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(२) घरका स्वामी निर्बल हो तो उसके नौकर स्वछन्दताके वर्तन करते हैं। मनुष्योंने दास रूपी स्योगोंको बहुत ही स्वतंत्रता दी है इसलिये वे मनुष्य समानके अधिकारी बन बैठे हैं । संयोग क्या चीज है ? इस पर कभी विचार नहीं करते हैं ! ये पहाड़ अथवा देव नहीं है। ये मनुष्योंके विचारका ही फल है! विचारसे ही यह अच्छे और बुरे रूपमें मनुष्यके लिये गठित होते हैं संक्षेपमें संयोगका बल अथवा अबल नु यके बल अथवा अबलके प्रतिबिंब है। अपनी निर्बलतासे ही यह पोपानाता है और मार्गमें यह कंटकरूप होता है अतएव संयोगोंके गुलाम न बनकर उनको अपने गुलाम बनानेकी आवश्यक्ता है। ये सर्व विचार शक्तिपर ही निर्भर है कारण कि किसी भी कार्यको करनेसे पहिले विचार ही पैदा होता है और उसी विचार द्वारा कार्य अच्छा अथवा बुरा होता है। मछुप्यके अन्दर विचार एक प्राधान्य वस्तु है। जिसके द्वारा एक स्थानसे दूसरे स्थानपर बिना किसी तारकी सहायताके संदेश भेजे जा सकते हैं इस तरहके सन्देश भेजनेका रिवाज, पहिले भारतवर्ष में था जब कि रेल तार नहीं था, पतिव्रता स्त्रिएँ अपने पति पास इस तरहके संदेश भेजतीथी और इसका उत्तर भी उनको मिलता था। इन बातों का वर्णन हमारे यहां कथनानुयोगमें स्थान २ पर किया है उसको हम अबतक लिखी हुई बात ही मानते थे परन्तु यह बात वैज्ञानिक शोध द्वरा सिद्ध हो चुकी है कि एक मनुष्य विचार द्वारा दुसरेके पास सब तरहकी खबरें भेज सकता है चाहे वह कितने ही हजार कोस दूर क्यों न हो ?
मानसिक संदेश भी इनमेंसे एक है, पहिले अपने यति, मुनि
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