Book Title: Keshari Kevali Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ @eeeeeeeeeeeeeeeeeelg 0482 , कोषा Serving Jinshasan "050285 gyanmandir@kobatirth.org NA0A // श्रीजिनाय नमः॥ (सान्वयगूर्जरभाषांतरसहीतं च ) AN // श्रीकेशरीकेवलीचरित्रम् // ( मूळकर्ता-वर्धमानसूरी ) अन्वय सहीत भाषांतर कर्ता तथा छपावी प्रसिद्ध करनार पंडित हीरालाल हंसराज. आ ग्रंथना अन्वय तथा भाषांतरना प्रसिद्ध कर्ताए सर्व हक्क स्वाधिन राख्या छे. सने 1929. मूल्य रु. 0-8-0 Deeeeeeee म आराधना सं. 1985. Printed at Jain Bhaskaroday Printing PreggJAMNAUAR. seeeeeeeeeeeeeeeeeee Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी सान्वय भाषांतर चरित्रं 1. Astitude ॥श्रीजिनाय नमः // 1917 (श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः) . (सान्वयं गूर्जरभाषांतरसहितं च) // अथ श्रीकेशरीकेवलिचरित्रं प्रारभ्यते // (मूलकर्ता श्रीवर्धमानसिक अन्वय सहित गुजराती भाषांतर कर्ता-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) सुध्यानानामसावद्यकृतां मौहूर्तिकं हृदि + यास्साम्बमाय तच्छिक्षात्रतं सामायिकाभिधम् // 1 // अन्वयः-सुध्यानानां असावद्यकृतां हृदि यत् मौहूर्तिकं साम्यं तत् सामायिक अभिधं आधं शिक्षा व्रतं. // 1 // 2 अर्थः-उत्तम ध्यानवाळा, तथा पापकार्य नही करनारा; एवा मनुष्योना हृदयमा जे मुहूर्तवारसुधी समता रहेछे, तेने सामायिक 13 नामर्नु पेहेलं शिक्षावत (जाणवू.) // 1 // .. . . AERS5वर SAn-ir भीमा नकारनामा PP-AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradnak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी० | आभाति यतिधर्मश्रीक्षणखेलनभूमिका / दुरितोर्मिविरामाय व्रतं सामायिकं पुनः // 1 // सान्वय परित्रं ___ अन्वयः-पुनः यति धर्म श्री क्षण खेलन भूमिका सामायिकं व्रतं दुरित ऊमि विरामाय आभाति. // 1 // भाषांतर अर्थः-वळी मुनिधर्मनी लक्ष्मीने नृत्य करवानी रंगभूमिसरखं सामायिक व्रत, पापोना उछाळानी शांतिमाटे शोभेछे, (अर्थात् ते PI // 2 // पापोना उछाळाने शांत करेछे.) // 1 // // 2 // मोक्षश्रीममतारम्भः समताभ्यासरङ्गभूः / करुणारससिन्धूमिरायं शिक्षाव्रतं मतम् // 2 // __ अन्वयः-मोक्ष श्री ममता आरंभः, समता अभ्यास रंगभूः, करुणा रस सिंधु जमिः, आचं शिक्षा व्रतं मतं. // 2 // अर्थः-मोक्षलक्ष्मीनी ममताना आरंभसरखु, अने समताने क्रीडा करवानी रंगभूमिसरखं, तथा कृपारसना महासागरना मोजांसरखं, पेहेलं शिक्षाव्रत कहेलुं छे. // 2 // क्रूराचारोऽपि संसारकारया मुच्यते द्रुतम् / केशरीव त्रुटत्कर्मदामा सामायिकवती // 3 // ___अन्वयः-सामायिक व्रती क्रूर आचारः अपि केशरी इव त्रुटत् कर्म दामा द्रुतं संसार कारायाः मुच्यते. // 3 // __ अर्थ:-सामायिक व्रतवाळो, मनुष्य क्रूर आचरणवाळो होवा छतां पण केशरी चोरनी पेठे कर्मोनी सांकळ तोडीने तुरत संसार रूपी केदखानामांथी छुटी जाय छे. // 3 // | तथाहि शत्रुलोकाहिबर्हणः क्षीणगर्हणः / भूपोऽभूद्विजयो नाम धर्मी कामपुरे पुरे // 4 // SECRUSLUGUSO900 B.SOHARA PP.AC, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी चरित्रं सान्वय भाषांतर अन्वयः-तथाहि कामपुरे पुरे शत्रु लोक अहि बर्हणः, क्षीण लोक गहणः, विजयो नाम धर्मी भूपः अभूत . // 4 // अर्थः-ते केशरीचोरनु उदाहरण कहे छ-कामपुरनामना नगरमां शत्रुओरूपी सोनो (नाश करवामां ) मयूरसरखो, तथा लोl को तरफनी निंदाविनानो विजयनामनो धर्मिष्ट राजा हतो. // 4 // तं श्रेष्ठी सिंहदत्ताख्यो नत्वाचख्यो कदाचन / केशरी नाम मे स्वामिन्पुत्रोऽभचौयभरिति // 5 // ... अन्वयः-कदाचन सिंहदत्त आख्यः श्रेष्ठी तं नत्वा