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अनेक दुर्घटनाओमाथी सर्जायेली घटना
एटले हरिवल्लभ भायाणी घरमा हाल्लां कुस्ती करतां होय एवी दारुण गरीबीमां पण दिवसरात महेनत करीने संस्कृतना सातेय विषय साथे बी.ए.मां फर्स्ट क्लास आवेला तेजस्वी विद्यार्थीने आगळ भणवानी धगश होय, परंतु फी भरवा माटेनी रकमनो बंदोबस्त थई शके तेम न होय तो एवा संजोगोमा बिच्चारा विद्यार्थीनी हालत केवी थाय ?
भावनगरनी कोलेजमां आर्ट्सना छेल्ला वर्षमां अभ्यास करता ए विद्यार्थीनी आर्थिक परिस्थिति पहेलेथी ज घणी नबळी कही शकाय तेवी हती. बे टंकनुं मांड मांड पूरुं थतुं होय तेवा कपरा संजोगोमा भणवाना खर्चा तो केमे करीने परवडे तेम नहोता. छतां भणवामां आ पहेलेथी ज होशियार हतो एटले नानीमोटी स्कोलरशिप मळी रहेती. उपरांत कोलेजना समय पछी ए ट्युशन करतो, एथी थोडीघणी आवक पण थई जती. एने लीधे भणवानुय थतुं अने घरखर्चनुं गाडु पण गबडतुं. आ रीते ताणीतूसीने बे छेडा भेगा करतां करतां ज ए विद्यार्थीओ बी.ए.नी डिग्री मेळवी लीधी.
हवे आ विद्यार्थी मुंबई जईने आगळ भणवा मागतो हतो, परंतु भणवा माटेनी जरूरी रकमनी सगवड थई शके तेम नहोतुं. मुंबईमा स्कोलरशिपनी जोगवाई क्याथी करवी ए एक सवाल हतो. वळी फी भरवा माटेनी रकम केवी रीते ऊभी करवी ए बीजो सवाल हतो. विद्यार्थी मूंझाई गयो. आखरे खूब विचार कर्या पछी एणे एक रस्तो शोधी काढ्यो : 'हुं मुंबईमां नोकरी करीश अने आगळ' भणीश.'
___ ए जुलाई महिनो हतो. परीक्षानुं परिणाम जाहेर थया पछी पहेली ट्रेन पकडीने हुँ मुंबई रहता मामाने घेर पहोंची गयो.' संस्कृत, प्राकृत, अर्धमागधी अने अपभ्रंश जेवी भाषाओना विद्वान .तथा मोटा गजाना साहित्यकार हरिवल्लभ भायाणी जीवनना उत्तरार्धने आरे आवीने ऊभा छे त्यारे जीवनपूर्वार्धनी कथामांडणी करी रह्या छे. एंसी वर्षनी उंमरना आ विद्वान आजथी लगभग
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248 साठ वर्ष पहेलांना संघर्षना दिवसोनी वात करे छे त्यारे नजर समक्ष एक चित्र खडं थई जाय छे : 'मुंबई आव्या पछी शिक्षक तरीकेनी नोकरी मेळववा माटे में जुदी जुदी शाळाओनां चक्कर कापवानुं शरू करी दीधुं. दरेक शाळाना प्रिन्सिपालने बी.ए.नी डिग्री बतावीने हुं एक ज सवाल पूछतो के तमारे त्यां नोकरी मळी शकशे ?'
संस्कृतमां फर्स्ट क्लास होवाथी को'क शाळामां तो नोकरी मळी ज रहेशे एवी हरिवल्लभनी दृढ मान्यता हती. परंतु एमर्नु नसीब बे डगला आगळ
कमूरतांमां क्रांतिकारी ढबे लग्न 'दीकरा, हवे तुं लग्न करी ले....'
दादीमाए आ शब्दो कह्या एटले बत्रीस वर्ष पूरा करीने ३३मा वर्षमा प्रवेशी चूकेला हरिवल्लभे मनोमन निर्णय करी लीधो : 'कोइ सारी, संस्कारी छोकरी जोईने थोडा ज वखतमां लग्न करी लईश....'
__ दरमियानमां गुलाबदास ब्रोकरना मोटाभाईए एक परिचित कुटुंबनी सुशील कन्या विशे वात करी. हरिवल्लभने ए छोकरी गमी गई. १९५०नी सालमां हरिवल्लभ अने चंद्रकळा विवाहना बंधनमां बंधाई गया.
ए लग्न एक रीते क्रांतिकारी ज हतां. आ विशे भायाणीदादा कहे छे : ' में लग्न बाबतमां बधा ज सुधारा कर्या. कंकोतरी छपावी नहीं. शुकन अंगेनी प्रचलित मान्यताओनुं खंडन कर्यु. लग्न करवा मकरसंक्रांतिना आगला दिवसे एटले कमूरतांमां पोरबंदर गयो. त्रणनो आंकडो अपशुकनियाळ गणाय, सारां काममांत्रण व्यक्ति ना जाय, पण लग्न करवा हुं, मामा अने एक कुटुंबी एम त्रण जण गया.'
लग्नमां चाल्लो पण लीधो नहोतो. लग्न पछी आजुबाजुनां चारपांच धरोमां पांच पांच पेंडा वहेंची लीधा. आवं करवामां प्रतिष्ठानो प्रश्न नड्यो नहीं.
आ रीते लग्न कर्यां पछीनां ४६ वर्ष बाद आजे भायाणी दंपतीने कोई विघ्नो नड्यां नथी. लग्न विशेनी प्रचलित मान्यताओ पायाविहोणी | होवानो आनाथी मोटो पुरावो शो होई शके ?
