Book Title: Mental Telepathy
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेन्टल टेलेपेथी । अथवा विचार वाटिकाके विहार द्वारा संदेश भेजनेकी चमत्कारिक विद्या । Circumstances I make circumstance —संयोग ! संयोग पैदा करनेवाला कौन ? मनुष्य ! तो फिर मनुष्यको संयोग के गुलाम होकर क्यों बैठे रहना चाहिये। बहुत मनुष्य संयोगों को देवता के भेजे हुए मानते हैं और सदा यह खयाल करते हैं कि इनको बदलनेका किसीमें भी सामर्थ्य नहीं हैं। सारे संसारको सत्य पथपर लानेवाले परमात्मा महावीर और गौतम बुद्धका कथन है कि संयोग मनुष्य स्वयम् पैदा करता है इसलिये मनुष्य उनको उलट सकता है। सिर्फ अपने आत्मश्रद्धामें ही ज्वलंत दीपकका प्रकट होना जरूरी है। संयोग के दास होकर गतानुगतिक के प्रवाह में रहना यह कुछ भी पराक्रम नहीं है यह तो एक बेचारा पशु भी कर सकता है | मनुष्यका कर्तव्य यह है कि अपने लक्ष्य साधन द्वारा जिन संयोगों में आकर खड़े हो उन ही संयोगोंके विपरीत बलको अपने अनुकूल बनाना चाहिये। संयोग ईश्वर अथवा देवोंके भेजे हुए नहीं होते हैं। मनुष्योंने ही अपने मनके विचारोंसे पैदा किये हैं इसलिये वे ही मनुष्य के दास हैं, अपने ही दास अपने कल्याणको रोकनेको खड़े हो तो ऐसे नौकरोंको रखनेसे क्या फायदा है ! जिस 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) घरका स्वामी निर्बल हो तो उसके नौकर स्वछन्दताके वर्तन करते हैं। मनुष्योंने दास रूपी स्योगोंको बहुत ही स्वतंत्रता दी है इसलिये वे मनुष्य समानके अधिकारी बन बैठे हैं । संयोग क्या चीज है ? इस पर कभी विचार नहीं करते हैं ! ये पहाड़ अथवा देव नहीं है। ये मनुष्योंके विचारका ही फल है! विचारसे ही यह अच्छे और बुरे रूपमें मनुष्यके लिये गठित होते हैं संक्षेपमें संयोगका बल अथवा अबल नु यके बल अथवा अबलके प्रतिबिंब है। अपनी निर्बलतासे ही यह पोपानाता है और मार्गमें यह कंटकरूप होता है अतएव संयोगोंके गुलाम न बनकर उनको अपने गुलाम बनानेकी आवश्यक्ता है। ये सर्व विचार शक्तिपर ही निर्भर है कारण कि किसी भी कार्यको करनेसे पहिले विचार ही पैदा होता है और उसी विचार द्वारा कार्य अच्छा अथवा बुरा होता है। मछुप्यके अन्दर विचार एक प्राधान्य वस्तु है। जिसके द्वारा एक स्थानसे दूसरे स्थानपर बिना किसी तारकी सहायताके संदेश भेजे जा सकते हैं इस तरहके सन्देश भेजनेका रिवाज, पहिले भारतवर्ष में था जब कि रेल तार नहीं था, पतिव्रता स्त्रिएँ अपने पति पास इस तरहके संदेश भेजतीथी और इसका उत्तर भी उनको मिलता था। इन बातों का वर्णन हमारे यहां कथनानुयोगमें स्थान २ पर किया है उसको हम अबतक लिखी हुई बात ही मानते थे परन्तु यह बात वैज्ञानिक शोध द्वरा सिद्ध हो चुकी है कि एक मनुष्य विचार द्वारा दुसरेके पास सब तरहकी खबरें भेज सकता है चाहे वह कितने ही हजार कोस दूर क्यों न हो ? मानसिक संदेश भी इनमेंसे एक है, पहिले अपने