________________ सान्वय केशरी ''चरित्रं "MERASARA भाषांतर // 8 // // 8 // अन्वयः-पापिनि साधु सती मुख्यं लोकं संतापयति, तत्र निशा आगमः यम आगमः ईव मिये अभवत् // 21 // अर्थ-ते पापी चोर मुनिओ तथा सतीओआदिक लोकोने संताप उपजावतो होवाथी त्यां रात्रिनुं आगमन, यमन! आगमननीपेठे भयानक थइ पडघु. // 21 // ........... तत्स्वरूपं परिज्ञाय राज्ञाथ व्यथितात्मना / परिपृष्टः पुरीरक्षो वैलक्ष्यन्यग्मुखोऽवदत् // 22 // अन्वयः-अथ तत् स्वरूपं परिज्ञाय व्यथित आत्मना राज्ञा परिपृष्टः पुरी रक्षः वैलक्ष्य न्यग्मुखः अवदत् // 22 // अर्थः-पछी ते हकीकत जाणीने मनमा खेद पामेला ते राजाए पूछवाथी. नगरीनो रक्षक.कोटवाल विलखो थइ नीचं मुख करी कहेवा लाग्यो के, // 22 // ... .......... ... . ............. ..... प्रभो नभोऽध्वगः कोऽपि पुरं मथ्नात्यदः सदा / न चोरचरणन्यासः क्वापि चाप्यत यद् भुवि // 23 // अन्वयः-(हे) प्रभो! कः अपि नभः अध्वगः सदा अदः पुरै मथ्नाति, यत् भुवि क अपि चौर चरण न्यासः न च आप्यत. अर्थः-हे ! स्वामी ! कोइक पण आकाशगामी चोर हमेशां आ नगरमां रंजाड करे छे, केमके जमीनपर क्यांयें पण चारना पगलां मळतां नथी. // 23 // * ततः क्षितिपतिः कोप्संतप्तं लोचनंद्वयम् / व्यथातुरः पुरप्रेक्षाकृपाश्रुषु निमज्जयन् // 24 // .. com karn CTESCREEN