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249 ज हतुं.... मुंबईमां जून महिनामां शाळाओ खूली जती होय एटले स्वाभाविक ज शिक्षकोनी भरती तो अगाउथी ज थई गई होय. एथी जुलाई महिनामां तो एकेय शाळामां शिक्षकनी जग्या खाली होवानी शक्यता नहोती. एमणे तो आशाना मिनारा बांधीने केटकेटली शाळानां पगथियां घसी नाख्या. पण दरेक ठेकाणेथी एक ज जवाब मळ्यो : 'अमारे त्यां न तो जग्या छे, न तो नोकरी.....'
__ अंगतोनो संबंध तरतां बे काष्ठ जेवो
अवारनवार पत्र लखता लंगोटिया मित्रने प्रत्युत्तर पाठववानी इच्छा | होवा छतां कामनी अत्यंत व्यस्तताने कारणे पत्र लखवानी फुरसद ज न | मळे तो केवी परिस्थिति सर्जाय ?
हरिवल्लभ अने नंदलाल.... बन्ने बाळपणना भेरु. घनिष्ठ मित्रो. मोटा थया पछी बन्ने पोतपोतानां काममां पडी गया.हरिवल्लभ अमदावादमां अने नंदलाल भावनगरमां... एक बीजाने मळवा, ओछु थई गयु. छतां बने जिगरजान मित्रो पत्रव्यवहार द्वारा एकमेकना संपर्कमा रहेता.
'एक वार एवं बन्यु के नंदलाले उपराउपरी त्रण-चार पत्रो लखी नाख्या. पण मने जवाब लखवानी फुरसद मळी ज नहीं. छेवटे नंदलाले एक पोस्टकार्ड मोकली आप्यु, एमां संस्कृतनी मात्र चार पंक्ति ज लखेली हती'. आजे नंदलाल तो हयात नथी, परंतु हरिवल्लभने हजु पण ए पंक्तिओ याद छे :
यथा काष्ठम् च काष्ठम् च समेयाताम् महोदधौ समेत्य च व्यपेयातां तथा भूतसमागमः ॥
'आ श्लोक लख्या पछी अक प्रश्नार्थचिह्न मुकायेलुं हतुं.' आम कहीने हरिवल्लभ आ श्लोकनो अर्थ समजावे छे : 'जेम समुद्रमां एक लाकडं तरतुं होय ने बीजुं लाकडु तरतुं होय ए क्यांक भेगां थाय ने पछी | छूटयं पडी जाय तेम शुं माणसोनो संबंध आम ज रहेशे ?'
आ पत्र मळ्या पछी हरिवल्लभने एटलो अफसोस थयो के तरत | | ज कागळ-कलम लईने बेसी गया अने जवाब लखी नाख्यो.
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250 'दरेक जग्याएथी ननैयो सांभळ्या पछी मारी आशाना मिनारा कडडडभूस थई गया. हुं निराश थई गयो. मने थयुं के मुंबई आवीने में बहु मोटी भूल करी.' अमदावादना सेटेलाईट रोड पर आवेली वीमानगर कोलोनीमां एक नानकडा बंगलामा रहेता भायाणी दीवालने अडीने गोठवेली खाट पर बेसीने को क विद्यार्थीनो प्राकृत भाषामां लखायेलो महानिबंध तपासी रह्या छे. 'समकालीन' साथे वातचीत करती वखते ते महानिबंध एक बाजुए मूकी दे छे. पछी माथा परना संपूर्ण सफेद थई गयेला वाळमां हाथ फेरवी लईने कथानो दोर सांधी ले छे : 'मारे विद्याभ्यास तो करवो ज हतो. परंतु नोकरी- ठेकाणुं पड्युं नहीं एटले नाणाकीय सगवड करवानो सवाल तो ऊभो ज हतो. हुं नासीपास थई गयो. एक तरफ मने लाग्यु के भणवानी इच्छा अधूरी रही जशे अने बीजी तरफ रही रहीने अवो ज विचार आवतो हतो के भविष्यमां घोर अंधकार छवाई गयो.'
हवे हरिवल्लभ सामे बे विकल्प हता : मुंबईमां रहीने नोकरीनी शोध कर्या करवी अथवा तो बिस्तरापोटलां समेटी लईने भावनगर पाछा फरी जवं. हरिवल्लभ आ बेमांथी कयो विकल्प पसंद करवो अनी द्विधामा हता ए दरमियान एक मित्र मळवा आव्यो. हरिवल्लभ साथेनी वातचीत दरमियान ओमनी आर्थिक संकडामण विशे जाणी लीधी पछी मित्रे साची सलाह आपी.
भारतीय विद्याभवनमां कनैयालाल मुनशीने मळो ने..... ओ तो. तेजस्वी विद्यार्थीओने स्कोलरशिप आपे छे.'
'मुनशीजी तो केवडा मोट्टा माणस छे... अमने मळवा केवी रीते जवाय ?"
"पण एक वार मळी लेवामां शो वांधो छ ? बहु बहु तो ओ ना पाडी देशे. कंई मारी तो नहीं नाखे ने ?' ।
मित्रनी सलाह मात्र सलाह ज नहोती, अंधारामांथी अजवाळा तरफ लई जतुं आशानुं छेल्लु किरण हतुं. कदाच अटले ज मित्रे आपेली शीखना शब्दो हरिवल्लभने गळे ऊतरी गया. ओमणे मुनशीजीने मळवानो निर्णय करी लीधो. जो के मुनशीजी जेवा विद्वानने मळवा पहेलेथी अपोईन्टमेन्ट लेवी जोईए ओवी कोठासूझ अमनामां नहोती. अटले अगाउथी कहेवडाव्या विना
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251 ज ओक सवारे आठ वाग्ये हरिवल्लभ मुनशीजीना घेर पहोंची गया. ओमणे घंटडी वगाडी. थोडी ज वारमा नोकरे बारणुं उघाड्युं.
___ 'मारे मुनशीजीने मळवू छे....' हरिवल्लभना अवाजमां अचकाट हतो.
_ 'साहेब तो सूता छे. तमे अडधो कलाक रहीने आवजो.' आम कहीने नोकरे कमाड वासी दीधां.
