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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
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महावीर वन्दना
जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारण धीर हैं। जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव जलधि के तीर हैं। वे वंदनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं।। जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट् विशाल निर्मल, अचल केवलज्ञान में। युगपद् विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हो व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में ।। जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है। जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावें पार है।। बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मती को, वंदना शत बार है।। जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है।। आतम बने परमातमा, हो शान्ति सारे देश में। है देशना सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में।।
- डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ.भारिल्ल
संपादक : रावसाहेब बालासाहेब नरदेकर, शास्त्री
कुपवाड़, (सांगली) महा.
प्रकाशक
प.ता.शे प्रकाशन संस्था मु.पो.घटप्रभा, त. गोकाक, जि.बेलगाँव (कर्ना.)
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प्रथमावृत्ति : 5 हजार प्रतियाँ ( 21 फरवरी, 2012 ई. : जयपुर पंचकल्याणक के अवसर पर ) द्वितीयावृत्ति : 5 हजार प्रतियाँ (4 अप्रैल, 2012) महावीर जयन्ती
मूल्य : पाँच रुपये
प्राप्ति स्थान : 1.प.ता.शे.प्रकाशन संस्था मु.पो.घटप्रभा, त.गोकाक . जिला - बेलगाँव (कर्ना.) 2.रावसाहेब बालासाहेब नरदेकर शास्त्री मु.पो. कुपवाड़, जिला - सांगली (महा.) पिन - 416425
मुद्रक : श्री प्रिन्टर्स मालवीयनगर इण्डस्ट्रियल एरिया, जयपुर - 302017
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प्रकाशकीय पश्चिम महाराष्ट्र के सांगली-कोल्हापुर जिले में तथा कर्नाटक के बेलगाँव बीजापुर जिले में भी डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के विशेष उपकार से अनेक शास्त्री विद्वान तैयार हो गये हैं। जहाँ इस विभाग में एक भी शास्त्री विद्वान् नहीं था, अब यहाँ 65 से अधिक शास्त्री विद्वान उपलब्ध हैं। ___इन विद्वानों का लाभ समाज को तो मिल ही रहा है, मुझे भी मिल रहा है। इस क्रांतिकारी कार्य से हम लोग विशेष प्रभावित हैं।
डॉ. भारिल्ल के इस कार्य के प्रशंसक एवं प्रेरणा देनेवाले सन्तों तथा विद्वानों का भी मेरे हृदय में अत्यन्त बहुमान है। परमपूज्य आचार्य एवं मुनिराजों के डॉ. भारिल्ल के संबंध में जो विचार एवं सद्भावनाएँ हैं, यदि उनका पता समाज को लगे तो धर्मप्रभावना/धर्मप्रचार में चार चांद लग सकते हैं। ___ इस पवित्र भावना से ही श्री टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर द्वारा आयोजित श्री आदिनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के शुभ अवसर पर हम इस छोटी-सी कृति का प्रकाशन कर रहे हैं। ___ मुझे विश्वास है - इस कृति का प्रभाव समाज पर अनुकूल ही रहेगा, इस भावना के साथ विराम लेती हूँ।
- सौ. इन्दूमती अण्णासाहेब खेमलापुरे अध्यक्षा - प.ता.शे. प्रकाशन संस्था, घटप्रभा, बेलगाँव (कर्नाटक)
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डॉ. भारिल्ल के महत्त्वपूर्ण प्रकाशन
७. समयसार का सार
१. समयसार : ज्ञायकभावप्रबोधिनी टीका ५०.०० ४२. निमित्तोपादान २-६. समयसार अनुशीलन भाग १ से ५ ११०.०० ४३. अहिंसा : महावीर की दृष्टि में ३०.०० ४४. मैं स्वयं भगवान हूँ १०.०० ४५. ध्यान का स्वरूप ५०.०० ४६. रीति-नीति ९५.०० ४७. शाकाहार
८. गाथा समयसार
९. प्रवचनसार : ज्ञानज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी टीका १०-१२. प्रवचनसार अनुशीलन भाग १ से
३
१३. प्रवचनसार का सार १४-१५. नियमसार अनुशीलन भाग १ से
२
३०.०० ४८. भगवान ऋषभदेव ४५.०० ४९. तीर्थंकर भगवान महावीर १५.०० ५०. चैतन्य चमत्कार
१६. छंहढाला का सार १७. मोक्षमार्गप्रकाशक का सार
३.५०
५.००
४.००
४.००
३.००
३.००
४.००
३.००
४.००
२.००
१८. ४७ शक्तियाँ और ४७ नय
३०.०० ५१. गोली का जवाब गाली से भी नहीं ८.०० ५२. गोम्मटेश्वर बाहुबली
२.००
१९. पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व २०.०० ५३. वीतरागी व्यक्तित्व : भगवान महावीर २.०० २०.०० ५४. अनेकान्त और स्याद्वाद
२.००
५.००
२.५०
१०.००
•
२०. परमभावप्रकाशक नयचक्र २१. चिन्तन की गहराइयाँ
२२. तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ २०.०० ५६. बिन्दु में सिन्धु
१६.०० ५७. जिनवरस्य नयचक्रम
३०.०० ५५. शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर
२३. धर्म के दशलक्षण २४. क्रमबद्धपर्याय २५. बिखरे मोती
२६. सत्य की खोज
२७. अध्यात्म नवनीत
२८. आप कुछ भी कहो २९. आत्मा ही है शरण ३०.
. सुक्ति-सुधा ३१. बारह भावना : एक अनुशीलन ३२. दृष्टि का विषय ३३. गागर में सागर ३४. पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव ३५. णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन ३६. रक्षाबन्धन और दीपावली ३७. आचार्य कुंदकुंद और उनके पंचपरमागम ३८. युगपुरुष कानजीस्वामी ३९. वीतराग - विज्ञान प्रशिक्षण निर्देशिका ४०. मैं कौन हूँ
४१. रहस्य : रहस्यपूर्ण चिट्ठी का
१५.०० ५८. पश्चात्ताप खण्डकाव्य १६.०० ५९. बारह भावना एवं जिनेन्द्र वंदना २०.०० ६०. कुंदकुंदशतक पद्यानुवाद १५.०० ६१. शुद्धात्मशतक पद्यानुवाद १२.०० ६२. समयसार पद्यानुवाद १५.०० ६३. योगसार पद्यानुवाद १८.०० ६४. समयसार कलश पद्यानुवाद १६.०० ६५. प्रवचनसार पद्यानुवाद १०.०० ६६. द्रव्यसंग्रह पद्यानुवाद
७.०० ६७. अष्टपाहुड़ पद्यानुवाद १०.०० ६८. नियमसार पद्यानुवाद ११.०० ६९. अर्चना जेबी
१. तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल (अभिनंदन ग्रंथ )
२. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व और कृतित्व - डॉ. महावीरप्रसाद जैन ३. डॉ. हॅक्रमचन्द भारिल्ल और उनका कथा साहित्य - अरुणकुमार जैन ४. डॉ. भारिल्ल के साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन - अखिल जैन बंसल ५. गुरु की दृष्टि में शिष्य
६. मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
प्रकाशनाधीन
- ७.००
२.००
२.५०
१.००
३.००
५. शिक्षाशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में डॉ. हकमचन्द भारिल्ल के शैक्षिक विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन - नीतू चौधरी
६. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के साहित्य का समालोचनात्मक अनुशीलन- सीमा जैन
७. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व - शिखरचन्द जैन ८. धर्म के दशलक्षण एक अनुशीलन- ममता गुप्ता
०.५०
३.००
३.००
१.००
३.००
५.०० ७०. कुंदकुंदशतक (अर्थ सहित) ५.०० ७१. शुद्धात्मशतक (अर्थ सहित) ५.०० ७२-७३. बालबोध पाठमाला भाग २ से ३ १५.०० ७४-७६. वीतराग विज्ञान पाठमाला भाग १ से ३ १०.०० ७७-७८. तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग १ से २ ११.०० डॉ. भारिल्ल पर प्रकाशित साहित्य
७.००
१२.००
२.५०
१.५०
५.००
५.००
६.००
१५०.००
३०.००
१२.००
२५.००
५.००
५.००
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समयसार का शिखरपुरुष मुझे तो ऐसा लगता है कि जैनदर्शन का मर्म समयसार में भरा है और समयसार का व्याख्याता आज आपसे (डॉ. भारिल्ल) बढ़कर दूसरा नहीं है। आपको इसका बहुत गूढ़ गंभीर ज्ञान भी है और उसके प्रतिपादन की सुन्दर शैली भी आपके पास है। ___यदि आपको आज की तिथि में समयसार का शिखरपुरुष घोषित किया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
आज के समय में जब एक-दो बच्चों को पालना भी (संस्कारित करना) बहुत कठिन है, आपने सैंकड़ों बालकों को जैनदर्शन का विद्वान बनाकर भी समाज की महती सेवा की है, जो इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखी जाती रहेगी। - राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज
