Book Title: Jinsutra Lecture 61 Ek Dip se Koti Dip Ho
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसवां प्रवचन एक दीप से कोटि दीप हों Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ of C . C .S a तता c . प्रश्न-सार जिन-धारा अनेकांत-भाव और स्यातवाद से भरी है, फिर भी प्रेमशून्य क्यों हो गई? जीसस अपने शिष्यों से कहते थे कि यदि मेरे साथ चलने से कोई तुम्हें रोके तो उसे मार डालो और मेरे साथ चल पड़ो। प्रेमपुजारी जीसस की ऐसी आज्ञा? अतीत में एक गुरु के पास एक ही मार्ग के साधक इकट्ठे होते थे। और आपके आश्रम में सभी विपरीत मार्गों का मेला लगा हुआ है-यह कैसे? - त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवा सीमार माझे असीम, तुमी बाजाओ आपन सूर आमार मध्ये तोमार प्रकाश ताई एतो मधुर एक पागल द्वार पर आया था, कुछ गुनगुनाकर चला गया; वह कौन था? or CC H 2010_03 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORI पहला प्रश्न : जिन-धारा अनेकांत-भाव और | सबसे छुड़ा लेना आदमी को जरूरी था। 1 स्यातवाद से भरी है; फिर भी प्रेम शून्य क्यों हो तो महावीर, आदमी बायें तरफ बहुत झुक गया था इसलिए गई? कृपा करके समझाएं। दायें तरफ झुके। जो थोड़े-से लोग उनकी बात को समझ सके, वे संयम को, संतुलन को उपलब्ध हो गए। लेकिन फिर पीढ़ी दर प्रेमशून्य होना ही थी; होना अनिवार्य था। हो गई, ऐसा नहीं। पीढ़ी लोग समझ से तो नहीं मानते, परंपरा से मानते हैं। फिर कोई भी जीवन-व्यवस्था परिपूर्ण नहीं है। प्रत्येक जीवन- | | लोग दायीं तरफ बहुत झुक गए। फिर वे इतनी दायीं तरफ झुक व्यवस्था का कुछ लाभ है, कुछ हानि है। गए कि ध्यान के नाम पर, तप के नाम पर उन्होंने प्रेम की हत्या जो लोग प्रेम को, प्रार्थना को, पूजा को आधार मानकर चलेंगे, | कर दी। जीवन को रसशून्य कर डाला। खतरा है कि उनका प्रेम, उनकी पूजा, उनकी प्रार्थना उनके संसार तो फिर भक्ति का पुनराविर्भाव हुआ। वल्लभ, रामानुज, को ही छिपाने का रास्ता बन जाए। प्रेम के पीछे राग के छिप जाने चैतन्य, निम्बार्क—एक अनूठा युग आया भक्ति का। फिर का डर है। प्रेम तो नाम ही रहे और भीतर राग खेल करने लगे। | भक्ति का पुनरउदभव हुआ। प्रेम तो नाम ही रहे, वीतरागता से बचने का उपाय हो जाए। यह अति हो गई थी-ध्यान की, तप की, तपश्चर्या की। तो प्रेम के मार्ग का खतरा है; वैसे ही ध्यान के मार्ग का खतरा इससे आदमी सूख गया। फूल खिलने बंद हो गए। फिर प्रेम को है। ध्यान के मार्ग का खतरा है कि राग को छुड़ाने में, मिटाने में जगाना पड़ा। तो कबीर, नानक, मीरा, दादू, रैदास-अदभुत प्रेम छूट जाए। राग को हटाने में प्रेम हट जाए। | भक्त पैदा हुए। इन्होंने फिर बायें तरफ मोड़ा। मनुष्य बहुत चालबाज है। इसलिए तुम उसे जो भी दो, वह जो थोड़े-से लोग समझे, जिन्होंने जागरूक रूप से इस बात अपने ढंग से ढाल लेगा। अगर तुम ध्यान की बात कहो तो वह को पहचाना वे संयम को उपलब्ध हो गए। उनके जीवन में प्रेम प्रेम को मार डालेगा। अगर तुम प्रेम की बात कहो, वह राग को भी रहा, राग छूटा। प्रेम बचा, राग छूटा। प्रीति बची, प्रीति के बचा लेगा। थोथे बंधन छूटे। प्रीति संसार से मुक्त हुई और परमात्मा की इसलिए प्रत्येक सदी में, प्रत्येक समय में, युग में जो उचित था, तरफ बही, प्रार्थना बनी। लेकिन जो नहीं समझे, जिन्होंने फिर उस समय के लिए जो उचित था; जिससे संतुलन निर्मित परंपरा को पकड़ा, उन्होंने फिर बात वहीं की वहीं पहुंचा दी। होता...जब महावीर जन्मे, तब प्रेम के नाम पर बहुत उपद्रव हो ऐसा सदा होता रहेगा। कोई मार्ग परिपूर्ण नहीं हो सकता। चुका था। परमात्मा के नाम पर बहुत तमाशा हो चुका था। | इसलिए कोई मार्ग शाश्वत नहीं हो सकता। बदलाहट करनी ही मंदिर, पूजा, पंडित, यज्ञ-हवन, बहुत खेल हो गए थे। उन | होगी। ऐसा ही समझो कि तुम मरघट किसी की अर्थी ले जाते हो 1613/ 2010_03 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भागः2 तो कंधे बदल लेते हो। एक कंधा दुखने लगता है तो अर्थी दूसरे संभावना है। महावीर ने परमात्मा तो हटा दिया, खतरा हट कंधे पर रख लेते हो। इसका कुछ यह मतलब नहीं है कि दूसरा गया। लेकिन खतरे के साथ-साथ लाभ भी हट गए। लाभ था कंधा कभी न दुखेगा। थोड़ी देर बाद दूसरा भी दुखेगा। फिर तुम कि परमात्मा के सहारे प्रेम विकसित होता है। वह हमारा पहले कंधे पर रख लोगे। इस कारण कि दूसरा भी दुखेगा, अगर परमप्रिय हो जाता है। वह हमारा प्यारा है। और अहंकार निर्मित न बदलो तो मुश्किल में पड़ जाओगे। अर्थी को मरघट तक ही न | नहीं होता। ले जा पाओगे। कंधे बदलने होते हैं। मनुष्य-जाति कंधे बदलती इसलिए जैन मुनि से ज्यादा अहंकारी मुनि तुम कहीं भी न रहती है। | पाओगे। क्योंकि अहंकार को समर्पित करने की जगह न रही। पूछा है, 'जिन-धारा से प्रेम शून्य क्यों हो गया?' | कोई चरण न रहे, जहां जाकर अहंकार को रख दो। अपने से जिन-धारा ध्यान की धारा है, तप की धारा है। प्रेम को साधना बड़ा कुछ भी न रहा। महावीर ने तो कहा था, तुम ही परमात्मा का अंग नहीं माना है महावीर ने, साधना की पूर्णाहुति माना है। हो। इसलिए नहीं कहा था कि तुम्हारा अहंकार बच जाए, जब कोई चलते-चलते मंजिल पर पहुंचेगा तो प्रेम प्रगट होगा। इसलिए कहा था ताकि तुम परमात्मा के नाम से जो जाल चल रहे मंजिल तक कौन पहुंचता है! जो पहुंचता है उसको प्रगट होता हैं, उसमें कहीं उलझो न।। है। महावीर पहुंचे, प्रेम प्रगट हुआ। जैनी तो मंजिल तक पहुंचे लेकिन परिणाम तो महावीर के हाथ में नहीं है। परमात्मा को नहीं। चले ही नहीं, पहुंचने की तो बात दूर। शास्त्र लिए बैठे हैं, छुड़ा दिया तुमसे; फिर तुम क्या करोगे परमात्मा के अभाव में, थोथे सिद्धांत लिए बैठे हैं। तो प्रेम तो समाप्त हो ही जाएगा। वह तो तुम्हारे हाथ में है। महावीर ने तो कह दी बात। कहते ही महावीर ने परमात्मा को जगह न दी क्योंकि परमात्मा के नाम तीर निकल गया। अब उसको तरकस में वापस नहीं ले जाया जा से खूब हो चुका था उपद्रव। खूब धोखाधड़ी, खूब पाखंड। बड़ी सकता। जो कह दिया वह महावीर से छूट गया। अब तुम्हारे सुविधा है परमात्मा के नाम से पाखंड चलाने की, क्योंकि हाथ में है कि तुम उसमें से क्या अर्थ निकालोगे। परमात्मा बड़ी आड़ बन जाता है। फिर तुम कुछ भी करो, सब मैं रहीम खानखाना का जीवन पढ़ता था। अकबर के नौ रत्नों परमात्मा की लीला है। लूटो-खसोटो तो परमात्मा की लीला में एक थे। अकबर उनसे बड़ा खश था और बहत है। क्या करोगे तुम? परमात्मा करवा रहा है। | जमीन-जायदादें दीं। करोड़ों रुपया उन्हें भेंट किया। वह जैसा तो हर चीज के लिए परमात्मा आड़ बन जाता है। महावीर ने उनके पास पैसा आता था ऐसे ही वे लुटा भी देते थे। मरे तो परमात्मा को हटा दिया बीच से। तो हानियां तो बंद हो गईं, भिखारी थे। करोड़ों रुपये आए-गए उनके हाथ में, लेकिन जो लेकिन परमात्मा को हटाने से एक खतरा है। परमात्मा हटा तो आया-बांटा। बांटने में कभी रुके नहीं। ऐसा बांटा कि शायद आदमी अकेला रह जाता है। प्रेमपात्र ही हट जाता है तो प्रेम के अकबर भी थोड़ा ईर्ष्यालु हो उठता था। उमगने की सुविधा नहीं रह जाती। बहुत कठिन है शून्य को प्रेम कहते हैं गंग कवि ने एक दोहा कहा। वे इतने खुश हो गए करना। कोई चाहिए, जिसे तुम प्रेम कर सको। रहीम, कि छत्तीस लाख रुपये एक-दो कड़ियों के लिए बोरों में अकेले कमरे में तुम बैठे हो। मैं तुमसे कहता हूं, भर जाओ प्रेम बंधवाकर चुपचाप रातोंरात गंग कवि के घर भेज दिए, किसी को से। तुम कहोगे किसके प्रति ? मैं कहूंगा, तुम इसकी फिकर पता न चले। गंग बहुत हैरान हुआ तो गंग ने एक पद लिखा। छोड़ो। भर जाओ बस प्रेम से। इस सूने कमरे को प्रेम से भर सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन दो। तो भी तुम क्या करोगे? तुम ज्यादा से ज्यादा सोचोगे ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ त्यों-त्यों नीचे नैन प्रेयसी की बात, अपने बेटे की, बेटी की, मित्र की, अपने यह देना कहां से सीखे? सीखे कहां नबाबज्यू? यह नबाबी प्रियतम की। उस सोच में, उस कल्पना में ही तुम प्रेम से भर कहां सीखी? यह सम्राट होना कहां सीखा? पाओगे कमरे को। सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन बिना कल्पना के प्रेम को जगाना बहुत थोड़े-से सिद्धपुरुषों की देनेवाले बहुत देखे, लेकिन रात चोरी से अंधेरे में...। अंधेरे 614 2010_03 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों में तो लोग चुराने आते हैं, देने कोई आता है? किसी को पता न | जगह न रह गई। महावीर तो बड़े कुशल रहे होंगे, बिना परमात्मा चले-ऐसी देनी देन। के अहंकार को छोड़ दिया। ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ त्यों-त्यों नीचे नैन लेकिन जैनों से इतनी आशा नहीं की जा सकती। परमात्मा हट देनेवाला तो अकड़कर खड़ा हो जाता है। सारे संसार को गया तो अकड़ आ गई। हम ही सब कुछ हैं। कोई ईश्वर नहीं, दिखलाना चाहता है। और तुम, जैसे-जैसे तुम्हारा हाथ ऊंचा कहीं जाकर झुकना नहीं। तो तुम मुसलमान फकीर में जैसी होता जाता है, देने की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आंख | विनम्रता देखोगे, सूफी फकीर में जैसी विनम्रता देखोगे, वैसी तुम नीची होती जाती है। जैन मुनि में नहीं देख सकते। भक्त में तुम जैसी विनम्रता देखोगे, रहीम ने इसके उत्तर में एक दोहा लिखा: वैसी तुम जैन मुनि में नहीं देख सकते। बड़ी अकड़ है। देनहार कोऊ और है भेजत सो दिन-रैन जैन मुनि तो श्रावक को हाथ जोड़कर नमस्कार भी नहीं कर लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन सकता। नमस्कार ही भूल गया। अकड़ ऐसी हो गई कि नमन देनेवाला कोई और है, जो दिन-रात भेज रहा है और लोग शक की कला ही जाती रही। त्याग-तपश्चर्या से अहंकार भरा; कटा हम पर करते हैं; इसलिए आंखें नीची हैं। इसलिए देने में संकोच नहीं। इसलिए मैं कहता हूं: अमृत को जहर बनाने की सुविधा है। क्योंकि लोग सोचेंगे, हमने दिया। है, जहर को अमृत बनाने की सुविधा है। यह परमात्मा की धारणा का लाभ है : त्याग-तपश्चर्या से अहंकार कटना चाहिए। देनहार कोऊ और है भेजत सो दिन-रैन लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन परमात्मा की धारणा का यह लाभ है कि तुम अपने को किसी त्यागी और तपस्वी को तो यह सोचना चाहिए कि किए हुए के चरणों में पूरा रख सकते हो। सब तरह से रख सकते हो। पापों का प्रक्षालन कर रहा हूं त्याग-तपश्चर्या करके। जो किए थे देनहार कोई और है भेजत सो दिन-रैन पाप, उन्हें काट रहा हूं। इसमें गौरव कहां? इसमें गरिमा क्या? कोई भेजे चला जा रहा है। हमारा किया कुछ भी नहीं है। कोई पश्चात्ताप है। आंखें नीची होनी चाहिए। लेकिन त्यागी कर रहा है। अकड़कर खड़ा हो जाता है। वह...जानते हो कितने उपवास लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन किए? कितना धन छोड़ा? कितना बड़ा घर छोड़ा? कितना इसलिए आंखें संकोच से नीची कर लेते हैं कि लोग बड़ी गलत | साम्राज्य छोड़ा? आंखें तो नहीं झुकतीं, आंखें अकड़कर खड़ी बात सोच रहे हैं कि हम दे रहे हैं। देनेवाला कोई और है। हो जाती हैं। तो अहंकार को खड़े होने की जगह नहीं रह जाती। परमात्मा और फिर जैन तत्व में आदमी के ऊपर कोई भी नहीं है। की धारणा का लाभ है कि अहंकार न बचे। | इसलिए बड़ी अड़चन हो जाती है। कहां रखो इस बोझिल सिर अगर कोई ठीक से उपयोग करे तो सभी धारणाएं लाभपूर्ण हैं। को? यह पत्थर की तरह तुम्हारी आत्मा पर बैठ जाता है। और अगर कोई ठीक से उपयोग न करे तो सभी धारणाएं इसलिए जैन दृष्टि से धीरे-धीरे प्रेम तिरोहित हो गया। खतरनाक हैं। सत्यों से फांसी लग सकती है। सत्य तुम्हारे प्राण परमात्मा ही जब न हुआ तो प्रेम रखो कहा? प्रेम करो को संकट में डाल सकते हैं। सत्य जहर हो सकता है। सब किसको? भक्ति खो गई। पीनेवाले पर निर्भर है। समझदार तो ऐसे भी हुए हैं कि जहर को मगर यह होना ही था। इसमें किसी का दोष भी नहीं है। ये भी औषधि बनाकर पी गए। और नासमझ ऐसे हुए हैं कि अमृत जीवन के सहज नियम हैं। को भी जहर बना लिया, विषाक्त हए और मर गए। मैं तुमसे जो कह रहा रहूं, तुममें से जो समझ पाएंगे उनके ही महावीर ने परमात्मा का तत्व हटाया, उसके साथ बड़े जंजाल | काम का है। मैं तुमसे जो कह रहा हूं, कहते से ही मेरे हाथ के थे, वे भी हट गए। पंडित हटा, पुरोहित हटा, पूजा-प्रार्थना हटी, बाहर हो गया। फिर तुम क्या उसका अर्थ करोगे, तुम पर निर्भर धोखाधड़ी, बीच के दलाल हटे लेकिन अहंकार को रखने की है। फिर मेरी उस पर कोई मालकियत भी न रही। फिर मैं यह भी 2010_03 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग: 2 ADMIRE नहीं कह सकता कि तुमने मेरे सत्य को बिगाड़ा। क्योंकि कहा, कहा? अब मुल्ला नसरुद्दीन नेता के पक्ष में गवाही देने आया कि मेरा सत्य कहां रहा? तुम्हारा हो गया। सुन लिया, तुम्हारे था। वह बोला, इसका बिलकुल पक्का सबूत है। यद्यपि वहां कान में पड़ गया, तुम्हारा हो गया, अब तुम जो चाहो, सो करो। सैकड़ों लोग आ-जा रहे थे, लेकिन इसने नेताजी को ही उल्लू का जो अर्थ निकालना हो, निकालो। जैसा अर्थ, जिस दिशा में ले | पट्ठा कहा। जाना हो, ले जाओ। तुम मालिक हो गए। तुम्हें दिया, तुमसे मजिस्ट्रेट ने कहा, इसका प्रमाण क्या है? बोला कि मेरी मालकियत समाप्त हो गई। अब मैं तुम पर कोई मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, क्योंकि वहां और दूसरा कोई उल्लू मुकदमा नहीं चला सकता। | का पट्ठा मौजूद ही नहीं था। तुम सुनोगे तुम्हारे ही ढंग से। तुम उसका उपयोग भी करोगे अब करोगे क्या? पक्ष में गवाही देने आए हैं! तुम्हारे ही ढंग से। तुम उसमें से कुछ चुन लोगे, कुछ छोड़ दोगे। तुम्हारे मतलब तुम्हारे हैं। तुम पक्ष में खड़े होओ कि विपक्ष मैन सुना है, कुरान में एक वचन आता कि जो शराब पीएगा | में; बहुत फर्क नहीं पड़ता। तुम गवाही कहां से दे रहे हो, बहुत वह नर्क में सड़ेगा। एक मुसलमान शराब पीता था। उसके फर्क नहीं पड़ता। तुम तो तुम ही हो। तुम्हारे पास आते-आते धर्मगुरु ने उससे कहा कि भाई, मैंने सुना है तुम कुरान भी पढ़ते किरणें तक मैली हो जाती हैं। तुम्हारे हाथ आते-आते सोना भी हो। कभी-कभी तुम्हारे द्वार से निकलता हूं तो तुम्हारी आयतें | कचरा हो जाता है। तुम्हारे पास पहुंचते-पहुंचते सभी सत्य सनकर मैं भी मस्त हो जाता है। शराबी था, मस्ती से गाता असत्य हो जाते हैं। होगा। लेकिन तुम कुरान में इतनी सी बात नहीं समझ पाए कि इसलिए तो लाओत्सु कहता है, 'सत्य को कहना ही मत; लिखा है कि जो शराब पीएगा वह नर्क में सड़ेगा? क्योंकि कहा कि असत्य हुआ।' उस मसलमान ने कहा, समझता तो भला है, लेकिन एक-एक कहा कि असत्य हआ। किसी ने सना कि असत्य हआ। कदम चल रहा हूं। अभी आधे वाक्य तक पहुंचा हूं-'जो | क्योंकि सुननेवाले को शब्द पहुंचेगा। शब्द को अर्थ तो वही शराब पीएगा।' अभी यहीं तक पहुंचा हूं। अपनी-अपनी चढ़ाएगा। अर्थ की खोल तो वही पहनाएगा। सीमा, सामर्थ्य! अभी आधे वाक्य पर नहीं पहुंचा हूं। धीरे-धीरे मैं तो नग्न सत्य तुम्हें दे दूंगा। वस्त्र तो तुम पहनाओगे। वे चल रहा हूं, कभी पहुंच जाऊंगा। वस्त्र तुम्हारे होंगे। जब सजा-संवारकर तुम सत्य को खड़ा तुम अपने मतलब से चुन लोगे। तुम जो चुनना चाहते हो वही करोगे तो वह बिलकुल ही रूपांतरित हो जाएगा। चुन लोगे। इसलिए दुनिया में प्रतियुग में दृष्टियों को बदलना पड़ता है। मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला। गांव के एक नेताजी कभी ध्यान की धारा प्रवाहमान होती, कभी प्रीति की धारा को किसी आदमी ने उल्लू का पट्ठा कह दिया। अब ऐसे तो सभी प्रवाहमान होती। नेता उल्लू के पट्टे होते हैं। नहीं तो नेता क्यों हों? आदमी अपने दोनों की जरूरत है। वे दोनों आवश्यक हैं। जब एक अति को तो सम्हाल ले! आदमी खुद तो चल ले! आदमी सारी | चली जाती है तो दूसरी धारा उसे खींचकर फिर संतुलन पर लाती दुनिया को बदलने चल पड़ता है। सारी दुनिया को ठीक करने है। ऐसा नहीं है कि वह संतुलन सदा रहेगा, लेकिन संतुलन के चल पड़ता है। | थोड़े-से क्षणों में कुछ लोग मुक्त हो जाएंगे। फिर असंतुलन हो पर नेता बहुत नाराज हुआ। उसने मानहानि का मुकदमा चला जाएगा, फिर कोई खींचकर संतुलन को पैदा करेगा। दिया। मजिस्ट्रेट ने पूछा मुल्ला को-मुल्ला गवाह था-कि