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'चंदप्पहचरियं'नी रूपकथा
रूपककथाना बीज प्राचीन भारतीय साहित्यमा उपनिषदो, बौद्ध साहिद अने जैन साहित्यमा उपलब्ध थाय छे. सिद्धर्षि कृत' उपमिति भव प्रपंचा (र. हैं ९६२) ओ जैन साहित्यनी रूपककथा परंपरामां प्राप्त थती प्रथम स्वतंत्र कृति हूँ उत्तरवर्ती साहित्यमां आनुं अनुसरण संस्कृत, प्राकृत अने अपभंश भाषाई कथानाटक अने कव्यना स्वर रूपे थतुं रयुं छे.
प्राकृत साहित्यमा रूपककथा अवांतर कथा लेखे उपलब्ध थाय । वर्धमानसूरि कृत जुगाइ जिणिंद चरियं कषाय कुटुंबनी कथा' देवसूरि कृ पउमप्पहसामि चरियं अंतरंग कथा (संस्कृत भाषामां) अने "कुमारपाळ प्रतिबोधा अपभ्रंश भाषामा मळे छे.
वडगच्छीय श्रीचन्द्रसूरिना शिष्य आचार्य हरिभद्रसूरि पृथ्वीपाल मंत्री अनुरोधथी चोवीस तीर्थंकरोना चरित्रनी रचना करी हती. तेमांथी अत्यारे मात्र च चरित्र काव्यो उपलब्ध छे. ते पैकीमांना ओक चंद्रपभचरित्र (प्रा.)मां उपदेश स्वत्र रूपककथा उपलब्ध थाय छे. जेनुं जे अहीं संपादित करी छे.
२५३ गाथामां रचायेल आ रूपककथामां जैनदर्शनना तत्त्वज्ञान रूपकात्मक रीते रजू करवामां आव्युं छे. जीव केवी रीते शिवपुरीमां पहोंचीने माँ पामी शके तेनुं निरुपण करायुं छे. प्रस्तूत कथामां रुपको परंपरा अनुसार छे. पर धटनाबाहुल्य दृष्टिगोचर थतुं नथी. तेथी कथा रसप्रद बनती नथी. विगतो, प्राच जोवा मळे छे.
आ लोकमां मध्यदेशमां भवचक्रवाल नामर्नु नगर हतुं त्यां महाप्रतापी का परिणाम नामनो राजा हतो. तेनी अनादिभवसंतति अने अकामनिर्जरा नामनी | राणीओ हती. अनादिभवसंततिने ज्ञानावरणीय आदि आठ पुत्रो हतां.
___राजा प्रतिदिन पोताना आठ पुत्रोने सलाह आपता के हे पुत्रो तमे बा सुसमर्थ छो तो कंइक ओवी प्रवृत्ति करो के हमेशा राज्यमा स्थिरता रहे. अने बीर राज्योने जीतीने तेनी सतत रक्षा करता रहो तमारा बधानो दळनायक महामोह असंव्यवहार प्रमुख नगरीनो राजा बनशे. ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी वगेरे अने ताबे है नरकगति प्रमुख नगरीनो स्वामी आयुष्य बनशे. वेदनीय, नाम अने गोत्र तेना सहा बनशे.
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मोह नरेन्द्रनी मूढता नामानी प्रियाने बे पुत्रो हता अक दर्शनमोह अने बीजो मो दर्शन हनी प्रियतमा मोहदृष्टिने त्रण पुत्रो हता. सम्यकदर्शन, मिश्र अने बदर्शन चारित्रमोहनी अविरति नामनी पत्नीने चतुर्मुखवाळा त्रण पुत्रो वैश्वानर ३) शैलस्थंभ (दर्प, मान) अने सागर (लोभ) तेमज बहुलिका (माया) नामनी दना पुत्री हती.
ओक वार मोहराजाओ पोताना पुत्र दर्शन मोहने कह्यु के तारी पासे हिनी मोटी शक्ति छे. तेथी असंव्यवहार नगरमांथी हु जे लोको ने मोकलुं तेने दृष्टि मोहथी मोहित करी वश करवा तारो पुत्र मिथ्यादर्शन मारो सचिव छे. तारे पण मार्गदर्शन लेवू परंतु तारो सम्यक् दर्शन नामनो पुत्र मने योग्य लागतो नथी. आपणां बधा नगरोने उज्जड करवा इच्छे छे. यतिपुरीमा आवेला विवेकगिरि घर पर सुबोधराजा अने तेनी पत्नी सत्यदृष्टि रहे छे. अनी साथे तारा पत्रनी मैत्री पाटे आ कुपुत्रनो क्यारेय विश्वास करीश नही. चारित्रमोह नामनो तारो भाई समर्थ ते अने तेनो परिवार तारा कार्यमां सहायभुत बनशे.
वळी आयु राजानी चार प्रियाओ छे. पापमति, महामाया, मध्यम गुण यता अने शुभ प्रवृत्ति. तेमना चार पुत्रो अनुक्रमे नरकायु, र्यिगायु, मजुजायु अने यु नामना छे. आमांथी नरकायु मिथ्यादर्शन अमात्यने वशवर्ती छे. चारित्रमोहना जलनादि महासुभटोनी साथे आनो स्नेह संबंध बनशे. आम शिखामण आपीने नमोहने युवराज पदे स्थाप्यो आम तेओर्नु कार्य सुपेरे चालतुं हतुं.
ओक वार पर्याप्त सन्निग्राममां पंचेन्द्रिय महोल्लानां केटलांक लोकोने न्यक्त्वे वशीकृत कर्या अने दर्शनमोहना देखतां ज बोधराजनी आज्ञाथी ते वेकसेन दुर्गमा यतिपुरमां लई जवाया. तेमांथी वळी केटलांक मिथ्यादर्शन मात्यनी चढवणीथी पाछा फर्या. सम्यकदर्शनने वशवर्ती लोको देवगतिपुरीमां गया साथी फरी मनुष्य पुरमा जइने यतिपुरीमां गया. त्यांथी सुबोध नरपति अने चारित्र में नरपतिनी आज्ञाथी भृत्यपणुं छोडीने शिवनगरीमां गया. आम तेओओ मळीने हराजनी सेनाने निष्फळ बनावी.
आ वात जाणी दर्शनमोहे आयु राजा पासे आनी फरियाद करी तेमज स्वपुरीमां लई जवाता लोकोने रोकवा माटे विनंती करी. आ सांभळी आयुराजाओ
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नरकायुपाल वगेरेने बोलावी आज्ञा आपीके सम्यक्त्वना प्रवेशथी पोत पोता नगरोनी रक्षा करो त्यारे नरकायुपाल आदि ओ जणाव्यु के सम्यक् दर्शन अमा सेनाने तपथी बांधी नांखे छे.
