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________________ जिन सूत्र भाग: 2 खतरा था। संकीर्णता पैदा होती थी। सांप्रदायिकता पैदा होती | अपने मतलब की बात खोज लेता, चल पड़ता। थी, कि मैं ही ठीक हूं, और सब गलत हैं। यही मार्ग ठीक है, तुम जाते हो नदी के किनारे। प्यासा आदमी तो अपने चुल्लू में और सब मार्ग गलत हैं। पानी भर लेता है। पूरे नदी की थोड़े ही फिक्र करता है कि अब तो लाभ था, हानि थी। और लाभ से हानि ज्यादा बड़ी सिद्ध | इसको घर ले जाएं, बांधकर रखें, क्या करें, क्या न करें। वह हुई। लाभ तो बहुत थोड़े लोगों को हुआ, हानि करोड़ों को हुई। धन्यवाद देता है नदी को कि ठीक। अपनी चुल्लू भर ली, अपनी | सारी दुनिया सांप्रदायिक हो गई। सारी दुनिया में यह मतांधता | प्यास बुझा ली, बात खतम हो गई। फैल गई कि हम ठीक और बाकी सब गलत। हां, अगर तुम लोभी हो तो तुम प्यास तो भूल ही जाओगे, तुम जैन से पूछो, वह कहता है हमारा गुरु गुरु, बाकी सब कुगुरु। सोचोगे इस नदी पर कब्जा कैसे किया जाए। यह पूरी नदी मेरे हमारा शास्त्र शास्त्र. बाकी सब कशास्त्र। मसलमान से पछो. तिजोडी में कैसे बंद हो जाए। इस परी नदी का मैं मालिक कैसे हिंदू से पूछो, ईसाई से पूछो। सब संकीर्ण हो गए, सांप्रदायिक हो जाऊं। तो तुम अड़चन में पड़ोगे। हो गए। धर्म की तो हत्या हो गई। सुविधा तो मिली होगी सरल तो पहले भी अड़चन में नहीं पड़ा, अब भी नहीं पड़ेगा। थोड़े-से लोगों को, सरल-चित्त लोगों को–जिन्होंने इतना ही मैं जो प्रयोग कर रहा हूं वह नया है। मैं चाहता हूं कि संसार में जाना कि हमारे लिए क्या ठीक है, हमें मिल गया और चुपचाप अब संकीर्णता न रहे, सांप्रदायिकता न रहे। संप्रदाय के नाम पर उस पर चल पड़े। सौ में से एक को तो सुविधा मिली होगी, बहुत हानि हो चुकी। आदमी लड़े और कटे और मरे। आदमी निन्यानबे तो सिर्फ संकीर्ण हो गए। निर्मित नहीं हुआ, विनष्ट हुआ। अब संप्रदाय नहीं चाहिए। मैं ठीक उल्टा प्रयोग कर रहा हूं, जैसा कभी नहीं हुआ है। मैं अब तो दुनिया में धर्म नहीं चाहिए, धार्मिकता चाहिए। यह फिकर कर रहा हूं कि चाहे सुविधा थोड़ी कम हो, संकीर्णता मंदिर-मस्जिद नहीं चाहिए, धर्म-भावना चाहिए। कुरान-गीता न हो। मानना मेरा ऐसा है कि जो एक सरल आदमी पुरानी | छूटें, छूटें; सदभाव न छूटे। जैन, हिंदू, मुसलमान नहीं संकीर्ण सीमाओं से जा सका, वह सरल आदमी मेरे पास भी जा चाहिए। अब तो भले, सीधे, सरल-चित्त लोग चाहिए। क्योंकि सकेगा। उसे दुविधा पैदा नहीं होगी यहां भी। क्योंकि सरल जैन, हिंदू, मुसलमान तो हजारों वर्षों से जमीन पर हैं। और आदमी मुझे देखेगा। मैं क्या कहता हूं इसकी बहुत फिकर ही जमीन रोज नर्क होती चली गई। इनके होने से कुछ लाभ नहीं नहीं करता। सरल आदमी तो मुझ पर भरोसा करता है। वह हुआ। ये तो अब विदा लें। इनको तो हम अलविदा कहें। अब कहता है वे जो कहते होंगे, ठीक कहते होंगे। उसे कोई दुविधा तो खाली आदमी, सूना आदमी, स्वस्थ-सरल आदमी चाहिए। पैदा नहीं होती। वह मेरे विरोधाभास में भी मुझे ही देखता है। इसलिए मैं सारे धर्मों की बात कर रहा हूं। इसमें जो सरल हैं दोनों में मुझे ही देखता है। और सरल आदमी तो अपने काम की उनको तो बड़ा लाभ होगा, जो जटिल हैं उनको बड़ी दुविधा बात चुन लेता है और चल पड़ता है। होगी। लेकिन मेरे देखे, मेरे लेखे अगर सौ आदमी पुरानी दुनिया जटिल आदमियों के साथ झंझट है। लोभियों के साथ झंझट | में चलते थे धर्म के मार्ग पर तो निन्यानबे संकीर्ण हो गए, एक है। उन लोभियों को दुविधा पैदा होगी क्योंकि वे चाहते हैं, ध्यान सरल पहुंचा। मैं तुमसे कहता हूं, वह एक सरल तो मेरे पास भी भी झपट लें, प्रेम भी झपट लें। भक्ति पर भी कब्जा कर लें, पहुंच जाएगा और निन्यानबे संकीर्ण न हो पाएंगे। और अगर ध्यान पर भी कब्जा कर लें। तपस्वी भी हो जाएं, जीवन का रस | निन्यानबे संकीर्ण न हों तो उनके पहुंचने की संभावना भी बढ़ भी न खोए। त्याग का भी मजा ले लें, अहंकार का भी मजा ले गई। मैं तुम्हें विराट करना चाहता हूं। तुम्हें पूरी दृष्टि देना चाहता लें और परमात्मा की पूजा का भी रस आ जाए। हूं। तुम सब देख लो। फिर तुम्हें जो रुचिकर लगे उस पर चल लोभी! उसको तकलीफ होगी। सरल-चित को तो मेरे पास | पड़ो। कठिनाई तो तब होगी जब तुम सभी रास्तों पर चलने की कोई तकलीफ नहीं है। उसको कभी कोई तकलीफ नहीं है, . कोशिश करने लगोगे। तब अड़चन होगी। किसी के पास कोई तकलीफ नहीं है। सरल-चित्त आदमी तो लेकिन यह तो पागलपन है। तुम केमिस्ट की दुकान पर जाते 622 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340161
Book TitleJinsutra Lecture 61 Ek Dip se Koti Dip Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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