आत्मवित् होने की दिशा में प्रस्थान वर्तमान में कोई व्यक्ति आत्मवित् है - यह कहकर मैं अतिशयोक्ति करना नहीं चाहता; किन्तु निश्चयनय की गहराई तक पहुँचनेवाला व्यक्ति आत्मवित् होने की दिशा में प्रस्थान अवश्य करता है। डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ने इस दिशा में प्रस्थान किया है; यह प्रसन्नता का विषय है। उन्होंने सत्य के रहस्यों को जानने और प्रकट करने के लिए निश्चयनय का बहुत आलम्बन लिया है। ___ यह उन जैन विद्वानों के लिए विमर्शणीय है, जो केवल व्यवहारनय के सहारे सत्य के रहस्यों का उद्घाटन करने का प्रयत्न करते हैं । व्यवहारनय की उपयोगिता को हम कम न करें और साथ-साथ निश्चयनय की उपेक्षा भी न करें।
- आचार्य महाप्रज्ञ, जैन श्वेताम्बर तेरापन्थ के दशम आचार्य
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
आशीर्वचन डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल जिनवाणी के कुशल वक्ता, प्रखर स्वाध्यायी, प्रबुद्ध लेखक, अनुचिन्तक, आध्यात्मिक प्रवक्ता व दार्शनिक विचारक हैं। आप एक सिद्धहस्त लेखक ही नहीं, अपितु वीतरागवाणी के सटीक रचनाकार, व्याख्याकार व समर्थ उद्घोषक भी हैं।
आपका योगदान सकल जैनसमाज के लिए ही नहीं, अपितु देश के लिए भी अमूल्य निधि है। ___ मैंने डॉ. भारिल्ल की समय-समय पर प्रकाशित विभिन्न कृतियों को पढ़ा है; जिसमें समयसार अनुशीलन, परमभावप्रकाशक नयचक्र, कुन्दकुन्द शतक, बारहभावना : एक अनुशीलन, क्रमबद्धपर्याय आदि-आदि हैं; जिससे यह अनुभव में आया है कि जिनवाणी के लेखन, पठन, मनन, स्वाध्याय में आपका योगदान अनुपम है।
आप एक सच्चे आध्यात्मिक पुरुष हैं।
मेरा वीतरागता का नारा है कि वीतरागता पूज्य है, वीतरागता धर्म है; वह नारा आपके साहित्य में पूर्णरूपेण वास्तविक रूप में सत्य व प्रत्यक्ष झलकता है।
मेरा आत्मा, मेरा रोम-रोम आपके साहित्य को पढ़कर गद्गद् हो उठता है। अतः आपके लिए मेरे हृदय से, रोम-रोम से मंगल आशीर्वाद हर समय निकलता है। ____डॉ. भारिल्लजी ने बच्चों के कल्याण के लिए भी अत्यन्त सरल व सुबोध शैली में बालबोध पाठमाला, वीतराग-विज्ञान तथा तत्त्वज्ञान पाठमाला आदि अनेक कृतियाँ लिखी हैं; जो कि इनके मार्गदर्शन हेतु बेजोड़, अमूल्य व उपयोगी है।
वीतराग भगवान की वीतरागवाणी को जन-जन के कल्याण व मार्गदर्शन हेतु पहुँचाने का जो आपका प्रयास है, वह अनुपम व सराहनीय है।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
डॉ. भारिल्ल सिद्धान्तों को पूर्णरूपेण माननेवाले, मनन करनेवाले व अपनी लेखनी में उसको वास्तविक रूप में जीवन्त उतारनेवाले प्रखर मनीषी हैं।
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अतः आपके लिए मेरे सम्पूर्ण रोम-रोम से व आत्मा से यही आशीर्वाद है कि आप इसीतरह वीतराग प्रभु की वाणी के पठन-पाठन, मनन, चिन्तन, स्वाध्याय व लेखन में प्रयासरत रहें; ताकि सकल जैनसमाज का ही नहीं, अपितु समग्र देश का कल्याण - मार्ग प्रशस्त हो।
इसी मंगल कामना व भावना के साथ पुनश्च आशीर्वाद सहित । आचार्य श्री धर्मभूषणजी महाराज
ठोस धर्मप्रभावना
( आचार्य श्री समन्तभद्रजी की साधर्मी माणिकचन्दजी भिसीकर, बाहुबली (महाराष्ट्र) से हुई चर्चा का अंश - सम्पादक)
पूज्य आचार्य श्री समन्तभद्रजी महाराज ने आपको एवं तत्रस्थ सभी धर्म बन्धुओं को अनेक आशीर्वाद कहे हैं। उन्होंने आपकी पुस्तक 'धर्म के दशलक्षण' समग्र पढ़ी, जिससे वे अत्यन्त आनन्द विभोर हुए। यह पुस्तक बहुत ही अच्छी एवं प्रभावना पर लिखी गई है - ऐसा उन्होंने कहा ।
ऐसे ग्रन्थ लेखन, प्रवचन आदि द्वारा आप जो ठोस धर्म प्रभावना कर रहे हैं, वह देखकर, पढ़कर उन्हें अतीव सन्तोष होता है। आपकी यह अप्रतिम प्रतिभा तथा विश्लेषण शक्ति ऐसी ही दिनोंदिन विकसित होती रहे - यही सभी की आन्तरिक भावना है। महाराज श्री का आशीष है । आचार्य श्री समन्तभद्रजी महाराज
मुनि श्री निर्वाणसागरजी की दृष्टि में
कुछ चर्चा के पश्चात् ब्र. यशपालजी की भावना यह जानने की हुई कि मुनिश्री का डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के प्रति क्या दृष्टिकोण है? इस सन्दर्भ में ब्र. यशपालजी और बाबूलालजी बांझल, गुना की मुनिश्री से हुई चर्चा के प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत हैं :
:
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
ब्र. यशपाल :- महाराजश्री! क्या आप डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल से परिचित हैं? ___ मुनिश्री :- हाँ, हमारा डॉ. भारिल्ल से बहुत पुराना परिचय है। कई बार मिलान हुआ है। कई बार तो हम पण्डित टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर भी गए हैं, वहाँ उन्होंने हमारा सम्मानपूर्वक प्रवचन भी कराया। ___ मुनिश्री का उत्तर सुनकर मेरी भी भावना हुई कि मैं भी डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के विषय में कुछ पूछू। ____ बांझल - महाराजश्री! क्या आपने डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का साहित्य पढ़ा है?
मुनिश्री :- हाँ भैया, हमने उनकी छोटी-बड़ी पुस्तकें जो हमें मिलीं, खूब पढ़ी हैं। समयसार अनुशीलन के तीनों भाग पढ़े हैं। बारह भावना : एक अनुशीलन भी पढ़ी है।
मेरे प्रश्न के उत्तर के पश्चात् ही ब्र. अचलजी ने भी भारिल्ल साहब के साहित्य के विषय में मुनिश्री से प्रश्न किया।
ब्र. अचल :- हुकमचन्दजी भारिल्ल की लिखित पुस्तकों में से आपको कौन-सी पुस्तक सबसे अच्छी लगी? ___ मुनिश्री :- सबसे अच्छी कहकर हम क्यों राग करें? आगम और अध्यात्म की सभी बातें अच्छी ही होती हैं।
ब्र. यशपाल :- महाराजजी! क्या आपको डॉ. भारिल्ल के साहित्य में कोई आगम विरुद्ध बात दिखाई दी?
मुनिश्री :- नहीं भैया! हमें तो उनकी पुस्तकों में कोई आगम विरुद्ध बात दिखाई नहीं दी। हमको तो उनकी सब बातें आगम अनुकूल ही लगीं। ___बांझल :- महाराजश्री! क्या आपकी कभी डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल से चर्चा हुई है? - मुनिश्री :- हॉ. हम जब भी मिले हैं कोई न कोई तत्त्व-चर्चा जरूर
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
ब्र. यशपाल :
डॉ. भारिल्ल द्वारा जो आध्यात्मिक शिक्षण
प्रशिक्षण शिविरों की परम्परा चली है; वह कितनी उपयोगी है ? मुनिश्री शिविरों से तो समाज को बहुत लाभ हुआ है। तत्त्व की चर्चा जन-जन तक पहुँची है। तत्त्व की चर्चा करनेवाले बहुत सारे पण्डित भी तैयार हुए हैं।
में
बाँझल :- डॉ. भारिल्ल की 'क्रमबद्धपर्याय' नामक पुस्तक की समाज बहुत चर्चा हुई है; क्या आपने भी वह पुस्तक पढ़ी है? मुनिश्री :- हाँ, पढ़ी है । उसमें वस्तुस्वरूप का यथार्थ कथन है । भैया! क्रमनियमित और क्रमबद्ध - दोनों एक ही बात है । इससे तो भगवान की सर्वज्ञता की सिद्धि होती है।
-:
ब्र. यशपाल :- महाराजजी ! डॉ. भारिल्ल जब भी आपसे मिले, उन्होंने आपको नमस्कार किया या नहीं?
मुनिश्री हमारा तो इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि कौन हमें नमस्कार कर रहा है, कौन नहीं; पर जहाँ तक डॉ. हुकमचन्दजी की बात है, वे मुझसे जब भी मिले हैं, तब उन्होंने आदरपूर्वक उचित सम्मान दिया है। - बाबूलाल बांझल, गुना (म. प्र. )
मुनि श्री कैलाशसागरजी के उद्गार
-
:
प्रश्न महाराजश्री क्या कभी आपका डॉ.
9
हुकमचन्द भारिल्ल से
मिलन हुआ है ?
उत्तर - हाँ, मिलन तो 2-3 बार हुआ है, पर वार्तालाप नहीं । प्रश्न महाराज श्री! क्या आपने डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखित साहित्य पढ़ा है ?
उत्तर - खूब पढ़ा है, हमें स्वाध्याय के अतिरिक्त और काम ही क्या है। ज्ञानगोष्ठी, नयचक्र, क्रमबद्धपर्याय खूब पढ़ी है । कुन्दकुन्दशतक और I शुद्धात्मशतक का पाठ तो हम नित्य ही करते रहते हैं ।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
प्रश्न - ‘क्रमबद्धपर्याय' आपको कैसी लगी?