आयुराजाओ प्रत्युत्तर आपतां कडं के हा आ बधी मने खबर छे. तो पण नरकायुपाल, अशाता आदि महासुभटो साथे मळी नरकादि पृथ्वीमां जईने कोई लोभथी कोइकने भयथी अने कोईकने सन्मान आपी ते विपक्षीओपर विज जितिलो.
राजानो आदेश स्वीकारी सौ पोत पोतानी नगरीमां गया, अने असा नीचगोत्र अशुभ नाम प्रमुख सुभटोनी सहायथी रत्नप्रभा आदि नगरीमां त्यांना लोको आयु स्थितिनी मददथीं नित्य हरावीने अत्यंत दुर्लध्य हेडमां नाखवा लाग्यां.
अहीं सातेय नरकनी जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिनुं (१३८-१५९) ते तेमां प्रवेश अने निर्गमन माटेनी प्रतोलीओनुं वर्णन छे. आ ज रीते तिर्यंच, तेम देवोनी जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिओनुं निरूपण करवामां आव्यु (१७५: २०३)
आमां मोहराजना सैन्यमा जे दुर्धर्ष सुभटो हतां सम्यकदर्शन वगेरेओ ते लीलापूर्वक हरावीने सुबोध नरपतिना प्रदेशमा जइने चारित्रधर्मराजनी आज्ञ आराधना करीने लोकोने शिवनगरीमां लई जाय छे. शिवपुरीमां गयेला लोक मोहनराधिप के कर्मपरिणाम नराधिप प्रभावित करी शकतो नथी. तेमनां दुष्ट कर्म रहेतां नथी के फरी संसार रहेतो नथी. शाश्वत अनंत सुखसागरमां तेमनी गति थाय
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'चंदप्पहचरियं'नी रूपककथा अस्थि अ लोयब्भंतरभूयंमि इमंमि मज्झ-देसंमि । सासय-सयल निवेसं नयरं भवचकवालं ति ॥१॥ तत्थ य महापयावो नराहिवो वसइ कम्मपरिणामो। परिपंथेइ य सयलं जयत्तयं सवसमुवणेउं ।।२।। तस्स उ अणाइभवसंतइ त्ति अभिहाण विस्सुया देवी । नाणावरणाई उण अट्ट सुया तेसिं विक्खाया ।।३।। बीया अकामनिज्जर नामा उ महानिवस्स से देवी। पिययमपसायठाणं चिठेइ अखंड-माहप्पा ।।४।। वियरइ य निवोणुदिणं अट्ठ वि नियसुयाण सिक्खमिणं । जह अंगरुहा तुन्भे सुसमत्था सव्वकज्जेसु ।।५।। एयं च मज्झ रज्जं अच्चंतमहल्लमिय सया तुब्भे । तह कह वि पयट्टिज्जह जहा थिरीहोई आकालं ॥६।। एयस्स पुण थिरत्तं लोयथिरत्तेण हवइ ता लोगो।। निजतो रज्जंतरमवियप्पं रक्खियव्वो त्ति ॥७॥ तुम्हाण य सव्वेसिं मज्झे दलनायगो महामोहो । हवउ जओ एसो च्चिय बलिओ सव्वेसिं मज्झमि ॥८॥
एत्थंतरमि वेयणिय नामगोया भणंति नणु तुब्भे । अणुयत्तह मोह(मोहनि वं) अणुयत्तिस्सामो वयं आउं ॥९॥ मोहेवगए वि जओ जीवो सो आउयंमि जीवंते । खीणमि तंमि पुण धुवमम्हे होमो निराहारा ॥१०॥ ता भणइ कम्मपरिणामनरवई अहह जुत्तमुल्लवह । किं पुण घरे विवायं दूरं दूरेण परिहरह ।।११।। नाणावरणाईणं तिण्ह पहू हवउ ता महामोहो । वेयणिय-नामगोयाण सामिओ होउ पुण आऊ ॥१२॥
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भवचक्कवालनयरस्सिमस्स सामी अहं पि ता चिटुं । एय पुराणुगयं च्चिय-गिह पाडय-गामयाणेगो ॥१३।। नरयगइ प्पमुहाणं नयरीणं हवउ सामिओ आऊ। वेयणिय-नामगोया य सहयरा होंतु एयस्स ॥१४॥ एसोउ महामोहा नाणावरणाइ कुमरकयसेवो । हवउ असंववहारप्पमुहेसु पुरेसु नरनाहो ॥१५।। किं पुण स-घर-विरोहो दूरंदरेण परिहरेयव्वो। कायब्वं सब्चेहिं वि सया कि साहेज्जमन्नोन्नं ॥१६।। एयंमि बहुमयंमि उ सव्वेसिं वि तेसिं निवइणो ठविओ! जुवरायपए मोहो मंडलियत्ते पुणो आऊ ॥१७॥ अणुसासिया य कमसो दुवे वि जह मोहराय ताव तए । अस्संववहार-महापुरस्स चिंता विहेयव्वा ॥१८॥ चोद्दसभूययग्गामाणेगिंदिय-पमुह-पाडयाणं च । अन्नत्थ वि मह रज्जे चिंता सयला वि तुह चेव ॥१९॥ तुमए वि पुत्त आउय नरयगइप्पमुहपुरविसेसेसु । रयणप्पहाइयासु य तप्पडिबद्धासु नयरीसु ॥२०॥ नारयतिरियनरामरलोयाण ठिई जहा सया होइ। तह कायव्वं जम्हा तुह चेव पहुत्तर्ण तत्थ ॥२१॥ अन्नोन्नं च दुवेहि वि न चित्तभेओ कयावि कायव्वो । इय सिक्खविउं निय-निय- ठाणे ते पेसिया तेण ।।२२।। परिवालेतिं य निय-निय-रज्जाइं गरुय-हरिसमावन्ना । तत्थ य मोह-नरिदैस्स पिया सा मूढया नामा ॥२३॥ तेर्सि पुणो दोन्नि सुया दंसण-चारित्तमोह अभिहाणा । पारस पिययमा दिट्ठिमोहणी नाम विक्खाया ॥२४॥ मि-दंसण संमतमीस नामा य तिन्नि तेसिं सुया। चारित्तमोह-दइया अविरइ नाम त्ति तेसिं तु ॥२५॥ वसानर-सेलत्थंभ-सागरा चउमुहा सुया तिन्नि । एका य कनया बहुलिय त्ति नामा चउव्वयणा ।।२६||
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अह मोहनराहिवई दंसणमोहं पडुच्च वज्जरइ । जह वच्छ दिछिमोहण सत्ती तुह चिट्ठए महई ॥२७॥ ता अस्संववहार-प्पमुह-पुरे पिंडिओ मए लोगो। इय दिट्ठिमोहणेणं मोहिय तह भे धरेयव्यो ।।२८।। अह अन्नत्थ न वच्चइ नायण्णइ इयर-वयणमवि कहवि । इयर-मुहं अनियंतो चिट्ठइ य तुहेव वसवत्ती ।।२९।। वच्छ मए तुह अ च्चिय पहुत्तमेयं समप्पियमसेसं । अपमायपरेणं सया वि भवियव्वमिह तुमए ।॥३०॥ अन्नं च तुज्झ जेट्ठो चिट्ठइ जो मिच्छदसणो पुत्तो । संसय-विवज्जयाइ य उवायजणणंमि सो कुसलो ॥३१॥ इय तुह रज्जे सचिवत्तणंमि संठाविओ मए एसो। तुह कज्जे जयइ सयंपि सो विसेसेण भणिओ उ ॥३२॥ जे वि पिउभाइणो तुह नाणावरणाइणो महासुहडा । ते वि हु गरुय गरुए सामंतपए मए ठविया ॥३३॥ एएसिमवि कुबोह - अबोहाइ भडा भमंति सव्वत्थ । अखलियपसरा जे ते वि तुह करेहिंति साहज्जं ॥३४॥ किं पुण तए वि मिच्छादसणमापुच्छिऊण लोयाणं । आएसो दायव्वो न उ कत्थ वि नियय-इच्छाए ॥३५।। सम्मइंसणनामो तुह पुत्तो उण न सुंदरो अम्ह । जमहिलसइ उव्वासिउमम्ह पुराइं असेसाई ॥३६॥ निसुयं च मए नणु इह चिट्ठइ दुग्गे विवेय-गिरिसिहरे। जइणपुरंमि नरिंदो सुबोहनामो महाबाहू ॥३७॥ सद्दिट्ठी तस्स पिया तेहिं य सह संगओ सुओ तुज्झ । इय एयंमि कुपुत्ते वीसासो भे न कायव्वो ॥३८।। एत्तो चेव पवेसो रक्खेयव्वो इमस्स जत्तेण । निय- नयरेसु असंववहारप्पमुहेसु तुमए त्ति ॥३९॥ एगिदि-विगलपाडयमझं पविसेज्ज पुण जइ कर्हि चि । तह वि चिरावत्थाणं इमस्स तुमए न दायव्वं ॥४०॥
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जो वि तुह मीसनामो तणूरुहो सो वि मिच्छसम्माण । अणुयत्तिं कुव्वंतो पडिहाइ न मज्झ सुद्धप्पा ॥४१|| मज्झत्थयाए जइ वि हु न दंसए एस किंचि वि वियारं। : तह वि निय-पक्ख-पुद्धिं न कुणइ जो तंमि का आसा ।।४२!! किं पुण एसो उदयस्स थेवकालो त्ति तारिसं न भयं । तह वि हु इमस्स तुमए स-पुर-पवेसो न दायव्यो ।।४३।। चारित्तमोहनामो सहोयरो जो उ वल्लहो तुज्झ । का वन्निज्जइ तस्स वि समत्थिमा पत्थुयत्थंमि ।।४४।। जं से अविरइनामा पिया सुया तेसिं तिन्नि चउवयणा । जलण-गिरिथंभ-सागर नामाणो बहुलिया धूया ॥४५|| एयाणि सहावेण वि अम्हं कुलवुड्डिकारयाणि सया । निय पिउणा तुमए वि हु पुरक्खडाइं विसेसेण ॥४६॥ जं जलण-तविय-चित्तो न गणइ जणयं न मन्त्रए जणणि । लंघइ सहोयरं गुरुयणं च अवगणइ निरवक्खो ॥४७|| विरमेइ न पावाओ धम्ममि मणं मणं पि न करेइ । अहव परायत्ताणं एत्तियमेतमि किं चोज्जं ॥४८॥ गुरुथंभेणं थड्डीकओ अप्पाणमेव मन्नंतो। तिणमिव गणेइ जयमवि कुणइ अवण्णं गुरूणं पि ॥४९।। भणइ य अहमेव गुरू भुवणस्स विन उण मह गुरू को वि। जाइकुलाईण वि गुण-रयणाण महं चिय निहाणं ॥५०॥ अच्चंतायासकरं दुरंत दुग्गय-निवाय-संजणयं । सागरओ सागरमिव दुप्पूरं जणइ जयआसं ॥५१॥ एएसि पुणो भइणी बहुतरं कूडकवडमाईणि । सिक्खावेंती भुवणे गुरुत्तणं पयडइ जणस्स ॥५२॥ इय तीए वसवत्ती जीवो अन्नं धरेसि हिययंमि। भासइ पुण अन्नयरं अन्नतमं किंचि वि करेइ ॥५३॥ ता जणणि-जणय-बंधव-सामिप्पमुहं पि सयलमवि लोगं । निरवेक्खं वंचंतो कुगइ दुहाण वि न बीहे इ ।।५४॥
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इय तुह अहिलसियत्थोवसाहगाइं इमाई सयलाई । मुणिऊणिमं सकज्जे तुमए वावारियव्वाइं ॥५५॥ किं च इमाणं नवहा हासाई सहयरा महासुहडा । तिव्वासत्तियरे वि हु लोय-वसीयरण-सत्तिजुया ॥५६।। तिय इह मोह-वावरिएहि वावारिय च्चिय हवंति । इय सव्वे चिय एए गुरुसंमाणेण दट्ठव्वा ॥५७।। जो उ महामंडलिओ आउयराओ कओऽम्ह जणएण । सो सच्चविउं असंववहारपुरे बहुजणं अम्ह ॥५८|| निय-पुर-नयणिच्छाए बहुयरमाउट्टिइं न वियरेइ । अंतमुहुत्ताओ उण संहारं कुणइ पुणरुत्तं ।।५९।। जइ वि हु तह वि मए निय उदएणऽन्नत्थ निज्जमाणो सो । तत्थ वि धरिज्जए पुण पुणरवि कारविय उप्पर्ति ॥६०!| न य एवं कीरते मए समुव्वहइ वइरभावं सो। केवलमणंतलोयं इच्छइ काउं सनयरीसु ॥६॥ न य एत्तिएण अम्ह वि तस्सुवरि समत्थि कावि वइरमई ।। जम्हा तन्नयरीसु वि आणाकारी जणो अम्ह ॥२॥
अन्नं च -
पावमइ महामाया मज्झिमगुण-जोग्गया सुहपवत्ती । आउ-निवस्स पियाओ चउरो चत्तारि तासि सुया ॥६३॥ नरयाऊ तिरियाऊ मणुयाउ सुराउणो त्ति जहसंखं । एए कया सपिउणो रायाणो नियय-नयरितु ।।६४॥ एएसु य नरयाऊ मिच्छादसंणअमच्यवसवत्ती। कत्थ वि ढिई न बंधइ तव्विरहे जमिह कइया वि ।।६५।। जे वि हु जलणाइ महासुहडा चारित्तमोह-अंगहा । तेहिं वि समं सिणेहो इमस्स इय भे सहाओ सो ॥६६।। जो उण तिरियाउ महानराहिवो सो वि इह सहावेण । बहु मिच्छत्तणुजाई कया वि सासायणरुई वि ॥६७॥
