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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
प्रकाशनमान ध्रुवतारा पण्डितजी जीवन की शुरुआत से ही सरस्वती की आराधना, स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन में लगे हुए हैं। समयसार आदि उत्कृष्ट ग्रन्थों का अध्ययन एवं स्वाध्याय करके अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
आपको जिनवाणी की विशेष सेवा करने की शक्ति मिली है।
पण्डितजी की मौलिक कृति ‘क्रमबद्धपर्याय' को कई बार पढ़ा। यह कृति वर्तमान में सारस्वत विद्वत् लोक में प्रज्वलित प्रकाशमान ध्रुवतारा है।
-स्वस्ति श्री भुवनकीर्ति भट्टारकस्वामीजी
श्री क्षेत्र कनकगिरि मठ, मलेयूर (कर्नाटक)
मर्मज्ञ विद्वान डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल जैनदर्शन के मर्मज्ञ विद्वान हैं, गम्भीर लेखक और प्रखर वक्ता हैं। अपनी कुशल लेखनी से मौलिक साहित्य का सृजन कर डॉ. भारिल्ल ने जिनवाणी की विशेष उपासना की है। ___डॉ. भारिल्लजी वर्षों से श्रुत की उपासना में लगे हुए हैं - यह उनका साहित्य बताता है। आप समाज द्वारा 'विद्यावाचस्पति', 'वाणीभूषण', 'जैनरत्न' - आदि कई उपाधियों से भूषित हुए हैं।
समयसार अनुशीलन ग्रन्थ विशेषतः पठनीय और मननीय हैं । जीवन के अनमोल क्षण अध्यात्म के साथ सघनता से जुड़े रहें - यही मंगल कामना है।
- साध्वी संघमित्रा, जयपुर (राज.)
मूर्धन्य विद्वान डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ऐसे ही मूर्धन्य विद्वानों में हैं, जिन्हें ज्ञान की गम्भीरता के साथ-साथ, तत्त्वज्ञान जैसे नीरस विषय को भी सरस बनाकर उसे श्रोताओं को हृदयङ्गम् कराने की उत्कृष्ट प्रवचन-कुशलता भी जन्मजात रूप से प्राप्त है। -डॉ. दामोदर शास्त्री, जैन विश्वभारती, लाडनूं