उत्तर - ‘क्रमबद्धपर्याय' संसार की वस्तुस्थिति का यथार्थ ज्ञान कराती है। दृष्टि की स्थिरता में मूल कारण क्रमबद्धपर्याय ही है।
प्रश्न - महाराजश्री! आपने कानजी स्वामी को देखा है? उत्तर - भैया, प्रत्यक्ष तो नहीं देखा है। फोटुओं में अवश्य देखा है। प्रश्न - कानजी स्वामी के विषय में अपना दृष्टिकोण बताइए?
उत्तर - हमें तो कानजीस्वामी का बहुत बहुमान है। आचार्य कुन्दकुन्द एवं अन्य आचार्य महानुभावों की अपेक्षा तो गौण है, पर उन्होंने वर्तमान के इस पंचमकाल में वस्तु तत्त्व के सत्य निरूपण का अद्वितीय कार्य किया है। उन्होंने गत 50 वर्षों में जो तत्त्व ज्ञान दिया है; वह 500 वॉट के लट्ट के समान वस्तुतत्त्व को यथार्थतः स्पष्ट प्रकाशित करता है।
प्रश्न - महाराजश्री! डॉ. भारिल्ल के विषय में आपकी क्या राय है?
उत्तर - भैया! कोई कुछ भी कहे, मुझे तो पूरे भारत देश में उनके समान अन्य कोई विद्वान दृष्टि-गोचर नहीं हुआ।
प्रश्न - उनके व्यक्तित्व के विषय में आपके क्या विचार है? उत्तर - व्यक्ति की प्ररूपणा ही व्यक्ति का सच्चा परिचय कराती है।
प्रश्न - महाराजश्री! डॉ. भारिल्ल की कौन-सी पुस्तक आपको सबसे अच्छी लगी?
उत्तर - भैया, वे तो तार्किक विद्वान और कलम के धनी हैं। उन्होंने अध्यात्म और आगम की विषयवस्तु को अपने तर्कों, उदाहरण और दृष्टान्तों द्वारा सरलभाषा में स्पष्ट किया है। मैंने तो उनकी जो भी रचनाएँ पढ़ीं, वे सभी आगम अनुकूल ही लगीं।
प्रश्न - आपने भारिल्लजी को कभी सुना है?
उत्तर - कई बार उन्हें सुनने का अवसर मिला है। शिखरजी में शिविर के समय, सोनागिर में परमागम मन्दिर के शिलान्यास के समय
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
और इसी खनियांधाना में श्री नन्दीश्वर जिनालय के शिलान्यास समारोह के समय सुना है ।
अरे भैया! 'कुन्दकुन्दशतक' और 'शुद्धात्मशतक' में तो डॉ. हुकमचन्द ने आचार्य कुन्दकुन्द के हृदय को ही हमारे सामने खोलकर रख दिया है। उनसे ही हमें आचार्य कुन्दकुन्द का पूरा-पूरा परिचय मिल जाता है ।
क्या कहूँ? (कुछ सोचते हुए) वे अपने प्रवचन में विषय-वस्तु को स्पष्ट करते हैं, वे किसी से विशेष सम्पर्क नहीं बढ़ाते, प्रवचन के पश्चात् सीधे उठकर चल देते हैं । चलते-चलते कोई उनसे वार्तालाप करे तो उसका सहज उत्तर देते हुए चले जाते हैं। वे अपने प्रवचन में दानादि का विकल्प नहीं करते।
भैया, मैं क्या आशीर्वाद दूँ! हमारा तो सब को ही आशीर्वाद है, हम तो प्राणी मात्र का भला सोचते हैं । दिनांक 2,3,4 अक्टूबर 1999 संयोजन - सुनील, सरल, खनियाँधाना
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तीर्थंकरों की परम्परा में
मैं स्वयं ही द्रव्य स्वभाव से भगवान हूँ तो उसे स्वयं ही स्वाभिमान प्रकट होता है। इसी श्रृंखला में हमारे तीर्थंकर, आचार्य, विद्वान, त्यागी मुनि आदि सुखी हुए हैं और आगे होंगे - अतः वर्तमान में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल भी उसी श्रेणी में अग्रसर हो रहे हैं। मैं उनसे करीबन 50 साल से परिचित हूँ। सो ज्यादा क्या लिखूँ ?
श्री कहानजी (कानजी स्वामी) द्वारा श्री श्री 108 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी का मार्ग दर्शाया गया है, जिसका वर्तमान में डॉ. साहब द्वारा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। वह मुझे अधिक ही अच्छा लगा, जो सुलझा हुआ मार्ग है । उस मार्ग को सभी को ग्रहण करना चाहिए।
पूर्व आचार्यों से इनके प्रवचन में कहीं कोई अन्तर देखने में नहीं आया। हम अपने आत्मा से इनकी धर्म प्रभावना का आदर करते हैं ।
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साथ ही अपनी भावना प्रेषित करते हैं कि इनका कार्य आगे बढ़े, कल्याण हो, इसीप्रकार सभी धर्मप्रचार करें। मेरा आशीर्वाद है।
- आचार्य श्री चन्द्रसागरजी महाराज
शिवसौख्यसिद्धि होवे 'गुणाः पूजास्थानं गुणेषु न च लिंगं न च वयः' आदरणीय विद्वद्रत्न जिनधर्मप्रसारक श्री डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल एक उच्च कोटि के साहित्य भूषण, वक्ता, लेखक एवं जिनधर्म प्रसारक हैं। इनका देश, धर्म व समाज के उत्थान के लिए बड़ा योगदान हुआ है और हो रहा है, उससे मैं भी परिचित हूँ। ___'न धर्मो धार्मिकैर्विना' - ऐसे भव्यात्मा के लिए मेरा सवात्सल्य मंगल सद्धर्म वृद्धि-शुभाशीर्वाद है कि इन्हें स्वात्मोपलब्धि, शिवसौख्यसिद्धि की प्राप्ति होवे- इत्यलम्....।
- आचार्य श्री आर्यनन्दी महाराज समाज के दिशाबोधक मैंने डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के प्रवचनों को अनेक बार सुना है तथा उनके द्वारा रचित साहित्य को पढ़ा है।
वे सिद्धहस्त लेखक हैं तथा अपने प्रवचनों से समाज को मंत्र-मुग्ध कर देते हैं। तत्त्वप्रचार के क्षेत्र में अग्रणी रहकर वे जिनवाणी की निरन्तर सेवा करते हुए समाज को दिशाबोध कराते रहें। मेरा उनको मंगल आशीर्वाद है।
- उपाध्याय श्री श्रुतसागरजी महाराज
प्रभावी प्रवक्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल को हमने बहुत निकटता से तो नहीं देखा; किन्तु जयपुर में उनका भाषण सुनने का प्रसंग बना था। उनके बारे में हमारी धारणा यह बनी है कि डॉ. भारिल्ल एक विशिष्ट विद्वान व्यक्ति हैं, प्रभावशाली प्रवक्ता हैं, लेखक हैं। जैन-शासन को उन्होंने सेवाएँ दी हैं।
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हम उनके प्रति आध्यात्मिक मंगल-कामना करते हैं कि वे अपनी विद्वत्ता, वाक्-कौशल और लेखन कौशल से जैन-शासन की खूब प्रभावना करते रहें।
- युवाचार्य महाश्रमण जैन श्वेताम्बर तेरापन्थ
ज्ञानकुबेर : डॉ. भारिल्ल __ आज डॉ. भारिल्ल जैसे विद्वान खोजना बहुत दुर्लभ है, जिन्होंने अपने बच्चों एवं बच्चों के बच्चों को भी विद्वान बनाया है। मैं ऐसे अनेकों विद्वानों को जानता हूँ, जिन्होंने स्वयं तो ज्ञान का बहुत प्रचार किया; किन्तु वे अपनी ही आगामी पीढ़ी को विद्वान बनाने को तैयार नहीं है या नहीं बना सके। ____डॉ. भारिल्ल ने न केवल देश-विदेश में प्रचार करनेवाले 620 विद्वान बनाये; अपितु अपने परिवार के ही पुत्र-पुत्रियों, नाती-पोतों को विद्वान बनाकर अपने हृदय में ज्ञान की उत्कृष्ट महिमा को प्रदर्शित किया है। आपके परिवार के कुल 17 सदस्य विद्वान बनकर ज्ञान बाँटने का कार्य कर रहे हैं। ____ अद्भुत ज्ञान एवं उस तत्त्वज्ञान के प्रचार में आपके विशिष्ट योगदान को देखते हुए मैं आपको ‘ज्ञान-कुबेर' कहकर ही सम्बोधित करना चाहता हूँ। जो धन बरसावे वह धन कुबेर; जो ज्ञान बरसावे वह ज्ञानकुबेर, चूँकि आप ज्ञान बरसाते हैं; इसलिए आप ज्ञान-कुबेर हैं।
- स्वस्ति श्री भट्टारक चारुकीर्ति स्वामीजी,
जैनमठ, श्रवणबेलगाला (कर्नाटक) सभी की एकता में समाज का बहुत भला है डॉ. भारिल्ल सम्यग्दर्शन हैं, आचार्य विद्यानन्दजी सम्यग्ज्ञान हैं और आचार्य विद्यासागरजी सम्यक्चारित्र हैं; हमें इन तीनों को एक साथ रखना है और एक साथ देखना है। सभी की एकता में समाज का बहुत भला है।
- भट्टारक श्री चारुकीर्तिजी, मूढ़बिद्री मठ ·
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
प्रकाशनमान ध्रुवतारा पण्डितजी जीवन की शुरुआत से ही सरस्वती की आराधना, स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन में लगे हुए हैं। समयसार आदि उत्कृष्ट ग्रन्थों का अध्ययन एवं स्वाध्याय करके अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
आपको जिनवाणी की विशेष सेवा करने की शक्ति मिली है।
पण्डितजी की मौलिक कृति ‘क्रमबद्धपर्याय' को कई बार पढ़ा। यह कृति वर्तमान में सारस्वत विद्वत् लोक में प्रज्वलित प्रकाशमान ध्रुवतारा है।
-स्वस्ति श्री भुवनकीर्ति भट्टारकस्वामीजी
श्री क्षेत्र कनकगिरि मठ, मलेयूर (कर्नाटक)
मर्मज्ञ विद्वान डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल जैनदर्शन के मर्मज्ञ विद्वान हैं, गम्भीर लेखक और प्रखर वक्ता हैं। अपनी कुशल लेखनी से मौलिक साहित्य का सृजन कर डॉ. भारिल्ल ने जिनवाणी की विशेष उपासना की है। ___डॉ. भारिल्लजी वर्षों से श्रुत की उपासना में लगे हुए हैं - यह उनका साहित्य बताता है। आप समाज द्वारा 'विद्यावाचस्पति', 'वाणीभूषण', 'जैनरत्न' - आदि कई उपाधियों से भूषित हुए हैं।
समयसार अनुशीलन ग्रन्थ विशेषतः पठनीय और मननीय हैं । जीवन के अनमोल क्षण अध्यात्म के साथ सघनता से जुड़े रहें - यही मंगल कामना है।
- साध्वी संघमित्रा, जयपुर (राज.)
