SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक दीप से कोटि दीप हों है। शायद इतना खतरनाक नहीं भी है, जितनी जिंदगी है। सम दो अतियों के मध्य में होता है; न इधर, न उधर। लेकिन क्योंकि रस्सी से गिरे तो हाथ-पैर टूटेंगे, जिंदगी से गिरे तो मौत तुम बार-बार अतियों में चले जाओगे यह सुनिश्चित है। तुम निश्चित है। एक अति से बचोगे तो दूसरी अति में चले जाओगे क्योंकि अति रस्सी पर चलनेवाला नट क्या करता? अगर वह देखता है कि में जाना मन की आदत है। इसलिए फिर-फिर तुम्हें खींच लेना बायें तरफ ज्यादा झुक गया है और खतरा गिरने का है, तो तत्क्षण होगा। यह जारी रहेगा। जब तक मनुष्य है इस पृथ्वी पर, यह अपने हाथ की लकड़ी को दायें तरफ झुका लेता है। वजन दायें जारी रहेगा। ध्यान और भक्ति के बीच खींचतान जारी रहेगी। तरफ डाल देता है। लेकिन यह ज्यादा देर नहीं चल सकता। महावीर और मीरा को आते रहना पड़ेगा नए-नए रूपों में। क्योंकि थोड़ी देर में ही पाता है कि अब दायें तरफ गिरने का और अगर तुममें थोड़ी समझ हो, तुममें अगर थोड़ी भी आंख खतरा है, तो फिर वजन बायें तरफ डाल देता है। ऐसा बायें-दायें हो तुम्हारे पास तो तुम देख पाओगे, वे तुम्हें अलग-अलग नहीं वजन को डालता हुआ रस्सी पर अपने को सम्हालता है। खींच रहे, दोनों बीच के लिए खींच रहे हैं। भक्ति और ज्ञान बायें और दायें हैं। और इन दोनों के बीच में ध्यानी की अलग भाषा है। उसका अलग शास्त्र है, अलग मार्ग है अगर तुम मुझसे पूछो। न तो भक्ति मार्ग है, न ज्ञान मार्ग शब्दावलि है। वह मोक्ष की बात करता है, मुक्ति की बात करता है। इनके ठीक मध्य में, जहां संतुलन है वहां मार्ग है। लेकिन है। बंधन छोड़ने की बात करता है। त की तरफ ज्यादा झक गए हो तो महावीर ज्ञान की प्रेमी कि बिलकल विपरीत भाषा है। वह प्रेम की, मिलन की. तरफ खींचते हैं, ध्यान की तरफ खींचते हैं। तुम्हें लगता है ध्यान आत्यंतिक बंधन की बात करता है। वह कहता है, परमात्मा से की तरफ खींच रहे हैं। उनका प्रयोजन केवल तम्हें बीच में ले कभी छटना न हो। आना है, मध्य में ले आना है। क्योंकि मध्य में मुक्ति है। काह करूं बैकुंठ लै कल्पवृक्ष की छांह जब महावीर जा चुके होते हैं और तुम उनकी सुन-सुनकर रहिमन दाख सुहावनो जो गल प्रीतम बांह धीरे-धीरे ज्यादा ध्यान की तरफ झुक जाते हो-ऐसे, कि अब रहीम कहते हैं, क्या करूंगा लेकर कल्पवृक्ष की छांव को और गिरे और खोपड़ी तोड़ लोगे, तो कोई रामानुज, कोई वल्लभ, बैकुंठ को। दो कौड़ी हैं। प्यारे का हाथ मेरे गले में पड़ा तुम्हें भक्ति की तरफ खींचने लगता है। तुम्हें लगता है कि ये | बस, परमअवस्था हो गई। तो पहुंच गए उस अंगूर के तले; लोग दुश्मन हैं। क्योंकि एक कहता था दायें, एक कहता है स्वर्ग के तले। बायें। एक उधर खींच गया, दूसरा इधर खींचने लगा। तुम बड़ा काह करूं बैकुंठ लै कल्पवृक्ष की छांह विरोध करते हो। जैन को भक्ति की तरफ खींचो, तो एकदम रहिमन दाख सुहावनो.... लड़ने को खड़ा हो जाएगा। किसी भक्त को ध्यान की तरफ बैठे हैं अंगूर की छाया में। खींचो, तप की तरफ खींचो, एकदम झगड़ने को खड़ा हो - जो गल प्रीतम बांह जाएगा। तुम्हें लगता है ये दुश्मन हैं। अगर प्यारे का हाथ गले में है। नानक एक तरफ खींच रहे, महावीर एक तरफ खींच रहे, मीरा ज्ञानी कहेगा, प्यारे का हाथ गले में? बात क्या कर रहे हो? एक तरफ खींच रही, मोहम्मद एक तरफ खींच रहे, यह मामला रहिमन दाख सुहावनो...अंगूर, शराब...क्या बातें कर रहे क्या है? तुम तो कहते हो किसी एक से ही तय हो जाना ठीक हो? ये तो सब बंधन की बातें हैं। ये भाषाएं अलग हैं। इनकी है। ऐसे तो खिंचा-खिंचव्वल में खराबी हो जाएगी। लेकिन ये पद्धति अलग है। दोनों ही तुम्हें सत्य की तरफ़ खींच रहे हैं। सत्य संतुलन है। ठीक | अगर तुम बहुत ध्यान की तरफ चले गए हो तो किसी मीरा को मध्य में, जहां न बायां रह जाता न दायां; जहां कोई अति नहीं रह खींच लेने का अवसर देना। अगर बहुत प्रेम की तरफ चले गए जाती-निरति; वहीं समाधि है, वहीं सम्यकत्व है, वहीं समत्व हो, और प्रेम कीचड़ बनने लगा हो और राग बनने लगा हो तो है, वहीं समता का जन्म है। किसी महावीर को खींचने की सविधा देना। दोनों का उपयोग 617 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340161
Book TitleJinsutra Lecture 61 Ek Dip se Koti Dip Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy