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________________ तुम्ह गुण गायवा हउ म० । सहस वदन शेषनाग लाल० । सहसलोचन इन्द्रई धर्या म० । जोवा गुण धरी राग लाल० ॥ ८१॥ जग सघलु ए धोलिउं म० । तुम्ह गुणे गुरुराज लाल० । पण कुमति मुख श्यामिका म० । हजी लगइ नहि गई आज लाल० ॥ ८२।। तुम्ह गुणा दरिओ उलट्य म० । प्लाव्या कुमति लोक लाल० । तुम्ह गुण रविकर विकसतइ म० । जाये भविक को(लो)क अशोका लाल० ॥ ८३।। स्याहि अकब्बर रंजिउ म० । गाइ तुम्ह गुणगान लाल० । सभामंडल बइठो सदा म० । सुणतइं मलिक उरखान लाल०| ८४|| अइ गुरु गुण तुम्ह तणा म० । लिखतां नावइ पार लाल० । तुम्ह गुण समुद्र मांहि झीलतां म० । देह निर्मल निरधार लाल० ॥ ८५॥ साह कुंरा कुलमंडणो म० । नाथी उदर राजहंस लाल० । नयर पाल्हणपुर अवतर्यो म० । उद्योत कियो उसबंसा लाल० ॥८६॥ सकल भट्टारक सिरधणी मनमोहन हो । अनोपम उपम अनंत । तेण करी तुम्हे भर्या(म०) जिम जल सरिदाकंत लाल० ॥ ८७॥ राग धन्यासी दूहा अथ निज सरीर परिकर सुख-समाधि समाचार । मोकलवा स्वशिय॑नि वलता श्री गणधार तुम्ह हस्ताक्षर पत्रिका दीठइ मन विकसति । मोकलवी ते कारणइ सेवकनी करी चिंता ।। ८९॥ ॥ ८८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229563
Book TitlePunyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size387 KB
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