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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
ब्र. यशपाल :
डॉ. भारिल्ल द्वारा जो आध्यात्मिक शिक्षण
प्रशिक्षण शिविरों की परम्परा चली है; वह कितनी उपयोगी है ? मुनिश्री शिविरों से तो समाज को बहुत लाभ हुआ है। तत्त्व की चर्चा जन-जन तक पहुँची है। तत्त्व की चर्चा करनेवाले बहुत सारे पण्डित भी तैयार हुए हैं।
में
बाँझल :- डॉ. भारिल्ल की 'क्रमबद्धपर्याय' नामक पुस्तक की समाज बहुत चर्चा हुई है; क्या आपने भी वह पुस्तक पढ़ी है? मुनिश्री :- हाँ, पढ़ी है । उसमें वस्तुस्वरूप का यथार्थ कथन है । भैया! क्रमनियमित और क्रमबद्ध - दोनों एक ही बात है । इससे तो भगवान की सर्वज्ञता की सिद्धि होती है।
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ब्र. यशपाल :- महाराजजी ! डॉ. भारिल्ल जब भी आपसे मिले, उन्होंने आपको नमस्कार किया या नहीं?
मुनिश्री हमारा तो इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि कौन हमें नमस्कार कर रहा है, कौन नहीं; पर जहाँ तक डॉ. हुकमचन्दजी की बात है, वे मुझसे जब भी मिले हैं, तब उन्होंने आदरपूर्वक उचित सम्मान दिया है। - बाबूलाल बांझल, गुना (म. प्र. )
मुनि श्री कैलाशसागरजी के उद्गार
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प्रश्न महाराजश्री क्या कभी आपका डॉ.
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हुकमचन्द भारिल्ल से
मिलन हुआ है ?
उत्तर - हाँ, मिलन तो 2-3 बार हुआ है, पर वार्तालाप नहीं । प्रश्न महाराज श्री! क्या आपने डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखित साहित्य पढ़ा है ?
उत्तर - खूब पढ़ा है, हमें स्वाध्याय के अतिरिक्त और काम ही क्या है। ज्ञानगोष्ठी, नयचक्र, क्रमबद्धपर्याय खूब पढ़ी है । कुन्दकुन्दशतक और I शुद्धात्मशतक का पाठ तो हम नित्य ही करते रहते हैं ।