भक्ति और ध्यान विरोधी नहीं हैं, परिपूरक हैं। जब एक अति जिस होटल में यह घटना घटी, वहां पचासों लोग आ-जा रहे हो जाती है तो दूसरा उसे सुधार लेता है। आदमी ने नेताजी को उल्ल का पट्टा कहा. उसने तमने कभी रस्सी पर चलनेवाले बाजीगर को देखा? जब नट नाम लेकर भी नहीं कहा; सिर्फ उल्लू का पट्ठा कहा। तो इसका रस्सी पर चलता है तो हाथ में एक डंडा रखता है। रस्सी पर क्या सबूत है कि उसने नेताजी को ही कहा, किसी और को नहीं चलना खतरनाक काम है-इतना ही खतरनाक जैसा जिंदगी 616 2010_03 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों है। शायद इतना खतरनाक नहीं भी है, जितनी जिंदगी है। सम दो अतियों के मध्य में होता है; न इधर, न उधर। लेकिन क्योंकि रस्सी से गिरे तो हाथ-पैर टूटेंगे, जिंदगी से गिरे तो मौत तुम बार-बार अतियों में चले जाओगे यह सुनिश्चित है। तुम निश्चित है। एक अति से बचोगे तो दूसरी अति में चले जाओगे क्योंकि अति रस्सी पर चलनेवाला नट क्या करता? अगर वह देखता है कि में जाना मन की आदत है। इसलिए फिर-फिर तुम्हें खींच लेना बायें तरफ ज्यादा झुक गया है और खतरा गिरने का है, तो तत्क्षण होगा। यह जारी रहेगा। जब तक मनुष्य है इस पृथ्वी पर, यह अपने हाथ की लकड़ी को दायें तरफ झुका लेता है। वजन दायें जारी रहेगा। ध्यान और भक्ति के बीच खींचतान जारी रहेगी। तरफ डाल देता है। लेकिन यह ज्यादा देर नहीं चल सकता। महावीर और मीरा को आते रहना पड़ेगा नए-नए रूपों में। क्योंकि थोड़ी देर में ही पाता है कि अब दायें तरफ गिरने का और अगर तुममें थोड़ी समझ हो, तुममें अगर थोड़ी भी आंख खतरा है, तो फिर वजन बायें तरफ डाल देता है। ऐसा बायें-दायें हो तुम्हारे पास तो तुम देख पाओगे, वे तुम्हें अलग-अलग नहीं वजन को डालता हुआ रस्सी पर अपने को सम्हालता है। खींच रहे, दोनों बीच के लिए खींच रहे हैं। भक्ति और ज्ञान बायें और दायें हैं। और इन दोनों के बीच में ध्यानी की अलग भाषा है। उसका अलग शास्त्र है, अलग मार्ग है अगर तुम मुझसे पूछो। न तो भक्ति मार्ग है, न ज्ञान मार्ग शब्दावलि है। वह मोक्ष की बात करता है, मुक्ति की बात करता है। इनके ठीक मध्य में, जहां संतुलन है वहां मार्ग है। लेकिन है। बंधन छोड़ने की बात करता है। त की तरफ ज्यादा झक गए हो तो महावीर ज्ञान की प्रेमी कि बिलकल विपरीत भाषा है। वह प्रेम की, मिलन की. तरफ खींचते हैं, ध्यान की तरफ खींचते हैं। तुम्हें लगता है ध्यान आत्यंतिक बंधन की बात करता है। वह कहता है, परमात्मा से की तरफ खींच रहे हैं। उनका प्रयोजन केवल तम्हें बीच में ले कभी छटना न हो। आना है, मध्य में ले आना है। क्योंकि मध्य में मुक्ति है। काह करूं बैकुंठ लै कल्पवृक्ष की छांह जब महावीर जा चुके होते हैं और तुम उनकी सुन-सुनकर रहिमन दाख सुहावनो जो गल प्रीतम बांह धीरे-धीरे ज्यादा ध्यान की तरफ झुक जाते हो-ऐसे, कि अब रहीम कहते हैं, क्या करूंगा लेकर कल्पवृक्ष की छांव को और गिरे और खोपड़ी तोड़ लोगे, तो कोई रामानुज, कोई वल्लभ, बैकुंठ को। दो कौड़ी हैं। प्यारे का हाथ मेरे गले में पड़ा तुम्हें भक्ति की तरफ खींचने लगता है। तुम्हें लगता है कि ये | बस, परमअवस्था हो गई। तो पहुंच गए उस अंगूर के तले; लोग दुश्मन हैं। क्योंकि एक कहता था दायें, एक कहता है स्वर्ग के तले। बायें। एक उधर खींच गया, दूसरा इधर खींचने लगा। तुम बड़ा काह करूं बैकुंठ लै कल्पवृक्ष की छांह विरोध करते हो। जैन को भक्ति की तरफ खींचो, तो एकदम रहिमन दाख सुहावनो.... लड़ने को खड़ा हो जाएगा। किसी भक्त को ध्यान की तरफ बैठे हैं अंगूर की छाया में। खींचो, तप की तरफ खींचो, एकदम झगड़ने को खड़ा हो - जो गल प्रीतम बांह जाएगा। तुम्हें लगता है ये दुश्मन हैं। अगर प्यारे का हाथ गले में है। नानक एक तरफ खींच रहे, महावीर एक तरफ खींच रहे, मीरा ज्ञानी कहेगा, प्यारे का हाथ गले में? बात क्या कर रहे हो? एक तरफ खींच रही, मोहम्मद एक तरफ खींच रहे, यह मामला रहिमन दाख सुहावनो...अंगूर, शराब...क्या बातें कर रहे क्या है? तुम तो कहते हो किसी एक से ही तय हो जाना ठीक हो? ये तो सब बंधन की बातें हैं। ये भाषाएं अलग हैं। इनकी है। ऐसे तो खिंचा-खिंचव्वल में खराबी हो जाएगी। लेकिन ये पद्धति अलग है। दोनों ही तुम्हें सत्य की तरफ़ खींच रहे हैं। सत्य संतुलन है। ठीक | अगर तुम बहुत ध्यान की तरफ चले गए हो तो किसी मीरा को मध्य में, जहां न बायां रह जाता न दायां; जहां कोई अति नहीं रह खींच लेने का अवसर देना। अगर बहुत प्रेम की तरफ चले गए जाती-निरति; वहीं समाधि है, वहीं सम्यकत्व है, वहीं समत्व हो, और प्रेम कीचड़ बनने लगा हो और राग बनने लगा हो तो है, वहीं समता का जन्म है। किसी महावीर को खींचने की सविधा देना। दोनों का उपयोग 617 ___ 2010_03 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग: 2 कर लेना मध्य में आने को। जैसी जब जरूरत हो, वैसा उपयोग यहां पना में आता है तो एकदम पक्का भाव हो जाता है। लेकिन कर लेना। जैसे ही अपने गांव की याद आती है, फिर घबड़ा जाता हूं कि असली बात न भूले कि सत्य को पाना है, कि जागना है, कि गेरुए वस्त्र, माला! गांव में लोग पागल समझेंगे। तो गांव के जो है, उसे जानना है। कारण नहीं ले पा रहा हूं। तो मैंने उनसे कहा, गांव का इससे क्या लेना-देना? पागल न दूसरा प्रश्नः जीसस अपने शिष्यों से कहते थे कि यदि मेरे समझे जाओ, यह है असली भय। गांव क्या करेगा? अगर साथ चलने में के में कोई तुम्हें रोके तो तुम उसे मार डालो और मेरे पागल समझे जाने को राजी हो तो गांव क्या करेगा? अगर साथ चल पड़ो। प्रेम के पुजारी जीसस की ऐसी आज्ञा? आप | पागल हो ही जाओगे तो गांव क्या करेगा? तो हमें ऐसी आज्ञा नहीं देते। लेकिन यदि ऐसी समस्या हमारे गांव क्या कर सकता है! लेकिन भीतर भाव है कि गांव में जो सामने भी आए तो आप क्या आज्ञा देंगे-वही, जो जीसस ने प्रतिष्ठा है, वह न मिट जाए। तो प्रतिष्ठा रोक रही है, गांव तो दी? | नहीं रोक रहा। सीधी बातों को सीधा न करके हम उलझाते हैं। प्रतिष्ठा का मोह रोक रहा है। गांव तो नहीं रोक रहा। प्रतिष्ठा के मार डालो। मोह को मार डालो। लेकिन तुम समझे नहीं जीसस का अर्थ, इसलिए अड़चन हो जीसस का मतलब इतना ही है। जीसस अपने शिष्यों से कहते गई। बाहर थोड़े ही कोई तुम्हें रोक सकता है, रोकनेवाले भीतर थे कि यदि मेरे साथ चलने में कोई तुम्हें रोके तो उसे मार डालो | हैं। पत्नी थोड़े ही तुम्हें रोक सकती है, अगर तुम जा रहे हो सत्य और मेरे साथ चल पड़ो। की तरफ। बेचारी पत्नी क्या रोकेगी! मरोगे तो कैसे रोकेगी? हजार बाधाएं आती हैं जीसस जैसे व्यक्ति के साथ चलने में। जब मरने में नहीं रोक सकती तो संन्यास में कैसे रोकेगी? जो वे बाधाएं बाहर नहीं हैं, वे तुम्हारे भीतर हैं। होना है, अगर होना है तो पत्नी कैसे रोकेगी? अगर पत्नी भी | एक बहुत बड़ा धनपति, और बहुत प्रतिष्ठित विद्वान और रोक पाती है तो कहीं तुम्हारा ही भीतर डांवाडोल है। पत्नी का जेरूसलम के विश्वविद्यालय का अध्यापक निकोदेमस जीसस तुम बहाना लेते हो। | को मिलना चाहता था। लेकिन दिन में मिलने जाने से डरता जीसस कहते हैं कि उस डांवाडोलपन को मार डालो। कोई था—दिन में। क्योंकि लोगों को पता चल जाए तो वह प्रतिष्ठित जीसस पत्नी को मार डालने को थोड़े ही कहेंगे। इतनी अकल, आदमी था। पांच पंचों में एक था जेरूसलम के। लोग क्या जितनी तुममें है, इतनी तो उनमें भी रही होगी। कम से कम इतना कहेंगे? वह बड़ा पंडित था। उसके वचन शास्त्रों की तरह तो भरोसा करो कि इतनी अकल उनमें भी रही होगी। | समझे जाते थे। लोग क्या कहेंगे कि तुम भी पूछने गए? तो तुम्हें भीतर हैं रोकनेवाली चीजें। राग है, मोह है, लोभ है, क्रोध है। भी पता नहीं है अभी? शत्र भीतर है, बाहर नहीं। बाहर तो सिर्फ प्रक्षेपण होता है। उम्र भी उसकी ज्यादा थी। जीसस तो अभी जवान थे-कोई जब तुम कहते हो, फलां आदमी मेरा शत्रु है, मेरे राह में, मार्ग तीस साल की, इकतीस साल की उम्र थी। में रोड़े डाल रहा है तो वह आदमी सिर्फ पर्दा है, शत्रुता तुम्हारे वह उम्र में भी बड़ा था, प्रतिष्ठा में भी बड़ा था, धन में भी बड़ा भीतर है, जो तुम उसके ऊपर आरोपित कर