Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Niryukti Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ओघनिर्युक्ति ॥ श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ॥ ।। श्री भागम-गुण-भंभूषा ।। II Sri Agama Guna Manjusa II (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આગમ - ૪૩ ઓઘનિર્યુક્તિ: ૪૩ / ૧ અરિહંત પરમાત્માને નમસ્કાર કરી ચૌદપૂર્વી, દશપૂર્વી અગ્યાર અંગ ના ધારક (સાર્થ) સર્વસાધૂઓ ને વંઠીને સંક્ષેપથી પણ વિસ્તૃત અર્થ ને ધારણ કરનારી ઓધ નિર્યુક્તિ હું કહું છું. ચરણસિત્તરી અને કરણસિત્તરી ના ભેદ કહી સાત દ્વાર જણાવે છે. ૧) પ્રતિલેખના ૨) પિંડ ૩) ઉપધિપ્રમાણ ૪) અનાયતન વર્જન ૫) પ્રતિસેવના ૬) આલોચના છ) વિશુદ્ધિ સાધૂ . એકલા ક્યારે વિહાર કરી શકે તેની જુદી જુદી સમજણો આપી છે. રસ્તામા છકાયની જયણા કેવી રીતે કરવી, પગ પોંજવાનું, ગૌચરી કેવી રીતે વહોરવી, ક્યા *વાપરવી, માસકલ્પ,ચોમાસું ક્યાં કરવું ? શય્યાત્તર પાસેથી શું કલ્પે :- કાલગ્રહણ કેવી રીતે લે, ઠહ્યુ, માત્રુ ક્યાં કરવું, ચોરો ઉપધિવિ ઉપાડી જાય તો પછી શું કરવું. ભીંતને ટેકો ક્યારે આપવું, ગ્લાન, બાલ, તપસ્વી માટે કેટલીવાર ગૌચરી જવાય, આહાર વધ્યો હોય તો શું કરવું ? દોષ લાગ્યા હોય તો કેવી રીતે પ્રાયચ્છિત લેવું, વિગેરે વાતો કરીને આરાધના માં તત્પર ૩ જે ભવે મોક્ષે જાય અને આ સમાચારી સંયમની વૃદ્ધિ માટે જણાવી છે. પિંડ – નિર્યુક્તિ – ૪૩ / ૨ (રા વૈકાલિકના પાંચમા અધ્યયન પિંડૈષણા ઉપર રચાયેલી નિયુક્તિ) ગાયા ઉપલબ્ધ પાઠ સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ - ૬૭૧ ૮૩૫ શ્લોક પ્રમાણ આ પિંડ નિર્યુક્તિમાં મુખ્યતયા સાધુ - સાધ્વીના આહાર વગેરે સંબંધી વિસ્તૃત વર્ણન પદ્યગાથાઓમાં કરવામાં આવ્યું છે. પહેલી ગાથામાં પિંડ નિર્યુક્તિના નામ, સ્થાપના, દ્રવ્ય વગેરે આઠ ભેદો-પ્રભેદો બતાવીને પૃથ્વી, અપ્(જળ), તેજ, વાયુ, વનસ્પતિ વગેરેના શુદ્ધ-મિશ્ર વગેરે ભેદોનું વર્ણન છે. તે પછી ૧૬ ઉદ્ગમ દોષના વર્ણનમાં આધાકર્મ વગેરે ૪૨ દોષોનું નિરૂપણ કરીને પાંચ પ્રકારના વનીપક, પાંચ પ્રકારના શ્રમણો તેમજ ક્રોધ વગેરે ચાર પિંડ અને તેના ઉદાહરણો, ઉદ્ગમ દોષો તથા તેના ૪૩૨ અવાંતર ભંગો વગેરેનું વિસ્તૃત વર્ણન છે. અંતે આહારનું પ્રમાણ, અલ્પ આહારના ગુણ, મિતાહાર, આહાર-પ્રયોજન, આહાર કરવાના અને ન કરવાના છ-છ દોષો અને તેનું વિવેચન કરીને એષણાના ૪૭ દોષો સાથે ઉપસંહાર કરવામાં આવ્યો છે. श्री आगमगुणमंजूषा ५८ 纸! FER O Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOF20555555$$$ (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्थं मूलसुत) १ अज्झयण १] 五五五五五五五五五五五步步步ROS HOG乐听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听玩玩乐乐乐明明明明明明乐乐乐56GB सिरि उसहदेवसामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइमहावीर वद्धमाणसामिस्स। सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं मणमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमो। उत्तरज्झयणं । अणेयथेरभगवंविरइयाणि उत्तरउज्झयणाणि XXX१ पढमं विणयसुयऽज्झयणं *** १. संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि आणुपुव्विं सुणेह मे ।।१।। २. आणानिद्देसकरे गुरूणमुववायकारए। इंगियाकारसंपन्ने से विणीए त्ति वुच्चई ।।२।। ३. आणाऽनिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए । पडणीए असंबुद्धे अविणीए त्ति वुच्चई ।।