इति आचख्यौ, (हे) स्वामिन् ! केशरी नाम मे पुत्रः चौर्यभूः अभूत. अर्थ:-एक दिवसे सिंहदत्तनामना शेठे ते राजाने नमीने एम कडं के हे स्वामी! केशरीनामनो मारो पुत्र चोरी करवामां आसक्त थयेलो छे. // 5 // अथ स्थास्यसि मदभूमो यदि तद्वध्य एव मे / इति केशरिणं देशान्नरेशो निरकाशयत // 6 // ___ अन्वयः-अथ यदि मद् भूमौ स्थास्यसि, तत् मे वध्यः एव, इति नरेशः देशात् केशरिणं निरकाशयत् // 6 // अर्थः-हवे जो मारी भूमिमां तुं रहेशे, तो हुं तने मारीज नाखीश, एम (कहीने) राजाए (पोताना) देशमाथी ते केशरीने कहाडी मेल्यो. // 6 // सोऽपि भूपभयाक्रान्तः श्रान्तो देशान्तरं व्रजन् / काप्यपश्यद्वने स्वच्छशीतस्वादुरसं सरः // 7 // अन्वयः-भूप भय आक्रांतः सः अपि देशांतरं व्रजन् श्रांतः वने क्व अपि स्वच्छ स्वादु रसं सरः अपश्यत् . // 7 // EASES4 PP.AC.Gunratnasuri M.S., Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय केशरी चरित्रं भाषांतर // 4 // // 4 // ' अर्थः-राजाना भयथी इरेला ते केशरीए पण परदेशमा जतां थकां थाकीने वनमा क्यांक निर्मल अने स्वादिष्ट जलथी भरेलु तळाव जोपु.॥७॥ अचोर्याहृतमाशक्तेन पयोऽपि पपे मया / अहो कार्य तदप्यद्य विग्धिग्दैवविपर्ययम् // 8 // इति ध्यायन्नयं तवं श्रान्तः कान्तारंपल्वले। चौरश्चक्रे पयःपानं 'स्नानं चं विदधेऽधिकम् // 9 // युग्मम्॥ ____ अन्वयः-आशक्तेः अचौर्य आहृतं पयः अपि मया न पपे, अहो! अद्य तत् अपि कार्य, दैव विपर्पयं विधिक् // 8 // इति ध्यायन् श्रांतः अयं चौरः तत्र. कांतार पल्बले पयः पानं चक्रे, च अधिकं स्नानं चके. // 9 // युग्मं // अर्थः-शक्ति होय त्यांसुधी चोरीथी नही मेळवेल जल पण में पीधुं नथी, अरे! आजे तेम पण करवू पडशे, माटे दैवना विपरीतपणाने धिक्कार छे! धिक्कार छे! // 8 // एम विचारतां थाकी जवाथी ते चोरे त्यां ते वनमा रहेला तळावमांथी जलपान कयु, तथा सारीरीते तेमां स्नान पण कयु.॥ 9 // युग्मं // / निःसृत्य स गतश्रान्तिरारोहपालिशालिनम् / क्षुधाकुलः फलस्यूततरं चूततरूं ततः // 10 // 4 अन्वयः-ततः गत श्रातिः सः निःसृत्य क्षुधा आकुलः पालि शालिनं, फल स्यूततरं चूत तरुं आरोहत् // 10 // ल अर्थः-पछी थाक उतर्याबाद ते त्यांथी निकळीने क्षुधातुर थवाथी ( ते तळावनी ) पाळपर रहेला तथा फलद्रुष थयेला आ बाना वृक्षपर चड्यो. // 10 // SHASHISHASHISHADASHI SARASSAGE PP.AC, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी सान्वय चरित्रं || फलैस्तृप्तस्ततो दृप्तः स चिन्तां क्लुप्तवानिति / हहा मम किमयाहविना चौर्येण यास्यति // 11 // * “अन्वयः-ततः फलैः तृप्तः दृप्तः सः इति चिंता क्लुप्तवान्, हहा! किं चौर्येण विना अय, मम अहः यास्पस्ति? // 11 // अर्थः-पछी फलोथी तृप्त थइ उन्मत्त थयेलो ते केशरी एपी चिंता करवा लाग्यो के, अरेरे! शुं चोरीविनाज आजनो मारो दिवस जशे? // 11 // इति चिन्तापरे तत्र मन्त्रसाधितपादुकः / उत्ततार सरस्तीरे कोऽपि योगीश्वरोऽम्बरात् // 12 // अन्वयः इति चिंता परे मत्र साधित पादुकः कः अपि योगीश्वरः अंबरात् तत्र सरः तीरे उत्ततार. // 12 // अर्थः-एरीते ते चिंता करतो हतो, एवामां मंत्रसिद्ध पावडीओवाळो कोइक योगींद्र आकाशमाथी ते तळावना किनारापर उतर्यो. स व्योमंगमनासन्नतपनातपंतापितः / दत्वा दिक्षु दृशं मुक्त्वा पादुके उदकेऽविशत् // 13 // ___ अन्वयः-व्योम गमन आसन्न तपन आतष तापितः सः दिक्षु दृशं दत्वा, पादुके मुक्त्वा उदके अविशत् // 13 // अर्थ:-आकाशगमन करवाथी नजीकमा रहेला सूर्यना तापथी तप्त थयेलो ते योगीराज दिशाओतरफ नजर करीने, तथा पावडी ओ मूकीने जलमां दाखल थयो. // 13 // प्रा. वेद्मीदं पादुकांद्वन्द्वमस्याकाशंगतो क्षमम् / यदेतदिह मुक्त्वासौ पद्भयामेव जलेऽविशत् // 14 // Jun Gun Aaradhak Rust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाई, // 14 // माटे आ पादुकान चनामा समर्थ छे, केमके आ योगी 15 // युग्मं // केशरी० 18| तदेतच्चोरयामीति ध्यात्वोत्तीर्य द्रुतं द्रुमात् / पादुके पादयोः क्षिप्त्वा चौरोऽगाद्गगनाध्वना // 15 // युग्मं |5सान्धय चरित्रं वा अन्वयः-वेधि, अस्त्र इदं पादुका द्वंद्वं आकाश गतौ क्षम, यत् असौ इह एतत् मुक्त्वा पद्भ्यां एव जले अविशत्, // 14 // भाषांतर तत् एतत् चोरयामि, इति ध्यात्वा, द्रुतं द्रुमात् उत्तीर्य, पादुके पादयोः क्षिप्त्वा चौरः गगन अध्वना अगात् / / 15 // युग्मं // // 6 // अर्थः हुं एम धारं छु के, आनी आ बन्ने पावडीओ आकाशगमन करवामां समर्थ छे, केमके आ योगी अहीं ते पावडीओ मूकीने पगोवडेज जलमां दाखल थयो छे, // 14 // माटे आ पादुकाने चोरीलेड, एम विचारीने तुरत वृक्षपरथी उतरीने, तथा | पगमां ते पावडीओ पेहेरीने ते केशरीचोर आकाशमार्गे चाल्यो गयो. // 15 // युग्मं / / . स निर्गम्य दिनं क्वापि नक्तं तत्पादुकापदः। चिन्तासमानलमयं व्योम्ना धानि ययौ निजे // 16 // अन्वयः- सः चिंता समान समयं दिनं क अपि निर्गम्य, तत् पादुका पदः नक्तं व्योम्ना निजे धाम्नि ययौ. // 16 // अर्थः-पछो ते केशरी चिंतातुर समयवाळा ते दिवसने क्यांक वीताडीने, ते पावडीओ पगमा पहेरीने रात्रिए आकाशमार्गे पो8 ताने घेर गयो. // 16 // .. राज्ञे विज्ञप्य चौरं मां त्वं पुरान्निरकाशयः / इत्युक्त्वाताडयदण्डैः पितरं नितरामसौ // 17 // ___ अन्वयः-राज्ञे मां चौरं विज्ञप्य त्वं पुरात् निरकाशयः, इति उक्त्वा असौ दंडैः पितरं नितरां अताडयत् . // 17 // 81 अर्थः-राजापते मने चोरतरीके जाहेर करीने तें नगरमाथी देशनिकाल कराव्यो छे, एम कहीने ते केशरीए लाकडीओवडे NAGAR22%20-%948 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhan Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी चरित्रं // 7 // सान्वय भाषांतर // 7 // (पोताना) पिताने बहुज मार्यो. // 17 // परासुं पितरं त्यक्त्वा महर्जीनि गृहाणि सः। प्रविवेश पदार्थांचं सारं सारं जहार च // 18 // ____ अन्वयः-परामुं पितरं त्यक्त्वा सः महीने गृहाणि प्रविवेश, च सारं सारं पदार्थ ओघं जहार. // 18 // अर्थः-(पछी) मरण पामेला पिताने तजीने ते केशरीचोर महान् समृद्धिवाळां घरोमां दाखल थयो, अने त्यांथी तेणे सारी सारी किमती वस्तुओना समूहनी चोरी करी. // 18 // अन्त्ये यामे त्रियामायाः स समायातवान्पुनः। सरोवरं तदेवाशु दुर्गमारण्यमण्डनम् // 19 // . __ अन्वयः-पुनः त्रियामायाः अंत्ये यामे सः दुर्गम अरण्य मंडनं, तत् एव सरोवरं आशु समायातवान् . // 19 // अर्थः-पछी रात्रिने छेल्ले पहोरे ते केशरीचोर, अगोचरवनने शोभावनारा तेज सरोवरपासे तुरत आव्यो. // 19 // नित्यमित्ययमुद्दामक्रोर्यश्चौर्यलसद्रसः / तदेव नगरं गत्वालुण्टद्विविधलुण्टनः // 20 // ___ अन्वयः-इति उद्दाम क्रौर्यः, चौर्य लसत् रसः, विविध लुंटनः, आं नित्यं तत् एव नगरं गत्वा अलुंटत् . अर्थ:-ए रीते अत्यंत निर्दय, अने चोरी करवामां रसवाळो, तथा नाना प्रकारनी लुट चलावनारो ते केशरीचोर हमेशां तेज नगरमां जइने लुटफाट करवा लाग्यो. // 20 // लोकं साधुसतीमुख्यं संतापयति पापिनि / यमागम इव भियेऽभवत्तत्र निशागमः // 21 // PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradnak Trust -- Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय केशरी ''चरित्रं "MERASARA भाषांतर // 8 // // 8 // अन्वयः-पापिनि साधु सती मुख्यं लोकं संतापयति, तत्र निशा आगमः यम आगमः ईव मिये अभवत् // 21 // अर्थ-ते पापी चोर मुनिओ तथा सतीओआदिक लोकोने संताप उपजावतो होवाथी त्यां रात्रिनुं आगमन, यमन! आगमननीपेठे भयानक थइ पडघु. // 21 // ........... तत्स्वरूपं परिज्ञाय राज्ञाथ व्यथितात्मना / परिपृष्टः पुरीरक्षो वैलक्ष्यन्यग्मुखोऽवदत् // 22 // अन्वयः-अथ तत् स्वरूपं परिज्ञाय व्यथित आत्मना राज्ञा परिपृष्टः पुरी रक्षः वैलक्ष्य न्यग्मुखः अवदत् // 22 // अर्थः-पछी ते हकीकत जाणीने मनमा खेद पामेला ते राजाए पूछवाथी. नगरीनो रक्षक.