________________ दृढ़ रखना ही इस विषयमें सम्पूर्णता प्राप्त करना है। ग्रहण करनेवाले मनुष्यको चाहिये कि वह मनको संकल्प और क्रिया रहित करें / क्रिया करनेका समय / क्रिया करनेका समय किसी भी देशमें क्यों न हो एक ही रखना चहिये / आज जो समय क्रिया करनेका रवखा है कल भी वही समय होना चाहिये / प्रातःकालका 4 अथवा पांच बजेका समय, रात्रिके 9 बादका समयमें जब सर्व शान्त होते हैं, शान्त मनसे करना ही उचित है। जितनामन शान्त और एकाग्रह होगा उतना ही प्रयोग शीघ्र फलीभूत होगा। भेजनेवाले मनुष्यको एक शान्त कमरेमें आराम कुर्सीपर बैठकर तथा अच्छे (Loose) आसन पर बैठकर स्वमनसे विचार करनेकी मानसिक तसवीर तैयार करना चाहिये और फिर अपने उस मनुष्यसे जिस तरह बातचीत करते हैं उसी तरह संदेश कहना चाहिये। ग्रहण करनेवालेको भी शान्त और संकल्प रहित होकर रहना / जो शब्द बाहिरसे सुने जांय अथवा मनसे उत्पन्न हों उनको लिखने चाहिये, ऐसी स्थितिमें शब्द सुने जायंगे और कभी मनसे उत्पन्न होंगे। ज्यों अभ्यास बढ़ता जायगा उसी तरह अधिक समझमें आता जायगा। यह क्रिया जत्र सिद्ध हो जाय भेजनेवालेको लेनेवाला और लेनेवालेको भेजनेवाला होकर प्रयोग करने चाहिये इससे दोनोंके मन एक हो जायेंगे फिर लेनेवाला मनुष्य चाहे जिस कार्यमें लीन होगा तो भी भेजनेवाले मनुष्यकी विचारशक्ति उसपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com