हरिवल्लभ आ जवाब सांभळीने हताश थई गया, परंतु हिंमत हार्या नहीं. मुनशीजीने मळीने ज पाछा जवू अवो दृढ निश्चय एमणे करेलो एटले थोडा समय पछी फरीथी आववानो निर्णय कर्यो. पण सवाल ओ हतो के त्यां सुधी समय केवी रीते पसार करवो ?
.....त्यारे मुंबईमां हेंगिंग गार्डन घणुं जाणीतुं हां.' हरिवल्लभ भायाणीनी जीवनकथामां एक पछी एक दृश्यो उमेरातां जाय छे. आ दृश्यो विशे वात करी रहेला भायाणी अनुसंधाननुं संधाण करे छे : 'अ उद्यान मुनशीजीना घरनी नजीक ज हतुं, अटले हुं तो त्यां पहोंची गयो. लगभग पांत्रीस मिनिट सुधी त्यां लटार मार्या पछी मुनशीजीना घेर पाछा फरवा में पग उपाड्या.'
हरिवल्लभ हेंगिग गार्डनथी मुनशीजीना घर तरफ पगला पाडी रह्या हता त्यारे अमना मनमां सतत फफडाट हतो के कोई पण जातनी
ओळखाणपिछाण न होवाने लीधे मुनशीजीना घेरथी खाली हाथे तो पाछा नहीं फरवू पडे ने ?
'दिलमां एक प्रकारना डर साथे फरी एक वार हुं मुनशीजीना घरमां दाखल थयो, परंतु अमणे प्रेमाळ आवकार आप्यो अटले मारा मनमा पेसेली फडक दूर थई गई.' संस्कृत विद्वान, नर्मद सुवर्णचंद्रक अने नरसिंह महेता साहित्यिक पुरस्कार जेवां अनेक सन्मानोथी पुरस्कृत हरिवल्लभ भायाणी मुनशीजी साथेनी पहेली मुलाकातनुं वर्णन करी रह्या छ : 'हुं फरीथी गयो त्यारे मुनशीजी अने अमनां पत्नी चापाणी करी रह्यां हतां. ओमणे मने जोयो त्यारे कोई पण ओळखाण न होवा छतां प्रेमथी आवकार आपीने बेसाड्यो.'
त्यार पछी कनैयालाल मुनशी अने हरिवल्लभ भायाणी वच्चे आ प्रकारनो संवाद थयो.
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252 'बोलो, शुं कामे आव्या छो....' मुनशीजी सीधा ज मुद्दा पर आवी
गया.
'हुँ भावनगरथी आव्यो छु. संस्कृतना विषय साथे बी.ओ.मां फर्स्ट क्लास आव्यो छु. आगळ भणवानी इच्छा छ, पण पैसानी तंगी....' हरिवल्लभे एक ज श्वासे आगमन- प्रयोजन जणावी दीg.
'तमने स्कोलरशिप अने नोकरी बन्ने मळी जशे.' मुनशीजीओ हरिवल्लभना माथा परथी पहाड जेवडो भार हळवो करी दीधो.
कनैयालाल मुनशीना अेक ज वाक्यथी हरिवल्लभना डगमगता पग स्थिर थई गया. महुवाना तेजस्वी छोकराने जाणे के मुंबईमां रहेवानी स्वीकृति मळी गई. पचास रूपियानी स्कोलरशिप, भारतीय विद्याभवनमां लेक्चररनी नोकरी, अंधेरीमा रहेवार्नु अने आगळ भणवायूँ... दारुण गरीबीमां ऊछरेला एक तेजस्वी विद्यार्थीने आनाथी वधुं शुं जोईए ?
'हुं बे पीरियड लेक्चर लेतो अने बाकीना समयमां भरातीय विद्याभवननी लाईब्रेरीमां बेसीने अभ्यास करतो.' अहीं सुधी कहीने हरिवल्लभ भायाणी सहेज अटके छे. पछी लाईब्रेरीनी समृद्धि विशे वात आगळ वधारे छे. 'ते समयमां मुनशीजीओ कलकत्ताना अक गृहस्थ पासेथी पचास हजार रूपियामां रेफरन्स लाईब्रेरी खरीदी लीधेली. अम.ओ.नु भणतो हतो त्यारे अने त्यार पछी पण में ए लाईब्रेरीनो घणो ज लाभ लीधो. ए लायब्रेरीमां बेसीने ज में संस्कृत, प्राकृत, अर्धमागधी, वेदान्त अने ब्राह्मण परंपरानां भाष्योनो अभ्यास कर्यो.'
भारतीय विद्याभवनमा एम.ए.ना अभ्यासकाळ दरमियान हरिवल्लभना जीवनने नवो वळांक, नवी दिशा मळी. अेक संस्था जेटलुं काम करता जीवताजागता ज्ञानकोश समा मुनशीजीना ज्ञाननो लाभ तो अमने मळ्यो ज. उपरांत प्राकृत भाषाना विद्वान जैन मुनि जिनविजयजी साथे संपर्क थयो. बन्ने विद्वानोना मार्गदर्शन अने पोतानी महेनतने कारणे हरिवल्लभ अम.ओ.मां फर्स्ट क्लास फर्स्ट आव्या.
_ 'अम.ओ. कर्या पछी संस्कृत साथे पीएच.डी. करवानो विचार करेलो पण मुनि जिनविजयजी साथे काम करवाना प्रबळ मोहने लीधे में
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प्राकृतमां ज पीएच. डी. करवानों निर्णय करी लीधो.' जैन मुनि साथे काम करवानी तक मळवाने कारणे हरिवल्लभ भायाणी धन्यता अनुभवे छे. ते कहे छे: 'मुनि जिनविजयजी साथेना संपर्कने लीधे ज मारो अपभ्रंश अने जैन परंपरानो अभ्यास थयो. मने जैन परंपरामां रस पड्यो ओटले अ ज विषयमां पीएच.डी. करवानुं नक्की करी लीधुं.