मूर्धन्य विद्वान डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ऐसे ही मूर्धन्य विद्वानों में हैं, जिन्हें ज्ञान की गम्भीरता के साथ-साथ, तत्त्वज्ञान जैसे नीरस विषय को भी सरस बनाकर उसे श्रोताओं को हृदयङ्गम् कराने की उत्कृष्ट प्रवचन-कुशलता भी जन्मजात रूप से प्राप्त है। -डॉ. दामोदर शास्त्री, जैन विश्वभारती, लाडनूं
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
___ युगान्तरकारी साहित्य के अग्रदूत डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल क्या हैं? - एक युग हैं, एक व्यक्ति हैं, एक विद्वान हैं, एक संस्था है, एक शिक्षक हैं, एक गद्यकार हैं, एक पद्यकार हैं, एक प्रवचनकार हैं, एक वक्ता हैं, एक अध्ययनकार हैं, एक क्रांतिकारी हैं, एक शांतिदूत हैं या गुरुदेव के अग्रगण्य दूत हैं। ____ 20वीं सदी गुरुदेव की शताब्दी माना जाती है; क्योंकि उनके समर्थकों में भी एकमात्र वे ही चर्चा का विषय रहते थे और उनके विरोधी भी जितनी चर्चा उनकी करते थे, उतनी अपने आराध्य की भी नहीं करते थे। तत्कालीन समस्त जैन समाचार पत्र-पत्रिकाओं के हर अंक में उन पर लेख, टिप्पणियाँ अवश्य होती थीं, चाहे वे विरोध में हो या समर्थन में। ___ 21वीं सदी में डॉक्टर साहब समस्त दि. जैन समाज के अति चर्चित व्यक्ति रहे हैं। कोई भी पत्र-पत्रिका हो, डॉक्टर साहब को या तो सर्वोच्च अध्यात्म प्रचारक मानती रही है या उन्हें दि. जैन समाज का सबसे बड़ा खलनायक घोषित करती रही है। ___ 21वीं सदी टोडरमल स्मारक से प्रकाशित साहित्य को मंदिरों में या तो नई अलमारियाँ खरीद कर भरा गया है या उस साहित्य को बाहर फैंकने के, नदी में डुबो देने के प्रयास हुए हैं। संपूर्ण दि. जैन समाज को
आज भी गुरुदेव या डॉ. भारिल्ल का साहित्य आंदोलित किए हुए हैं। ___ 21वीं सदी का “युगपुरुष" यदि डॉ. भारिल्ल को घोषित किया जाए तो उनके आंतरिक एवं बाहरी विरोधियों को भी स्वीकार्य होना चाहिए। ____डॉक्टर भारिल्ल ने अपने प्रवचनों के माध्यम से, अपनी लेखनी के माध्यम से, अपनी सूझ-बूझ से गुरुदेवश्री के समान ही हजारों गैर दिगम्बरों में दिगम्बर धर्म के लिए आकर्षण पैदा कर दिया, दिगम्बर शास्त्रों को पढ़ने का चाव पैदा कर दिया। उनके हृदय में दिगम्बर धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न कर दी, आध्यात्मिकसत्पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री के प्रति उन्हें श्रद्धावान
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल बना दिया है। 28 वर्ष से प्रतिवर्ष श्वेताम्बर पर्युषण पर्व पर मुम्बई में भारतीय विद्याभवन जैसे भवनों में प्रवचन करके, न केवल स्वयं ने प्रवचन किये, अपितु शिष्यगणों द्वारा प्रवचन-कक्षाओं के कार्यक्रम करके यह महान कार्य किया है।
एक सभा में मैंने कहा था - अगर 20वीं सदी गुरुदेव की मानी जाएगी तो 21वीं सदी उनके शिष्य डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल को समर्पित की जाएगी। गुरुदेव के अवसान के पश्चात् एक कुहासा, एक अंधकार सा छा गया था, यह तो हमारा सौभाग्य है कि गुरुदेवश्री का डॉ. हुकमचन्दजी जैसा उद्भट शिष्य हमें मिल गया, जिसने सोनगढ़ के सूर्य को अस्त नहीं होने दिया एवं दीपक से ही सही संपूर्ण मुमुक्षु समाज को आलोकित किए रखा। अपनी प्रतिभा से, अपनी कार्यशैली से वे एक प्रकाशपुंज बन गए एवं जैनदर्शन की, द्रव्यानुयोग की, आत्मधर्म की एवं जैन अध्यात्म की दुंदुभियाँ फिर से बजने लगी और पंचपरमागम के पश्चाश्चर्य प्रस्फुटित होने लगे। ___डॉक्टर साहब की सर्वोत्कृष्ट कृति पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट
आज विश्व का सबसे सशक्त अध्यात्म केन्द्र है, आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। जब पूरे विश्व को भौतिकवाद ने अपने आगोश में समेट लिया हो, तब राजस्थान के रेगिस्तान में टोडरमल स्मारक एवं यहाँ चलनेवाले जैन सिद्धान्त महाविद्यालय को डॉ. भारिल्ल का नेतृत्व नखलिस्तान की मानिंद सुकून प्रदायक है।
डॉक्टर साहब आपमें शक्ति है, आपकी वाणी में ताकत है। आपका अध्ययन एवं चिन्तन तलस्पर्शी है, अजेय है समन्तभद्र की तर्कशक्ति आपको प्राप्त हुई है, आप आगम बुद्धि के धारक हैं, साधर्मी वात्सल्य आपको प्रकृति प्रदत्त है तत्त्वप्रचार के लिए आप आजीवन समर्पित रहे हैं
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सम्पूर्ण जैन समाज ही नहीं, सम्पूर्ण धार्मिक समाज के उन्नय के लिए निरंतर साहित्य सृजन करते रहिए; जीवन के इस दौर में स्वामीजी जो विरासत आपको सौंप कर गए हैं,, उसे हजार हाथों से लुटाइए, और लाखों हाथों में बांटिए।
गुरु कहान की वाणी जो, डॉक्टर साहब आप न फैलाते, शुद्धात्म सुधा सार कहो कौन पिलाते, कहो कौन पिलाते?
- समाजरत्न अशोक बड़जात्या, इन्दौर डॉ. भारिल्ल का वीतरागी व्यक्तित्व आज विद्वत् जगत में, समाज में यह बड़ी भारी चिंता का विषय हो गया कि डॉ. भारिल्ल के बाद कौन? क्योंकि भारिल्लजी संस्था के . पर्यायवाची बन चुके हैं, प्राण बन चुके हैं; उनकी आत्मा का इसमें निवास हो रहा है। ____ आचार्य कुन्दकुन्द के समयसारादि जो ग्रंथ हैं, उन पर आचार्य अमृतचन्द्र, जयसेनाचार्य की जो टीकाएँ हैं, उन टीकाओं को दोनों भाइयों . ने इतनी गंभीरता से आत्मसात किया है, कहा नहीं जा सकता। . . __इन लोगों ने ऐसा चिंतन किया हैं कि ये उसमें तन्मय हो गये हैं। इनको दूसरी दुनिया दिखाई ही नहीं पड़ती। इनसे किसी और विषय की चर्चा करो तो कहेंगे कि नहीं, हमें इससे कोई मतलब नहीं। हमें तो अपना आत्मा देखना है । जो एक को जानता है, वह सबको जानता है। प्रत्येक आत्मा परमात्मा है, इसलिए आत्मा को जानो तो सब जान जाओगे। ऐसे आत्मा को आपने जाना है और इसे अपने जीवन में उतारा है। - वे आत्मा में ऐसे तन्मय हो गये हैं कि उससे बाहर निकलते ही नहीं हैं। हमने बहुत खोलने की कोशिश की, पर उन्हें बाहरी बातों में कोई आकर्षण नहीं है।
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ये जहाँ भी जाते हैं, अपनी ही बात कहते हैं। आप किसी भी मंच पर चले जायें, कहीं संकोच नहीं करते। ____ दादा (डॉ. भारिल्ल) की यही आदत है । उन्हें संसार में कोई आकर्षण नहीं है। न उन्हें कोई लाभ की आकांक्षा है और न हानि का भय। उन्हें तो चाहे निंदा करो, चाहे प्रशंसा करो, लक्ष्मी आवे, चाहे चली जावे, मरण आज हो जाये, चाहे कालांतर में हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें कोई चिंता नहीं है। अपने न्याय के पथ से आप विचलित होनेवाले नहीं हैं। ___आप कितना भी ठोक-बजा लो इनको, परन्तु आपका आत्मा का जो सिद्धांत है, जो कुन्दकुन्द का सिद्धान्त है, उस सिद्धान्त से डिगनेवाले नहीं हैं। वे जब भी कहेंगे, तब उसी बात को कहेंगे। ऐसी दृढ़ता कैसे
आये? ऐसा सफल अगर किसी को बनना है, तो कैसे बनेगा? । ____ हमें कभी भी ऐसा दिखाई नहीं पड़ा कि प्रवचन करते समय इनके
चेहरे पर जरा भी शिकन आई हो। मुस्कराते रहते हैं, हँसते हुए, हँसाते हुए आत्मा का बोध आप कराते हैं। अद्भुत हैं। . आप (डॉ. भारिल्ल) सरस्वतीपुत्र हैं, आपको मैं नमस्कार करता हूँ। हम यहाँ अपनी अंतरात्मा की आवाज से आये। हमारे अंतरात्मा ने कहा कि आप एक विभूति हैं, आपका हीरक जयन्ती महोत्सव हो रहा है, उसमें जरूर जाना चाहिए, उनसे कुछ सीखना चाहिए।
- प्रो. डॉ. सुदर्शनलाल जैन, वाराणसी (उ.प्र.)