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मणुयाउ य देवाय रायाणो उण कया वि मिच्छस्स । कइया विहु सम्मस्सिय दुण्हं पि कुणंति अणुयत्तिं ॥६८॥ जे वि हु आउनिवइणो नामाइ नराहिवा महासुहडा । तेसु वि सम्महंसण कयाणुराया धुवं थोवा ॥६९॥ बहुया उ मिच्छदंसण सचिवं चिय मंतिऊण अणवरयं । कज्जेसु पयट्टति ते वि तुह चेव आयत्ता ॥७०॥ ता कस्स वि आसंका न विहेयव्वा तए तणय अहवा । सुसहायवीरियाणं निवईण भवे कुओ संका ॥ ७१ ॥ एवं च सिक्खवेडं पिउणा सो जुवनिवत्तणे ठविरं । पेसविओ य महाबलकलिओ सनिउत्तवावारे ॥७२॥ अह अक्खलियप्पसरो सव्वत्थ वियंभिउं समाढत्तो । तह कह वि जह न आणं लंघइ सो को वि हु कहिं वि ॥ ७३ ॥ एवं च वियंभंतो तमसंववहारपुरजणमसेसं ।
तह कह वि दिट्टिमोहेण मोहिउं कुणइ जह सहसा ||७४ || गयचेयणो व्व मुच्छागओ व्व अवहरियजीविओ व्व सया । न मुणइ सुहं न दुक्खं न फंदए न वि य संचलइ ॥७५॥ किं तु समजीयमरणो समेक्कदेहप्पवेस- निक्कासो । समनीसासूसासो समसमयाहारनीहारो ॥ ७६ ॥
चिट्ठइ सया वि अविहड- सिणेह - भविय- मइव्व अच्चतं । इयरेसिमवियरंतो नियजाईए पवेसं पि ॥७७॥৷ तिरियगईनयरीए जइ वि पहू आउराइणा ठविउं ।
तिरियाऊ सामंता तप्पडिबद्धं च नयरमिणं ॥ ७८ ॥ तह वि नियंतस्स वि से तिरियगईनयरिसंतिओ लोओ । निज्जइ को विकया वि हु कत्तो वि विवक्खिचरडेहिं ॥७९॥ दंसणमोहेण असंववहारपुरंमि पुण तहा विहियं । जह न प्फुरइ कहंचि वि पडिवक्खिय नाममेत्तं पि ॥८०॥ जेवि हु आउ-निवइणो नामाइ - निवाणमवि सुहविवागा । सम्मद्दंसणमणुयत्तंति इमेसिं वि तहिं न गमो ( ? ) ॥८१॥
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मिच्छत्त-वयण-विसए असुहविवागा वसंति जे सुहडा । तेसिं पुणो सविसेस कओ पवेसो सनयरंमि ॥८२॥ जेवि हु चोहभूयग्गामे एगिंदिपाडया के वि । पज्जत्तापज्जत्तग बायर-साहारण सरूवा ॥८३॥ ते वि असंववहारय - नयरसरिच्छा कया परं तत्तो । वच्चंति अन्नहिं पि हु अकाम-निज्जर-निओएण ॥८४॥ जे उण पत्तेयतणू अप्पज्जत्तयगिहे वट्टेति । ते वि हु दंसणमोहेण अप्पाणो च्चिय वसे नीया ॥ ८५ ॥ इंदिया य पाडयगया वि अपज्जतगिहगया जे उ । ते वि हु जावज्जीवं वट्टंति इमस्स आणाए ॥ ८६ ॥ जे उण पज्जत्तग-गिह-निवासिणो तेसिं केसु वि कया वि । सम्मत्तस्स वि होज्जा कित्तियमेत्तो वि हु पवेसो ||८७|| किं पुण अचिरठिई सो जम्हा एगिंदि पाडगाईहिं । निस्सारिज्जइ दसणमोहेण हढेण सहस त्ति ॥ ८८ ॥ पज्जत्त सन्निगामे पंचिंदिय पाडयंमि जे उ जणा । तम्मज्झओ के विह सम्मत्तेणं वसीकाउं ॥ ८९ ॥ पेक्खंतस्स वि दंसणमोहस्स विवेगसेनदुग्गंमि ।
इणपुरे निज्जतेसु बोहरायस्स आणाए ||१०|| तत्तो वि पुणवि केइ मिच्छदंसण- अमच्च- बुद्धीए । वेलविया ठाणाइं पुव्विल्लाई चिय उवेंती ॥९१॥ अवरे उ सुबोह-महीवइणा तत्थेव थिरयरा विहिया । धरणं आणाए चरित्तधम्मस्स नरवइणो ॥ ९२ ॥ के विहु सम्मद्दंसण - अमच्च वसवत्तिणो पुणो तत्तो ! देवगईए पुरीए वच्चंते किंचि वि पवित्ता ॥९३॥ सम्मत्तमंति- बहुमय- ठिईए वसिऊण तत्थ चिरकालं । माणुसपुरीए गंतुं वच्चति पुणो वि जइणपुरे ||१४|| तत्तो सुबोहनरवइ - आणाए चरित्तधम्म-नरवइणो । भिच्चा निभिच्चीहविऊणं पार्वेति सिवनयरिं ॥ ९५ ॥
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सो उण मिलियस्स वि मोहराय - सेन्नस्स धुवमिह अजोग्गा । ता दंसणमोहो परिचिंतइ धिसि विसममावडियं ॥९६॥ जं मह पुत्त्रेण इमे पक्खित्ता सिवपुरीए नेऊण | न य तत्थम्ह पवेसो अवालणिज्जा तओ एए ॥ ९७ ॥ इय आणि असंववहाराउ पुराउ पाणिणो इयरे । सिवगय-जिय-ठाणाई पिउणो आणाए पूरेमि ॥ ९८ ॥ जेण न मह चुल्लपिया रूसइ इय चिंतिरो य तह कुणइ । मुणिउं च वइयरमिमं आउयपालो वि चिंतेइ ॥९९॥ मह भाउ-सुओ सोहणमणुट्टए जं इमाई ठाणाई | न धरइ सुनाइं जणे खलेहिं अत्रत्थ नीएवि ॥१००॥ एत्थतरंमि दंसणमोहो सिरिआउराय - पासंमि । आगंतूणं सविणयमुल्लवइ कयंजली एवं ॥ १०१ ॥ सम्मत्तनामगो जो जाओ मह ताय नंदणो एसो ।
