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सकता है । जो मनुष्य विचारों में बहुत लीन होता है वह बाहिरके विचारकी शक्तिएं नहीं ग्रहण कर सकता है, इसपरसे यह बात सिद्ध होती है कि विचारकी शक्तियोंको ग्रहण करनेवाले पुरुष अथवा स्त्रीको शांत चित्तसे बैठना चाहिये, अपने मनसे विचार नहीं करने चाहिये परन्तु बाहिरसे जो विचारकी शक्तिएँ आवे उनको ग्रहण करनेके लिये तत्पर रहना चाहिये ।।
___ जब सारंगी आदिके तार बरोबर करते हैं वे एक दूसरे सुरको ठीक करते हैं। एक ही धातुके पांच अथवा दश Curve आकारकी पटिएं होती हैं जब एक पटीको ठीक की जाती है तब अपने आप जितनी पटीएं होती है ठीक हो जाती हैं और एकसी शक्ति उनमेंसे उत्पन्न होती है अतएव जिस मनुष्यको संदेशा भेजना हो और उसको ग्रहण करना हो वे दोनों एक ही प्रकारकी आंदोलन ( शक्ति ) की अवस्थामें होने चाहिये और स्थिति एक प्रकारके विकारवाले मित्रोंमें, पति पत्नी में और एक कुटुम्बके मनुष्यों में होती है। प्रथम यह प्रयोग समान वयके मित्रोंमें, समान वयकी स्त्रियोंके साथ अथवा पति पत्नीके साथ करने चाहिये, एक दूसरेके प्रेमके पिपासु होने चाहिए और एक दूसरेपर विश्वास होना चाहिये जिससे कार्य बहुत सरलतासे हो जायगा और फिर किसी भी अन्य मनुष्यके पास विचारसे संदेशा भेननेका कार्य हो सकेगा। एक दफा विनयवंत न होनेसे कभी भी पस्त हिम्मत नहीं होना चाहिये। प्रथम तो इस तरह आरंभ करना चाहिये कि पहिले ही समय विजय प्राप्त हो और इस विद्यामें विश्वास पैदा हो ।
एक दो अथवा तीन वक्त निष्फल हो जानेपर भी इसको
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