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________________ जिन सूत्र भागः2 तो कंधे बदल लेते हो। एक कंधा दुखने लगता है तो अर्थी दूसरे संभावना है। महावीर ने परमात्मा तो हटा दिया, खतरा हट कंधे पर रख लेते हो। इसका कुछ यह मतलब नहीं है कि दूसरा गया। लेकिन खतरे के साथ-साथ लाभ भी हट गए। लाभ था कंधा कभी न दुखेगा। थोड़ी देर बाद दूसरा भी दुखेगा। फिर तुम कि परमात्मा के सहारे प्रेम विकसित होता है। वह हमारा पहले कंधे पर रख लोगे। इस कारण कि दूसरा भी दुखेगा, अगर परमप्रिय हो जाता है। वह हमारा प्यारा है। और अहंकार निर्मित न बदलो तो मुश्किल में पड़ जाओगे। अर्थी को मरघट तक ही न | नहीं होता। ले जा पाओगे। कंधे बदलने होते हैं। मनुष्य-जाति कंधे बदलती इसलिए जैन मुनि से ज्यादा अहंकारी मुनि तुम कहीं भी न रहती है। | पाओगे। क्योंकि अहंकार को समर्पित करने की जगह न रही। पूछा है, 'जिन-धारा से प्रेम शून्य क्यों हो गया?' | कोई चरण न रहे, जहां जाकर अहंकार को रख दो। अपने से जिन-धारा ध्यान की धारा है, तप की धारा है। प्रेम को साधना बड़ा कुछ भी न रहा। महावीर ने तो कहा था, तुम ही परमात्मा का अंग नहीं माना है महावीर ने, साधना की पूर्णाहुति माना है। हो। इसलिए नहीं कहा था कि तुम्हारा अहंकार बच जाए, जब कोई चलते-चलते मंजिल पर पहुंचेगा तो प्रेम प्रगट होगा। इसलिए कहा था ताकि तुम परमात्मा के नाम से जो जाल चल रहे मंजिल तक कौन पहुंचता है! जो पहुंचता है उसको प्रगट होता हैं, उसमें कहीं उलझो न।। है। महावीर पहुंचे, प्रेम प्रगट हुआ। जैनी तो मंजिल तक पहुंचे लेकिन परिणाम तो महावीर के हाथ में नहीं है। परमात्मा को नहीं। चले ही नहीं, पहुंचने की तो बात दूर। शास्त्र लिए बैठे हैं, छुड़ा दिया तुमसे; फिर तुम क्या करोगे परमात्मा के अभाव में, थोथे सिद्धांत लिए बैठे हैं। तो प्रेम तो समाप्त हो ही जाएगा। वह तो तुम्हारे हाथ में है। महावीर ने तो कह दी बात। कहते ही महावीर ने परमात्मा को जगह न दी क्योंकि परमात्मा के नाम तीर निकल गया। अब उसको तरकस में वापस नहीं ले जाया जा से खूब हो चुका था उपद्रव। खूब धोखाधड़ी, खूब पाखंड। बड़ी सकता। जो कह दिया वह महावीर से छूट गया। अब तुम्हारे सुविधा है परमात्मा के नाम से पाखंड चलाने की, क्योंकि हाथ में है कि तुम उसमें से क्या अर्थ निकालोगे। परमात्मा बड़ी आड़ बन जाता है। फिर तुम कुछ भी करो, सब मैं रहीम खानखाना का जीवन पढ़ता था। अकबर के नौ रत्नों परमात्मा की लीला है। लूटो-खसोटो तो परमात्मा की लीला में एक थे। अकबर उनसे बड़ा खश था और बहत है। क्या करोगे तुम? परमात्मा करवा रहा है। | जमीन-जायदादें दीं। करोड़ों रुपया उन्हें भेंट किया। वह जैसा तो हर चीज के लिए परमात्मा आड़ बन जाता है। महावीर ने उनके पास पैसा आता था ऐसे ही वे लुटा भी देते थे। मरे तो परमात्मा को हटा दिया बीच से। तो हानियां तो बंद हो गईं, भिखारी थे। करोड़ों रुपये आए-गए उनके हाथ में, लेकिन जो लेकिन परमात्मा को हटाने से एक खतरा है। परमात्मा हटा तो आया-बांटा। बांटने में कभी रुके नहीं। ऐसा बांटा कि शायद आदमी अकेला रह जाता है। प्रेमपात्र ही हट जाता है तो प्रेम के अकबर भी थोड़ा ईर्ष्यालु हो उठता था। उमगने की सुविधा नहीं रह जाती। बहुत कठिन है शून्य को प्रेम कहते हैं गंग कवि ने एक दोहा कहा। वे इतने खुश हो गए करना। कोई चाहिए, जिसे तुम प्रेम कर सको। रहीम, कि छत्तीस लाख रुपये एक-दो कड़ियों के लिए बोरों में अकेले कमरे में तुम बैठे हो। मैं तुमसे कहता हूं, भर जाओ प्रेम बंधवाकर चुपचाप रातोंरात गंग कवि के घर भेज दिए, किसी को से। तुम कहोगे किसके प्रति ? मैं कहूंगा, तुम इसकी फिकर पता न चले। गंग बहुत हैरान हुआ तो गंग ने एक पद लिखा। छोड़ो। भर जाओ बस प्रेम से। इस सूने कमरे को प्रेम से भर सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन दो। तो भी तुम क्या करोगे? तुम ज्यादा से ज्यादा सोचोगे ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ त्यों-त्यों नीचे नैन प्रेयसी की बात, अपने बेटे की, बेटी की, मित्र की, अपने यह देना कहां से सीखे? सीखे कहां नबाबज्यू? यह नबाबी प्रियतम की। उस सोच में, उस कल्पना में ही तुम प्रेम से भर कहां सीखी? यह सम्राट होना कहां सीखा? पाओगे कमरे को। सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन बिना कल्पना के प्रेम को जगाना बहुत थोड़े-से सिद्धपुरुषों की देनेवाले बहुत देखे, लेकिन रात चोरी से अंधेरे में...। अंधेरे 614 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340161
Book TitleJinsutra Lecture 61 Ek Dip se Koti Dip Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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