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अच्चत पडिणीओ आणं पि न अम्ह मन्नेइ ॥ १०२॥ अवगणइ पियामहमवि जम्हा अम्हाण सयलठाणाणि । उव्वासइ अणुकमसो मिलिउं पिसुणाणिमो दुट्ठो ॥१०३॥ तुम्हाणवि निरवेक्खो बलवंत-सुबोह - निवइ - आसत्तो । तणलवमिव अवगच्छइ अम्हे सव्वे वि सपरियणो ॥ १०४ ॥ एवं च निययकुलधूमकेडणो पिसुण-संग निहयस्स । तस्स कुपुत्तस्स वयं किं करिमो इय निवेएह ॥ १०५ ॥ केवलमम्ह जणं सो हरिडं जं जेण ठाणमिह सुन्नं । तत्थ असंववहारपुराओ अन्नं निवेसेो ॥ १०६ ॥ तंमि य जणो अणंतो वसइ जओ तेण थोव-जणगहणे । सिरिमोहमहीवइणो न किंचि वि अवरज्झिमो अम्हे ॥१०७॥ हरियं पि जं तरेमो तमवस्सं वालिऊण रक्खेमो । अन्नं पि किं पि सीसइ पत्थाव-समागयं तुम्ह ॥ १०८ ॥ नरयगइप्पमुहासु य पुरीसु जे निवइणो तए ठविया । नरयाउपाल - पमुहा पयंड- दंडा महासुहडा ॥१०९॥
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ते वि न नियनयरीसुँ पविसंतं तं तरंति वारेउँ । पेच्छंताण वि तेसिं तव्वासिजणं जणो कंचि ॥११०।। करेइ सो नियआणं मणुगइ-नयरीए आणिउं कमसो । जइणपुरें पविसेउं सुबोहरन्नो वसीकुणइ ॥१११॥ सो वि समप्पिय चारित्तधम्मरायस्स सिवपुरि नेइ । अह सो अवालणिज्जो हवइ जणो अम्ह सव्वेसिं ॥११२।। इय तेसिं तहा सिक्खा दायव्वा सहयरा वि ते के वि। जह निय-विसयंमि वि सेवया-समत्तं पि हु न देंति ॥११३।। तह जे तुम्हें कडए सुहडा साओदयाइणो के वि । संति सुहपयडिरूवा ते वि न वसवत्तिणो तुम्ह ।।११४।। जं सम्मत्तस्सेवय ते वि पयर्टेति गाढमणुयत्तिं । इय केरिसी जयासा विइन्नभेयंमि भे कडए ।।११५।। नाणावरणाईण उ निवईण न नूण अत्थि वभिचारो। जं मिच्छत्तवसगया सव्वे ते सच्चविज्जंति ॥११६।।
तहाहि -
नाणंतरायदसगंय पदंसणवंग च मोहछव्वीसा । नामस्स चउत्तीसा नरयाउ असायनीया य ॥११७॥ एए बायासीय वि मिच्छत्तामच्चवसगया पायं । तुम्हम्ह पक्खमेव य पोसिंति सया वि एक्कमणा ॥११८॥ अहवा किं बहुएणं विवक्खिचरडेहिं नियजणमसेसं । निज्जंतं रक्खवह मह पयत्तेण पहु तुब्भे ॥११९।। इय भाउ-तणय-वयणं अह निउणं निसुणिऊण सो निवई । नरयाउपालगाई सव्वे सद्दाविउं भणइ ।।१२०॥ . जह नियनियनयरेसुं संमत्तपवेसरक्खणं कुणह । जं संमत्तपवेसे अम्ह जणो फिट्टिहइ सयलो ॥१२१॥ तयणु नणु देव अम्हे किं करिमो तेण अम्ह कडयाई । विद्धाई सयलाणि वि तवेणं बलोहभडाइं ॥१२२॥
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तहाहि -
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किंच -
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इय जंपिरेसु तेसुं पयंपए आउपाल नरनाहो । जह दंसणमोहेण वि सयलमिणं साहियमहेसि ॥ १२३ ॥ इय जारिसया वाया दिज्जंते ओलया वि तारिसया । इय सयललोय-पयडं वयणं धरिऊ ण हियएसु ॥ १२४॥ नरयाउपालय-प्पमुहाणमसायाइणो महासुहडा । जिह विवक्खं मिलिउं गंतुं नरयाइ - पुहईसु ॥१२५॥ लोहेण केइ केइ वि एण संमाणिउं पुणो के वि । तह कुणह जह न तुब्भे कुटुंबिणोऽन्नत्थ वच्चति ॥ १२६ ॥ अह तस्स निवइणो इममाएसं घेत्तु उत्तिमंगेणं । मिलिडं सव्वे विहु ते निय-निय - नयरीसु वच्चति ॥१२७॥ ते विहु असायप्पमुहा सुहडा किल आउनिवइ - भाउसुया । वेयणियाइ - निवाण जेण इमे होंति अंगरुहा ॥ १२८ ॥
वेयणिय - निवस्स पिया अणुभूई तीए दोत्रि अंगरुहा । साय- असायऽभिहाणा परिणइ नामा उ नामपिया ॥ १२९ ॥ सिं उ सुभासुभ सद्द - रूव-रस-गंध-फासया तणया । गोय-पियाए उप्पत्तीए दो उच्चनीयसुया ॥१३०॥ वेयणियाईहिं य ते समप्पिया आउपाल - नरवइणो । तेण वि निय-पुत्ताएँ कया सहाया इमे सव्वे ॥ १३१ ॥ अस्साय-नीय - गोयासुहनाम- प्पमुह - सुहड - परियरिओ । नया उपाल - निवई रयणाइसु नियय-नयरीसु ॥ १३२ ॥ आउट्ठिईए चित्तं निच्चं पि करेइ तस्स लोगस्स । हडिपक्खेव सरिच्छा जमिमा अच्चंत दुल्लंघा ॥ १३३ ॥
रयणाए जहन्त्रेण वि वाससहस्साइं दस ठिई विहिया । सओ उ सागरमेगं तव्वासिलोगस्स ॥१३४॥ तिन्नेव सागराई उक्कोसेणं जहन्नओ एगँ । विहिया ठिई निवइणा तेणं सक्करपहपुरीए ॥१३५॥