हरिवल्लभ तेजस्वी हता, छतां पीएच. डी. करती वखते एक मुश्केली अमने नडी. ओमने माटे जरूरी होय तेवा संदर्भग्रंथो भारतीय भाषामा नहोता. परंतु जर्मन भाषामां ते विषय पर सारुं अवुं काम थयुं हतुं, ओटले हरिवल्लभ जर्मन भाषा शीखी गया. ओमणे सेकन्डहेन्ड जर्मन डिक्शनरी पण वसावी लोधी, जेथी भाषा समजवामां मुश्केली पडे नहीं. थोडा ज समयमां अ कामचलाउ जर्मन भाषा शीखी गया. भायाणीदादा कहे छे : 'पहेलां हुं आ ज रीते लेटिन भाषा शीखेलो. आ वखते जर्मन शीखी लीधुं.' दिवसरात अक कर्या पछी, खूब महेनत कर्यो पछी ओमने पीएच. डी. नी डिग्री मळी गई.
हरिवल्लभ पीएच.डी. करता हता ते दिवसोमां बे घटना बनी गई. ओक तो ओमनो पगार वध्यो अने ए दादीमा पोतीमाने महुवाथी मुंबई लई आव्या. आ संदर्भमां वात करतां तेओ कहे छे : 'अगाउ तो हुं खप पूरता पैसा राखी लईने बाकीनी रकम महुवामां दादीमाने मोकली आपतो, परंतु पगार वधीने त्रणसो रूपिया थया पछी में विलेपार्लेमां रूम भाडे राखी लोधी. आ रीते पैसा अने जग्या बन्नेनी सगवड थवाथी हुं दादीमाने मुंबई, मारी पासे लई आव्यो.'
अत्यार सुधी हरिवल्लभ साव एकला हता, ओटले लोजमांथी टिफिन मगावी लईने भोजनने प्रबंध करता हता. परंतु दादीमा मुंबई आव्यां पछी हरिवल्लभे अभ्यास करवो पडतो अने उपरथी रसोई पण करवी पडती. आ विधानना अनुसंधानमां तेओ कहे छे : 'अगाउ एक वार गाये दादीमाने वगाडेलुं अथी अमने हाथे कायमनी खोड रही गयेली. अ काम तो करी ज शकतां नहोतां. एमांय मोटी उमरने लीधे आंखे अंधापो आवी गयेलो अने अमना दांत पण नहोता, ओटले जमवानो प्रश्न ऊभो थयो शरुशरुमां तो लोजनुं भानुं ज मगाव्ये राख्युं, पण भातना दाणा कठण रही जता होवाथी
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254 दादीमा बोखा मोढे ओ चावी शकतां नहीं. अटले लोजर्नु भाणुं बंध करीने एकाद महिनो रसोयो राखी जोयो, पण एय फाव्युं नहीं. अथी में ज बन्ने टंकनी रसोई बनाववानुं नक्की करी लीधुं.'
हरिवल्लभने पहेलेथी ज कोई काम करवानी आळस नहीं. रसोई करवामां आमने न तो कंटाळो आवतो, न तो शरम आवती.... तेओ कहे छे : 'मने नानपणथी ज हाथे काम करवानी टेव हती. त्यारे तो हुं कूवामांथी पाणी सींचतो, सवारे नदीओ जईने कपडां धोई नाखतो अने बीजां नानांमोटां घरकाम पण करतो. ओ वखते में रसोडा, काम तो नहोतुं कर्यु, पण दादीमाने चूलो फूंकतां अने रसोई करतां जोतो खरो.'
बाल्यावस्थामां जाणेअजाणे हरिवल्लभे करेलुं आ निरीक्षण युवावस्थामां ओमने काम लागी गयुं. जो के अमणे चूलो तो नहोतो फूंकवो पड्यो पण लांबा समय सुधी सगडी पेटाववी पडेली. तेओ कहे छे : 'मुंबईमां तो मारे त्यां स्टव हतो अटले रसोई करवामां झाझी माथाकूट थती नहोती, पण युद्धना दिवसोमां केरोसीननी घणी तंगी हती. बजारमा केरोसीन मळतुं नहोतुं. केरोसीन वगर स्टव केवी रीते पेटाववो ? में सगडी पेटाववानुं शरु करी दोधुं. केरोसीनमां पलाळेली काकडी मूकीने सगडी सळगावतो अने दाळचोखानुं आंधण चडावी देतो.'
अत्यारे तो प्रेशर कूकरनी सगवड छे अटले दाळचोखा झटपट रांधी शकाय छे, परंतु ते समये कूकर नहोता. छतां समयनी बचत करवा हरिवल्लभ ओकसाथे ज दाळचोखा चडावी देता. पाककळामां निष्णात बनी गयेला हरिवल्लभ रसोईना कीमियाओ विशे वात करी रह्या छ : 'हुँ एक तपेलीमां दाळ अने बीजी तपेलीमां चोखा मूकी देतो. पछी बन्ने तपेली एक पर एक रहे ते रीते सगडी पर एक साथे गोठवी देतो.' सगडी पर दाळचोखा चडतां तो सहेजे कलाक नीकळी जाय. अटले त्यां सुधी | करवू ?
___....त्यां सुधी हुं फरवा नीकळी जतो.' आम कहीने हरिवल्लभ भायाणी अतीतमां सरी जाय छे : 'मुंबईमां गुलाबदास ब्रोकर, मनसुखलाल झवेरी अने अमृतलाल याज्ञिक जेवा मारा मित्रो हता. हुं एमनी साथे जुहु सुधी फरवा जतो. क्यारेक गोकळीबाई स्कूलना मेदानमां अमे वोलीबोल
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255 रमता. आ रीते अकथी दोढ कलाक सुधी समय पसार करीने घेर पाछो आवं त्यां सुधीमां दाळचोखा रंधाई जतां. पछी रोटलीशाक बनावतो. क्यारेक फरसाण पण बनावतो अने दादीमाने जमाडीने अगियार वाग्ये घेरथी नीकळी दतो. पछी सांजे घेर पाछो आवं अटले पहेला रसोई बनावतो अने दादीमाने जमाडी देतो.'