अनूठे व्यक्तित्व के धनी आज जब देश के कुछ तथाकथित विद्वान सैद्धान्तिक मतभेदों के कारण अपनी शालीनता को तिलांजलि देकर, असंयत भाषा का प्रयोग कर, एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हों; एक एक शब्द पर अपने पक्ष के पोषण के लिये निम्न स्तर की भाषा अपने पत्र-पत्रिकाओं
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल में प्रयोग करने पर उतर आये हों; 'मैं ही ठीक हूँ' के आग्रह से भरी उनकी लेखनी हो; दूसरा भी ठीक हो सकता है, दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं - यह सोच जिनकी कुंठित हो चुकी हो; स्याद्वाद और अनेकान्त की चर्चा करते हों, किन्तु आग्रह और एकान्त में जीते हों और तिरस्कार भरे शब्दों का प्रयोग करते हों; ऐसे समय में एक ऐसा अनूठा व्यक्तित्व जो शालीनता, समन्वय, सज्जनता, सरलता बनाये रखकर, धर्मध्वजा को लेकर विश्व में धर्म की प्रभावना कर रहा हो; ऐसे व्यक्तित्व को मैं प्रणाम करता हूँ और वह व्यक्तित्व है डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल । मैं कई बातों में उन्हें आदर्श मानता हूँ। - रमेश कासलीवाल, इन्दौर
गगनचुम्बी ऊँचाइयाँ मैं डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल साहब को कई दशकों से जानता हूँ और उनके साहित्य का मैंने अध्ययन भी किया है।
उस अध्ययन की मौलिकता और गंभीरता को देखकर मैंने यह अनुभव किया है कि यदि वे मेडिकल डॉक्टरी के क्षेत्र में होते, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में होते या राजनीति के क्षेत्र में होते, तो उसमें भी उन्होंने गगनचुम्बी ऊँचाइयों को छुआ होता। ___मुझे ऐसा लगता है कि उनकी टक्कर का कोई भी लेखक दिखाई नहीं देता। वैसे बहुत से लेखक हुए हैं, लेकिन इनकी लेखनी में जो प्रौढ़ता है, मौलिकता है; वह दूसरों में नहीं।
- डॉ. राजाराम शास्त्री, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया
जैन वाङ्गमय के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल आज जैन वाङ्गमय के प्रकाण्ड विद्वान हैं तथा सिर्फ राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज में उनका नाम है। ___ यदि हम सेवा गिनें तो निःसंकोच मैं कह सकता हूँ कि उन्होंने जैन धर्म का प्रचार सारे विश्व में करके हमारी सुसुप्त अवस्था को जाग्रत कर,
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क्रियाकाण्ड से ऊपर उठकर अध्यात्म की ओर जनता को मोड़ा है।
डॉ. भारिल्ल जी एक महान वक्ता एवं अध्यात्म के ज्ञानी हैं, मैंने उन्हें नजदीक से देखा एवं परखा है, दिगम्बर सन्तों के प्रति इनके विनम्र भाव एवं उनके त्याग के प्रति असीम श्रद्धा है।
- पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी, पूर्व विधायक, इन्दौर (म.प्र.)
प्रामाणिक ज्ञान साधना । डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल इस युग के अत्यधिक प्रभावशाली प्रवक्ता, लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार और समाज-सेवी हैं। उनकी हमारे जैन-अनुशीलन केन्द्र के कार्यक्रमों में सदा सहभागिता रही है। मैंने उनका एक घण्टे तक धाराप्रवाह आकर्षक प्रवचन सुना है। उनके प्रवचन इतने ठोस एवं प्रभावशाली होते हैं, जिन्हें सुनकर जनता गद्गद हो जाती है।
विद्वत्ता, वक्तृता और लेखन - तीनों की दृष्टि से उनकी सरस्वती अद्वितीय है। विषय को सरल एवं सुपस्पष्ट करना और विचारों की छाप श्रोता पर छोड़ देना, उनकी निजी विशेषता है । उनकी वाणी बड़े कोलाहल में भी नीरवता ला देती है और सुननेवाला उनकी दो टूक बातों को सुनकर उन पर विचार करने और कार्य करने को मजबूर होता है।
डॉ. भारिल्लजी की प्रामाणिक ज्ञान-साधना अद्भुत रूप से धारावाही तथा अखण्ड रही है। आपका सुसंस्कृत व्यक्तित्व समाज के लिए आदर्श एवं वरदान स्वरूप रहा है। - प्रो. के.एल. कमल, कुलपति राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
एक विरल व्यक्तित्व डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल यशस्वी वक्ता, सिद्धहस्त लेखक एवं अच्छे काव्यकार हैं। उनके लेखन एवं प्रवचन अविराम चलते हैं। लेखन की असामान्य प्रतिभा के कारण वे अपना शोध-प्रबन्ध ‘पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व', 'तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ', ‘क्रमबद्धपर्याय', 'परमभावप्रकाशक नयचक्र' जैसे लगभग 80 तात्त्विक
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल ग्रन्थों का प्रणयन कर काफी लोकप्रिय हुए हैं और जिनका अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है एवं जो लाखों की संख्या में विक्रय होकर घर-घर पहुँचे हैं।
अपनी इन रचनाओं एवं तात्त्विक तर्कशैली के कारण वे पूज्य गुरुदेवश्री के प्रशंसा के पात्र रहे हैं। पूज्य गुरुदेवश्री से तत्त्वग्रहण करके उन्होंने आजीवन तत्त्वप्रचार का जो व्रत लिया, उसे वे अखण्ड निभा रहे हैं। समाज को उन्होंने काफी दिया है और उसी से उपकृत समाज उन्हें अनेक बार सम्मानित भी कर चुका है।
एक सामान्य अध्यापक से उठकर सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के धनी डॉ. भारिल्ल ने उन्नयन के शिखर को छुआ है। सचमुच यह उनके व्यक्तित्व की विरलता है। आज डॉ. भारिल्ल स्मारक के साथ अपने गहरे एकत्व के कारण स्मारक के ही पर्याय बन गए हैं। ___मेरी कामना है कि डॉ. भारिल्ल परिवार युग-युग-जिए और पूज्य गुरुदेवश्री की तत्त्वधारा को उस युगान्तर की अनन्तता में ले जाए, जहाँ अध्यात्म के शिखर पर पूज्य गुरुदेवश्री के भवान्तक तत्त्व की ध्वजा चिरअनन्त तक फहराती रहे। - बाबू जुगलकिशोर 'युगल', कोटा
उनका जीवन-व्रत अनुकरणीय है तत्त्वज्ञान के प्रचार से प्राणीमात्र के उद्धार के लिए सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर करने का उनका जीवन-व्रत अनुकरणीय है, अभिनन्दनीय है।
सिद्धान्त समझाना तो सरल भी हो सकता है, पर स्वयं अपने पर उनका सफल प्रयोग दुर्लभ है। पण्डितजी ने सादगी से उन सिद्धान्तों को स्वतः ओढ़कर जो आदर्श उपस्थित किया है, वह उनके प्रवचन को सुग्राह्य बना देता है।
- निर्मलचन्द्र जैन, राज्यपाल : राजस्थान सरकार, जयपुर
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जैन शासन के स्तम्भ एक ही व्यक्ति में इतनी विशेषताएँ होना एक असाधारण व्यक्तित्व को ही सिद्ध करती हैं।
साथ ही वर्तमान की भौतिक चकाचौंध में भी, अपने व्यक्तित्व का उपयोग भौतिक कामनाओं की पूर्ति में करने का भाव भी नहीं होना, यह तो इस युग में एक आश्चर्य ही है और आत्मार्थीपने का एक अनुकरणीय उदाहरण भी है।
इस संस्था के लगभग 33 वर्षों के कार्यकाल में आज तक, डॉ. साहब ने कभी सुखापेक्षी भावना व्यक्त नहीं की। उनका रहन-सहन, व्यवहार सभी सीधा-सादा-सा, जैसा प्रारम्भ में था, वैसा ही अभी भी चला आ रहा है। ___संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त है कि डॉ. साहब आत्मार्थिता के धनी, मन-वचन-काय से तत्त्वज्ञान के प्रचार में अपना जीवन समर्पित करनेवाले, किसी भी प्रकार के प्रलोभनों से आकर्षित नहीं होनेवाले, यथार्थ मार्ग के प्रखर एवं निर्भीक वक्ता व प्रचारक होने के साथ-साथ कुशल लेखक भी हैं। आपके द्वारा लिखित एवं सम्पादित साहित्य युगोंयुगों तक यथार्थ मार्ग अर्थात् यथार्थ जैनशासन को टिकाए रखने में स्तम्भ का कार्य करेगा। इतिहास इसकी साक्षी देगा।
- नेमीचन्द पाटनी, महामंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, बेलनगंज आगरा
चतुर्मुखी प्रतिभा के धनी डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल जैनजगत के लोकप्रिय प्रवक्ता, आकर्षक लेखक, रोचक सम्पादक, अध्यात्म के प्रमुख अध्येता, सफल संस्था संचालक एवं मनीषी तार्किक विद्वान हैं।
पूज्य गुरुदेवश्री के पश्चात् तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार का श्रेय आपको
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. मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल ही जाता है। आपने तत्त्वज्ञान को जीवनदान देने के साथ उसका संरक्षणसंवर्द्धन किया है। आपने विविध आयामों के माध्यम से अध्यात्म को वृहदाकार दिया है।
- पण्डित प्रकाशचन्द 'हितैषी',