यति, मुनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस विद्याको जानते थे परन्तु बीचमें इस विद्याको कुछ समयके लिये जादु आदि कहते थे परन्तु अब यह बात अक्षरशः २ सिद्ध हो चुकी है कि मनुष्य चाहे तो इसके द्वारा अपना कार्य कर सकता है। पत्र लिखे बिना अथवा मुंहसे बोले विना अपने दूर किसी परदेशमें रहनेवाले मित्र अथवा स्नेहियोंसे बात हो सकती हैं । इस विद्याको मेन्टल टेलेपेथी कहते हैं । यह सर्व कार्य सिर्फ मनसे हो सकता है और इनको मानसिक संदेश कहते हैं । एक मनुष्य दूसरेके पास अपनी मानसिक शक्ति द्वारा संदेश भेजता है इसमें आश्चर्य करनेकी कोई बात नहीं है। मि० मारकोनीके बिजलीका यंत्र जड़ पदार्थ है । इथर द्वारा दूसरे दूर परदेशोंमें विनलीके यंत्रोंमें आबाज भेजी जाती है तो फिर मन यह तो अनंत शक्ति शाली है वह अपने विचारों का दूसरेके मनपर इयर द्वारा क्यों न असर करा सके ! अर्थात् कर सकता है। इस विषयका कार्य करनेको किसी तरहके सांचे अथवा साधनकी आवश्यकता नहीं होती है! वर्तमान समयमें पुरुष अथवा स्त्री विचारसे संदेश भेजना चाहे और तार अथवा पोष्टकी सहायता विना दूर रहने वाले स्नेहीके साथ बातचित करके आनंद लेना चाहे तो यह होसकता है, बहुतसे मनुष्योंका यह विचार रहता है कार्य बहुत सहल है, करलेंगे परंतु जब वे इसमें निष्फल होते हैं, तब बहुत उदास होते हैं, इसलिये दूसरेको विचार भेजने के पहिले ये बातें सीखना चाहिये। आकाश अथवा इथरके द्वारा विचार भेननेके पहिले एकाग्रतासे विचार करनेकी शक्ति प्राप्त करना चाहिये । बहुत मनुष्य निराश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) होते हैं, बहुतसे निष्फल होते हैं इसका मुख्य कारण यही कि जगतके अधिक मनुष्योंके विचार निर्बल होते हैं, कुछ समयतक ही वे एक ही प्रकारका विचार नहीं कर सकते हैं। इससे परिणाम यह होता है कि विचारकी शक्ति एक पल में उत्पन्न - जागृत होती है और दूसरी पलमें नाश होती है। इससे विचारकी सम्पूर्ण आकृति नहीं गठिन होती हैं । इन प्रयोगों के करने वालोंको अपने मन स्थिर करनेका प्रकत्न करना सीखना चाहिये, कि प्रयोग करते समय विचार दृढ़ रखने चाहिये। विचारसे मनुष्य चाहे वहां संदेश भेज सकता है और वे शीघ्रतासे वहां पहुंच जाते हैं। स्थायी होनेसे उसकी आकृति नहीं बदलेगी । विचारकी दृढ़ता से रास्ते में आने वाले विघ्नोंका (भेद) न कर इच्छित स्थान पर पहुंच जायगा । जिसके पास पहुंचेगा उसके मस्तिष्क में समावेश होकर असर करेगा । मानसिक संदेशके विषय में पहिले यह बात याद रखना चाहिये कि जब मनुष्य एक ही विचार में लीन होता है तो उस विचारकी शक्ति महान् चमत्कारिक असर करती है इतना ही नहीं कि यह शक्ति वहां पहुंचेगी । इच्छित असर उत्पन्न करनेको भाग्यशाली होगी । इससे दूसरेके दुर्गुण छोड़ाये जा सकते हैं, उसका प्रेम जीत सकते हैं तथा हितके कार्य दूसरोंके पास करा सकते हैं कि जिस काम को करनेकी उसकी ईच्छा न हो तो भी इस विद्याकी शक्ति द्वारा उससे