एक जुवान मात्र अनां दादीमा बे समय, भाणुं साचववा माटे जाते पोते रसोई करे ए वात सांभळीने ज मारातमारा जेवाने नवाई लागे. परंतु हरिवल्लभने तो एमां जराय नवाई लागती नथी. तेओ कहे छे : 'पहेलेथी ज दादीमानुं मारा सिवाय अने मारुं दादीमा सिवाय कोई नहोतुं. दादीमाए मने संभाळवा माटे आखी जिंदगी वैतरुं कर्यु होय तो हुं शुं अमर्नु बे टंकनुं भाणुं न साचवी शकुं ?'
___दादीमानी वात करतां करतां भायाणीदादानी आंखमा झळझळियां बाझी जाय छे. अमनो अवाज लागणीसभर बनी जाय छ :
'मारा दादीमाए तो आखी जिंदगी ढसरडो ज करेलो.... बार वर्षनी उंमरे अमना लग्न थयां. तेरमा वर्षे मारा पिता चुनीलालनो जन्म थयो अने १४ मा वर्षे तो दादीमा विधवा थईगयां. एक तो काची उंमर, आंगळीए एक वर्षतुं बाळक ने उपरथी वैधव्यनो बोज... आवा कपरा संजोगोमां सुरक्षित रीते जीववा माटे दादीमा अमना पियर महुवा आवी गयां. दादीमान पियर साधारण स्थितिनुं हतुं. दोढसो वर्ष जूनुं त्रण माळ, मकान हतुं. दादीमा अमना दीकरा साथे ए मकानमां बीजे माळे रहेता. अ परोढिये पांच वाग्ये ऊठीने दळणां दळतां, पाणी भरतां, वासीदुं वाळतां अने बीजां घरकाम करतां. सवारथी रात सुधी काम करीने ए पथारीमां पडतां त्यारे दीकरा चुनीलालनु मोदूं जोईने एमनो बधो ज थाक ऊतरी जतो : 'आ दीकरो ज तो मारा घडपणनो एकमात्र सहारो छे.' .
एक पछी एक दिवसो पसार थवा लाग्या. दादीमानो दीको चुनीलाल जुवान थई गयो. दादीमाओ एने परणाव्यो. परंतु एक दीकरीनो जन्म थया पछी चुनीलालनां पत्नीनु अवसान थयुं, एटले दादीमाए गंगा नामनी सुंदर स्त्री साथे चुनीलालना पुनः विवाह कर्या. थोडा ज वखतमां गंगानो खोळो भरायो.
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दादीमाना तो जाणे सुखना दिवसो आवी गया.
'१९१७नी २६मी मेना दिवसे वैष्णव कुटुंबमां मारो जन्म थयो. ' हरिवल्लभ भायाणी पोताना जन्म साथे जोडायेली घटना विशे बात करी रह्या छे : 'घरमां दीकरानो जन्म थवाथी स्वाभाविक ज अमारा नाना कुटुंबमां खुशाली व्यापी गई, परंतु अ खुशी लांबो समय टकी नहीं. मारी एक वर्षनी उमरे मारा मातापिता मृत्यु पाम्यां अने अमारा उछेरनो बोज दादीमा पर आवी पड्यो. '
'पहेलां पतिनुं मृत्यु पछी नजर सामे ज जुवानजोध दीकरा - वहुनुं मृत्यु अने बे बाळकोना उछेरनी जवाबदारी.... दादीमा पर तो दुःखना डुंगरा खडकाईगया, परंतु ईश्वरमां अमने दृढ श्रद्धा हती एटले बधुं दुःख समताथी जीवी गयां. ए हमेशां कहेतां : 'जीवनमां सुखदुःख अने तडकीछांयडी तो आव्या ज करे छे. आपणे गया भवमां कोईनुं खराब कर्तुं हशे एटले आ भवमां भोगववानुं छे.'
'दादीमा पासेथी मने जीवन जीववाना घणा पाठ शीखवा मळ्या. ए खूब स्वमानी हतां अने क्यारेय कोईनी आगळ हाथ लांबो करतां नहीं. ' भायाणीदादा ते समयनी गरीबाई विशे वात करी रह्या छे : 'दादीमा पहेलेथी ज करकसर करीने जीवतां ते हंमेशां कहेतां के रूपियो होय तो आठ आना खरचो... मारा पितानां मृत्यु पछी ओमना वीमाना पांचसो रूपिया मळ्या हता. मां त्रणसो उमेरीने दादीमाए आठ टकाना व्याजे आठसो रूपिया मूकेला. व्याजनी रकममां मामा तरफथी मळता पच्चीस रूपिया उमेराता. ते उपरांत दादीमा जातमहेनतथी कमाईने अमारुं भरणपोषण करतां हतां.'
