________________
17
इय तुह अहिलसियत्थोवसाहगाइं इमाई सयलाई । मुणिऊणिमं सकज्जे तुमए वावारियव्वाइं ॥५५॥ किं च इमाणं नवहा हासाई सहयरा महासुहडा । तिव्वासत्तियरे वि हु लोय-वसीयरण-सत्तिजुया ॥५६।। तिय इह मोह-वावरिएहि वावारिय च्चिय हवंति । इय सव्वे चिय एए गुरुसंमाणेण दट्ठव्वा ॥५७।। जो उ महामंडलिओ आउयराओ कओऽम्ह जणएण । सो सच्चविउं असंववहारपुरे बहुजणं अम्ह ॥५८|| निय-पुर-नयणिच्छाए बहुयरमाउट्टिइं न वियरेइ । अंतमुहुत्ताओ उण संहारं कुणइ पुणरुत्तं ।।५९।। जइ वि हु तह वि मए निय उदएणऽन्नत्थ निज्जमाणो सो । तत्थ वि धरिज्जए पुण पुणरवि कारविय उप्पर्ति ॥६०!| न य एवं कीरते मए समुव्वहइ वइरभावं सो। केवलमणंतलोयं इच्छइ काउं सनयरीसु ॥६॥ न य एत्तिएण अम्ह वि तस्सुवरि समत्थि कावि वइरमई ।। जम्हा तन्नयरीसु वि आणाकारी जणो अम्ह ॥२॥
अन्नं च -
पावमइ महामाया मज्झिमगुण-जोग्गया सुहपवत्ती । आउ-निवस्स पियाओ चउरो चत्तारि तासि सुया ॥६३॥ नरयाऊ तिरियाऊ मणुयाउ सुराउणो त्ति जहसंखं । एए कया सपिउणो रायाणो नियय-नयरितु ।।६४॥ एएसु य नरयाऊ मिच्छादसंणअमच्यवसवत्ती। कत्थ वि ढिई न बंधइ तव्विरहे जमिह कइया वि ।।६५।। जे वि हु जलणाइ महासुहडा चारित्तमोह-अंगहा । तेहिं वि समं सिणेहो इमस्स इय भे सहाओ सो ॥६६।। जो उण तिरियाउ महानराहिवो सो वि इह सहावेण । बहु मिच्छत्तणुजाई कया वि सासायणरुई वि ॥६७॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org