इच्छित कार्य करा सकते हैं । यदि किसीको अपने किसी मित्र अथवा स्नेहीको मिलनेकी तीव्र ईच्छा हो तो उसको चाहिये कि वह अपने मनको इसी ईच्छा में लीन रक्खे तो वह मित्र अथवा स्नेही अपना अमूल्यसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) अमूल्य कार्य छोड़कर शीघ्र मिलनेको आयेंगे । प्रथम इस बातका विचार करना अत्यन्त आवश्यक है कि संदेश भेजने की विधि क्या है और उसको भेजनेमें क्या २ करना पड़ता है ? विचार दो तरह से जासकता है प्रथम विधिमें मन तथा मस्तक दोनों कार्य करते हैं और दूसरी विधिमें सिर्फ मन ही अकेला कार्य करता है | प्रथम विधि पहिले पहिले मनमें बिचार ही उत्पन्न होता है यह विचार अपने सूक्ष्म शरीरपर असर करता है, और दक्ष्य शरीर अपने स्थूल मस्तकपर असर करता है फिर अपने मस्तक से विचारके अनुसार दृढ़ शक्ति उत्पन्न होकर इयर द्वारा समक्ष मनुष्यके स्थूल मस्तक और सूक्ष्म शरीर पर असर करती है और स्थूल शरीर द्वारा उसके मनमें अपनने जो विचार गठित किया है उत्पन्न करती है । यह विषय बहुत गहन है अतएव मैं यहां इसी का विचार करूंगा कि मनुष्य अपने विचारोंको दूसरे मनुष्यके पास मात्र विचारशक्तिसे भेज सकता है | मनुष्यके मास्तिष्क इथर द्वारा शक्ति आसपासके इथरमेंसे चारों तरफ शक्तिएं उत्पन्न करती हैं, परन्तु वह मनुष्य बहुत गहन विचारों में डुबा हुआ है जिसपर कि अपने संदेश भेजनेवाले हैं कुछ भी असर नहीं करेगा. कारण कि विचार किसी दूसरे विषयमें लीन है उसी विषयकी शक्ति उसके अन्दरसे निकल रही है इसलिये उस दृढ़ शक्तिके मुकाबले में उसपर यह शक्ति असर नहीं कर सकती है। जो मनुष्य अन्धा हो वह प्रकाशकी शक्तिओं को नहीं ग्रहण कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता है । जो मनुष्य विचारों में बहुत लीन होता है वह बाहिरके विचारकी शक्तिएं नहीं ग्रहण कर सकता है, इसपरसे यह बात सिद्ध होती है कि विचारकी शक्तियोंको ग्रहण करनेवाले पुरुष अथवा स्त्रीको शांत चित्तसे बैठना चाहिये, अपने मनसे विचार नहीं करने चाहिये परन्तु बाहिरसे जो विचारकी शक्तिएँ आवे उनको ग्रहण करनेके लिये तत्पर रहना चाहिये ।। ___ जब सारंगी आदिके तार बरोबर करते हैं वे एक दूसरे सुरको ठीक करते हैं। एक ही धातुके पांच अथवा दश Curve आकारकी पटिएं होती हैं जब एक पटीको ठीक की जाती है तब अपने आप जितनी पटीएं होती है ठीक हो जाती हैं और एकसी शक्ति उनमेंसे उत्पन्न होती है अतएव जिस मनुष्यको संदेशा भेजना हो और उसको ग्रहण करना हो वे दोनों एक ही प्रकारकी आंदोलन ( शक्ति ) की अवस्थामें होने चाहिये और स्थिति एक प्रकारके विकारवाले मित्रोंमें, पति पत्नी में और एक कुटुम्बके मनुष्यों में होती है। प्रथम यह प्रयोग समान वयके मित्रोंमें, समान वयकी स्त्रियोंके साथ अथवा पति पत्नीके साथ करने चाहिये, एक दूसरेके प्रेमके पिपासु होने चाहिए और एक दूसरेपर विश्वास होना चाहिये जिससे कार्य बहुत सरलतासे हो जायगा और