कोटवाल विलखो थइ नीचं मुख करी कहेवा लाग्यो के, // 22 // ... .......... ... . ............. ..... प्रभो नभोऽध्वगः कोऽपि पुरं मथ्नात्यदः सदा / न चोरचरणन्यासः क्वापि चाप्यत यद् भुवि // 23 // अन्वयः-(हे) प्रभो! कः अपि नभः अध्वगः सदा अदः पुरै मथ्नाति, यत् भुवि क अपि चौर चरण न्यासः न च आप्यत. अर्थः-हे ! स्वामी ! कोइक पण आकाशगामी चोर हमेशां आ नगरमां रंजाड करे छे, केमके जमीनपर क्यांयें पण चारना पगलां मळतां नथी. // 23 // * ततः क्षितिपतिः कोप्संतप्तं लोचनंद्वयम् / व्यथातुरः पुरप्रेक्षाकृपाश्रुषु निमज्जयन् // 24 // .. com karn CTESCREEN Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C] सान्वय केशरी चरित्रं // 9 // तपोधनतपशीलवतीशीलप्रभावतः / तत्क्लेशसोद्यमः सोऽद्य मम चौरोऽस्तु गोचरः // 25 // इत्युक्त्वाल्पपरीवारः पुरीमयमलोकत / प्रत्यास्थानं प्रतिद्यूताश्रयं प्रतिसुरालयम् // 26 // त्रिभिर्विशेषकम् / भाषांतर अन्वयः-ततः व्यथा, आतुरः क्षितिपतिः कोप संतप्तं लोचन इयं पुर प्रेक्षा कृपा अश्रुषु निमज्जयन्, // 24 // तपः धन तपः // 9 // शीलवती शील प्रभावतः तत् क्लेश सोद्यमः सः चौरः अद्य मम गोचरः अस्तु ? // 25 // इति उक्त्वा अल्प परीवारः अयं प्रति आस्थानं, पति छूताश्रय प्रतिसुराल पुरीं अलोकत. // 26 // विभिर्विशेषकं // अर्थः-पछी चिंतातुर थयेलो ते राजा क्रोधथी तपेला बन्ने चक्षुओने नगरमा तपास करवामाटेनी दयावाला आंसुओर्मा भीजा- निrton वतोथको, // 24 // तपस्वीओनी तपस्या, तथा शीलवंतीओना शीलना प्रभावथी, तेओनें कष्ट आपवामा उद्यमी थयेलो ते चोर आजे मने दृष्टिगोचर-थाओ? // 25 // एम कहीने स्वल्प परिवारवालो ते राजा दरेक सभास्थानोमां, दरेक जुगारखानामां, तथा घा दरेक देवमंदिरोमां नगरनी अंदर तपास करवा लाग्यो. // 26 // त्रिभिर्विशेषकं // चौरचिहुं क्वचित्किंचिदयनालोकयन्नृपः। जगामाक्षामसंकल्पः पुरीपरिसरावनिम् / / 27 // अन्वयः कचित् किंचित् अपि चौर चिझं अनालोकयन, अक्षामा संकल्पः नृपः पुरी परिसर अवनि जगाम. // 27 // अर्थः -क्यांयें कई पण चोरनु चिह्न न जोवाथी अति चिंतातुर थयेलो ते राजा नगरनी आसपासनी भूमिपर (तपासमाटे) गयो. वापीकूपतडागादिस्थानेष्वपि निरूपयन् / न प्राप भूपतिः क्वापि चौरसंचारचेष्टितम् // 28 // *PP-AC Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषांतर Milm10 // केशरी | अन्वयः–वापी कूप तडाग आदि स्थानेषु निरूपयन् अपि भूपतिः क अपि चौर संचार चेष्टितं न माप. // 28 // चरित्रं अर्थः-वाव, कुवा, तथा तळाव आदिक स्थानोमां तपास करतां छतां पण राजा क्यांये पण ते चोरना पगलांनु चिन्ह मेळवी शक्यो नही. // 28 // मध्याह्नेऽथ धरानेतुर्वनान्तर्भुवि तस्थुषः / नासामासादयद्गन्धः कर्परागुरुधूपभूः // 29 // अन्वयः-अथ मध्याह्ने वनांतः भुवि तस्थुषः धरानेतुः नासां कर्पूर अगुरु धूपभूः गंधः आसादयत् // 29 // अर्थः-एवामां मध्याह्नसमये वननी अंदरनी भूमिपर रहेला ते राजानी नासिकामां कपूर, अने अगुरुना धूपनी सुगंधि आववा लागी. व्रजन्गन्धानुसारेण चण्डिकागारमासदत् / चम्पकाद्यर्चितां तस्मिन्नपश्यच्चण्डिकां नृपः॥३०॥ ___ अन्वयः-गंध अनुसारेण वजन् नृपः चंडिका आगारं आसदत्, तस्मिन् चंपक आदि अर्चितां चंडिकां अपश्यत् // 30 // अर्थः-ते सुगंधने अनुसारे जतो राजा चंडिकादेवीना मंदिरमा आव्यो, अने त्यां चंपकना (पुष्पो) आदिकथी पूजन करेली चंडिकादेवीनां तेणे दर्शन की. // 30 // उन्मुच्य धूपनं तादृग्भूपमभ्याययौ ततः। संयोजितकरः पूजाकरः प्रवरचीवरः // 31 // अन्वयः-ततः तादृक् धूपनं उन्मुच्य प्रवर चीवरः पूजा करः संयोजित करः भूपं अभाययो. // 31 // अर्थः-पछी तेवीरीतनो धूप (करवान) छोडीने उत्तम वस्त्रधारी ते (देवीनो) पूजारी हाथ जोडीने राजापासे आव्यो.॥३१॥ - REAL Gimal ॐॐॐॐॐ Jun Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय केशरी चरित्रं भाषांतर // 11 // // 11 // ॐॐॐॐॐ केनोत्सवेन केनेडचण्डीपूजाय कारिता / दत्तानि द्युतिदनेन्दुभांसि वासांसि केन ते // 32 // __ अन्वयः-अद्य केन उत्सवेन केन ईदृक् चंडी पूजा कारिता? द्युति दून इंदु भांसि वासांसि ते केन दत्तानि? // 32 // अर्थः-(त्यारे राजाए तेने पूज्यु के) आजे कया उत्सवमाटे? अने कोणे आवी चडिकानी पूजा करावी छे ? अने कांतिथी चंद्रना तेजने पण जीतनारां (आ) बस्त्रो तने कोणे आप्पां? // 32 // इति पृच्छति भूजानौ पूजाकारी जगाद सः। दुःस्थान्वयस्य मे स्वामिन्भक्त्या तुष्टाय चण्डिका // 33 // ___अन्वयः-इति भूजानौ पृच्छति सः पूजाकारी जगाद, हे स्वामिन् ! दुःस्थ अन्वयस्य मे भक्त्या अब चंडिका तुष्टा. // 33 // अर्थः-एरीते राजाए पूछवाथी ते पूजाराए कयं के, हे खामी! दरिद्र कुलमा जन्मेला एवा मारापते भक्तिथी हमणा चंडिका तुष्टमान थइ छे. // 33 // | प्रगे पूजार्थमायामि यदा नित्यं लभे तदा / देव्याः पादायवर्तीनि रत्नानि कनकानि च // 34 // ___अन्वयः-प्रगे यदा पूजार्थ आयामि, तदा नित्यं देव्याः पाद अग्र वर्तीनि रत्नानि च कनकानि लभे. // 34 // अर्थः-प्रभातमां ज्यारे पूजामाटे हुँ आq छु, त्यारे हमेशां आ देवीना चरणोपासे रहेला रत्नो तथा सोनाम्होरो मने मळे छे. एवं देवीं त्रिकालं तत्पूजयामि जयामि च / तत्प्रसादोत्थनिःशेषश्रीपूरः श्रीदमप्यहम् // 35 // अन्वयः-तत् एवं त्रिकालं देवीं पूजयामि, च तत् मसाद उत्थ निःशेष श्रीपुरः अहं श्रीदं अपि जयामि. // 35 // . >>ERSE Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी० सान्वय भाषांतर चरित्रं // 12 // अर्थः-माटे एरीते हुं त्रणे काल आ देवी- पूजन करुं छु, अने तेणीनी कृपाथी मळेली समस्त प्रकारनी लक्ष्मीना समूहवाळो ययोथको हुँ कुबेरने पण जीतीं जाउं छु.॥३५॥ नक्तं चौरागमं तत्र सुधीनिश्चित्य तद्विरा / ययौ वासरकृत्यार्थमावासं वासवो भवः // 36 // अन्वयः-सुधीः भुवः वासवः तत् गिरा तत्र नक्तं चौर आगमं निश्चित्य वासर कृत्य अर्थ आवासं ययौ. // 36 // अर्थः-ते महाबुद्धिवान राजा तेना वचनथी रात्रिए त्यां ते चोरना आगमननो (मनमा) निश्चय करीने दिवससंबंधि कार्यमाटे पोताने स्थानके गयो. // 36 // नक्तं सारपरीवारश्चण्डिकागारमागतः / न्यस्य दूरे नृपः शूरानिहैकः स्वयमास्थितः // 37 // ___ अन्वयः-नक्तं सार परीवारः नृपः चंडिका आगारं आगतः, शूरान् दूरे न्यस्य, इह स्वयं एकः आस्थितः // 37 // अर्थः-(पछी) रात्रिए मजबूत परीवारवाळो ते राजा ते चंडिकादेवीना मंदिरमा आव्यो, तथा सुभटोमे दूर राखीने, ते पोते एकाकी अंदरना भागमा रह्यो. // 37 // निशीथे स्तम्भगुप्ताङ्गो भूभुजङ्गस्ततोऽम्बरात् / उत्तीर्ण पादुकासिहं तमालोकत तस्करम् // 38 // ___ अन्वयः-ततः निशेथे स्तंभ गुप्त अंगः भू भुजंगः, अंबरात उत्तीर्ण पादुका सिद्धं तं तस्करं आलोकत. // 38 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय केशरी चरित्र // 13 // 1 || अर्थः पछी मध्यरात्रिए स्तंभनी पाछळ गुप्त रहेला ते राजाए, आकाशमाथी उतरेला, तथा पावडीओवडे आकाशगमन करनारा ते चोरने दीठो. // 38 // . . | भावांतर / पादुकाद्वयमादाय सोऽथ वामेन पाणिना / गत्वा गर्भगृहं चण्डीमानर्च मणिभिः शुभैः॥