दरमियान दादीमा पर फरी एक वार आभ तूटी पड्यं. ते विशे भायाणीदादा कहे छे : 'मारी पांच वर्षनी उमरे मने अने मारी बहेनने उटांटियानी बीमारी थई. ओमां मारी बहेन गुजरी गई अने हुं बची गयो. '
दादीमानी हयातीमां पौत्रीनुं मृत्यु थाय तो दादीमाना दिल पर केवो आघात लागे ? कठण काळजानां दादीमा आ दुःख पण जीरवी गयां. बाळ हरिवल्लभना हसता चहेरा सामे जोईने ओमणे मन वाळी लीधुं : 'हवे तो एकना एक पौत्रने भणावी गणावीने जीवनमां आगळ वधारवो छे.... '
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257 'महुवानी प्राइमरी शाळामां ११ आना फी हती. ओ वखते एक आनो पण खर्ची शकवानी त्रेवड नहोती छतां दादीमाए मने भणवा मुकेलो...' आम कहेतां कहेता हरिवल्लभनी नजर समक्ष शाळाजीवननां दृश्यो तरवरी ऊठे छे : 'हुँ शाळामां हतो त्यारे विद्यार्थीओने हृदयथी चाहे तेवा गुरुओ मळ्या. विद्यार्थीओमां सद्गुणो खीले ए माटे तेओ जाग्रत हता. आवा गुरुओना संपर्कमा रहेवा सद्भाग्य मळ्यु. परिणामे पहेलेथी ज चारित्र्य घडतर थयु.'
____ हरिवल्लभ भायाणी चरित्रघडतरनी वात करे छे त्यारे एक ब्राह्मण गुरुनां संस्मरणो ताजां थाय छे : 'ज्ञानविजय नामना ब्राह्मण अमना घेर पुस्तको राखता. महिनानी एक आनो फी लईने ते दर शनिवारे बाळकोने घेर बोलावता, बालजीवन अने बालसखा जेवां सामयिको वांचवा आपता अने सद्गुणपोथीमां नोंध करावता.'
सद्गुणपोथी आम तो एक नोटबुक ज हती. आ नोटबुकमां अठवाडियाना वार प्रमाणे खानां पाडेलां. दरेक बाळके आ खानांओमां साचेसाची नोंध लखवी पडती. दा.त. दिवसमां केटली वार जूलु बोल्या, केटला अपशब्दो बोल्या, चा केटली वार पीधी....
___ 'ओ जमानामां चा पीवी एय अवगुण गणातो...' आम कहीने भायाणीदादा उमेरे छे: 'ते समयमां तो चानी विरुद्धमां रीतसरनी चळवळ चालती. होळीना दिवसे लोको सरघरस काढता, जे गाम आख्खामां फरीने 'चा छोडो'ना सूत्रोच्चार करतुं.' . बाळपणना आवा अनुभवो उपरांत सारा साहित्यना वांचने पण
चरित्रनिर्माणमां मदद करी. हरिवल्लभ कहे छे : 'मने पहेलेथी ज वांचननो शोख हतो. हुं नवरो पहुं त्यारे पुस्तक लईने बेसी जतो. एक वार एक मित्र ज्योतीन्द्र दवे- 'अमे बधां' नामनुं पुस्तक लई आवेलो. मने याद छे के शाळामां रिसेस दरमियान टुकडे टुकड़े में ए पुस्तक वांचेखें.'
हरिवल्लभनी वांचनभूख तो त्यार पछी पण संतोषाती ज रही. आ संदर्भमां वात करतां तेओ कहे छे : 'अमारा महुवामां एक लायब्रेरी हती. एमां लवाजम भरवू पडतुं. पण लाइब्रेरीयन बाजुमां ज रहेता एटले लवाजम विना ज वांचवानी सगवड मळी गई. बाळपणमां ज रमणलाल देसाईनी
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सामाजिक नवलकथाओ, कनैयालाल मुनशीनी पाटणनी प्रभुता, गुजरातनो नाथ, गोवर्धनराम त्रिपाठीकृत सरस्वतीचंद्र उपरांत बंगाळीमांथी भाषांतर थयेलुं कृष्णनुं जीवनचरित्र वांचवानी तक सांपडी. परिणामे जीवनने एक नवी दृष्टि मळी. '
साहित्यना वांचन अने स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस तथा महात्मा गांधी जेवा महापुरुषोना जीवनथी प्रेरित थयेला हरिवल्लभने खादी पहेरवानी टेव पडी. एमनामां स्वावलंबनना गुणो केळवाता गया.
'ए ज अरसा दरमियान संस्कृत भाषा शीखवानुं शरु थयुं.' हरिवल्लभ भायाणी पासे बाळपणना प्रसंगोनुं खूटे नहीं तेटलुं भाधुं छे. तेओ कहे छे : 'मने संस्कृतमां पहेलेथी ज रस हतो. ओमां एक ब्राह्मण गुरु मळी गया. अमणे संस्कृतनां रूपो गोखावीने व्याकरण पाकुं कराव्युं, एटले संस्कृत पहेलेथी ज पाकुं थई गयुं.'
हरिवल्लभ भायाणी संस्कृत विशे वात करे छे त्यारे अनायास ज नंदलाल नामनो मित्र याद आवी जाय छे. आ मित्र विशे वात करतां तेओ कहे छे : 'नंदलालनं संस्कृत अटले सारं हतुं के रजानी चिठ्ठी पण ते संस्कृतमां लखतो. एक वार अनुं माधुं दुःखतुं हतुं त्यारे एणे संस्कृतमां रजाचिठ्ठी लखी के, 'बलवती शिरोवेदना मां बाधते अतः अहं शालायां आगंतुं न शक्तोस्मि' अर्थात् माथु दुःखवाने लीधे हुं शाळामां आवी शकुं तेम नथी. '
आ नंदलालना आग्रहने वश थईने ज हरिवल्लभे मेट्रिकमां संस्कृतनो विषय लीधो. ते समयमां मेट्रिकनां अभ्यासक्रममां संस्कृतनुं धोरण बाणकादंबरीनी कक्षानुं हतुं. एटले जो संस्कृत एकदम पाक्कुं होय तो ज सारा मार्क्स मळे, नहींतर पछी गया कामथी.....