फिर किसी भी अन्य मनुष्यके पास विचारसे संदेशा भेननेका कार्य हो सकेगा। एक दफा विनयवंत न होनेसे कभी भी पस्त हिम्मत नहीं होना चाहिये। प्रथम तो इस तरह आरंभ करना चाहिये कि पहिले ही समय विजय प्राप्त हो और इस विद्यामें विश्वास पैदा हो । एक दो अथवा तीन वक्त निष्फल हो जानेपर भी इसको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत छोड़ो। इसमें विजयता प्राप्त करनेके लिये कार्यको शान्त चित्त और धैर्य द्वारा किये जाओ। इस विषयमें न्यूयार्कके रहनेवाले एक डाक्टर अपने मित्रकी स्त्रीके पास मन द्वारा ही संदेश भेजते थे वह इस प्रकार था । भेजेनवाला-डाक्टर, मैं सकुशल हूं आशा है कि आप भी सकुशल होंगे । इन दिनोंमें कार्य अधिक है अतएव पत्र नहीं लिख सका । ग्रहणकरनेवाला-मित्र और उसकी स्त्री । मेरा कलका भेजा हुआ पत्र मिल जायगा । उसमें मैंने सर्व बातें लिख दी हैं। ( पत्रद्वारा मालूम करनेसे ये बातें सही मालूम हुई) भेजनेवाली-मित्रकी स्त्री। मेरी बहिन यानि आपकी पत्नी सकुशल पहुंच गई है और बच्चेका स्वास्थ्य अच्छा है । ग्रहण करनेवाला-डाक्टर। बहुत अच्छा, मेरी अर्धाङ्गिसे कहना कि बच्चेके स्वास्थ्यपर पूरा ध्यान रहे । संदेश भेजनेकी विधि । अब मनसे विचारका संदेश भेजने वाले व ग्रहण करनेवालेको क्या २ करना चाहिये ? जिस समय संदेश भेजना हो उस समय भेजनेवालेको अपनी वृत्ति ग्रहण करनेवाले मनुष्यमें जोड़देना चाहिये । दृढ़ इच्छासे संदेश भेजना चाहिये । विचार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृढ़ रखना ही इस विषयमें सम्पूर्णता प्राप्त करना है। ग्रहण करनेवाले मनुष्यको चाहिये कि वह मनको संकल्प और क्रिया रहित करें / क्रिया करनेका समय / क्रिया करनेका समय किसी भी देशमें क्यों न हो एक ही रखना चहिये / आज जो समय क्रिया करनेका रवखा है कल भी वही समय होना चाहिये / प्रातःकालका 4 अथवा पांच बजेका समय, रात्रिके 9 बादका समयमें जब सर्व शान्त होते हैं, शान्त मनसे करना ही उचित है। जितनामन शान्त और एकाग्रह होगा उतना ही प्रयोग शीघ्र फलीभूत होगा। भेजनेवाले मनुष्यको एक शान्त कमरेमें आराम कुर्सीपर बैठकर तथा अच्छे (Loose) आसन पर बैठकर स्वमनसे विचार करनेकी मानसिक तसवीर तैयार करना चाहिये और फिर अपने उस मनुष्यसे जिस तरह बातचीत करते हैं उसी तरह संदेश कहना चाहिये। ग्रहण करनेवालेको भी शान्त और संकल्प रहित होकर रहना / जो शब्द बाहिरसे सुने जांय अथवा मनसे उत्पन्न हों उनको लिखने चाहिये, ऐसी स्थितिमें शब्द सुने जायंगे और कभी मनसे उत्पन्न होंगे। ज्यों अभ्यास बढ़ता जायगा उसी तरह अधिक समझमें आता जायगा। यह क्रिया जत्र सिद्ध हो जाय भेजनेवालेको लेनेवाला और लेनेवालेको भेजनेवाला होकर प्रयोग करने चाहिये इससे दोनोंके मन एक हो जायेंगे फिर लेनेवाला मनुष्य चाहे जिस कार्यमें लीन होगा तो भी भेजनेवाले मनुष्यकी विचारशक्ति उसपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com