३९॥ ___ अन्वयः-अथ सः पादुका द्वयं वामेन पाणिना आदाय गर्भ गृहं गत्वा शुभैः मणिभिः चंडी आनर्च // 39 // ला॥१३॥ अर्थः-पछी ते केशरीचौरे (पोतानी ) ते बन्ने पावडीओ डावा हाथमां लेइने, तथा मूळगंभारमा जइने मनोहर मणिओवडे ते चंडिकादेवीनी पूजा करी. // 39 // जगौ च स्वामिनि स्वैरचारिणश्चौर्यकारिणः / स्यान्ममेयममेयर्द्धिदायिनी क्षणदा मुदे // 40 // अन्वयः-च जगौ, (हे) स्वामिनि! स्वैर चारिणः, चौर्य कारिणः, मम इयं क्षणदा अमेय ऋद्धि दायिनी मुदे.॥४०॥ अर्थः-पछी तेणे कई के, हे स्वामिनि! स्वेच्छाथी गमन करनारा, तथा चोरी करनारा, एवा मने भा रात्री अमाप समृद्धि देनारी तथा हर्ष आपनारी थाओ? // 40 // इत्युक्त्वा वलमानोऽयं द्वारमारुह्य भूभुजा / कृपाणपाणिना जीवन् रे न यासीति धार्षितः॥४१॥ / अन्वयः इति उक्त्वा बलमानः अयं द्वार आरुह्य कृपाण पाणिना भूभुजा, रे! जीवन् न यासि, इति धर्षिता // 41 // अर्थः-एम कहीने पाछा वळता एवा ते केशरीचोरने, दरवाजापर चडीने, हाथमां तलवार खेंचीने राजाए, अरे ! हवे तुं WERERS PP. Ac Gunratrasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ट्रा सान्वब भाषांतर // 14 // केशरी ||3|जीवतो जवानो नथी एम कही धमकाव्यो. // 41 // इति भाषिणि भूपाले तद्भालं प्रति कालवित् / पादुकाद्वयमेवायमस्त्रीकृत्य क्रुधामुचत् // 42 // ___ अन्वयः-इति भूपाले भाषिणि, कालवित् अयं पादुका द्वयं एव अस्वीकृत्य तद्भालंपति क्रुधा अमुचत् // 42 // // 14 // अर्थः-एरीते राजाए कह्याथी अवसर जाणनारा ते चोरे ते चन्ने पावडीओनेज शस्त्ररूप करीने ते राजाना ललाटपते क्रोधथी फेंकी. तद्घातवञ्चनव्यये महीभुजि महाभुजः / अयं जीवन्त्रजामीति वदन्नेवैष निर्ययो / 43 // __अन्वयः-महीभुजि तद् घात वंचन व्यग्रे महाभुजः अयं एषः, जीवन् बजामि इति वदन् एव नियो. // 43 // .. अर्थ:-राजा ते महारथी बचवामां व्याकुल थये छते ते महान् बाहुबलवाळो चोर " आ हुँ जीवतो चाल्यो जाउं छु" एम पोलतोयकोज (त्यांथी) निकळी गयो. // 43 // यात्यसौ केशरी चौर इति भूपगिरा भटाः। तमाशु दूरे नश्यन्तमन्वधावन्नृपाज्ञया // 44 // * अन्वयः-असौ केशरी चौरः याति, इति भूप गिरा भटार नृप आज्ञया, दूरे नश्यतं तं आशु अन्वधावन्. / / 44 // अर्थ:-आ केशरी चोर नाशी जाय छे, एवां राजाना वचनथी सुभटो ते राजानी आज्ञाथी दूर नाशता एवा ते चोरनी पाछळ | तुरत दोड्या. // 44 // 545 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhat Trust Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशरी भाषांतर // 15 // RECAUSESASUR | चौरलोप्तावनीं गन्तुं मन्त्रिणे दिष्टशक्ति तत् / प्रदाय पादुकाबन्दं भूपोऽप्यनुययौ भटान् // 45 // अन्वयः-दिष्ट शक्ति तत् पादुका द्वयं मंत्रिणे प्रदाय भूपः अपि चौर लोप्न अवनीं गंतुं भटान् अनुययौ.॥४५॥ अर्थः-जणावेली के शक्ति जेनी एवी ते बने पावडीओ मंत्रीने सोंपीने राजा पण ते चोरनी चोरीनो माल संताडवानी जगोए जवामाटे ते सुभटोनी पाछळ गयो. // 45 / / स तु चौरस्त्वरादूरमुक्तशूरसमुच्चयः। पुरग्रामान्तगर्मागैरेवागात्पदगुप्तये // 46 // _अन्वयः-सः चौरः तु त्वरा दूर मुक्त शूर समुच्चयः पद गुप्तये पुर ग्राम अंतगैः मार्गः एव अगाव . // 46 // अर्थः-ते चोर तो (पोताना) वेगथी सुभटोना समूहने (पाछळ) दूर छोडीने पगला संताढवामाटे शेहेरो तथा गांवडांओना छेदापरना मार्गोए थइनेज नाशवा लाग्यो. // 46 // . भयाकुलितचित्तोऽसौ किंचिद्वैराग्यवांस्ततः। दध्यावित्यद्य मे पापमत्युग्रं फलितं ध्रुवम् // 47 // ____ अन्वयः–ततः भय आकुलित चित्तः, असौ किंचित् वैराग्यवान् इति