________________
'चंदप्पहचरियं'नी रूपकथा
रूपककथाना बीज प्राचीन भारतीय साहित्यमा उपनिषदो, बौद्ध साहिद अने जैन साहित्यमा उपलब्ध थाय छे. सिद्धर्षि कृत' उपमिति भव प्रपंचा (र. हैं ९६२) ओ जैन साहित्यनी रूपककथा परंपरामां प्राप्त थती प्रथम स्वतंत्र कृति हूँ उत्तरवर्ती साहित्यमां आनुं अनुसरण संस्कृत, प्राकृत अने अपभंश भाषाई कथानाटक अने कव्यना स्वर रूपे थतुं रयुं छे.
प्राकृत साहित्यमा रूपककथा अवांतर कथा लेखे उपलब्ध थाय । वर्धमानसूरि कृत जुगाइ जिणिंद चरियं कषाय कुटुंबनी कथा' देवसूरि कृ पउमप्पहसामि चरियं अंतरंग कथा (संस्कृत भाषामां) अने "कुमारपाळ प्रतिबोधा अपभ्रंश भाषामा मळे छे.
वडगच्छीय श्रीचन्द्रसूरिना शिष्य आचार्य हरिभद्रसूरि पृथ्वीपाल मंत्री अनुरोधथी चोवीस तीर्थंकरोना चरित्रनी रचना करी हती. तेमांथी अत्यारे मात्र च चरित्र काव्यो उपलब्ध छे. ते पैकीमांना ओक चंद्रपभचरित्र (प्रा.)मां उपदेश स्वत्र रूपककथा उपलब्ध थाय छे. जेनुं जे अहीं संपादित करी छे.
२५३ गाथामां रचायेल आ रूपककथामां जैनदर्शनना तत्त्वज्ञान रूपकात्मक रीते रजू करवामां आव्युं छे. जीव केवी रीते शिवपुरीमां पहोंचीने माँ पामी शके तेनुं निरुपण करायुं छे. प्रस्तूत कथामां रुपको परंपरा अनुसार छे. पर धटनाबाहुल्य दृष्टिगोचर थतुं नथी. तेथी कथा रसप्रद बनती नथी. विगतो, प्राच जोवा मळे छे.
आ लोकमां मध्यदेशमां भवचक्रवाल नामर्नु नगर हतुं त्यां महाप्रतापी का परिणाम नामनो राजा हतो. तेनी अनादिभवसंतति अने अकामनिर्जरा नामनी | राणीओ हती. अनादिभवसंततिने ज्ञानावरणीय आदि आठ पुत्रो हतां.
___राजा प्रतिदिन पोताना आठ पुत्रोने सलाह आपता के हे पुत्रो तमे बा सुसमर्थ छो तो कंइक ओवी प्रवृत्ति करो के हमेशा राज्यमा स्थिरता रहे. अने बीर राज्योने जीतीने तेनी सतत रक्षा करता रहो तमारा बधानो दळनायक महामोह असंव्यवहार प्रमुख नगरीनो राजा बनशे. ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी वगेरे अने ताबे है नरकगति प्रमुख नगरीनो स्वामी आयुष्य बनशे. वेदनीय, नाम अने गोत्र तेना सहा बनशे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org