुम्ह गुण तो हइ लिख्या नवि जाय ॥६६।। श्री गुरु हीरजी तुम्ह तणी उपम आवि सोइ । भमतां महीमंडलमांहि मइ नवि दीठो कोइ ।। ६७॥ राग-आसाउरी मोहनमूरति पर उपगारी जुगप्रधान अवतार । सकलसुरासुर नरनारीनइ भवजलपार उतारई ॥६८॥ रे हीरजी । अनन्त गुण भंडार ताहरा गुम तणो नहीं पार । तुं तु टालइ सिथलाचार तुं तु पालइ सुद्ध आचारे हीरजी अनन्त गुण भंडार । जग गु० ॥६९।। सुगुण गुणमणि रोहण भूधर प्रणमित पद भूपाल । तपगच्छभारधुराधुरंधर षट्जीवनगोपाल रे हीरजी० ॥ ७०।। मकलकलाकमला वो प्रभु उपसमरम भंगार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229563
Book TitlePunyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size387 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy