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मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल
और इसी खनियांधाना में श्री नन्दीश्वर जिनालय के शिलान्यास समारोह के समय सुना है ।
अरे भैया! 'कुन्दकुन्दशतक' और 'शुद्धात्मशतक' में तो डॉ. हुकमचन्द ने आचार्य कुन्दकुन्द के हृदय को ही हमारे सामने खोलकर रख दिया है। उनसे ही हमें आचार्य कुन्दकुन्द का पूरा-पूरा परिचय मिल जाता है ।
क्या कहूँ? (कुछ सोचते हुए) वे अपने प्रवचन में विषय-वस्तु को स्पष्ट करते हैं, वे किसी से विशेष सम्पर्क नहीं बढ़ाते, प्रवचन के पश्चात् सीधे उठकर चल देते हैं । चलते-चलते कोई उनसे वार्तालाप करे तो उसका सहज उत्तर देते हुए चले जाते हैं। वे अपने प्रवचन में दानादि का विकल्प नहीं करते।
भैया, मैं क्या आशीर्वाद दूँ! हमारा तो सब को ही आशीर्वाद है, हम तो प्राणी मात्र का भला सोचते हैं । दिनांक 2,3,4 अक्टूबर 1999 संयोजन - सुनील, सरल, खनियाँधाना
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तीर्थंकरों की परम्परा में
मैं स्वयं ही द्रव्य स्वभाव से भगवान हूँ तो उसे स्वयं ही स्वाभिमान प्रकट होता है। इसी श्रृंखला में हमारे तीर्थंकर, आचार्य, विद्वान, त्यागी मुनि आदि सुखी हुए हैं और आगे होंगे - अतः वर्तमान में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल भी उसी श्रेणी में अग्रसर हो रहे हैं। मैं उनसे करीबन 50 साल से परिचित हूँ। सो ज्यादा क्या लिखूँ ?
श्री कहानजी (कानजी स्वामी) द्वारा श्री श्री 108 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी का मार्ग दर्शाया गया है, जिसका वर्तमान में डॉ. साहब द्वारा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। वह मुझे अधिक ही अच्छा लगा, जो सुलझा हुआ मार्ग है । उस मार्ग को सभी को ग्रहण करना चाहिए।
पूर्व आचार्यों से इनके प्रवचन में कहीं कोई अन्तर देखने में नहीं आया। हम अपने आत्मा से इनकी धर्म प्रभावना का आदर करते हैं ।
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