रहे हो। शत्रुता को | था। नाम भी उसका बड़ा था। सारा देश उसे जानता था। हजारों मार डालो, फिर देखो कौन शत्रु! और मित्रता को मार डालो, उसके शिष्य थे, विद्यार्थी थे। वह कैसे इस आवारा आदमी के | फिर देखो कौन मित्र है! राग को मिटा दो फिर देखो, कौन | पास चला जाए दिन में? और वहां भीड़ भी आवाराओं की लगी अपना, कौन परायाअहंकार को छोड़ दो, फिर देखो कौन हुई थी। वे क्या कहेंगे? लोग हंसेंगे। गांवभर में भद्द हो | रोकता है। कैसे रोक सकता है? | जाएगी। प्रतिष्ठा टूट जाएगी। एक मित्र संन्यास लेने आए थे। वे कहते हैं, लेना तो है। जब | तो एक दिन आधी रात अंधेरे में, जब सारे लोग जा चुके थे तब 618 2010_03 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों वह अंधेरे में सरकता चुपचाप जीसस के पास पहुंचा। हिलाया मार्ग में आए, मार डालना। लेकिन मेरा अर्थ समझ लेना। उनको, कहा कि सुनो। एक बात पूछनी है। तुम्हें मिल गया? किसी को मार मत डालना। कि पत्नी बीच में आए तो उठाकर जीसस ने कहा, दिन में क्यों न आए? निकोदेमस बोला, लोगों एक टेंडपा उसका सिर तोड़ दो। के कारण। __ भीतर तुम्हारे जो-जो बाधाएं हैं उन्हें गिरा दो। बाहर कभी कोई जीसस ने कहा, इतने लोग आते हैं, लोगों के कारण कोई बाधा नहीं है-रही ही नहीं। बाहर तो हमारी तरकीबें हैं। जो रुकता नहीं। रुकने का कारण कहीं भीतर होगा। निकोदेमस, हम भीतर से करने में डरते हैं, लेकिन इतनी भी हिम्मत नहीं है कि किसे धोखा दे रहे हो? इतने बड़े पंडित और समझदार होकर स्वीकार कर लें अपनी कमजोरी, उनके लिए हम बाहर कारण इतनी-सी बात भी समझ में नहीं आ रही? रात में मिलने आए | खोजते हैं। यह बाहर का सब तर्कजाल है। हो ताकि किसी को पता न चले? ताकि कल भरी दुपहरी में तुम | तुम कहते हो पत्नी दुखी होगी, इसलिए संन्यास नहीं ले रहे कह सको कि यह जीसस आवारा है? जो जाते हैं इसके पास, | हो। लेकिन और कितने काम तुमने किए, तब तुमने पत्नी के नासमझ हैं, भूले-भटके हैं। यह दूसरों को भटका रहा है। ताकि दुखी होने की कोई फिकर न की; संन्यास में ही फिकर कर रहे तुम अपनी प्रतिष्ठा भी बचा लो निकोदेमस! और तुम्हारे पास हो? पत्नी तुम्हारी सुखी रही है इसका अर्थ है पूरे जीवन? अभी कुछ है भी नहीं, इसलिए तुम पूछने को भी तरसते हो। तक मैंने सुखी पत्नी नहीं देखी, न सुखी पति देखा। सब रोते _हां, मुझे मिला है लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, जब तक तुम मरो दिखाई पड़ते हैं। पति सोचता है, पत्नी दुख दे रही है। पत्नी नहीं, तुम्हारा पुनर्जन्म न हो, तुम न पा सकोगे। सोचती है, पति दुख दे रहा है। और फिर भी तुम कहते हो, पत्नी निकोदेमस भी प्रश्न पूछनेवाले की तरह गलत समझा। उसने दुखी होगी। इतने दुख दिए, यही एक दुख देने में डर रहे हो? / कहा, मरो नहीं? क्या मतलब? और पुनर्जन्म से तुम क्या नहीं, कहीं कुछ और बात है। शराब पीते हो तब नहीं सोचते चाहते हो? क्या मैं फिर किसी स्त्री के गर्भ में प्रवेश करूं? यह कि पत्नी दुखी होगी। जुआ खेलते हो तब नहीं सोचते कि पत्नी तो असंभव है। दुखी होगी। किसी और स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हो तब नहीं जीसस ने कहा, सीधी-सीधी बात है। असंभव मत बनाओ। सोचते कि पत्नी दुखी होगी। तब कहते हो क्या करें! मजबूरी न तो मैं यह कह रहा हूं कि तुम मरो; और न मैं यह कह रहा हूं, | है। हो गया, प्रेम हो गया; अब क्या करें? किसी स्त्री के गर्भ में प्रवेश करो। मैं इतना ही कह रहा हूं कि ऐसा ही कह न सकोगे कि संन्यास हो गया, अब क्या करें? तुम्हारा पुराना अहंकार गिरे। तुम नए हो जाओ। प्रतिष्ठा पाकर नहीं, पत्नी से किसको प्रयोजन है? और फिर दूसरे को दुख देना क्या मिला? देखो जीवन को सीधा-सीधा। प्रतिष्ठा है तुम्हारे न देना तुम्हारे बस में है? सुख देना तुम्हारे हाथ में है? पास, पद है तुम्हारे पास, तथाकथित ज्ञान का अंबार लगा है | जो तुम नहीं करना चाहते हो उसके लिए तुम बाहर कारण तुम्हारे पास; मिला क्या? छोड़ो उसे, जिससे नहीं मिला तो तुम खोज लेते हो। जो तुम करना चाहते हो, उसके लिए भी कारण पाने के हकदार हो सकते हो, जिससे मिल सकता है। मैं देने खोज लेते हो। करते तुम वही हो, जो तुम करना चाहते हो और को तैयार हैं। लेकिन पहले इस सबको मार आओ, मिटा सदा कारणों का सहारा ले लेते हो। आओ। पुराने को गिराओ ताकि नया निर्मित हो सके। ये जब जीसस कहते हैं, मार डालो जो बाधा बने—उनका कुल घास-फूस उखाड़ो और फेंको ताकि फूलों के बीज बोए जा प्रयोजन इतना है कि अपने भीतर से सारा जाल गिरा दो, फिर सकें। निकोदेमस ने कहा कि यह जरा कठिन है। तुम्हें जो ठीक लगे, करो। तभी कोई जीसस के पीछे आ सकता लेकिन अगर सत्य को पाना इतना भी मूल्यवान नहीं है कि तुम है। तभी कोई मेरे साथ आ सकता है। कुछ चुकाना पड़ेगा थोड़ी कठिनाई से गुजर सको तो तुम सत्य पाने के हकदार भी | मूल्य। सत्संग मुफ्त तो नहीं है। महंगे से महंगा सौदा है। और संसार में सब चीजें छोटी-मोटी चीजें देने से मिल जाती सीधा-सा मतलब है। वही मैं भी तुमसे कहता हूं कि जो तुम्हारे हैं, यहां तो कोई अपने को पूरा दे सकेगा तो ही पा सकेगा। नहीं। 619 ___ 2010_03 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग : 2 कहते हो कि 'प्रेम के पुजारी से ऐसी आज्ञा ?' करते थे वे आ गईं। इस आदमी के पास कुछ है। हम इसके यह प्रेम की ही आज्ञा है। यह आज्ञा बड़ी प्रेमपूर्ण है; नहीं तो | साथ चलेंगे। यह भी न पूछा तुम कौन हो? पता-ठिकाना? दी न गई होती। जीसस तुम्हें प्रेम करते हैं इसलिए ऐसा कह तुम्हारा अधिकार क्या? तुम्हारी आप्तता क्या? किस अधिकार सके। यह पुकार प्रेम की ही पुकार है। अन्यथा तुम्हें पीछे चलाने के बल से बोल रहे हो कि हमारे पीछे आओ, फेंको जाल? में कुछ जीसस को सुख मिलनेवाला नहीं है। न तुम्हें पीछे वे पीछे हो लिए। वे गांव के बाहर निकलते थे कि एक आदमी चलाते, न फांसी मिलती। तुम्हें पीछे चलाया, फांसी मिली। | भागा हुआ आया और उसने कहा कि तुम दोनों कहां जा रहे हो अकेले बैठे रहते, कोई फांसी लगानेवाला न था। तुम्हें चलाया | पागलो? तुम्हारा बाप, जो बीमार था, वह मर चुका। तो कंधे पर अपनी सूली ढोनी पड़ी। अकेले बैठे रहते, तुम्हें पीछे उन दोनों ने जीसस से कहा, हमें तीन-चार दिन की मोहलत, न चलाते तो सली ढोने की कोई नौबत न आती। सुविधा दे दें। हम जाकर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर तुम्हें साथ चलाकर जीसस को क्या मिला? फांसी मिली, आएं। तो जीसस ने कहा कि जो मुर्दे गांव में हैं, काफी हैं। वे मुर्दे सूली मिली। कोई सिंहासन तो मिल न गया। लाभ जीसस को का संस्कार कर लेंगे। तू फिकर न कर। तुम फिकर मत करो। क्या हो गया? लेकिन प्रेम था। बिना चलाए न रह सके। जो | तुम मेरे पीछे चल पड़े तो अब लौटकर मत देखो। मरे हुए बाप मिला था, बिना बांटे न रह सके। जो पाया था, चाहा कि तुम्हारी को दफनाने के लिए मरे हुए लोग काफी हैं गांव में; वे फिकर कर झोली में भी भर दें। किसी गहन प्रेम से ही पुकारा था कि आओ लेंगे। मुर्दे मुर्दे को दफना लेंगे। तुम मेरे पीछे आओ। मेरे पीछे। किसी बड़े खजाने की खबर उनको मिल गई थी। वह | यह हमें लगेगा बड़ी कठोर बात है। और प्रेमी, प्रेम के खजाना इतने पास है और तुम भिखमंगे हो। तो कहा था, चले संदेशवाहक जीसस के मुंह से, कि दफना लेंगे मुर्दे मुर्दे को... / आओ मेरे पीछे। जिनको भी जीसस का खजाना समझ में आ लेकिन मुर्दे को दफनाकर भी क्या होना है? जो जा ही चुका, जा गया, वे चल पड़े। ही चुका। अब तुम इस लाश को मिट्टी में गड़ा दो कि आग में जीसस सुबह निकलते हैं एक झील के पास से। दो मछुए जला दो कि पशु-पक्षियों के लिए छोड़ दो। क्या फर्क पड़ता | मछलियां मार रहे हैं। उन्होंने जाल फेंका है, अभी सूरज ऊगा है है? कि तुम विधि-विधान पूरा करो कि मंत्र जाप करो; क्या और जीसस पीछे आकर खड़े हो गए। और उन्होंने एक मछुए के फर्क पड़ता है ? जो चुका, जा चुका। अब तो यह खोल पड़ी रह कंधे पर हाथ रखा और कहा कि देख, मेरी तरफ देख। कब तक | गई है। प्राण तो उड़ चुके। पिंजड़ा पड़ा रह गया है; पक्षी तो जा मछलियां पकड़ता रहेगा? अरे