सम्पादक, सन्मति सन्देश, दिल्ली चतुर्मुखी व्यक्तित्व के धनी जैनजगत में ‘भारिल्ल' यह नाम जन-जन में प्रचलित हो गया है। आध्यात्मिक शिविरों में, संगोष्ठियों में, अहिंसक सम्मेलनों तथा धार्मिक उत्सवों और अब समयसार वाचनाओं में डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल को शीर्ष स्थान प्राप्त है।
केवल भारत में ही नहीं, देश-देशान्तरों तथा विदेशों के विशाल भू-भाग में उनकी आध्यात्मिक गूंज सुनाई पड़ती है।
प्रवचनों के माध्यम से उन्होंने सभी तरह के जन-मानस में एक लोकप्रिय स्थान बना लिया है। .. एक प्रखर आध्यात्मिक प्रवक्ता होने के साथ-साथ अच्छे कथाकार का गुण भी उनमें समाहित है। भले ही प्रवचनों-भाषणों में आध्यात्मिक दृष्टि प्रधान हो; किन्तु व्यवहार की निस्तरंगता, लोक प्रचलित घटनाओं तथा दृष्टान्तों की अन्विति से कठिन से कठिन विषय को जन-मानस में प्रविष्ट कराने की कला में निपुण होना ही उनके व्यक्तित्व की विशेषता है।
अध्यात्म की रुचि रखनेवालों में तो उनकी प्रसिद्धि एक अनुभवी पण्डित के रूप में ख्यात है, लेकिन विरोधियों में भी आपकी प्रविष्टि सहज है। ___इस देश में आज जैन तत्त्वज्ञान की जो विशाल पौध लहराती नजर
आ रही है; उसमें डॉ. भारिल्ल एवं भारिल्ल परिवार का विशेष योगदान रहा है।
-- देवेन्द्रकुमार जैन, भूतपूर्व अध्यक्ष, श्री अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद्, नीमच (म.प्र.)
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
. अध्यापन-शैली के शिखर पुरुष
डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की वाणी में ज्ञान और ओज का मणिकांचन संयोग है। प्रारम्भ में दार्शनिक दुरूहता तथा जटिल वैचारिक गुत्थियों को सरल और सुगम शैली में अभिव्यक्त करने की बेजोड़ कला के कारण वे वस्तुतः जैन साहित्य जगत में पहचान बनने लगे। ___ अपने अध्यात्म साहित्य से इस शैली में उत्तरोत्तर वे सुधार और निखार प्राप्त करते गए और आज वे अपनी सरल-सुगम अध्यापन-शैली के शिखर पुरुष बन गए हैं। - डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया, अलीगढ़
महान उपकार किया है। पूज्य गुरुदेवश्री की दृष्टि में डॉ. साहब का तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार में विशिष्ट स्थान है, इसलिए उन्होंने एक बार महावीर निर्वाण महोत्सव के दिन घोषणा की थी कि पण्डित हुकमचन्द का क्षयोपशम बहुत है, उनके . द्वारा धर्मप्रभावना बहुत होगी। ___ यह तो जगजाहिर एवं सर्व-स्वीकृत तथ्य है कि इस युग में पूज्य श्री कानजी स्वामी के पश्चात् डॉ. साहब के द्वारा ही कुन्दकुन्द की वाणी का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है।
. इसके साथ-साथ अत्यन्त अल्प मूल्य में लाखों की संख्या में वीतरागी सत्साहित्य का प्रकाशन हो रहा है और निरन्तर घर-घर में पहुंच रहा है। डॉ. साहब के रोम-रोम में कुन्दकुन्द की वाणी के साथ अन्य आचार्यों की वाणी भी समायी हुई है।
आचार्यों के गम्भीर साहित्य को सर्व साधारण की विषयवस्तु बनाने में डॉ. साहब का महान योगदान है।
श्री पूरनचन्द गोदीका द्वारा निर्मित पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर की छवि बनाने में और समस्त संस्थाओं को सर्वोपरि करने में डॉ. साहब का अत्यन्त श्रम रहा है।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
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डॉ. साहब ने हम विद्यार्थियों पर लगातार पाँच वर्षों तक अथक् परिश्रम कर, विद्वान बनाकर महान उपकार किया है।
डॉ. साहब मुमुक्षु भाई-बहिनों से कहते हैं - आप कच्चे माल के रूप में हमें एक विद्यार्थी दो, हम उसे सर्वप्रकार से पक्का करके उच्चकोटि का विद्वान बनाकर आपको सौंप देंगे - ऐसी कला के धारक हैं डॉ. साहब।
वर्तमान में हमारी प्रथम बैच के विद्यार्थी ब्र. अभिनन्दनकुमारजी, पण्डित अभयकुमारजी, डॉ. श्रेयांस कुमारजी, पण्डित राकेशकुमारजी, पण्डित महावीरजी पाटिल, डॉ. सुदीपजी शास्त्री, पण्डित कमलेशकुमारजी, पण्डित राजकुमारजी इत्यादि का दिगम्बर जैन मुमुक्षु समाज में उच्चकोटि के विद्वानों में नाम लिया जाता है।
यह सब डॉ. साहब का ही प्रशस्त प्रदेय है। आपके सान्निध्य में तैयार हुए हजारों विद्वानों का परम्परा से पंचमकाल के अन्त तक पूज्य गुरुदेवश्री के तत्त्वज्ञान को टिकाए रखने में योगदान रहेगा।
तत्त्वज्ञान से इन विद्वानों का स्वयं का तो हित होगा ही, साथ-साथ परहित भी अलौकिक होगा। - ब्र. जतीशचन्द्र शास्त्री, सनावद
___ अध्यात्म के सजग प्रहरी वस्तुतः भारिल्लजी एक व्यक्ति नहीं, एक संस्था हैं। नई पीढ़ी के लिए आदर्शरूप में एक प्रेरक स्तम्भ हमारे समक्ष उपस्थित हैं। धन्य है जैनसमाज! अनन्य है यहाँ की रज, जिसने एक ऐसी विभूति को पाया, जो न सिर्फ अपने कल्याण में लगी हुई है; अपितु जिज्ञासुओं को सम्यक् दिशा की ओर अभिप्रेरित करने में सदा अग्रसर है। .. __कहते हैं कि दुनिया के लोग यश के लिए पागल होते हैं और अधिकांश लोग उसके पीछे-पीछे दौड़ते हैं; पर यह उनकी पकड़ में नहीं आता। कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं, जिनके पीछे यश भागता है; पर वे उसकी पकड़ में
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल नहीं आते। डॉ. भारिल्लजी ऐसे ही विशिष्ट व्यक्ति हैं, जो सिर्फ अपने मिशन में व्यस्त हैं और यश उनके पीछे भागता है। ऐसे महामनीषी, बेजोड़, व्यक्तित्व के धनी को मेरे अनेक-अनेक प्रणाम।
- डॉ. राजीव प्रचण्डिया, अलीगढ़
निष्णात विद्यागुरु इस कार्य की लक्ष्य पूर्ति हेतु मुझे तलब लगी एक ऐसे योग्य निष्णात विद्यागुरु की, जो इस संकल्पित अनुष्ठान को अपनी समग्र प्रतिभा के साथ परिपूर्ण कर सके।
ऐसी प्रतिभा की खोज हेतु अन्ततः मैं निकल पड़ा देशव्यापी यात्रा पर और मुझे एकदा अन्धेरी कालगुहा के छोर पर दिखाई पड़ी एक उजड़ी-सी रजत-रेखा। मैंने सन् 1980 में पहली बार डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के बारे में सुना, फिर उन्हें देखा और उनसे मिला। अगले दो सालों तक मैंने उनके प्रवचन व व्याख्यान सुने । बहुत नजदीक से उन्हें समझने व उनका आकलन करने का सुयोग पाया।
सन् 1982 में, मैंने डॉ. भारिल्ल के सम्मुख, जैन अध्यात्म स्टडी सर्किल फैडरेशन' संगठन की संस्थापन की योजना प्रस्तुत की। ___ उन्होंने वादा किया अपने बेझिझक सहयोग का, आत्मस्फूर्त निरन्तरता की आश्वस्ति का और अपने क्रियाशील योगदान का।
उस वक्त यही वह शख्स था, जिसने इस संगठन की परिकल्पना पर दूरगामी दृष्टि दौड़ाई और भविष्य का कथन किया कि यह संगठन जैनदर्शन की आधारभूत संकल्पना को साकार करेगा, न केवल मुम्बई के दायरे में; बल्कि देश-विदेश के फलक पर । ___ डॉ. भारिल्ल, प्रदीप्तिमान व्यक्तित्व और गत्यात्मक चरित्रवत्ता से सम्पन्न, आज समूचे समुदाय के नेतृत्वकर्ता हैं। आप हैं एक आदर्श विद्यागुरु।
- दिनेशभाई मोदी, मुम्बई
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तस्मै श्री गुरवे नमः स्वामी विवेकानन्द के बाद विदेश में भारतीय धर्मों का सही अर्थ में प्रचारक यदि भारत को कोई प्राप्त हुआ है तो वे डॉ. भारिल्ल ही हैं, उन्हें ही यह श्रेय दिया जा सकता है।
ऐसे कई लोग होंगे जो संस्थाएँ चलाने में निष्णात हों, ऐसे भी कई लोग होंगे जो प्रवचन करते हों, ऐसे भी लोग मिलेंगे जो पत्रिकाओं का सम्पादन, लेखन कार्य करते हों; पर एक साथ ये सब कार्य करनेवाला एक व्यक्ति नहीं मिल सकेगा और वह भी सबमें समान सामर्थ्य व कुशलता के साथ । लेकिन डॉ. भारिल्ल इसके अपवाद हैं, इस एक व्यक्तित्व में ये सब विशेषताएँ समाहित हुई हैं और वह भी पूर्णता के साथ। प्रशासक, उत्तम प्रवचनकार नहीं बन सकते। पर आश्चर्य होता है इस बात पर कि डॉ. भारिल्ल दोनों एक साथ कैसे हैं? यह मुझे ही नहीं, किसी को भी आश्चर्य में डालने वाली बात हो सकती है। - बाहुबली भोसगे, हुबली (कर्नाटक)
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान बीसवीं सदी के महान सन्त आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी द्वारा पैंतालीस वर्षों तक आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान की जो ‘ज्ञानामृत' वर्षा हुई है; उसको जन-जन तक पहुँचाने में जिनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, जिन्होंने अपनी मधुरवाणी और आध्यात्मिक कलम से तत्त्वज्ञान को प्रचारित किया है - ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी डॉ. भारिल्ल हैं। - वाणीभूषण पण्डित ज्ञानचन्द जैन,विदिशा (म.प्र.)
वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो काल के माँझी से अगर मैं अभ्यर्थना करूँ कि वह अपनी नौका का लंगर एक ऐसे घाट पर डाले, जिस घाट पर स्वाध्याय की सहज परंपरा का सशक्तिकरण हुआ हो, ऐसा घाट वह खोजे जहाँ वीतराग-विज्ञान के अभ्यास स्ट्रक्चर, कॉन्सेप्ट बने हो, स्वयं को समझने की कोशिश हुई हो,
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व्यवस्थित ढंग से सीखने, समझने, परखने, जानने और महसूस करने की कोई कोशिश हुई हो, हर उम्र के अभ्यासी के मन में श्रद्धासिक्त विश्वास को गहरे बैठाने की कोशिश हुई हो कि व्यक्ति के भाग्य का निर्माता अन्य कोई नहीं है, मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही वह फल पाता है, एक ऐसा घाट जहाँ प्रामाणिक जीवन जीने की कला को सहज ढंग से सिखाने की कोशिश की गई हो, एक ऐसा घाट जहाँ सत्य की बहुआयामिता को स्वीकार्यता मिली हो, तो उस माँझी की नाव, उस मल्लाह की नाव एक ही घाट पर आकर टिकेगी, जिस घाट का नाम है डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ।
- प्रो. डॉ. नलिन शास्त्री
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अनुकरणीय और प्रशंसनीय
डॉ. साहब से मैं आज से नहीं लगभग 20 वर्ष पहले से परिचित हूँ । अनेक बार आपके देश-विदेश में व्याख्यान सुने हैं; शिकागो में दुबई में मैं उनके साथ था, मुम्बई में तो अनेक बार सुनने का अवसर मिला है, जिससे मैं बहुत-बहुत प्रभावित हुआ हूँ । सचमुच आपकी तार्किक शैली मंत्रमुग्ध करनेवाली है।
सरल-सुबोध शैली में अनेक पुस्तकें लिखकर आध्यात्मिक जैन तत्त्वज्ञान का जो प्रचार-प्रसार आपने किया है, वह अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है। समाज आपके प्रदेय को कभी नहीं भूल सकता है।
आपके निर्देशन में पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने धर्मप्रचार का कार्य किया है, मैं उससे भी परिचित हूँ, वह भी अद्भुत है।
दीपचन्द गार्डी, मुम्बई
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हमारे हृदय में
जैसे गुरुदेवश्री कानजी स्वामी, डॉ. भारिल्ल के हृदय में समाये हैं;
वैसे ही डॉ. भारिल्ल हमारे हृदय में समाये हुये हैं ।
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-सुमनभाई दोशी, राजकोट
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
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__ आप जैसा कोई नहीं . बीसवीं शताब्दी में आध्यात्मिक क्रांति का सूत्रपात करने वाले युगपुरुष श्री कानजी स्वामी जैनधर्म के इतिहास में युगों-युगों तक याद किये जायेंगे। गुजरात के इस महापुरुष को सुयोग्य शिष्य के रूप में डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल जैसा नायाब हीरा मिला, जिसने अपने दूरदर्शी बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण चारों दिशाओं में ज्ञान का ऐसा अलौकिक प्रकाश फैलाया, जिसने देशभर में अध्यात्म की बेमिशाल अलख जगाई।
सुयोग्य शिष्य वही जो अपने गुरु का नाम रोशन करे । डॉ. भारिल्ल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने जैनजगत में अपने गुरु पू. कानजी स्वामी की कीर्ति ध्वजा तो लहराई ही है, साथ ही प्रातः स्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द से चली आ रही श्रमण परम्परा के उन्नत ललाट पर कुंकुम का तिलक लगाकर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है। _प्रचार-प्रसार के युग में वे किसी से पीछे नहीं रहे । यही कारण है कि उनके संपादकत्व में आध्यात्मिक मासिक वीतराग-विज्ञान आज हिन्दी, मराठी व कन्नड़ भाषाओं में लगभग 10 हजार की संख्या में प्रकाशित होकर आत्म पिपासुओं की जिज्ञासा शांत करने का उपक्रम बना हुआ है। ___आपके द्वारा रचित साहित्य जो छोटी-बड़ी कृतियों के 78 पुष्पों के रूप में देश की प्रमुख भाषा हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल तथा तेलगू भाषाओं में छपकर लगभग 42 लाख की संख्या में जन-जन तक पहुँचकर समुचित समादर प्राप्त कर चुकी हैं।
यही नहीं गीताप्रेस गोरखपुर की भाँति कम से कम लागत में विपुल जैन साहित्य उपलब्ध कराने में आपका कोई सानी नहीं है। देश की प्रमुख 8 भाषाओं में आपके निर्देशन में 400 से अधिक छोटी-बड़ी कृतियाँ 68 लाख से अधिक की संख्या में प्रकाशित हुई हैं, जो एक कीर्तिमान है। दातारों के सहयोग से अति अल्प मूल्य में साहित्य विक्रय किया जाता है। अब तक 4 करोड़ 25 लाख से अधिक का साहित्य
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल बिक्री एक रिकार्ड है। यदि इसका बाजार के मूल्य से आंकलन करें तो 16 करोड़ से अधिक की राशि होती है। __आपने शिक्षा के क्षेत्र में भी महनीय कदम बढ़ाते हुए बन्द हो रहे विद्यालयों को नई ऊर्जा प्रदान की और गुलाबी नगरी जयपुर में टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय की 1977 में आधार शिला रखकर अनुकरणीय कार्य किया है। इस विद्यालय की कीर्ति से प्रेरित होकर इस प्रकार के विद्यालय संचालन की समाज में मानो होड़-सी लग गई है। ___ इस महाविद्यालय के माध्यम से अब तक 620 शास्त्री विद्वान ज्ञानार्जन कर देश के बहुभाग में अध्यात्म की अलख जगा रहे हैं। इन विद्वानों में 161 विद्वान शिक्षा विभाग में शासकीय पदों पर रहते हुए अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं । विश्वविद्यालयों में विभागाध्यक्ष के रूप में 6, कॉलेजों में प्रोफेसर व व्याख्याता 32, निजी व्यवसाय में संलग्न 148, एम.बी.ए.-7, इंजीनियर-1, सी.ए.-2, आयकर उपायुक्त-1, पत्रकारिता के क्षेत्र में 9 तथा उच्च शिक्षा में अध्ययनरत 124 विद्यार्थी हैं।
बन्द होती जैन पाठशालाएँ चिन्ता का विषय थीं। आपने इस दिशा में गहराई से चिन्तन किया और स्वयं वैज्ञानिक पद्धति से एक पाठ्यक्रम तैयार किया। इस पाठ्यक्रम में बालबोध भाग 1,2 व 3, वीतरागविज्ञान पाठमाला भाग 1,2 व 3 तथा तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग 1 व 2 के माध्यम से रुचिकर व ज्ञानवर्धक पाठ्यक्रम भावी पीढ़ी को दिया।
वीतराग-विज्ञान विद्यापीठ परीक्षाबोर्ड 1968 में आपने स्थापित किया, जिसके माध्यम से अब तक 4 लाख 34 हजार 738 विद्यार्थी 600 पाठशालाओं के माध्यम से ज्ञानार्जन कर सफलता प्राप्त कर चुके हैं। ___ यही नहीं आपने देशभर में वीतराग-विज्ञान पाठशालाओं का जालसा बिछा दिया। इन पाठशालाओं में पढ़ाने हेतु अध्यापकों की शिक्षित टीम तैयार करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण शिविरों की अद्भुत शृंखला सन् 1969 से प्रारंभ की। यह प्रशिक्षण शिविर 43 वर्षों से निरन्तर चालू हैं और अब तक लगभग 8 हजर 9 सौ.44 अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
युवा वर्ग को भौतिकता की चकाचौंध से दूर रहते हुए अध्यात्म की ओर उन्मुख करना टेडी खीर है। परन्तु आपने इस कार्य में भी महारत हासिल की है। युवकों का रचनात्मक संगठन अ.भा. जैन युवा फैडरेशन आपकी प्रेरणा से ही स्थापित संस्था है, जिसकी देशभर में शाखायें व्याप्त हैं। युवावर्ग इस संगठन से सन् 1977 से जुड़कर देशभर में 317 शाखाओं के माध्यम से आध्यात्मिक गतिविधियों को संचालित कर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा है।
. युवा फैडरेशन की प्रभावी प्रचार-प्रसार योजना के तहत सन् 1986 में कैसिट विभाग स्थापित किया गया। इसके माध्यम से कैसिट एवं ओडीओ/वीडीओ सीडी का निर्माण विपुल मात्रा में हो रहा है।
अब तक 1 लाख 95 हजार 2 सौ 29 की संख्या में 45 लाख की सीडी/डीवीडी विक्रय होकर घर-घर में प्रवचनों की धूम मचा रहे हैं।