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वालुयपह- नयरीए जहन्नओ तिन्नि सायराइं ठिई । सत्तेव य अयराइं उक्कोसेणं पुणो तत्थ ॥१३६॥ पंकप्पापुरीए जहन्नओ सत्तसागराई ठिई । उकोसेण पुणो दस तम्मज्झे मज्झिमा नेया ॥ १३७|| धूम पहनामाए पंचमनयरीए दस जहन्त्रेण । उक्कोसेण उ सतरस अयराइं जाण ठिई विहिया ॥ १३८ ॥ छट्ठीए पुण तमप्पहपुरीए अयराई सतरस जहन्ना । बावीस सागराणि उ उक्कोसेणं ठिई विहिया ॥ १३९ ॥ बावीस जहन्त्रेण उ सत्तमतमतमपुरीए अयराई । तेत्तीस पुणो उक्कोसिया ठिई तेण तत्थ कया ॥ १४०॥ उवरिं तु तओ न तरइ समयं पि विहेउ समहियं तत्थ । इय एत्तियमेत्तं चिय काउं आउं विओए सो ॥ १४९ ॥ तत्थ य सत्तमियाए तमतमनामाए नरयनयरीए । दो चेव पओलीओ कयाओ निग्गम-पवेस, कए ॥१४२॥ नरयतिरियाणुपुव्वी नामाओ सुयहराण पयडाओ । एगाए पवेसो चेव निग्गमो चेव बीयाए ॥१४३॥ एआए पओलीए दुगं पि पुण नोवलब्भए काउं । सिरिनामराय वसुहाहिवस्स निठुरभडेहिंतो ||१४४|| जम्हा आयट्टेउं तिरिमणुयगईमहापुरीहिंतो । लोया खिप्यंति पओलीए नरयाणुपुव्वीए ॥ १४५ ॥ तिरियाणुपुव्विनामयबीयपओलीए जे उ एएहिं । निक्कालिज्जति इओ ते तिरियगईए खिष्पंति ॥ १४६ ॥ श्यणप्पहाइयाओ छन्नयरीओ उ जाओ तासिं तु । नरयतिरिमणुय - अणुपुव्वि नामियाओ पओलीओ ॥ १४७॥ पत्तेयं तिन्नि च्चिय तासु वि नरयाणुपुव्वि नामाए । पुव्विं व पवेसो चिय दोहिं य इयरीहिं नीकासो ॥१४८॥ तत्थ वि जो जन्नयरीए निज्जिही तस्स तयणुपुव्वीए । निक्कासो न पराए कीरइ नामस्स सुहडेहिं ॥ १४९ ॥
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रयणप्पहनयरीए अन्नाई वि संति अंतरपुराई । देवगइअणुगयाइं भवणाहिववणयराण ति ॥ १५०॥ तीए जओ बाहल्लं जोयणलक्खं असीइसहसजुयं । हेट्टोवरिमसहस्सं एक्केकं पुण तहिँ मोत्तुं ॥ १५१ ॥ भवणाहिवइसुराणं अणेगभेयाइ संति भवणाई | पढमसहस्से हेट्ठिम-उवरिमगसयाइ दो मुत्तुं ॥१५२॥ मज्झिमसु य अट्टसु सएसु वणयरसुराण रम्माई । तो साइं नयराई चिट्ठेति अणेगरूवाई ॥१५३॥ एएस य सव्वेसु वि होंति पओलिउ तिन्नि तिन्नेव । नवरं तइया देवाणुपुव्विनाम त्ति नायव्वा ॥ १५४॥ तीए य पवेसो च्चिय मणुस्स- तिरियाणुपुव्वियाहिं पुणो । निय - निय-गईसु वच्चंतयाण निक्कासणं चेव ॥ १५५ ॥ भवणवइ-वणयराण आउयचिंता सुराउपालेण । दोह वि जहन्नओ दसवाससहस्साइं विहियाई ॥ १५६ ॥ उक्कोसेण उ भवणाहिवाण उत्तरदिसाए मेरुस्स । बलि नाम सुरिंदो जो सागरमहियं ठिई तस्स ॥१५७॥ दाहिणदिसाए चमरो जो तस्स उ सागरोवमं एक्क ं । इयरेसिं पुण दाहिणदिसाए पओिवमं सङ्कं ॥ १५८॥ उत्तरदिसिट्ठियाण उ दो देसूणाई हुंति पलियाई । भवणवईणं एवं वंतरदेवाण पुण पलियं ॥ १५९ ॥ जेवि असायप्पमुहा सुहडा निय-निय-पिऊण वयणेण । पत्ता साहज्जकए नरयाउयपालदेवस्स ॥ १६०॥ तेवि नियसत्तिसरिसं नारयगइ-लोय - भेसणट्टाए । पवियंभिउमाढत्ता निक्करुणं जह तहा सुणह ॥ १६९ ॥ रयणप्पा - पुरीए मझे भवणवइ नाम पयडेसु । देवगइ - वरपुरी - पडिबद्धेसु पुरेसु केसुं पि ॥ १६२॥ चारित्तमोह - नंदण कसाय- सुहडेहिं विहियपयसेवा । बहुमय मिच्छदंसण- सचिवा परमाहमिय-तियसा ॥ १६३ ॥
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ते वावारेऊणं असाय-उदओ महाभडो बहुसो । रयणप्पमुहपुरीसु त्ति आइल्लासु लोगस्स ॥ १६४॥ छेयण-भेयण-वेयरणितरण - करवत्तफालणाईणि । तह तह करावए जह सुहलवमवि लहइ न जणो सो ॥१६५॥ अन्नोन्नुद्धीरियमवि खेत्तसहावुब्भवं च दुहमसहं । पss तहा जहा सो क्खणभवि न जणो सुही हवइ ॥ १६६ ॥ अग्गमगासु पुणो तिसु दुसहाई दुहाई होंति दो चेव । जम्हा परमाहम्मिय तियसाण न अत्थि तत्थ गई || १६७ || सत्तमपुरी पुणे जं तद्वाणकथं पि असुहमइघोरं । जं विसम - वज्ज - कंटय-मज्झे चिय तत्थ उप्पत्ती ॥१६८॥ एवं च तस्स तारिस असाय परिपीडियस्स लोगस्स । सुहवत्ताविन वट्टइ का पुण अन्नत्थ गमणकए ॥१६९|| नरयाउवाल- विरइय आउखए होज्ज अन्नहिँगमणं । लोगस्स तस्स किं पुण असाय - सुहडा तमणुजंति ॥ १७० ॥ नरतिरिगड़-नयरीसुं दोसुं चिय निज्जइ इमो जम्हा । सिरिनामराय - सुहडेहिं तेण तत्थ वि असायाई ॥ १७१ ॥ तिरियाउपालनिवई तत्तो तिरियगइ नियय - नयरीए । पडिबद्धेउं चोद्दससु ब्भूय - गामेसु गंतूण ॥ १७२ ॥ समगं असायनीयागोयासुहनामपमुह सुहडेहिं । एगिंदियाइपाडयपुढवीकायाइगेहेसु || १७३ || जे केइ संति लोया तेसिं चिंतइ भवट्ठिईकालं । कार्याकालं पिट्ठाणं सुन्नकरणत्थं ॥१७४॥ पुढवीकाय पुरट्ठिय-जणस्स बावीसई सहस्साइं । वासाण भवई कालो उक्कोसओ होइ ॥ १७५ ॥ आउक्काए सत्त उ तिन्नि सहस्साउ वाउकायंमि । दस वाससहस्सा उण पत्तेयतरूण उक्कोसो || १७६ || तेओक्काए राइंदियाणि तिन्नेव एवमेसा उ । एगिंदि भवठिई बारसवरिसाणि उ बिइंदीण ॥ १७७॥