आ! मैं तुझे कुछ बड़ी चीजें चुका। अब यहां कुछ भी नहीं है। पकड़ने का राज बताता हूं। और फिर मैं सदा यहां न रहूंगा। मेरे इसलिए जीसस कहते हैं, यह काम तो मुर्दे भी कर लेंगे। जाने का वक्त जल्दी ही आ जाएगा। इसलिए तम्हें जाने की कोई जरूरत नहीं है। पीछे लौट-लौटकर वह मछआ तो चौंका होगा। यह कौन अजनबी आदमी? मत देखो. अन्यथा मेरे साथ न चल सकोगे। और कैसी अजीब-सी बातें कर रहा है। लेकिन उसने जीसस को। जिन्हें जीसस के साथ चलना हो, उन्हें आगे देखना चाहिए। देखा, वह सीधा भोला-भाला आदमी रहा होगा। वह कोई जो जा चुका, जा चुका। अतीत न हो चुका। जो ऊग रहा सूरज, पंडित न था। उसे शास्त्रों का कुछ पता नहीं था। मछलियां मारने | उस तरफ ध्यान देना चाहिए क्योंकि वहां जीवन है। वहां जीवन में ही जिंदगी बिताई थी। सीधा-सादा भोला-भाला आदमी था।। की संभावना है। वहां जीवन की नियति है। वहां भाग्य का छिपा तर्क, गणित, जाल कुछ भी न था। | हुआ खजाना है। उसने जीसस की आंखों में देखा-सीधे आदमी ही आंखों में हिम्मतवर लोग रहे होंगे। यह घड़ी ऐसी थी कि कहते कि यह आंखें डालकर देख सकते हैं और उस के हाथ से जाल छट | भी क्या बात हई। जिस पिता ने हमें जन्म दिया वह मर गया और गया। उसने अपने भाई को भी ललकारा, जो डोंगी में बैठकर तुम हमें रोकते हो? लेकिन बड़े सीधे-साफ लोग रहे होंगे। जाल डाल रहा था कि तु भी आ। जिन आंखों की हम तलाश उनकी बात समझ में आ गई। उन्होंने कहा, यह बात तो ठीक ही 620 Jalt Education International 2010_03 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों - है। दफनाकर भी क्या होगा? और इतने लोग तो गांव में हैं ही, | एक अजनबी आदमी गांव में आए, जल्दी ही तुम पाओगे, वे दफना ही लेंगे। दो-चार दिन के भीतर उसने अपने जैसे लोग खोज लिए। अगर वे नहीं गए वापस। वे जीसस के साथ ही चलते रहे। वह भक्त था तो भक्तों के सत्संग में पहुंच जाएगा। गीत यह आवाज प्रेम की ही आवाज थी। यह करुणा का ही संदेश | गुनगाएगा, नाचेगा, प्रभु का स्मरण करेगा। शराबी था तो था। क्योंकि जीसस को पता है, एक बार व्यक्ति मक्त हो जाए | शराबखाने पहंच जाएगा। शराबियों के गले में हाथ पड़ जाएंगे। तो नाव ज्यादा देर इस किनारे पर नहीं टिकती। थोड़ी देर टिकती | जुआरी था, जुआघर खोज लेगा। है। थोड़ी देर टिक जाए, यह भी चमत्कार है। थोड़ी देर भी चेष्टा भक्त वर्षों रह जाए इस गांव में, और उसे पता न चलेगा कि से टिकती है। यह नाव जल्दी छट जाएगी। अगर पीछे जआघर कहा है। और जआरी वर्षों रह जाए. उसे पता न चलेगा लौट-लौटकर देखते रहे, और व्यर्थ की बातों में उलझते रहे और कि कहीं भजन भी हो रहा है। उसी रास्ते से गुजर जाएगा। व्यर्थ के बहाने खोजते रहे और कहा कि कल आएंगे, परसों लेकिन भजन आंख में दिखाई न पड़ेगा, कान में सुनाई न पड़ेगा। आएंगे, तो तुम कभी न आ पाओगे। शोरगुल मालूम होगा। उससे कोई संबंध न जुड़ेगा। लेकिन इसलिए जीसस कहते हैं, जो मार्ग में आए, जो बाधा बने, उसे कहीं पासों की खनकार सुनाई पड़ जाए तो वह सजग हो हटा दो, मिटा दो। जाएगा। उसकी दुनिया आ गयी। उसके भीतर कोई चीज मैं भी तुमसे यही कहता हूं। जो व्यर्थ है उसके साथ संग मत | तालमेल खा गई। जोड़ो। जो थोथा है उससे दोस्ती मत बनाओ। थोथे से दोस्ती तुम बाहर उन्हीं से दोस्ती बना लेते हो, जैसे तुम हो। इसलिए तुम्हारे भीतर के थोथेपन का सबूत है। बाहर को दोष मत देना। भीतर अपने खोजना। ओछे को सत्संग रहिमन तजौ अंगार ज्यूं ओछे को सत्संग रहिमन तजौ अंगार ज्यूं तातै जारे अंग सीरो पै कारो लगे तातै जारे अंग सीरो पै कारो लगे। रहीम कहते हैं: ओछे को सत्संग रहिमन तजौ अंगार ज्यूं तीसरा प्रश्न: आपने कहा है कि एक-दूसरे से विपरीत ओछे से दोस्ती मत बांधो। व्यर्थ से दोस्ती मत बांधो। असार | अनेक मार्ग हैं, जो एक परमात्मा पर ले जाते हैं। अतीत में ऐसा से दोस्ती मत बांधो। अंगार समझो ओछे को। रहा है कि एक ही मार्ग के साधक एक गुरु के पास इकट्ठे होते तातै जारे अंग थे। जैसे योगी अलग, भक्त अलग, तांत्रिक अलग, ध्यानी जब गरम होता, जलता होता तो शरीर को जलाता है। अलग। इससे सभी को अपने मार्ग पर चलने में सुविधा थी। सीरो पै कारो लगे परंतु आपके पास, आपके आश्रम में तो सब विपरीत मार्गों का और जब ठंडा हो जाता है तो शरीर में कालिख लगाता है। मेला लगा हुआ है—योगी और भक्त, तांत्रिक और सूफी, ऐसा अंगार समझो ओछेपन को। जलाएगा या तो, अगर जीवित कर्मयोगी और ध्यानी, सब एक साथ। ऐसा कैसे? इससे रहा, गरम रहा। अगर मरा, मुर्दा हुआ तो कोयला हो जाएगा, तो | बाधाएं भी बनती हैं। इस संबंध में कुछ कहने की कृपा करें। फिर शरीर को काला करेगा। मगर हर हालत में सताएगा। पर ध्यान रखना, जीवन के सारे सूत्र आत्यंतिक अर्थों में अंतस | यह सच है। अतीत में ऐसा ही था। एक गुरु एक संकीर्ण मार्ग के संबंध में हैं। तुम किसी ओछे आदमी से दोस्ती क्यों करते का उपदेष्टा होता था। उसके लाभ भी थे, हानियां भी थीं। हो? दोस्ती अकारण तो नहीं होती। तुम्हारे भीतर कुछ ओछापन | लाभ तो यह था कि तुम्हारे मन में कभी दुविधा पैदा न होती होता है जो उसके साथ तालमेल खाता है। तुम बुरे आदमी की थी। एक ही बात...एक ही बात...एक ही बात सुनते थे। एक दोस्ती कैसे कर लेते हो? कोई आसमान से दोस्ती थोड़े ही ही बात...एक ही बात...एक ही बात करते थे। संदेह पैदा न टपकती है। होता था। चुपचाप अपने मार्ग को पकड़कर चलते थे। लेकिन 6211 ___ 2010_03 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग: 2 खतरा था। संकीर्णता पैदा होती थी। सांप्रदायिकता पैदा होती | अपने मतलब की बात खोज लेता, चल पड़ता। थी, कि मैं ही ठीक हूं, और सब गलत हैं। यही मार्ग ठीक है, तुम जाते हो नदी के किनारे। प्यासा आदमी तो अपने चुल्लू में और सब मार्ग गलत हैं। पानी भर लेता है। पूरे नदी की थोड़े ही फिक्र करता है कि अब तो लाभ था, हानि थी। और लाभ से हानि ज्यादा बड़ी सिद्ध | इसको घर ले जाएं, बांधकर रखें, क्या करें, क्या न करें। वह हुई। लाभ तो बहुत थोड़े लोगों को हुआ, हानि करोड़ों को हुई। धन्यवाद देता है नदी को कि ठीक। अपनी चुल्लू भर ली, अपनी | सारी दुनिया सांप्रदायिक हो गई। सारी दुनिया में यह मतांधता | प्यास बुझा ली, बात खतम हो गई। फैल गई कि हम ठीक और बाकी सब गलत। हां, अगर तुम लोभी हो तो तुम प्यास तो भूल ही जाओगे, तुम जैन से पूछो, वह कहता है हमारा गुरु गुरु, बाकी सब कुगुरु। सोचोगे इस नदी पर कब्जा कैसे किया जाए। यह पूरी नदी मेरे हमारा शास्त्र शास्त्र. बाकी सब कशास्त्र। मसलमान से पछो. तिजोडी में कैसे बंद हो जाए। इस परी नदी का मैं मालिक कैसे हिंदू से पूछो, ईसाई से पूछो। सब संकीर्ण हो गए, सांप्रदायिक हो जाऊं। तो तुम अड़चन में पड़ोगे। हो गए। धर्म की तो हत्या हो गई। सुविधा तो मिली होगी सरल तो पहले भी अड़चन में नहीं पड़ा, अब भी नहीं पड़ेगा। थोड़े-से लोगों को, सरल-चित्त लोगों को–जिन्होंने इतना ही मैं जो प्रयोग कर रहा हूं वह नया है। मैं चाहता हूं कि संसार में जाना कि हमारे लिए क्या ठीक है, हमें मिल गया और चुपचाप अब संकीर्णता न रहे, सांप्रदायिकता न रहे। संप्रदाय के नाम पर उस पर चल पड़े। सौ में से एक को तो सुविधा मिली होगी, बहुत हानि हो चुकी। आदमी लड़े और कटे और मरे। आदमी निन्यानबे तो सिर्फ संकीर्ण हो गए। निर्मित नहीं हुआ, विनष्ट हुआ। अब संप्रदाय नहीं चाहिए। मैं ठीक उल्टा प्रयोग कर रहा हूं, जैसा कभी नहीं हुआ है। मैं अब तो दुनिया में धर्म नहीं चाहिए, धार्मिकता चाहिए। यह फिकर कर रहा हूं कि चाहे सुविधा थोड़ी कम हो, संकीर्णता मंदिर-मस्जिद नहीं चाहिए, धर्म-भावना चाहिए। कुरान-गीता न हो। मानना मेरा ऐसा है कि जो एक सरल आदमी पुरानी | छूटें, छूटें; सदभाव न छूटे। जैन, हिंदू, मुसलमान नहीं संकीर्ण सीमाओं से जा सका, वह सरल आदमी मेरे पास भी जा चाहिए। अब तो भले, सीधे, सरल-चित्त लोग चाहिए। क्योंकि सकेगा। उसे दुविधा पैदा नहीं होगी यहां भी। क्योंकि सरल जैन, हिंदू, मुसलमान तो हजारों वर्षों से जमीन पर हैं। और आदमी मुझे देखेगा। मैं क्या कहता हूं इसकी बहुत फिकर ही जमीन रोज नर्क होती चली गई। इनके होने से कुछ लाभ नहीं नहीं करता। सरल आदमी तो मुझ पर भरोसा करता है। वह हुआ। ये तो अब विदा लें। इनको तो हम अलविदा कहें। अब कहता है वे जो कहते होंगे, ठीक कहते होंगे। उसे कोई दुविधा तो खाली आदमी, सूना आदमी, स्वस्थ-सरल आदमी चाहिए। पैदा नहीं होती। वह मेरे विरोधाभास में भी मुझे ही देखता है। इसलिए मैं सारे धर्मों की बात कर रहा हूं। इसमें जो सरल हैं दोनों में मुझे ही देखता है। और सरल आदमी तो अपने काम की उनको तो बड़ा लाभ होगा, जो जटिल हैं उनको बड़ी दुविधा बात चुन लेता है और चल पड़ता है। होगी। लेकिन मेरे देखे, मेरे लेखे अगर सौ आदमी पुरानी दुनिया जटिल आदमियों के साथ झंझट है। लोभियों के साथ झंझट | में चलते थे धर्म के मार्ग पर तो निन्यानबे संकीर्ण हो गए, एक है। उन लोभियों को दुविधा पैदा होगी क्योंकि वे चाहते हैं, ध्यान सरल पहुंचा। मैं तुमसे कहता हूं, वह एक सरल तो मेरे पास भी भी झपट लें, प्रेम भी झपट लें। भक्ति पर भी कब्जा कर लें, पहुंच जाएगा और निन्यानबे संकीर्ण न हो पाएंगे। और अगर ध्यान पर भी कब्जा कर लें। तपस्वी भी हो जाएं, जीवन का रस | निन्यानबे संकीर्ण न हों तो उनके पहुंचने की संभावना भी बढ़ भी न खोए। त्याग का भी मजा ले लें, अहंकार का भी मजा ले गई। मैं तुम्हें विराट करना चाहता हूं। तुम्हें पूरी दृष्टि देना चाहता लें और परमात्मा की पूजा का भी रस आ जाए। हूं। तुम सब देख लो। फिर तुम्हें जो रुचिकर लगे उस पर चल लोभी! उसको तकलीफ होगी। सरल-चित को तो मेरे पास | पड़ो। कठिनाई तो तब होगी जब तुम सभी रास्तों पर चलने की कोई तकलीफ नहीं है। उसको कभी कोई तकलीफ नहीं है, . कोशिश करने लगोगे। तब अड़चन होगी। किसी के पास कोई तकलीफ नहीं है। सरल-चित्त आदमी तो लेकिन यह तो पागलपन है। तुम केमिस्ट की दुकान पर जाते 622 2010_03 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों हो, अपना प्रिस्क्रिप्शन दिखाते हो, दवा ली, चल पड़े। तुम यह | यह तो अच्छा हुआ कि दोनों का कहीं मिलना नहीं होता बीच नहीं कहते कि यहां लाखों दवाएं रखी हैं। तुम यह नहीं कहते कि में। नहीं तो गंगा कहेगी, पागल हुई? पश्चिम में कहीं सागर एक ही दवा से क्या होगा? सब दवाएं दे दो। तुम अपना रोग है? सदा से पूरब में रहा। हम सदा पूरब में मिलते रहे सागर देख लेते हो, अपनी औषधि लेकर अपने घर चले आते हो। तुम से। तेरा दिमाग फिर गया नर्मदा? लौट आ। मेरे साथ हो ले। चिंता में नहीं पड़ते कि केमिस्ट की दुकान पर लाखों दवाएं रखी हमारे संप्रदाय में सम्मिलित हो जा।। हैं और हम एक ही लिए जा रहे हैं? तुम लोभ में नहीं पड़ते। और नर्मदा कहेगी, तू पागल हो गई? हम सदा से गिरते रहे मैं तुम्हारे सामने सब द्वार खोल रहा हूं। तुम्हें जो द्वार रुच जाए, | सागर में। यही हमारा ढंग रहा। तुझे कुछ भ्रांति है। पूरब में कहीं तुम उससे प्रवेश कर जाना। अब तुम यह कोशिश मत करना कि सागर है? पूरब से तो हम आते हैं, पश्चिम को हम जाते हैं। सभी द्वारों से तुम प्रवेश करो; अन्यथा तुम पगला जाओगे। पूरब में सागर होता तो हम आते ही क्यों पूरब से? पूरब में कुछ संकीर्ण तुम मेरे पास न हो सकोगे, लेकिन अगर लोभी हुए तो भी नहीं है। भटक जाओगी। पागल हो जाओगे। लेकिन वह भी मेरे कारण नहीं, अपने लोभ नदियां आपस में बात नहीं करतीं, अच्छा है। दोनों सागर के कारण। | पहुंच जाती हैं। सभी नदियां अंततः सागर पहुंच जाती हैं। मैं तो तुम्हें सारा दृश्य दे रहा हूं, पूरा नक्शा दे रहा हूं दुनिया ऐसा ही सभी चेतनाएं अंततः परमात्मा में पहुंच जाती हैं। तुम का। फिर तुम्हें जो तुम्हारे भीतर धुन बजा देता हो, उसे पकड़ अपना मार्ग पकड़ लो और ध्यानपूर्वक, स्मरणपूर्वक, उस पर लो। मेरे लिए रास्ते मूल्यवान नहीं हैं, तुम मूल्यवान हो। चलो। दूसरों को उनके मार्ग पर चलने दो। आशीर्वाद दो उन्हें विधियों का कोई मूल्य नहीं है, व्यक्तियों का मूल्य है। तुम्हें जो कि वे भी पहुंचे। प्रार्थना करो उनके लिए कि वे भी पहुंचे। इससे विधि रुच जाए, जिस विधि से तुम्हारे भीतर कमल खिलने लगे, क्या फर्क पड़ता है कैसे पहुंचते हैं, कौन-सा वाहन लेते हैं! | वही तुम्हारा मार्ग हो गया। | पहुंचें। और उनसे आशीर्वाद मांगो अपने लिए कि हम भी पहुंच लेकिन मेरे पास एक बात तम्हें जरूर समझ में आ जाएगी कि जाएं, जो हमने मार्ग चुना है उससे। तो दुनिया में एक सदभाव | जो तुम्हारे लिए मार्ग है, जरूरी नहीं है सबके लिए हो। जो तुम्हारे पैदा हो। हो चुका संप्रदाय बहुत, अब सदभाव चाहिए। | लिए मार्ग नहीं है, हो सकता है दूसरे के लिए हो। क्योंकि तुम यहां मेरे पास देखोगे भक्ति से खिलते हुए लोगों को। तुम यहां चौथा प्रश्नः त्वमेव माता च पिता त्वमेव देखोगे ध्यान से खिलते हुए लोगों को। तुम यहां मुसलमानों को त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव प्रभु की तरफ बढ़ते देखोगे, जैनों को, हिंदुओं को, ईसाइयों को, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव यहूदियों को। त्वमेव सर्वं मम देव देव तो एक बात तो यहां तुम्हें सीख ही लेनी पड़ेगी कि सब पहुंच -सरोज के वंदन। जाते हैं। पहुंचने की गहरी आकांक्षा हो, अभीप्सा हो। सब पहुंच जाते हैं। सब मार्गों से पहुंच जाते हैं। सभी मार्ग उस की तरफ ले जो मैं अभी कह रहा था। कोई ध्यान से खिल जाता, कोई प्रेम जाते हैं। उस एक ही यात्रा चल रही है। वह एक ही तीर्थ है। से खिल जाता। सभी यात्राएं वहीं पहुंच जाती हैं। सरोज का प्रश्न एक भक्त का प्रश्न है। भक्त के पास प्रश्न भी लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि तुम सभी मार्गों पर दौड़ने नहीं है, निवेदन है। शायद निवेदन कहना भी ठीक नहीं, लगो। तब तुम पगला जाओगे। तब तुम कहीं न पहुंचोगे। अहोभाव की अभिव्यक्ति है। पूछने को कुछ नहीं है, धन्यवाद चलना तो एक ही मार्ग पर होगा। देने को कुछ है। देखा ? गंगा बहती है पूरब की तरफ, नर्मदा बहती पश्चिम की ध्यान का मार्गी पूछता है, क्या करें। प्रेम का मार्गी धन्यवाद तरफ; दोनों सागर पहुंच जाती हैं। देता है कि जो हुआ, वह बहुत है। और न हो तो चलेगा। जो हो 623 ___JainEducation International 2010_03 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग : 2 ही गया है वह अपनी पात्रता से ज्यादा है। ऐसे ही पात्र के ऊपर या अंडा पहले। दो में से कुछ एक ही पहले हो सकता है। से बहा जा रहा है; बाढ़ आ गई है। | लेकिन तुमने कभी खयाल किया? दोनों एक-दूसरे के पहले यहां तुम इन प्रश्नों में भी दखोगे। अलग-अलग लोग, | खड़े हैं। अलग-अलग उनकी लहरें, अलग उनकी तरंगें। मुल्ला नसरुद्दीन दो स्त्रियों के प्रेम में था। अलग-अलग अब सरोज पूछती है—प्रश्न है ही नहीं इसमें। वह कहती है | मिलता था तब तो ठीक था। एक-दूसरे के सौंदर्य की बात तुम ही पिता, तुम ही माता, तुम ही बंधु, तुम ही सखा। तुम ही करता, खूब चर्चा करता। दोनों स्त्रियों की भी आपस में सब कुछ। तुम ही देवताओं के देवता। धीरे-धीरे पहचान हो गई। उन्होंने कहा कि यह आदमी धोखा दे भक्त के पास एक अहोभाव है। भक्त खोज नहीं रहा है, भक्त | रहा है, इसको फांसना पड़ेगा। को मिल गया है। भक्त कहता है जीवन बरस ही गया है। एक दिन नौका-विहार के लिए दोनों ने इकट्ठा मुल्ला नसरुद्दीन उत्सव चल ही रहा है। जो मिलना था वह मिल ही गया है। को अपने साथ ले लिया। नदी पर बैठकर, पूर्णिमा की रात, बीच परमात्मा ने उसे दे ही दिया है। मझधार में मुल्ला से कहा कि नसरुद्दीन, अब कहो कौन सुंदर ध्यानी तो खोज रहा है कि मिलेगा तब आनंदित होगा। भक्त है? अब मुल्ला बहुत घबड़ाया। अकेले में एक स्त्री को कह दो आनंदित है। ध्यानी खोजेगा तो आनंदित होगा, भक्त आनंदित कि तुम दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री हो; कोई हर्जा नहीं। सभी है इसलिए खोज लेगा। ध्यानी का साधन पहले है, साध्य अंत | कहते हैं। कहना ही पड़ता है। फिर इससे कुछ अड़चन नहीं में। भक्त का साध्य पहले है, साधना अंतिम। | आती। दूसरी स्त्री को फिर अकेले में कह दो। इससे कोई इसलिए भक्त और ध्यानी की भाषा में बड़े जमीन-आसमान तार्किक झंझट नहीं आती। अलग-अलग समय में के अंतर हैं। वे एकदम उल्टी बातें बोलते