३।। ४. जहा सुणी पूइकण्णी णिक्कसिज्जइ सव्वसो । एवं दुस्सीलपडणीए मुहरी निक्कसिज्जई ।।४॥ ५. कणकुंडगं जहित्ताणं विट्ठ भुंजइ सूयरे । एवं सीलं जहित्ताणं दुस्सीले रमई मिए।।५।। ६. सुणियाऽभावं साणस्स सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज्ज अप्पाणं इच्छंतो हियमप्पणो ॥६।। ७. तम्हा विणयमेसेज्जा सीलं पडिलभेज्जओ । बुद्धवुत्ते नियागट्ठी न निक्कसिज्जइ कण्हुई ।।७।। ८. निसंते सियाऽमुहरी बुद्धाणं अंतिए सया । अत्थुजुत्ताइं सिक्खेज्जा, निरत्थाणि उ वज्जए॥८॥९. अणुसासिओ न कुप्पेज्जा, खंति सेवेज पंडिए । खुड्डेहिं सह संसग्गिं हासं कीडं च वज्जए॥९॥ १०. मा य चंडालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । कालेण य अहिज्जित्ता तओ झाएज एक्कओ॥१०॥ ११. आहच्च चंडालियं कट्ट न निण्हवेज कयाइ वि । कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नोकडे त्ति य॥११॥ १२. मा गलिअस्से व कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइन्ने पावगं परिवज्जए ॥१२॥ १३. अणासवा थूलवया कुसीला मिउं पि चंडं पकरेंति सीसा । चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायएते हु दुरासयं पि।।१३।। १४. नापुट्ठो वागरे किंचि पुट्ठो वा नालियं वए। कोहं असच्चं कुव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं ॥१४॥ १५. अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो ।। अप्पा दंतो सुही होइ अस्सिं लोए परत्थ य ।।१५।। १६. वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य । मा हं परेहि दम्मतो बंधणेहिं वहेहिं य ।।१६।। १७. पडणीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा। आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि ।।१७।। १८. न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ। न जुंजे ऊरुणा ऊरुं सयणे णो पडिस्सुणे ॥१८॥ १९. नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिंडं व संजए। पाए पसारिए वा वि न चिढे गुरुणंतिए ।।१९।। २०. आयरिएहिं वाहिंतो तुसिणीओ न कयाइ वि । पसायपेही नियायट्ठी उवचिढे गुरुं सया।।२०।। २१. आलवंते लवंते वा न निसिज्जा कयाइ वि । चइऊण आसणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे ।।२१।। २२. आसणगओ न पुच्छेज्जा नेव सेज्जागओ कयाइ वि । आगम्मुक्कडुओ संतो पुच्छेज्जा पंजलीयडो ॥२२॥ २३. एवं विणयजुत्तस्स सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरेज्ज जहासुयं ॥२३॥ २४. मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए। भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया ।।२४।। २५. न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं न निरत्थं न मम्मयं । अप्पणठ्ठा परट्ठा वा उभयस्संतरेण वा ॥२५॥ २६. समरेसु अगारेसु संधीसु य महापहे । एगो एगित्थिए सद्धिं नेव चिट्ठे न संलवे ॥२६।। २७. जं मे बुद्धाऽणुसासंति सीएण फरुसेण वा । मम लाभो त्ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे॥२७॥ २८. अणुसासणमोवायं दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मन्नई पन्नो, वेसं होइ असाहुणो॥२८॥२९. हियं विगयभया बुद्धा फरुसं पि अणुसासणं । वेस्सं तं होइ मूढाणं खंति-सोहिकरं पयं ।।२९|| ३०. आसणे उवचिट्ठज्जा अनुच्चे अकुए थिरे। अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई निसीएज्जऽप्पकुक्कुए ॥३०॥ ३१. कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे॥३१॥ ३२. परिवाडिए ण चिट्ठज्जा भिक्खू दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता मियं कालेण भक्खए॥३२॥ ३३. नाइदूरमणासण्णे नऽन्नेसिं चक्खुफासओ। एगो चिट्टेज भत्तट्ठा लंघिया तं नऽइक्कमे ॥३३॥ ३४. नाइउच्चे व णीए वा नासन्ने नाइदूरओ। फासुयं परकडं पिंडं पडिगाहेज्ज संजए॥३४।। ३५. अप्पपाणऽप्पबीयम्मि पडिच्नम्मि संवुडे । समयं संजए भुजे जयं अप्परिसाडियं ॥३५॥ ३६. सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलढे त्ति सावजं वज्जए मुणी ॥३६।। ३७. रमए पंडिए सासं हयं भदं व वाहए । बालं सम्मति सासंतो गलिअस्सं व वाहए ॥३७॥ ३८. खड्डगा मे ( સૌજન્ય :- દીર્ધસંયમી મુખ્ય સાધ્વીશ્રી હરખશ્રીજી મ.સા.ના ૭૫ વર્ષના ચારિત્ર પર્યાચની અનુમોદનાર્થે શ્રી વરલી અચલગચ્છ જૈન સંઘ, શ્રી વડાલા જૈન સંઘ) Keros551955555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा १६४० 5555555555555555555555555GTIOR Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOKO5555555555 (४३) उत्तरज्ज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. १,२ ( 5555555555555sSONOT C虽历明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐明明听听听听听听听听5C चेवडा मे अक्कोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासंतं 'पावदिट्ठि' त्ति मन्नइ ॥३८॥ ३९. पुत्तो मे भाइ णाइ त्ति साहू कल्लाण मन्नइ । पावदिट्टी उ अप्पाणं सासं दासं व मण्णइ ॥३९॥ ४०. न कोवए आयरियं अप्पाणं पिन कोवए । बुद्धोवघाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए ॥४०॥ ४१. आयरियं कुवियं नच्चा पत्तिएण पसायए। विज्झवेज पंजलिउडे वएज्ज न पुणो त्ति य॥४१॥ ४२. धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धेहारियं सया। तमायरंतो ववहारं गरहं नाभिगच्छई।४२।। ४३. मणोगयं वक्तगयं जाणित्तायरियस्स उ।तं परिगिज्झ वायए कम्मुणा उववायए ।।४३|| ४४. वित्ते अचोइए निच्चं खिप्पं हवइ सुचोयए। जहोवइ8 सुकयं किच्चाई कुव्वई सया॥४४॥ ४५. नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए। हवइ किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा॥४५।। ४६. पुज्जा जस्स पसीयंति संबुद्धा पुव्वसंथुया। पसण्णा लाभइस्संति विउलं अट्ठियं सुयं ।।४६।। ४७. स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया। तवो-समायारि-समाहिसंवुडे महाजुई पंच वयाइं पालिया।।४७।। ४८. स देव-गंधव्व-मणुस्सपूइए चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए।।४८॥ त्ति बेमि ॥ ॥ विणयसुयऽज्झयणं समत्तं ॥१||★★★२ बिइयं परीसहऽज्झयणं★★★ ४९. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेड्या, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जेच्चा अभिभूय मिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा ॥११॥ ५०. कयरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेश्या, जे भिक्खू सोच्चा णच्चा जेवा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा ? इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा णच्चा जेच्चा अभिभूय मिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा ? इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जेच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहा दिगिंछापरीसहे १ पिवासापरीसहे म २ सीयपरीसहे ३ उसिणपरीसहे ४ दंस-मसयपरीसहे ५ अचलेपरीसहे ६ अरइपरीसहे ११ अक्कोसपरीसहे १२ वहपरीसहे १३ जायणापरीसहे १४ अलाभपरीसहे ) १५ रोगपरीसहे १६ तणफासपरीसहे १७ जल्लपरीसहे १८ सक्कारपुरक्कारपरीसहे १९ पन्नाणपरीसहे २० अन्नाणपरीसहे २१ दंसणपरीसहे २२ ।।