'ए वखते अमने एक विद्वान जैन मुनिनो परिचय थयो. ' भायाणीसाहेब जीवनमां मळेली सुंदर तक विशे बात करी रह्या छे : 'ए मुनिने संस्कृतनुं ऊंडुं ज्ञान हतुं ए महाज्ञानी हता. एथी अमना ज्ञान, ओमनी विद्वत्तानो लाभ लेवा माटे अमे रोजेरोज रिसेसमां अमनी पासे जता. एक ज महिनामां नंदलाल अने हुं दशकुमारचरित शीखी गया. '
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259 मेट्रिकनी परीक्षामां आ ज दशकुमारचरितनुं ज्ञान जाणेअजाणे काम आवी गयु. आ संदर्भमां वात करतां भायाणीदादा कहे छे : 'संस्कृतमां अनुवाद करवानो हतो. आ सवाल माटे संस्कृतना कोई पण ग्रंथमांथी संदर्भ लेवानी परीक्षकने छूट हती. परंतु योगानुयोग तो जुओ. परीक्षके दशकुमार चरितमांथी ज एक फकरा- अंग्रेजी रूपांतर करीने अने सवाल तरीके मूक्यो हतो अने अमारे ए ज फकरा, संस्कृतमां भाषांतर करवानुं हतुं.'
परीक्षामां पुछायेला फकरामां एक शब्द हतो, स्ट्रोनग पोइझन....अर्थात उग्र झेर. हवे जो आ शब्दनो संस्कृतमां अनुवाद करवानो होय तो पोइझन एटले विष थाय. परंतु स्ट्रोन्ग पोइझननो संस्कृत अनुवाद शो थतो हशे ?
_ 'अमे तो जैन मुनि पासे दशकुमारचरित शीखेला ओटले मने अनुवाद करवामां मूंझवण थई नहीं.' आम कहीने भायाणीदादा उमेरे छे: 'मने बराबर याद हतुं के उग्र झेर एटले उल्बणं विषम्... में तो फकरानो बराबर अनुवाद को. परिणामे संस्कृतमां मने सोमांथी ८२ मार्क्स मळ्या. अने पछी तो आठ रूपियानी स्कॉलरशिप पण मळी.'
जोके एकाद वर्षमां ज स्कोलरशिप मळती बंध थई गई. आ विशे वात करतां हरिवल्लभ भायाणी कहे छे : 'मेट्रिक पछी बीजा मित्रोए सायन्स लीधुं एटले में पण ए ज शाखामा प्रवेश लीधो. परंतु विज्ञानना विषयोमां रस पडतो नहीं. बहारनुं वांचन वधु करतो एटले परीक्षामा ध्यान आपी शक्यो नहीं. परिणामे नापास थयो अने स्कोलरशिप मळती बंध थई गई.'
एकवार नापास थयेला हरिवल्लभे नासीपास थया विना ज्ञातिनी स्कॉलरशिप माटे अरजी करी. अरजी मंजूर थई गई एटले भावनगरनी कोलेजमां एमणे आसमां एडमिशन लई लीधुं. त्यार पछी संस्कृतना विषय साथे बी.ए. कर्यु अने मुंबई आवीने एम.ओ., पीएच.डी. कर्यु.
१९५१नी सालमां पीएच.डी. कर्या पछी बराबर त्रण वर्ष बाद हरिवल्लभ भायाणीनुं 'वाग्व्यापार' नामनुं पुस्तक प्रगट थयु. १९५४नी सालमां प्रसिद्ध थयेला आ भाषाविषयक पुस्तकनी पूर्वभूमिका समजावतां भायाणीदादा कहे छे : 'हुं पीएच.डी. करतो हतो त्यारे भारतीय विद्याभवननी लाइब्रेरीमां आर. एल. टर्नरलिखित नेपाळी कोश जोयेलो. आ कोशमां प्रत्येक शब्दना
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बारथी वधु भाषामां अर्थ आपेला. आ कोशथी हुं प्रभावित थई गयो अने एमांथी प्रेरणा लईने 'वाग्व्यापार' ग्रंथ लख्यो.'
पहेलुं पुस्तक प्रगट थया पछी अत्यार सुधीमां हरिवल्लभ भायाणीनां लगभग सित्तेर पुस्तको प्रसिद्ध थई चूक्यां छे. आ पुस्तको, विविध विभागोमां वर्गीकरण करी शकाय. दा.त. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन गुजराती, भाषाविज्ञान अने व्याकरण, लोकसाहित्यविषयक अध्ययन अने लोकगीत संग्रह.... आमांनां केटलांक पुस्तको पर नजर करीए. लीलावतीसार, तारागण, अपभ्रंश लेंग्वेज एन्ड लिटरेचर, दशमस्कंध, मुक्तकमाधुरी, ऋचामाधुरी, मुक्तकमंजरी, भाषाविमर्श, लोकसाहित्यः संपादन अने संशोधन, जैन धर्म : अतीत अने वर्तमान, गोकुळमां टहुक्या मोर, हरि वेण वाय छे रे हो वनमा.....
___ 'आ छेल्लं पुस्तक वैष्णवोमां परंपरागत रीते गवातां धोळ काव्योनं छे. मीरां, नरसिंह महेता अने अन्य भक्तकविओ द्वारा रचित भक्तिगीतोने धोळ काव्यो कहे छे.' भायाणीसाहेब धोळ परंपरानो अर्थ समजावीने 'हरि वेण वाय छे रे...' काव्यसंग्रहनी पूर्वभूमिका समजावे छे : 'आजथी लगभग नव वर्ष पहेलो मालीझो नामना विदेशी संशोधके धोळकाव्यो पर रिसर्च पेपर तैयार करेलु., ए वखते मने थयु के हुं तो धोळपरंपरामां ऊछरेलो छु, जो एक विदेशी वैष्णवोनी धोळपरंपरा विशे संशोधन करी शके तो एक वैष्णव थईने हुं ए काम शा माटे न करी शकुं ?'
