________________ जिन सूत्र भाग : 2 बन जाए। भाप की तरह दिखाई न पड़ती थी, जल की तरह | जब-जब सुनोगे गीत मेरे दिखाई पड़ने लगी। संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे गुरु का इतना ही अर्थ है कि जिसके माध्यम से तुम्हें अदृश्य की याद आ जाए, तुम्हारी सीमा में असीम का आंदोलन हो उठे, तरु समझी नहीं। पागल नहीं था, मैं ही आया था। मैं ही तुम्हारे अंधेरे में थोड़ा प्रकाश लहरा जाए। तुम्हारे बंद पड़े जल गुनगुना गया हूँ। में, तुम्हारे ठहर गए जल में; फिर से लहर आ जाए, फिर से गति 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे आ जाए, फिर से प्रवाह आ जाए। जब-जब सुनोगे गीत मेरे तो न केवल इधर तुम मिटोगे, उधर तुम होने लगोगे, तुम संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे' धीरे-धीरे अंतिम मरण का पाठ सीखोगे। तुम पाओगे, जब गुरु और जो मैंने तुझसे कहा तरु, उसे औरों से कह। बात को के पास जरा-सा झुकने से इतना मिल जाता है तो फिर पूरे ही क्यों फैला। न झुक जाएं? दिल ने आंखों से कही, आंखों ने उनसे कह दी पूरा जो झुका उसे परमात्मा मिल जाता है। थोड़ा जो झुका उसे बात चल निकली है अब देखें कहां तक पहुंचे। गुरु मिल जाता है। और थोड़ा झुकना पूरा झुकने की प्राथमिक शिक्षा है। आज इतना ही। एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए गुरु के पास जो शिष्य झुकते हैं, उनके बुझे दीये जलने लगते एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए आंगन-आंगन खिले कल्पना सजे द्वार बंदनवारों से उठे गीत समवेत स्वरों से पगडंडी-पथ-गलियारों से रोम-रोम उन्मन मुंडेर का पाटल-सा मुसकाए एक दीप से कोटि दीप हों, अंधकार मिट जाए पोप-पोर उमगे अणुओं का बिछले दिशा-दिशा अरुणाई पग-पग उठे किरण पुखराजी डग-डग फेनिल श्वेत जन्हाई कोसों तक ऊसर भूमि में नेह-बीज अकुराए एक दीप से कोटि दीप हों अंधकार मिट जाए अगर झुक सकते हो तो चूको मत। अगर जरा झुक सकते हो तो उतना ही झुको। उससे और झुकने की कला आएगी क्योंकि झुककर जब मिलेगा तो पता चलेगा कि नाहक अकड़े खड़े रहे। नाहक प्यासे रहे। व्यर्थ ही जीवन को रात बनाया। जो जीवन दिन बन सकता था, उसे अपने हाथ ही अंधकार में सम्हाले रहे। आखिरी प्रश्न H तरु ने पूछा है। एक पागल द्वार पर आया था, कुछ गुनगुनाकर चला गया: तुम मुझे यूं भुला न पाओगे 628) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org