________________
78
मणुयाउ य देवाय रायाणो उण कया वि मिच्छस्स । कइया विहु सम्मस्सिय दुण्हं पि कुणंति अणुयत्तिं ॥६८॥ जे वि हु आउनिवइणो नामाइ नराहिवा महासुहडा । तेसु वि सम्महंसण कयाणुराया धुवं थोवा ॥६९॥ बहुया उ मिच्छदंसण सचिवं चिय मंतिऊण अणवरयं । कज्जेसु पयट्टति ते वि तुह चेव आयत्ता ॥७०॥ ता कस्स वि आसंका न विहेयव्वा तए तणय अहवा । सुसहायवीरियाणं निवईण भवे कुओ संका ॥ ७१ ॥ एवं च सिक्खवेडं पिउणा सो जुवनिवत्तणे ठविरं । पेसविओ य महाबलकलिओ सनिउत्तवावारे ॥७२॥ अह अक्खलियप्पसरो सव्वत्थ वियंभिउं समाढत्तो । तह कह वि जह न आणं लंघइ सो को वि हु कहिं वि ॥ ७३ ॥ एवं च वियंभंतो तमसंववहारपुरजणमसेसं ।
तह कह वि दिट्टिमोहेण मोहिउं कुणइ जह सहसा ||७४ || गयचेयणो व्व मुच्छागओ व्व अवहरियजीविओ व्व सया । न मुणइ सुहं न दुक्खं न फंदए न वि य संचलइ ॥७५॥ किं तु समजीयमरणो समेक्कदेहप्पवेस- निक्कासो । समनीसासूसासो समसमयाहारनीहारो ॥ ७६ ॥
चिट्ठइ सया वि अविहड- सिणेह - भविय- मइव्व अच्चतं । इयरेसिमवियरंतो नियजाईए पवेसं पि ॥७७॥৷ तिरियगईनयरीए जइ वि पहू आउराइणा ठविउं ।
तिरियाऊ सामंता तप्पडिबद्धं च नयरमिणं ॥ ७८ ॥ तह वि नियंतस्स वि से तिरियगईनयरिसंतिओ लोओ । निज्जइ को विकया वि हु कत्तो वि विवक्खिचरडेहिं ॥७९॥ दंसणमोहेण असंववहारपुरंमि पुण तहा विहियं । जह न प्फुरइ कहंचि वि पडिवक्खिय नाममेत्तं पि ॥८०॥ जेवि हु आउ-निवइणो नामाइ - निवाणमवि सुहविवागा । सम्मद्दंसणमणुयत्तंति इमेसिं वि तहिं न गमो ( ? ) ॥८१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org