त्यार पछी हरिवल्लभे परंपरागत धोळकाव्यो विशे संशोधन करवानुं शरु कर्यु. आ संदर्भमां वात करतां ते कहे छे : 'मारां दादीमाने तो धोळ परंपरानां दोढसो जेटलां काव्यो मोढे हता. महुवामां ए रोज सांजे सत्संग करतां त्यारे धोळकाव्यो गातां. बाळपणमां में अमनी पासेथी ए गीतो सांभळेलां. धोळकाव्यो विशे संशोधन करवानुं शरु कर्यु त्यारे एमांनां केटलांक गीतोनुं मुखडु याद हतुं तो केटलांकना अंतरा.... एकाद-बे अपवादने बाद करतां आख्खेआख्खां गीतो मने याद नहोतो. ते वखते दादीमा पण हयात नहोता. एटले मुश्केली ए वातनी हती के अधूरां गीतो पूरां कई रीते करवां ?'
आ सवालना जवाबमां अमणे एक उपाय शोधी काढ्यो. अमने
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विचार आव्यो के दादीमा जे स्त्रीवृंद साथे सत्संग करतां हतां तेमांनी केटलीक स्त्रीओ मळी जाय तो थोडांघणां काव्यो तो मळी ज जशे एटले हरिवल्लभे महुवा अप-डाउन करवानुं शरु करी दीधुं. दादीमा साथै सत्संग करती स्त्रीओने शोधवानो एमणे प्रयास कर्यो, केटलीक स्त्रीओ हयात नहोती तो बीजी केटलीक स्त्रीओ पासे अरघांपरधां गीतो मळी आव्यां हरिवल्लभे आ तमाम गीतोनो संग्रह कर्यो, परंतु तेमनुं कार्य तो हजु अधूरुं ज हतुं. एमणे अधूरा गीतो पूरा करवानां हतां अने बीजां गीतो एकठां करवानां हतां.
हरिवल्लभ एटले संशोधननो जीव. एक काम हाथमां ले तो पूरुं न थाय त्यां सुधी एमना जीवने चेन पडे नहीं. धोळ काव्योनी शोध माटे एमणे नवी दिशामां विचार करवानुं शरु करी दीधुं. आ विशे वात करतां ते कहे छे : 'कन्याशाळा शरु थई ते दिवसोमां बहेनो बे-त्रण चोपडीओ भणती. एटले स्वाभाविक ज आ भणेली बहेनोए धोळकाव्यो नोटबुकमां उतारी लीधां होय. जो क्यांकथी आवी धोळपोथी मळी जाय तो काम सरळ थई जाय. '
हवे भायाणीदादाए धोळपोथीनी शोध करवानुं शरु कर्यु तपास करतां महुवानां एक शिक्षिका बहेन पासेथी धोळपोथीनी एक प्रत मळी आवी. एम करतां करतां तेमणे लगभग साठ गीतो एकठां करी लीधां. धोळ काव्यो तो मळी आव्यां, परंतु ते गीतो एना मूळ स्वरूपमा, असल रागमा साचववां पण जोईएने ? हरिवल्लभ कहे छे : 'मने आ गीतोना मूळ राग आवडता हता. एटले हसु याज्ञिकनी मददथी में गीतोनुं स्वरांकन करवानुं नक्की कर्यु. हुं गातो जाउं अने हसु तेने स्वरांकन करे.... आ रीते तमाम गीतो अमे स्वरांकन कर्यां. त्यार पछी गुजराती साहित्य परिषद तरफथी बृहद् धोळकाव्यो त्रण भागमां प्रगट कराया. '
हवे पछी हरिवल्लभ भायाणी जैनोमां परंपरागत रीते गवाती सज्जायोनो आज प्रकारनो संग्रह तैयार करवा मागे छे. ते कहे छे : 'वैष्णवोमां धोळ काव्योनुं जेटलुं महत्त्व छे तेटलुं ज महत्त्व जैनोमां सज्जायनुं छे. सज्जाय विशे में केटलाक संग्रह भेगा कर्या छे. स्वरांकननुं थोडुं काम थयुं छे, बाकीनुं अधूरुं छे. हवे आ काम क्यारे पूरुं थाय छे....'
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________________ 262 एंसी वर्षनी उंमरे हजु पण सतत काम, काम अने काममां परोवायेला रहेता भायाणीदादाने जोईने आपणने स्वाभाविक ज नवाई लागे छे. परंतु ओमने आ वातनी जराय नवाई लागती नथी. ए कहे छे : 'हुं नसीबमां मानतो नथी. भाग्यमां हशे तो थशे अम मानीने हाथ पर हाथ धरीने बेसी रहेतो नथी. हुं तो पहेलेथी ज पुरुषार्थ करतो आव्यो छु अने हजु पण करतो रहीश...' मात्र पुरुषार्थना जोरे ज जीवनमा आगळ वधेला विद्वान हरिवल्लभ भायाणीए राष्ट्रीय अने आंतरराष्ट्रीय स्तरे सन्मानो मेळव्यां छे. आजना दिवसमां देशपरदेशना विद्यार्थीओ अने संशोधको ओमनी पासेथी मार्गदर्शन लेवा आवे छे. विदेशी युनिवर्सिटीओ एमनी ज्ञाननी गंगानो लाभ लेवा माटे निमंत्रण आपे छे. छतां भायाणीदादाने पोतानी विद्वत्ता माटे नथी अभिमान के नथी अहंकार.... प्राकृतनां प्रूफ जोतां जोतां ए साहजिकताथी कही दे छे : 'मारामां आगळ वधवानी क्षमता हती तेम बीजाओमां पण हशे. परंतु मने मुनशीजी अने मुनि जिनविजयजी जेवा विद्वानोनुं मार्गदर्शन मळ्युं एटले आ कक्षाए पहोंची शक्यो छु. बाकी महुवा जेवा गामडागाममा रहेतो एक दरिद्र छोकरो .संशोधक अने साहित्यकार बनी शके एवी तो कल्पना पण क्याथी करी शकाय ?' (प्रेषक : उत्पल भायाणी)