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एगुणवन्नदिणाई भवट्ठिई उण तिइंदिय जियाण । मासा छ च्चिय चउरिदियाण पंचिदियाण पुणो ॥१७८।। संमुच्छिमाण पुवकोडी इयराण तिन्नि पलियाई । उक्कोसओ जहन्नं दोसु वि अंतोमुहुत्तं तु ॥१७९।। जओ अणंत-वणप्फइ-काए तेसिं जहन्नमुक्कोसं । अंतोमुहुत्तमेव य एवं एसा भवट्ठिइत्ति ॥१८०।। कायट्ठिईए कालो पुण मोहमहानिवेण कारविओ। तेसिं जहा जहा भे निसुणह अवहिय-मणा होउं ।।१८१।। अस्संखोसप्पिणि-सप्पिणीओ काएसु चउसु वि कमेण । ताओ चेय वणस्सइकाएणं ताउं नियाओ ॥१८२।। वाससहस्सा संखेज्जया उ बेइंदियाइसु हवंति । अट्रेव भवग्गहणाइं होंति पंचिँदिएसु पुणो ||१८३॥ एवं भवट्ठिईए कायट्ठिईए य ते निरंभेउँ। असुहद्दुयस्सरुवे कारवइ असाय-सुहडेहिं ।।१८४।। एवं असुहावन्नाइणो वि पाएण बायरे काए । जम्हा कप्पूरागुरु-पमुहे कत्थ वि सुहावि हु ते ॥१८५॥ नीयागोयस्सुदओ पुण सव्वाए वि तिरियजाईए। नीयागोयवसेणं अप्पबहुत्तेण उ विसेसो ॥१८६।। मणुयगई-नयरीए वि निवई मणुयाउपालअभिहाणो । सायासायाइपभूय-सुहड-परिविहिय-साहज्जे ॥१८७।। पलियाई तिन्नि उक्कोसेणं गब्भोववन्न-मणुयाण । आउट्ठिई जहन्नेणं पुण अंतोमुहुत्तं ति ।।१८८|| कायट्ठिई पुणो भवगहणाई अट्ट हवइ अणवरयं । तयणंतरं च मणुयाउपाल-निवई मणूसाण ॥१८९|| इट्ठ-विओगा पिय-संपओगपमुहाई कुणइ असुहाई। सारीरमाणुसाइं असायसुहडं निजुंजेउं ॥१९०॥ साओदयाइहितो के वि सुहाई पि अणुहवावेइ । नीयागोयाईहिं उ नीयागोयत्तणदुहाई ॥१९१।।
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जे उण संमुच्छिमया मणुया तेसिं सयावि असुहुदया। अंतोमुत्तमाउं जहन्नमुक्कोसयं पि धुवं ॥१९२।। एएसिं उभएसिं वि पुरे पओलीउ पंच चिट्ठति । नरयाणुपुस्विपमुहा जा पंचमिया सिवपओली ॥१९३॥ तत्थ य पवेसनिग्गमविही पओलीसु चउसु जायति । बहुसो पहियं चिय सिवपओलिदारं तु चिट्ठेइ ।।१९४॥ जो पावियमाणुसगइनयरी पज्जत्त-भाव-गिहवासो । अभिमय-सुबोह-नरवइ-आणो संमत्तमंतिजुओ ।।१९५।। वसिऊणं जइणपुरे सुइरं पसरंत अनणु जियविरिओ । चारित्त-धम्म-सामंत-दिन्न-असमाण-साहज्जो ॥१९६।। सिवनयरि गंतु-मणो निद्धाडिय-सयल-मोहराय-बलो। केवललच्छीए गिहं होऊणं जणिय-जय-चोज्जो ॥१९७।। हणिऊणं आउमहानिवं पि नामाइ-सुहडमहियं सो वच्चइ सिवनयरीए उग्घाडिय-सिब-पओलीओ ।।१९८।। एत्तो चिय एसा संतिया विनेया असंतिया सरिसा । जं न लहइ मग्गं पि हु इमीए लोगो अणेरिसओ ॥१९९।। रयणप्पहाए उवरिल्ल-पयरभूमीए रज्जुमाणाए । मज्झपएस-निविट्ठा चिट्ठइ मणुयगइ नाम पुरी ॥२००। पणयालीसइ जोयण लक्खा आयाम-वित्थरेहिं पुणो । नायव्वो एईए पायारो माणुसनगो ति ।।२०१|| देवगई - नयरीए राया देवाउपाल नामाओ । देवाणमसेसाण वि आउट्ठिइए कुणइ चितं ॥२०२।। तत्थ य संति निकाया चउरो पाएण असमसुहकलिया। भवणाहिव-वणयर-जोइसाण वेमाणियाणं च ।।२०३।। असुरा नागा विज्जा सुवन्न अग्गी य वाउ थणिया य । उदही दीव दिसा वित्तिआ इमा तत्थ दस भेया ।।२०४।। भूय पिसाया जक्खा य रक्खसा किंनरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा अट्ठविहा वाणमंतरया ।।२०५॥
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taणपत्र ए वि विसए उक्कोसयं जहन्नं च । एएसि दुवेण्हँ पि हु चिंता आउट्टिईए कया || २०६|| चंदाइच्चा गह रिक्ख तारया जोइसाउ पंचविहा ! तत्थ य ससीण पलियं अब्भहियं वास लक्खेण ॥ २०७॥ आइच्चाण उं तं चिय वाससहस्साहियं गहाणं तु संपुन्नमेव पलियं नक्खत्ताणं तु तस्सद्धं ॥ २०८॥ ताराण चडब्भागो पलियस्सुकोसओ जहन्नाओ । तस्सेव अट्ठभागो पुव्वचउण्हं तु चउभागो ॥ २०९॥ सि पुरा वासाणं हेल्लितलो नहंमि रयणाए । समभागाओ सत्तहिं नउइंहिं जोयणसएहिं ॥ २१०॥ अट्ठहि सहि सूरो चंदो असिएहिं अट्ठहिं सएहिं । उवरिमतलं तु तेसिं नवहिं सएहिं मुणेयव्वं ॥ २११|| सड्ढाए रज्जूए उवरिं विमाणिया सुरा होंति । सोहम्माइ दुवालस- कप्पेसुं कप्पसंपन्ना ॥ २१२ ॥ कप्पाइयासु नवसु य गेवेज्जेसुं अणुत्तरेसुं च । पंचसु महाविमाणेसु होंति असरिससुहाण निही ||२१३ ॥ तेसु य जहन्नमाउं सोहम्मे पलियमेक्कमुवरइयं । दो सागरोवमाई उक्कोसेणं तु तत्थ ठिई ॥ २१४॥ ईसाणे वि हु एवं दोसु वि ठाणेसु नवरमहियत्तं । कप्पे सणकुमारे जहन्नओ दोनि अराई || २१५ ॥ उक्कोसेणं सत्त उ माहिंदे ताई दोनि अहियाई । सत्तेव बंभलोए जहन्नमियरं तु दस ताइं ॥ २१६ ॥ दस चेव जहन्नेणं लंतयकप्पंमि चउदसुक्कोसा । सुक्कंमि जहन्त्रेण चोद्दस सत्तरस उक्कोसा ||२१७॥ सत्तरस सहस्सारे जहन्नेओ अट्ठदस उ उक्कोसा । अडदस जहन्न उक्कोसेगुणवीसाणए कप्पे ॥२१८॥ पाणयकप्पे स चिय जहन्नओ वीसई पुणो इयरा । वीस जहन्ना आरणकप्पे इगवीसमियराओ ॥ २१९ ॥
