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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल बना दिया है। 28 वर्ष से प्रतिवर्ष श्वेताम्बर पर्युषण पर्व पर मुम्बई में भारतीय विद्याभवन जैसे भवनों में प्रवचन करके, न केवल स्वयं ने प्रवचन किये, अपितु शिष्यगणों द्वारा प्रवचन-कक्षाओं के कार्यक्रम करके यह महान कार्य किया है।
एक सभा में मैंने कहा था - अगर 20वीं सदी गुरुदेव की मानी जाएगी तो 21वीं सदी उनके शिष्य डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल को समर्पित की जाएगी। गुरुदेव के अवसान के पश्चात् एक कुहासा, एक अंधकार सा छा गया था, यह तो हमारा सौभाग्य है कि गुरुदेवश्री का डॉ. हुकमचन्दजी जैसा उद्भट शिष्य हमें मिल गया, जिसने सोनगढ़ के सूर्य को अस्त नहीं होने दिया एवं दीपक से ही सही संपूर्ण मुमुक्षु समाज को आलोकित किए रखा। अपनी प्रतिभा से, अपनी कार्यशैली से वे एक प्रकाशपुंज बन गए एवं जैनदर्शन की, द्रव्यानुयोग की, आत्मधर्म की एवं जैन अध्यात्म की दुंदुभियाँ फिर से बजने लगी और पंचपरमागम के पश्चाश्चर्य प्रस्फुटित होने लगे। ___डॉक्टर साहब की सर्वोत्कृष्ट कृति पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट
आज विश्व का सबसे सशक्त अध्यात्म केन्द्र है, आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। जब पूरे विश्व को भौतिकवाद ने अपने आगोश में समेट लिया हो, तब राजस्थान के रेगिस्तान में टोडरमल स्मारक एवं यहाँ चलनेवाले जैन सिद्धान्त महाविद्यालय को डॉ. भारिल्ल का नेतृत्व नखलिस्तान की मानिंद सुकून प्रदायक है।
डॉक्टर साहब आपमें शक्ति है, आपकी वाणी में ताकत है। आपका अध्ययन एवं चिन्तन तलस्पर्शी है, अजेय है समन्तभद्र की तर्कशक्ति आपको प्राप्त हुई है, आप आगम बुद्धि के धारक हैं, साधर्मी वात्सल्य आपको प्रकृति प्रदत्त है तत्त्वप्रचार के लिए आप आजीवन समर्पित रहे हैं