शाकाहार-श्रावकाचार रथ के प्रवर्तन ने युवा फैडरेशन की ख्याति में चार चांद लगा दिए हैं। आचार्य कुन्दकुन्द व पण्डित बनारसीदास के वर्ष उत्साहपूर्वक मनाकर इनके साहित्य को घर-घर पहुँचाने का दुश्कर कार्य भी युवा फैडरेशन के माध्यम से किया गया है।
आध्यात्मिक शिक्षण-शिविर लगना तो आम बात हो गई है। दीर्घकालीन अवकाश के समय ग्रुप शिविरों का संचालन धर्म प्रभावना का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। 60-70 युवा विद्वानों की टीम इस कार्य में लगकर बच्चों को संस्कारित करने निकल पड़ती है और मनोवैज्ञानिक ढंग से बालगोपालों को अध्यात्म की संजीवनी बूटी सहज ही पिला देती है। ___ दशलक्षणपर्व पर सुनियोजित ढंग से देश के कौन-कौने में 500 से अधिक की संख्या में विद्वान भेजने का अद्भुत कार्य आपके मार्गदर्शन में विगत 32 वर्षों से निरन्तर जारी है। अष्टान्हिका पर्व का प्रसंग हो या वेदी प्रतिष्ठा हो अथवा पंचकल्याणक हों विद्वान उपलब्ध कराने हेतु निरन्तर आपके पास समाज की मांग बनी रहती है और आप सहज ही इस सेवा के लिए तत्पर रहते हैं।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल श्री टोडरमल जैन मुक्त विद्यापीठ की परिकल्पना भी आपकी देन है। इस विद्यापीठ के माध्यम से संस्कृत आदि की अनिवार्यता के बिना किसी भी जाति, उम्र, वर्ग के लिए जैन तत्त्व विद्या के प्रचार-प्रसार हेतु कटिबद्ध हैं। __ जैन समाज के अनेक परिवार आजीविका के उद्देश्य से विदेशों में जाकर बस गए हैं। इन परिवारों में धार्मिक संस्कार बने रहें तथा भावी पीढ़ी जैनधर्म के मर्म को समझ सके; इस हेतु सन् 1984 से लगातार डॉ. भारिल्ल प्रतिवर्ष नार्थ अमेरिका, कनाड़ा, इंगलैण्ड, बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड, जर्मन, जापान, हांगकांग, केनिया, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई, शरजाह, अबुधाबी आदि 15 देशों में जाकर गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की अध्यात्म परम्परा को सुदृढ़ करने में संलग्न हैं। अब तक 35 यात्राओं के माध्यम से आपने तत्त्वप्रचार-प्रसार की दिशा में मिसाल कायम की हैं।
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर विश्वविद्यालय स्तर पर महनीय कार्य हुआ है। तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन जैन समाज के इतिहास में अद्वितीय है। 708 पृष्ठों का यह विशाल ग्रन्थ 12 खण्डों में विभक्त हैं। इसमें 357 लेख समाविष्ट हैं। राष्ट्र संत सिद्धान्त चक्रवर्ती पू. आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज के पावन सान्निध्य में विमोचित यह ग्रन्थ जन-जन को रोमांचित किये हुये हैं। ___ डॉ. महावीर प्रसाद टोकर द्वारा मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से पीएचडी के लिए मान्य शोध ग्रन्थ 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व
और कृतित्व' 7 अध्यायों में विभक्त है। इस 440 पृष्ठों के ग्रन्थ का प्रकाशन 11 मई 2005 को किया गया था।
इसी प्रकार श्रीमती सीमा जैन ने सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के साहित्य का समालोचनात्मक अनुशीलन' विषय पर स्वीकृति प्राप्त कर ली है तथा डॉ. मंजू चतुर्वेदी के निर्देशन में शोधरत हैं।
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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल - इसी क्रम में बड़ामलहरा के श्री अरुणकुमार शास्त्री ने राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा एम.ए. के पंचम प्रश्न पत्र के विकल्प में 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल और उनका कथा साहित्य' लघुशोध प्रबंध प्रस्तुत किया है। 120 पृष्ठों की यह कृति 7 अध्यायों में विभक्त है, जिसे डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल चेरिटेबल ट्रस्ट, मुम्बई द्वारा प्रकाशित किया गया है।
श्री शिखरचन्द जैन द्वारा राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा एम.ए. के पंचम प्रश्नपत्र के विकल्प के रूप में 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' लघुशोध प्रबंध प्रस्तुत किया है जो अभी अप्रकाशित है। __सुश्री ममता गुप्ता द्वारा ‘धर्म के दशलक्षण : एक अनुशीलन' लघुशोध प्रबंध तथा नीतू चौधरी द्वारा 'शिक्षा शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के शैक्षिक विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन' लघुशोध प्रबंध इसी क्रम की कड़ी हैं; जो अभी अप्रकाशित है।
विश्वविद्यालय स्तर के विद्वानों द्वारा जैन अध्यात्म को डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल का साहित्यिक अवदान विषय पर आयोजित अनेक राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठियों में पठित शोध आलेखों का प्रतिनिधि संकलन है - 'डॉ. भारिल्ल के साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन' है। 252 पृष्ठों में समाहित यह कृति 55 आलेखों से सुसज्जित हैं। जिसका संपादन अखिल बंसल द्वारा किया गया है।
पूज्य आ. श्री विद्यानन्दजी के आदेश का निर्वहन करते हुये श्री अखिल भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषद् के तत्त्वावधान में समयसार जैसे दुरुह ग्रन्थ पर अनेक संगोष्ठियों के सृजक आप ही थे। यही नहीं समयसार सप्ताह का अद्भुत आयोजन कर आपने आचार्यश्री का हृदय जीत लिया।
आपके द्वारा किये गये इन अद्भुत कार्यों का यदि बेबाक लेखाजोखा किया जाय तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'आप जैसा कोई नहीं।'
__ - अखिल बंसल, जयपुर
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________________ डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का नाम आज जैन समाज के उच्चकोटि के विद्वानों में अग्रणीय हैं। ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी वि. स. 1992 तदनुसार शनिवार, दिनांक 25 मई 1935 को ललितपुर (उ.प्र.) जिले के बरौदास्वामी ग्राम के एक धार्मिक जैन परिवार में जन्मे डॉ. भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न तथा एम. ए., पी-एच.डी. हैं। मंगलायतन विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी-लिट की मानद उपाधि प्रधान की गई है। समाज द्वारा विद्यावारिधि, महामहोपाध्याय, विद्यावाचस्पति, परमागमविशारद, तत्त्ववेत्ता, अध्यात्मशिरोमणि, वाणीविभूषण, जैनरत्न, आदि अनेक उपाधियों से समय-समय पर आपको विभूषित किया गया है। सरल, सुबोध तर्कसंगत एवं आकर्षक शैली के प्रवचनकार डॉ. भारिल्ल आज सर्वाधिक लोकप्रिय आध्यात्मिक प्रवक्ता हैं। उन्हें सुनने देश-विदेश में हजारों श्रोता निरन्तर उत्सुक रहते हैं। आध्यात्मिक जगत में ऐसा कोई घर न होगा, जहाँ प्रतिदिन आपके प्रवचनों के कैसेट न सुने जाते हों तथा आपका साहित्य उपलब्ध न हो। धर्म प्रचारार्थ आप 29 बार विदेश यात्रायें भी कर चुके जैन जगत में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले डॉ. भारिल्ल ने अब तक छोटी-बड़ी 78 पुस्तकें लिखी हैं और अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अब तक आठ भाषाओं में प्रकाशित आपकी कृतियाँ 44 लाख से भी अधिक की संख्या में जनजन तक पहुंच चुकी हैं। सर्वाधिक बिक्रीवाले जैन आध्यात्मिक मासिक 'वीतरागविज्ञान' हिन्दी, मराठी तथा कन्नड़ के आप सम्पादक हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन की छत के नीचे चलनेवाली विभिन्न संस्थाओं की समस्त गतिविधयों के संचालन में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान में आप श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर के महामन्त्री हैं। समाज की शीर्षस्थ संस्थाओं यथा-दिगम्बर जैन महासमिति, अ.भा. दिगम्बर जैन परिषद्, अ.भा. जैन पत्र सम्पादक संघ आदि से भी आप किसी न किसी रूप में जुड़े हैं।