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सच्चिय जहन्नमच्चुयकप्पे उक्कोसओ उ बावीसं । इय कोसा उवरुवरि ठिई पुण जहन्ना ॥२२० ॥ ता जाव नवमगेवेज्जगंमि इगतीस अयर उक्कोसा । विजयाइसु वि जहन्नो इगतीसियराउ तेत्तीसं ॥२२१॥ सव्वविमाणे उण अजहन्नुकोसओ वि तेत्तीसं । एत्तो उण अहिययरं सक्कइ सक्को वि न विहेउं ॥ २२२॥ देवाउपाल वसुहाहिवेण एसा ठिई कया ताव | पयर्डेति नियय-सत्तिं तत्थ असायाइणो वि भडा ||२२३ देवनिकाएसु जओ चउसु बिदाइणो सुरो दसहा । जे के वि संति सुरभव संभवि असमाण- - सुहनिहिणो ॥ २२४॥ सिं वि असायसुडो दुहमसहं देइ जावजीवं पि । ईसाविसायपमुहेण मोहकडगेण जगतो ॥ २२५ ॥
परआणा - करणेणं कस्स वि कस्स वि य परिहव भरेण । कुपरियणं कस्स वि कस्स वि पररिद्धि-दंसणओ ॥२२६॥ कस्स वि च उणं दट्ठूण अत्थणो गब्भवासपडणं च। उप्पायइ दुहमसहं लद्धवयासो असाय- भडो ॥ २२७॥ नवसु वि गेवेज्जेसुं तियसा जे संति तेसिं पाएण । अहमिंदत्तेणं सुहमेवयस्स उदओ जणइ ॥ २२८ ॥ जत्थ पवेसो लब्भइ आणाए चारित्तधम्मरायस्स । देवाणुपुव्वि अभिहाणाए नवरं पओलीए ॥ २२९ ॥ मणुयाणुपुव्वि नामा बीय पओली वि एत्थ अत्थि परँ । तीए विणिग्गमो च्चिय न पवेसो हवइ कस्सा वि ॥ २३०॥ तह जइ वि के विमिच्छत्तमंतिवसवत्तिणो वि इह संति । तह विन तेसि पवेसो जइणपुरावास-विरहेण ॥२३१॥ चारितधम्म- नरवइ - आणं उवघेत्तु भावविरहे । वसिऊणं जइणपुरे पविसंति तहि इहरहा नो ॥२३२॥
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जे पुण सुबोहरायस्स चेव वसवत्तिणो कया पुव्विं । सम्मत्त-अमच्चेणं ते जइणपुरे चिरं ठविउं ॥२३३॥ चारित्तधम्मराएण संगया सम्मभावियप्पाणो । साओदयसुहडेणं सुहिणो कीरति अणवरयं ॥२३४।। किं पुण ठिइक्खएणं तत्तो निव्वासिऊण अणुकमसो । मणुयाउपालरना ते नरनयरीए खिप्पंति ॥२३५।। जे उण पंचोत्तरवरविमाणविणिवासिणोहमिंदसुरा । मिच्छत्तमंतिणा सह संगो वि न तेसि कइया वि ।।२३६।। एत्तो चिय ते संमत्तमंतिसंजोइएहि भावेहि । एगंतेण सुहोदयरूवेहिं तहिं सया सुहिणो ।।२३७|| किं पुण एएसिं पि हु चिरकालाओ वि ठिइक्खओ होइ । तत्तो खिप्पंति इमे वि माणुसीगब्भवासंमि ॥२३८॥ तयणु सुइरं अपाविय-अवयासो इय असाय नाम भडो । लद्धंतरो वियंमभिउमारंभइ किं चि अव्वत्तं ।।२३९।। किं पुण तक्कालपरिपफुरंत संमत्तभावसुहडेहिँ । पायं पसरंतो पडिहम्मइ तेसिं असायभडो ॥२४०॥ जं विजयाईहिंतो चुया सुरा के वि होंति तित्थयरा । केंवि पुण चक्कवट्टी अच्चतसुइन्नपुन्नभरा ||२४१।। के वि हु तत्तो वि चुया जइ वि हु पुरिसा हवंति सामन्त्रा। तह वि हु बहसुहनिहिणो हवंति एक्कावयाराई ॥२४२।। जे उण उवेंति इहइं सव्वट्ठाओ विमाणरयणाओ। ते सव्वे वि मणूसा नूणं एगावयारत्ति ॥२४३।। तेसिं सुहमणवरयं पसरइ जो उण हवेइ दुहलेसो । सो दुद्धसकरारसथाले निवरसतुल्लो ॥२४४।। तह मोहराय कडगे सुहडा जे के वि संति दुद्धरिसा। तेसि वि लीलाए चिय भंजिय माहप्पमवियप्पं ।।२४५|| गंतु सुबोहनरवइविसए चारित्तधम्मरायस्स । आणं आराहेउं सुइरं वच्चंति सिवनयरिं ॥२४६॥
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________________ अह तेसि सिवपुरीए गयाण सयलो वि मोहनरनाहो। कम्मपरिणाम - वसुहाहिवो न प्पहवए किं पि // 247 / / न य दुट्ठकम्मबीया इय ते पुणरवि उवेंति संसारो। चिट्ठति पुणो सासयअणंतसुहसायरगय त्ति ! / 248 // चउसु वि गइनयरीसुं इय न सुहं अत्थि किं पि संसारे / कहियमिणं लेसेण अंतरबहिरंगवयणेहिं // 249 / / वित्थरओ पुण नियमइ विसेसओ बुहयणेण नेयं ति / इय जइ तुमे वि इच्छह भो भविया सासयं सोक्खं / / 250 / / ता मोहरायचक्कं अवियक्कं सयलमवि दलेऊण / आराहिउं चारित्तधम्मरायस्स बलमखिलं // 251 / / गंतूण सिवपुरीए अणुभुंजह सुहसयाई अणवरयं / इच्चाइ बहुवियप्पं जिणवर-वयणं सुणेऊण / / 252 // संजायभवविराओ विहेउ सुत्थं नियस्स रज्जस्स ! गेण्हइ पयावसूरोऽवणिप्पहू चरणमणवज्जं // 253 //