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________________ ढाल श्री हीरविजयसूरी अकमना । पुण्यहर्षनी वंदना । वंदना अवधारज्यो गच्छपतिले ॥ ९ ॥ श्री विजयसेनसूरीश्वरु । तुम्ह पाटि उदयो दिनकरु । दिनकरु भविक जननइ सुखकरु ए ॥ ९१।। श्रीसकलचन्द्र वाचकवर श्रीधर्मसागर गुण आगर । आगर सागर सकल शास्त्र तणु मे ॥ ९२।। वाचक राजकल्याणजी जस नामइ होइ कल्याणजी । (कल्याणजी) मोहनवेली कन्दलु मे ॥ ९३।। पंडितश्री विद्याविमल रिंष श्रीरीडो निर्मल । निर्मल चारित्र पाल इण युगई ओ ॥ ९४॥ भोजहर्ष गणी लाभहर्ष निजबांधवगणि रत्नहर्ष । रत्नहर्ष सिद्धहर्ष ते हर्षतु ओ ॥ ९५॥ परमहर्ष आदई देइ गुज्जरमध्ये जे केइ ।। जे केइ मुनिवर वंदन वीनवइ ओ 1॥ ९६॥ प्रेमविजय वइरागी अ विशेष थकी पाय लागीअ __ पाय लागीअ श्री गुरुनइ कइइ वंदना ओ ॥ ९७।। श्रीगुरुनइ पासइ सोहइ श्रीविमलहर्ष ज मन मोहइ । मनमोहइ दीवाणदीपक श्रीशांतिजीओ ॥ ९८॥ श्रीसोमविजय समता भर्यो श्रीधनविजय उद्योत कर्यो । उद्योत कर्यो कलियुग जिनसासन तणु मे ॥ ९९।। लब्धिवंत श्रीलाभजी प्रमुख मुनिवर जेअ जी । जेअ जी श्रीगुरुचरण तलइ रहइ ॥१०० वंदना अनुवंदना बावन चंदन समवयना । समवयना जणावज्यो ते माहरी ॥ १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229563
Book TitlePunyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size387 KB
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