हैं। इसलिए तो ज्ञानी | अलग-अलग स्थान में दोनों वक्तव्य ठीक मालूम होते हैं। कहते हैं कबीर को–उलटबांसी। उल्टी बांसुरी बजा रहे हो। लेकिन दो स्त्रियां...! और कबीर भी कहते हैं, 'एक अचंभा मैंने देखा नदिया लागी और मुल्ला थोड़ा घबड़ाया क्योंकि दोनों नाराज मालूम होती आग।' नदी में आग लगी देखी। हैं। नदी का मामला। मझधार। धक्का दे दें। अब यह कोई सोच-विचारवाला आदमी कहेगा कि दिमाग | तो उसने कहा, यह भी कोई बात है? अरे तुम एक-दूसरे से खराब हो गया है। कबीर यही कह रहे हैं कि मैंने साध्य को पहले सुंदर हो। एक-दूसरे से ज्यादा सुंदर हो। एक-दूसरे से देखा, साधन को पीछे। मंजिल पहले पाई, मार्ग पीछे। मिलन | बढ़-चढ़कर सुंदर हो। परमात्मा से पहले हो गया तब बाद में समझ आयी कि कैसे अब एक दूसरे से बढ़-चढ़कर संदर हो, इसका मतलब क्या मिलें। नदिया लागी आग, एक अचंभा मैंने देखा। होता है? लेकिन शायद यही ज्यादा सच है। यह वक्तव्य बेबूझ लेकिन गणित से, तर्क से, विचार से चलनेवाला आदमी हो जाता है लेकिन ज्यादा सच है। कहेगा, यह तो उलटबांसी हो गई। यह तो उल्टी बात हो गई। | अंडा मुर्गी के पहले, मुर्गी अंडे के पहले। दोनों एक-दूसरे के दोनों की भाषाएं निश्चित उल्टी हैं। लेकिन तुम ऐसा समझो पहले। दोनों असल में दो नहीं हैं। मुर्गी अंडे का ही एक रूप है। कि कोई कहता है मुर्गी से अंडा होता है, और कोई कहता है अंडे | अंडा मुर्गी का ही एक रूप है। मुर्गी अंडे का ही एक ढंग है और से मुर्गी होती है। क्या ये सच में उल्टी बातें हैं? ये दोनों ही सच | अंडे पैदा करने का। अंडा मुर्गी का ही एक ढंग है और मुर्गी पैदा हैं। लेकिन इतनी हिम्मत चाहिए समझने की कि दोनों एक साथ करने का। ये दोनों दो हैं ऐसा सोचने से गड़बड़ खड़ी हो जाती सच हैं। बड़ा कठिन मालूम होता है क्योंकि हम तो संकीर्णता से है। ये संयुक्त घटनाएं हैं। हैं। हम कहते हैं. मर्गी पहले तो अंडा बाद में। अब कोई | इसे तम ऐसा समझो कि एक ही सिक्के के दो पहल हैं। कौन कहता है अंडा पहले, तो हमें झगड़ा खड़ा हो जाता है। हम कहते आगे, कौन पीछे? युगपत हैं, साथ-साथ हैं। साधन और हैं, ये दोनों बातें तो एक साथ नहीं हो सकतीं। या तो मुर्गी पहले, साध्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 624 2010_03 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों भक्त को साध्य पहले मिलता है, फिर वह साधन खोजता है। तो है ही नहीं। क्योंकि भक्त प्रश्न पूछ नहीं सकता। अहोभाव वह परमात्मा को पहले खोज लेता है फिर उसका रास्ता खोजता है। वह अपने हृदय की बात कह रही है कि ऐसा उसे हुआ है। है। तुम कहोगे यह बात अजीब है। क्या करें? अब उसे लगता है कि गुरु ही पिता, गुरु ही माता, गुरु ही | एक अचंभा मैंने देखा. नदिया लागी आग। ऐसा होता भक्त संगी, गुरु ही साथी, गुरु ही ज्ञान, गुरु ही परमात्मा। को। पहले भगवान मिल जाता है, फिर वह उसी से पूछ लेता है | प्रेम जहां भी पड़ता है वहीं परमात्मा की छवि देख लेता है। अब रास्ता कहां है? अब तुम्हीं बता दो। जब मिल ही गए तो तुझ से अब मिलके ताज्जुब है कि अर्सा इतना तुम्हारा पता-ठिकाना क्या? आज तक तेरी जुदाई में यह क्यों कर गजरा ध्यानी पहले रास्ता खोजता है। ध्यानी ज्यादा और जब परमात्मा की उसे झलक मिलती है तो उसे भरोसा ही | ज्यादा व्यवस्था से चलता है। उसके जीवन में एक शृंखला है। नहीं आता कि आज तक इतना अर्सा तुझसे बिना मिले गुजरा | भक्त बड़ा बेबूझ है। प्रेम सदा से बेबूझ है। | कैसे? यह हो ही कैसे सका? यह मैं हो कैसे सका इतने दिन / यहदियों में एक धारणा है-बड़ी प्रीतिकर धारणा। यहदी तक? यह मेरे होने की संभावना ही कैसे हो सकी? भक्ति का ही एक मार्ग है। यहूदी कहते हैं, इसके पहले कि भक्त उसे भरोसा ही नहीं आता कि मैं था भी। भक्त को तो उसी दिन भगवान को खोजे, भगवान भक्त को खोज लेता है। यहूदी धर्म भरोसा आता है अपने होने पर, जब भगवान का मिलन होता है। की बड़ी गहरी देन में से एक देन यह है। वे कहते हैं, तुम खोजना | उसी दिन भक्त होता है। उसके पहले तो सब सपना था। एक ही तब शुरू करते हो जब वह तुम्हें खोज लेता है, नहीं तो तुम झूठी दास्तान थी। न किसी ने कही, न किसी ने सुनी, एक झूठी शुरू ही नहीं करते। जब वह किसी तरह तुम्हारे भीतर आ ही दास्तान थी। जाता है, तभी तुम्हारे भीतर उसे पाने की आकांक्षा जगती है; नहीं | तुझसे अब मिलके ताज्जब है कि अर्सा इतना तो आकांक्षा ही नहीं जगती। आज तक तेरी जुदाई में यह क्यों कर गुजरा यहूदी कहते हैं, तुम ही नहीं खोज रहे भगवान को, भगवान भी | बहुत दिनों में मोहब्बत को हो सका मालूम तुम्हें खोज रहा है। तुम ही नहीं तड़फ रहे उसके लिए, वह भी जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई तडफ रहा है। और मजा तो तभी है जब आग दोनों तरफ से प्रेमी को पता चलता है धीरे-धीरे प्रेम में पगते-पगते कि लगे। अगर भक्त ही खोजता रहे भगवान को और भगवान को जो तेरी हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई जरा भी न पड़ी हो—मिल गए तो ठीक, न मिले तो ठीक; और जो तेरे बिना गुजरी वह रात रात हुई। वह हुई, न हुई बराबर भगवान उपेक्षा से भरा हो तो खोज का सारा मजा ही चला गया, हुई। तुझे मिलकर जीवन शुरू हुआ। रस ही चला गया। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव।' ध्यानी कहता है सत्य तुम्हें नहीं खोज सकता, तुम सत्य को तुझे मिलकर जीवन शुरू हुआ। खोज सकते हो। एकतरफा है उसकी खोज। वह कहता है हम | जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई। खोजेंगे। सत्य कैसे खोजेगा? सत्य को तो उघाड़ना पड़ेगा। इसलिए अगर किसी के हाथ में हाथ जाने से तुम्हारे जीवन में भक्त कहता है यह कोई हमी खोज रहे ऐसा नहीं, वह भी रसधार बहे तो लगेगा तुम्हीं पिता, तुम्ही माता; क्योंकि नया जन्म उघड़ने को आतुर है। यह हमीं उसका चूंघट उठाने नहीं चले हैं, | हुआ। एक जन्म है, जो माता-पिता से होता है, वह शरीर का वह भी घूघट डालकर बैठा है कि आओ, उठाओ; कि बड़ी देर जन्म है। फिर एक जन्म है, जो सदगुरु से होता है; वह आत्मिक लगाई, कहां रहे? आओ! परमात्मा भी खोज रहा है। यह जन्म है, वह वास्तविक जन्म है। वह तुम्हारी चेतना का खोज दोनों तरफ से है। यह आग दोनों तरफ से है। यह यात्रा | आविर्भाव है। दोनों तरफ से चल रही है। जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई अब यह सरोज का जो प्रश्न है, एक भक्त का प्रश्न है। प्रश्न इसलिए फिर सदगुरु सभी कुछ मालूम होने लगता है। यह 1625 2010_03 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भागः 2 भक्त का अपना ही हृदय सदगुरु में झलकता। जो उसे भीतर फिर इस उड़ान को कोई रोक सकता नहीं। यह होकर रहेगी। दिखाई पड़ता है, वही उसे सदगुरु में दिखाई पड़ता है। सदगुरु यह हो ही गई है। तो दर्पण है, तुम अपना ही चेहरा देख लेते हो। पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल और भक्त को फिर बड़ा भरोसा आ जाता है। गुरु का साथ क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? मिला कि भरोसा आ गया। अगर गुरु है तो परमात्मा है। अगर भक्त को तो ऐसे ही लगने लगता है कि भगवान पुकार रहा है। कोई ऐसा व्यक्ति है, जो तुम्हें अपने से पार दिखाई पड़ता है, यहां जो भक्त की तरह मेरे पास आए हैं, उन्हें मेरी हर आवाज में जिसे देखने में तम्हारी आंखें जमीन से आकाश की तरफ उठ लगेगा आपने मझे पकारा तो नहीं? जाती हैं, तो बस पर्याप्त है। पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल कहते हैं मंसूर को सूली लगी तो वह खिलखिलाकर हंसने क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? लगा। वह खिलखिलाकर हंसा तो लोगों ने पूछा, तुम हंसते क्यों उसे अपनी धड़कन की आवाज भी ऐसे लगती है कि परमात्म हो? वह कहने लगा, मैं इसलिए हंस रहा हूं कि चलो, मुझे के पैरों की आवाज है। सूली पर लटका देखने के लिए कम से कम तुम्हारी आंखें तो | क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? ऊपर उठीं। तुम जमीन पर सरकते लोग, घसिटते लोग-तुम | हर जुल्म गवारा है मगर यह भी खबर है आकाश की तरफ आंख ही नहीं उठाते। चलो, मेरी फांसी के दिल आपकी है चीज, हमारा तो नहीं बहाने-वह लटका था एक बड़े ऊंचे खंभे पर-तुम्हारी आंखें हर ओर बहारों ने लगा रक्खे हैं मेले तो आकाश की तरफ उठीं, इसलिए हंसा। यह आपकी नजरों का इशारा तो नहीं अर्श तक देखिये पहुंचे कि न पहुंचे कोई सब तरफ उसे उसी की नजरों का इशारा दिखाई पड़ता है। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में फूल खिलते हैं तो लगता परमात्मा हंसा। चांद निकलता तो आकाश तक पहुंचना होगा कि नहीं होगा, कहना मुश्किल है। | लगता परमात्मा निकला। चांदनी फैल जाती है तो लगता लेकिन भक्त कहता है: परमात्मा फैला। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल मैं रो ही नहीं रहा हूं, मेरे भीतर आह ही नहीं उठ रही है, मेरी | क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? उड़ान में प्रार्थना का भी बल है। हर ओर बहारों ने लगा रक्खे हैं मेले अर्श तक देखिये पहंचे कि न पहुंचे कोई यह आपकी नजरों का इशारा तो नहीं भक्त यह भी नहीं कहता कि पहुंच ही जाऊंगा। नहीं, प्रेम इस | भक्त को बड़ी गहरी आंख उपलब्ध हो जाती है। बिना कुछ तरह के दावे नहीं करता। झिझकता है भक्त। भक्त कहता है: किए, बिना मांगे, बिना प्रयास के–प्रसाद से। चाहिए दिल, अर्श तक देखिये पहुंचे कि न पहुंचे कोई जो रो सके। चाहिए दिल, जो हंस सके। चाहिए दिल. जो संदेह पहुंचना हो कि न पहुंचना हो। लेकिन एक अर्थ में भक्त | न करे, श्रद्धा करे। झिझकता है कि पहुंचना होगा कि नहीं, और एक अर्थ में आश्वस्त होता है कि पहुंचना तो हो ही गया। पांचवां प्रश्न : पूछा है आनंद सागर ने। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में सीमार माझे असीम मेरी उड़ान में सिर्फ आह ही नहीं है, प्यास ही नहीं है, तुझे तुमी बाजाओ आपन सूर खोजने की अभीप्सा ही नहीं है, तुझे पा लेने की प्रार्थना भी है। आमार मध्ये तोमार प्रकाश तुझे पा लिया इसका धन्यवाद भी। ताई एतो मधुर आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में कत वर्णे कत गंधे 626 Jal Education International 2010_03 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दीप से कोटि दीप हों कत गाने कत छंदे जगाओ उसे मेरे हृदय में। अरूप तोमार रूपेर लीला आमार मध्ये तोमार शोभा जागे हृदय पूर मैं तो कुछ भी नहीं हूं। मेरी कोई शोभा है तो तुम्हारी मौजूदगी आमार मध्ये तोमार शोभा, से है। मेरे पास तो कुछ भी नहीं है, बस तुम हो। मैं तो शून्य हूं। एमन सुमधुर तुम विराजो तो सब हो जाता है। तुम न विराजो तो रिक्त रह जाता हे भगवान रजनीश! हूं। मेरे शून्य में तुम उतर आओ तो सब है मेरे पास। तुम चले लहो सागरेर नमन, प्रवीणेर वंदन। जाओ तो सब भी हो मेरे पास तो बस रिक्तता है, खालीपन है। आमार मध्ये तोमार शोभा ऐसा ही लगता है प्रेमी को कि मेरी सीमा में असीम उतरा; कि एमन सुमधुर मेरे आंगन में आकाश उतरा। भक्त जब सुनता है तो एक-एक भक्त की सारी आकांक्षा परमात्मा के लिए जगह देने की, शब्द अमृत बनकर बरसता है। भक्त जब सुनता है खुले हृदय अवकाश देने की है। भक्त जगह खाली करता है। भक्त कहता से तो जो ज्ञानी को, ध्यानी को, केवल शब्द मालूम होते हैं, भक्त है, मैं हटता, तुम आओ। मैं चला, तुम विराजो। यह सिंहासन को सिर्फ शब्द नहीं मालूम होते; उन शब्दों में एक अनूठा | तुम्हारे लिए खाली करता। जीवन, एक आभा, उन शब्दों में शून्य की झनकार...। ऐसा भक्त अपने को गलाता, मिटाता, शून्य करता। सीमार माझे असीम जैसे-जैसे शून्य होता वैसे-वैसे पूर्ण उसमें उतरता। एक दिन लगता, मेरी सीमा में असीम आया। गुरु का मिलन सीमा से भक्त अचानक पाता है, एक सुबह जागकर अचानक पाता है, असीम का मिलन है। शिष्य यानी सीमा। शिष्य वही जिसे कि भक्त तो बचा ही नहीं, भगवान ही बचा है। एक दिन भक्त अपनी सीमा का पता चल गया और जो राजी है असीम के चरणों | अचानक पाता है, उसकी बांह गले में पड़ गई। एक दिन भक्त में अपनी सीमा को डाल देने को। अचानक पाता है उसकी अंगूर की छाया तले बैठे हैं। नहीं, भक्त सीमार माझे असीम को बैकुंठ की चाह नहीं, न भक्त को कल्पवृक्षों की चाह है। तुमी बाजाओ आपन सूर उसके प्रेम की वर्षा होती रहे। और शिष्य कहता है, बजाओ तुम अपनी वीणा। बजाओ तुम भक्त मिटना चाहता है। मिटने में ही प्रेम की वर्षा है। अपना स्वर। मैं राजी हूं। मैं सुनूंगा, मैं नाचूंगा। मैं घूघर और जो शिष्य भक्त की तरह गुरु के पास आता है, अनायास पहनकर आ गया हूं। तुम बजाओ अपना स्वर। | गुरु उसके माध्यम से बहुत-से काम करने शुरू कर देता है। तुम आमार मध्ये तोमार प्रकाश छोड़ो भर, कि तुम उपकरण बन जाते हो। और गुरु के पास तो मैं तो अंधेरा हूं, लेकिन जलाओ तुम अपना दीया। तुम्हारा | सिर्फ सीखना है छोड़ने की कला। अगर तुम गुरु के पास अपने प्रकाश हो मेरे,मध्य को छोड़ सके तो तुमने अ, ब, स सीख लिया छोड़ने का। यही ताई एतो मधुर। अ, ब, स काम आएगा परमात्मा के पास छोड़ने में। कत वर्णे कत गंधे परमात्मा कहीं दिखाई नहीं पड़ता। बड़ा अदृश्य है। उपस्थित कहा न जा सके ऐसा रूप। कही न जा सके ऐसी गंध। | है और उपस्थिति मालूम नहीं होती। उसी का स्वर गूंज रहा है कत गाने कत छंदे लेकिन सब सुनाई पड़ता है, वही सुनाई नहीं पड़ता। बांधा न जा सके जो छंद में। गीत में जो समाए न, अटाए न। गुरु में परमात्मा थोड़ा-सा दृश्य होता है-थोड़ा-सा। एक अरूप तोमार रूपेर लीला किरण उस सूरज की उतरती मालूम होती है। थोड़ा रूप धरता। तुम्हारी रूप की लीला अपूर्व है, अरूप है। यही तो अवतार का अर्थ है : अवतरित होता। जैसे भाप उतर जागे हृदय पूर आए, जल बन जाए। भाप की तरह दिखाई न पड़ती थी. जल 627 _ 2010_03. www.jainelibrarorg Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सूत्र भाग : 2 बन जाए। भाप की तरह दिखाई न पड़ती थी, जल की तरह | जब-जब सुनोगे गीत मेरे दिखाई पड़ने लगी। संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे गुरु का इतना ही अर्थ है कि जिसके माध्यम से तुम्हें अदृश्य की याद आ जाए, तुम्हारी सीमा में असीम का आंदोलन हो उठे, तरु समझी नहीं। पागल नहीं था, मैं ही आया था। मैं ही तुम्हारे अंधेरे में थोड़ा प्रकाश लहरा जाए। तुम्हारे बंद पड़े जल गुनगुना गया हूँ। में, तुम्हारे ठहर गए जल में; फिर से लहर आ जाए, फिर से गति 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे आ जाए, फिर से प्रवाह आ जाए। जब-जब सुनोगे गीत मेरे तो न केवल इधर तुम मिटोगे, उधर तुम होने लगोगे, तुम संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे' धीरे-धीरे अंतिम मरण का पाठ सीखोगे। तुम पाओगे, जब गुरु और जो मैंने तुझसे कहा तरु, उसे औरों से कह। बात को के पास जरा-सा झुकने से इतना मिल जाता है तो फिर पूरे ही क्यों फैला। न झुक जाएं? दिल ने आंखों से कही, आंखों ने उनसे कह दी पूरा जो झुका उसे परमात्मा मिल जाता है। थोड़ा जो झुका उसे बात चल निकली है अब देखें कहां तक पहुंचे। गुरु मिल जाता है। और थोड़ा झुकना पूरा झुकने की प्राथमिक शिक्षा है। आज इतना ही। एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए गुरु के पास जो शिष्य झुकते हैं, उनके बुझे दीये जलने लगते एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए आंगन-आंगन खिले कल्पना सजे द्वार बंदनवारों से उठे गीत समवेत स्वरों से पगडंडी-पथ-गलियारों से रोम-रोम उन्मन मुंडेर का पाटल-सा मुसकाए एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए पोप-पोर उमगे अणुओं का बिछले दिशा-दिशा अरुणाई पग-पग उठे किरण पुखराजी डग-डग फेनिल श्वेत जन्हाई कोसों तक ऊसर भूमि में नेह-बीज अकुराए एक दीप से कोटि दीप हों अंधकार मिट जाए अगर झुक सकते हो तो चूको मत। अगर जरा झुक सकते हो तो उतना ही झुको। उससे और झुकने की कला आएगी क्योंकि झुककर जब मिलेगा तो पता चलेगा कि नाहक अकड़े खड़े रहे। नाहक प्यासे रहे। व्यर्थ ही जीवन को रात बनाया। जो जीवन दिन बन सकता था, उसे अपने हाथ ही अंधकार में सम्हाले रहे। आखिरी प्रश्न H तरु ने पूछा है। एक पागल द्वार पर आया था, कुछ गुनगुनाकर चला गया: तुम मुझे यूं भुला न पाओगे 628) 2010_03