दथ्यौ, ध्रुवं अद्य मे भति उग्रं पापं फलितं. // 47 // अर्थः-पछी भयथी व्याकुल हृदयवाळो एवो ते केशरीचोर कइंक वैराग्य पामवाथी एम विचारवा लाग्यो के, खरेखर आजे मारं अति उग्र पाप प्रगटी निकल्युं छे. // 47 // SENSESARSHASTRORS PPA Gunratrasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी० [II ग्रामारामावनी क्वापि कस्यापि दिशतो मुनेः। ध्यानतत्वं वचश्चौरः श्रद्धयेत्यशृणोत्तदा // 48 // सान्वय चरित्र अन्वयः तदा क्व अपि ग्राम आराम अवनौ दिशतः कस्य अपि मुनेः इति ध्यान तत्त्वं वचः चौरः श्रद्धया अशृणोत्. // 48 // भाषांतर PI अर्थः-एवामां क्यांक गामपासेना बगीचानी भूमिमां धर्मदेशना आपता कोइक मुनिराजनुं, एवी रीतनुं ध्यानना साररूप बचना ते चोरे श्रद्धाथी सांभळ्यु.॥१८॥ सर्वत्र ध्यानसमतारुचिर्मुच्येत पातकैः / जनः सद्योऽपि तिमिरैः कृतदीप इवालयः॥४९॥ इति हृन्मर्मनिर्मग्नं चौरस्तद्भावयन्वचः / वपुरुत्पुलकं बिभ्रदूर्ध्वस्तत्रैव तस्थिवान् // 50 // युग्मम् // अन्वयः कृत दीपः आलयः तिमिरैः इव, ध्यान समता रुचिः जनः सर्वत्र सद्यः पातकैः अपि मुच्येत. // 49 // इति हद मर्म निर्मग्नं तवचः भावयन् चौरः उत्पुलकं वपुः विभ्रत् तत्र एव उर्ध्वः तस्थिवान् // 50 // युग्मं // . अर्थः-करेलो छे दीपक जेमां एवं मकान जेम अंधकारी मुक्त थाय छे, तेम ध्यानथी समभावमा रहेलो मनुष्य सर्व जगोए तुरत पापोथी पण मुक्त थाय छे. // 49 // एरीते हृदयना मर्मस्थानमा प्राप्त थयेला ते वचनने भावतो थको ते चोर रोमांचित शरीर धारण करतोथको त्यांज उभी थइ रह्यो. // 50 // युग्मं // सारासाराखिलजगन्नुतिनिन्दावियुक्तधीः / तस्थौ मध्यस्थतामग्नः स भग्नदुरितक्रमः // 51 // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भापति केशरीला अन्वयः-सार असार अखिल जगत् नुति निंदा वियुक्त धीः, भग्न दुरित क्रमः, सः मध्यस्थता मग्नः तस्थौ. // 51 // || सावन चरित्र अर्थः-सारा नरसा समस्त जगतनी स्तुति अथवा निंदाथी रहित बुद्धिवाळो, तथा पापोनी श्रेणिने तोडी पाडनारो ते केशरीचोर मध्यस्थ भावना भावतोयको (त्यां) उभो रह्यो. // 52 // * // 17 // ला॥१७॥ शेषां रात्रि दिनं चास्थादेष साम्यलयस्तथा / यथा स्थिरं मनो लीनं पवित्रे परमात्मनि // 52 // __अन्वयः-शेषां रात्रिं च दिनं एषः साम्य लयः तथा अस्थात्, यथा पवित्रे परमात्मनि लीनं मनः स्थिरं // 52 // अर्थः-बाकी रहेली रात्रि तथा दिवसमुधी ते समतामां लीन थइने एवीरीते रह्यो, के जेथी पवित्र परमात्ममां तेनुं मन लीन थइने स्थिर थइ गयु.॥५२॥ घातिकर्मक्षये सायं ज्ञानं जज्ञेऽस्य केवलम् / सर्वत्रान्वेषयंस्तन तदा नृपतिरण्यगात् // 53 // ___ अन्वयः-याति कर्म क्षये सायं अस्य केवलं ज्ञानं जज्ञे, तदा नृपतिः अपि सर्वत्र अन्वेषयन् तत्र अगाव. // 53 // अर्थः-घातिकर्मोनो क्षय थतां संध्याकाळे तेने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं, एवामां ते राजा पण सर्व जगोए तेनी शोध करतोथको त्यां आवी पहोंच्यो. // 53 // इतश्चान्वपतद्भपस्तं हन्तुं भटभारभाक् / इतश्चागान्मरुद्वगों नन्तुं दत्तव्रतध्वजः // 54 // BAAR Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasunM.S. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेशरी | चरित्रं भाषांतर // 18 // // 18 // __अन्वयः-इतश्च भट भार भाक् भूपः तं हेतुं अन्वपतत्, इतश्च दत्त व्रत ध्वजः मरुत् वर्गः नंतुं आगात् // 54 // अर्थः-पछी एकतरफथी सुभटोनो समूह साथे लेइने राजा तेने मारवामाटे दोडी आव्यो, तथा बीजी तरफथी देवोनो समूह तेने धर्मध्वज आपीने वांदवा आव्यो. // 54 // सुरैः कृतं सुवर्णाब्जमासीने केशरिण्यथ / ते हन्तारोऽपि नन्तारो भूपप्रभृतयोऽभवन् // 55 // ___ अन्वयः-अथ केशरिणि सुरैः कृतं सुवर्ण अब्ज आसीने ते भूप प्रभृतयः हतारः अपि नंतारः अभवन्. // 55 // अर्थः-पछी ते केशरीनामना केवली भगवान् देवोए रचेला सुवर्णकमलपर बेठाबाद ते राजाआदिक हणनाराओ पण तेमने नमवावाळा थया. // 55 // दन्तांशुभिः सुभिक्षाणि कुर्वाणश्चन्द्ररोचिषाम् / स व्यधाद्देशनां पापतमसः पूर्णिमा मुनिः // 56 // अन्वयः-दंत अंशुभिः चंद्र रोचिषां सुभिक्षाणि कुर्वाणः सः मुनिः पाप्त तमसः पूर्णिमां देशनां व्यधात्. // 56 // अर्थः दांतोना किरणोवडे चंद्रना तेजोनो सुकाळ करनार ते मुनिराज पापोरूपी अंधकारनो (नाश करवा माटे, पूर्णिमासरखी धमदेशना आपवा लाग्या.।' 56 // क तत्ते चरितं नाथ व चायं केवलोदयः / इति क्षितिभृता पृष्टस्ततो व्याचष्ट केवली // 57 // वनमRAS CREAST PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय केशरी० चरित्रं भाषांतर // 19 // अन्वयः-ततः (हे) नाथ ! ते तत् चरितं क ? च क अयं केवल उदयः? इति सितिभृता पृष्टः केवली व्याचष्टः॥ 57 // Kaa अर्थः-पछी हे स्वामी! आपर्नु ते आचरण क्या ? अने क्यां आ केवलज्ञाननी प्राप्ति ? एम राजाए पूछवाथी ते केवली भगवान कहेवा लाग्या के, // 57 // राजन्नाजन्म तत्तापापभाजोऽप्यभून्मम / श्रीरियं मुनिवाग्लब्धसामायिकमनोलयात् // 58 // ___ अन्वयः-(हे) राजन् ! आ जन्म तत् तादृक् पापभाजः अपि मम, मुनिवाक् लब्ध सामायिक मनः लयात् इयं श्रीः अभूत.॥ अर्थ:-हे स्वामी! छेक जन्मथी मांडीने तेवीरीतनां ते पापकार्यों करनारा एवा पण मने, मुनिमहाराजना वचनथी प्राप्त थयेला सामायिकरूप समभावमा मन लीन थवाथी, आ केवल ज्ञाननी लक्ष्मी मळी छे. // 58 // यद्वर्षकोटितपसामप्यच्छेयं तदप्यहो। कर्म निर्मुल्यते चित्तसमत्वेन क्षणादपि // 59 // -- अन्वयः-यत् कर्म वर्ष कोटि तपसां अपि अच्छेचं, तत् अपि अहो! चित्त समत्वेन क्षणात् अपि निर्मूल्यते // 59 // अर्थ:-जे कर्म क्रोडोगमे वर्षोना तपथी पण छेदाय नही, ते कर्म पण अहो! मननी समताथी क्षणवारमांज मूळमाथी छेदाइ जाय छे. // 59 // इति श्रुत्वा प्रमुदितो जगाम नगरी नृपः / बोधयन्वसुधां सोऽपि विजहार महामुनिः // 60 // - अन्वयः-इति श्रुत्वा ममुदितः नृपः नगरी जगाम, सः महामुनिः अपि वसुधां बोधयन् विजहार. // 6 // . 555455ARE PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केशरी० [|| अर्थः-एम सांभळीने खुशी थयेलो ते राजा (पोताना) नगरमा गयो, तथा ते महा मुनिराज पण पृथ्वीपर बोध देता थका वि- 15!! सान्वय चरित्रं हार करवा कास्या. // 6 // पितृघातकरे सर्वजनसंतापकारिणि / चौरेऽपि दत्तनिर्वाण सेव्यं सामायिक बुधैः॥ 61 // भाषांतर // 20 // ___अन्वयः-पितृघात करे, सर्व जन संताप कारिणि, चौरे अपि दत्त निर्वाणं सामायिकं बुधैः सेव्यं. // 61 // 4 // 20 // अर्थः-पितानो घात करनारा, तथा सर्व लोकोने संताप उपजावनारा एवा आ चोरने पण मोक्ष आपनारुं सामायिकव्रत विचक्ष पोए सेववू. // 61 // // इति सामायिकवतमहात्म्योपदर्शने केशरिकेवलिचरित्रं समाप्तम् // // आ चरित्र श्रीवासुपूज्यचरित्रनामनामहाकाव्यमांथी खपरनाश्रेयने माटे तेना अन्वय तथा गुजरातो भाषांतर करी जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल हंसराजे पोताना श्रीजैनभास्करोदय प्रीन्टींग प्रेसमा छापीप्रसिद्ध कयुं छे // श्रीरस्तु // // समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् // . 5-RॐSAE% CSIR __Jun Gun Aaradhaki PP.AC.Gunratnasun M.S. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2-3 00.000.000 peleleteisteleieieieteeleteteisteg Deme888888888888 // इति श्रीकेशरीकेवलीचरित्रं समाप्तम्॥ deleeBSISISISISIEBIeietelo SO@letele. @eeeeeeeee