२।। ५१. ॐ परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया । तं भे झदाहरिस्सामि आणुपुव्विं सुणेह मे ॥३॥ ५२. दिगिंछापरिगए देहे तवस्सी भिक्खु थामवं । न छिदे न छिंदावए न पए न पयावए ।।४।। ५३. कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए । मायन्ने असण-पाणस्स अदीणमणसो चरे १ ॥५॥ ५४. तओ पुट्ठो पिवासाए दोगुंउ लज्जसंजए। सीओदगं न सेवेज्जा वियडस्सेसणं चरे॥६।। ५५. छिन्नावाएसुपंथेसु आउरे सुपिवासिए। परिसुक्कमुहादीणे तं तितिक्खे परीसहं २ ॥७॥ ५६. चरंतं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया। नाइवेलं मुणी गच्छे सोच्चा णं जिणासासणं ॥८॥ ५७. न मे निवारणं अत्थि छवित्ताणं न विज्नई। अहं तु अग्गिं सेवामि इइ भिक्खू न चिंतए ३ ॥९॥ ५८. उसिणपरितावेणं परिदाहेण तज्जिए || धिंसु वा परितावेणं सायं नो परिदेवए|१०|| ५९. उण्हाभितत्ते मेधावी सिणाणं नो वि पत्थए । गायं नो परिसिंचेज्जा न वीएज्जा य अप्पयं ४ ॥११।। ६०. पुट्ठो य दंस-मसगेहिं समरे व महामुणी । नागो संगामसीसे वा सूरो अभिहणे परं ।।१२।। ६१. न संतसे न वारेज्जा मणं पि न ॥ पओसए। उवेह न हणे पाणे भुंजते मंस-सोणियं ५॥१३॥ ६२. परिजुन्नेहिं वत्थेहिं होक्खामित्त अचेलए। अदुवा सचलए होक्खं इइ भिक्खू न चिंतए॥१४॥ ६३. एगया अचेलए होइ सचले यावि एगया। एयं धम्महियं नच्चा नाणी नो परिदेवए ६ ।।१५।। ६४. गामाणुगामं रीयंत अणगारं अकिंचणं । अरई अणुप्पवेसे तं तितिक्खे परीसहं ।।१६।। ६५. अरई पिट्ठओ किच्चा विरए आयरक्खिए। धम्मारामे निरारंभे उवसंते मुणी चरे७॥१७॥ ६६. संगो एस मणुस्साणं जाओ लोगम्मि इथिओ। जस्स एया परिन्नाया सुकडं तस्स सामण्णं ।।१८।। ६७. एवमादाय मेहावी पंकभूया उ इथिओ। नो ताहिं विनिहन्निज्जा चरेज्जऽत्तगवेसए ८ ॥१९|| ६८. एग एव चरे लाढे अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वा वि निगमे वा रायहाणिए ॥२०॥ ६९. असमाणो चरे भिक्खू नेय कुज्जा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थेहिं अणिएओ परिव्वए ९ ॥२१|| ७०. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ। अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तसए परं ।।२२।। ७१. तत्थ से अच्छमाणस्स उवसग्गाऽभिधारए। संकाभीओ SO乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听2 LONEducation International 2010-03 For Bate Besanal.se.Only ExeKOS555555555555555555555554 श्री आगमगणमंजषा - १६४१ 4455444porncur uchc hhaKarnak Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. २, ३ न गच्छेज्ना उट्ठेत्ता अन्नमासणं १० ||२३|| ७२. उच्चावयाहिं सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं । णाइवेलं विहन्नेज्जा पावदिट्ठी विहन्नई ||२४|| ७३. पइरिक्वस्यं लद्धुं कल्लाणं अदुव पावगं । किमेगरायं करिस्सति ? एवं तत्थऽहियास ११ ||२५|| ७४. अक्कोसेज्ज परो भिक्खुं न तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ||२६|| ७५. सोच्चा णं फरुसा भासा दारुणा गामकंटगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे १२ ||२७|| ७६. हओ ण संजले भिक्खू मणं पिन पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खू धम्मं विचिंत ॥ २८ ॥ ७७. समणं संजयं दंतं हणेज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवीस्स नासो त्ति एवं पेहेज्ज संजए १३ ॥२९॥ ७८. दुक्करं खलु भो! निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ||३०|| ७९. गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुपसारए । सेओ अगारवासो त्ति इइ भिक्खू न चिंतए १४ ||३१|| ८०. परेसु गासमेसेज्जा भोयणे परिनिट्ठिए । लद्धे पिंडे अलब्द्धे वा नाणुतप्पेज्ज पंडिए ||३२|| ८१. अज्जेवाहं न भामि अवि लाभो सुए सिया। जो एवं कडिसंचिक्खे अलाभो तं न तज्जए १५ ||३३|| ८२. नच्चा उप्पत्तियं दुक्खं वेयंणाए दुहट्टिए । अदीणो थावए पन्नं पुट्ठो तत्थऽहियासए ॥ ३४॥ ८३. तेइच्छं नाभिनंदेज्ना संचिक्खेऽत्तगवेसए। एतं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारए १६ || ३५|| ८४. अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सुयमाणस्स होज्जा गायविराहणा ||३६|| ८५. आयवस्स निवाएणं अतुला होइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवेति तंतुजं तणतज्जिया १७ ||३७|| ८६. किलिण्णगाते मेहावी पंकेण व रएण वा । घिसु वा परियावेणं सातं नो परिदेवए ||३८|| ८७. वेएज्ज निज्जरापेही आरियं धम्मऽणुत्तरं । जाव सरीरभेदो त्ति जल्लं काण धार १८ ||३९|| ८८. अभिवायणमब्भुट्ठाणं सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडिसेवेति न तेसिं पीहए मुणी ||४०|| ८९. अणुक्कसाई अप्पिच्छे अन्नातेसी अलोलुए। रसेसु नाणुगेज्झेज्जा नाणुतप्पेज्ज पण्णवं १९ ||४१ || ९०. से नूण मए पुव्विं कम्माऽनाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ||४२|| ९१. अह पच्छा उइज्जति कम्माऽनाणफला कडा । एवमासासे अप्पाणं नच्चा कम्मविवागयं २० ||४३|| ९२. निरत्थयम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाणं पावयं ॥ ४४ ॥ ९३. तवोवहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे छउमं नो यिट्टई २१ || ४५ || ९४. नत्थि नूणं परे लोए इड्डी वा वि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिंतए । ४६ ।। ९५. अभू जिणा अत्थि जिणा अदुवा वि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिंताए २२ ।।४७।। ९६. एए परीसहा सव्वे कासवेण पवेइया । जे भिक्खू न विहण्णेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुइ ॥ ४८ ॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ परीसहऽज्झयणं समत्तं ॥ २॥ ★★★ ३ तइयं चाउरंगिज्जं अज्झयणं ★★★ ९७. चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणिह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥ १ ॥ ९८. समावण्णा ण संसारे नाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा नाणाविहा कट्टु पुढो विस्संभिया पया ॥ २ ॥ ९९. एगया देवलोगेसु नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं आहाकम्मेहिं गच्छई ||३|| १००. एगया खत्तिओ होइ तओ चंडाल बोक्कसो । तओ कीड पयंगो य तओ कुंथू पिवीलिया ॥४॥ १०१. एवमावट्टजोणीसु पाणिणो कम्मकिब्बिसा । न निव्विज्नंति संसारे सव्वट्ठेसु व खत्तिया || ५ || १०२. कम्मसंगेहिं सम्मूढा दुक्खिया बहुवेयणा । अमाणुसासु जोणीसु विणिहम्मंति पाणिणो ||६|| १०३. कम्माणं तु पहाणाए आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययंति मणुस्स ||७|| १०४. माणुस्सं विग्गहं लब्धुं सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा कडिवज्जंति तवं खंतिमहिंसयं ॥ ८ ॥ १०५. आहच्च सवणं लब्धुं सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा णेयाउयं मग्गं बहवे परिभस्सई ||९|| १०६. सुइं च लद्धुं सद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणा वि नो य णं पडिवज्जई ||१०|| १०७. माणुसत्तम्मि आयाओ जो धम्मं सोच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लद्धुं संवुडो निद्धुणे र ||११|| १०८. सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । निव्वाणं परमं जाइ घयसित्ते व पावए । १२ ।। १०९. विगिंच कम्मुणो हेउं जसं संचिण खंतिए । पाढवं सरीरं हेच्चा उड्ढं पक्कमई दिसं || १३ | ११०. विसालिसेहिं सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिप्पंता मण्णंता अप्पुच्चयं ॥ १४ ॥ १११. अप्पिया देवकामाणं कामरूवविउव्विणो । उड्ढं कप्पेसु चिट्ठेति पुव्वा वाससया बहू ॥ १५॥ ११२. तत्थ ठिच्चा चहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया । उवेंति माणुस जोणि से दसंगेऽभिजायई T KO श्री आगमगुणमंजूषा १६४२ [३] Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्यं मूलसुत्त) अ. ३.४.५ ॥१६॥ ११३. खेत्तं वत्युं हिरण्णं च पवसो दास-पोरुसं ॥ चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उववज्जई १ ||१७|| ११४. मित्तवं २ नायवं ३ होइ उच्चागोए ४ य वण्णवं ५ । अप्पायंके ६ महापन्ने ७ अभिजाए ८ जसो९ बले १० ॥ १८॥ ११५. भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे केवलं बोहि बुज्झिया ॥१९॥ ११६. चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं पडिवज्जिया । तवसा धुयकम्मंसे सिद्धे हवइ सासए ॥२०॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ चाउरंगिज्जं समत्तं ॥ ३ ॥ ४ चउत्थं असंखयं अज्झयणं ★★★ ११७. असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीवस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते किन्नु विहिंसा अजया गर्हिति ॥ १ ॥ ११८. जे पावकम्मेहिं धणं मणुस्सा समाययंती अमई गहाय । पहाय ते पास पर्यट्टिए नरे वेराणुबद्धा नरगं उवेति ॥ २ ॥ ११९. तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्मुणा कच्चइ पावकारी । एवं पया! पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मोक्खु अत्थि || ३ || १२०. परस्स अट्ठा साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स संसारमावन्न ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उवेति ॥ ४ ॥ १२१. वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते इमम्मि लोए अदुवा परत्था । दीवप्पणठ्ठे व अणंतमोहे नेयाउयं दद्रुमदट्टुमेव ॥ ५ ॥। १२२. सुत्ते यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पंडिय आसुपन्ने। घोरामुहुत्ता अबलं सरीरं भारुंडपक्खी व चरऽप्पमत्तो ||६|| १२३. चरे पयाइं परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मन्नमाणो । लाभंतरे जीविय विहइत्ता पच्छा परिणाय मलाबघंसी ||७|| १२४. उंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाइं वासाइं चरsप्पमत्तो तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥ ८॥ १२५. स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयम्मि कालोवणीए सरीरस्स भेए ||९|| १२६. खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समेच्च लोगं समया महेसी अप्पाणरक्खी चर मप्पमत्तो ||१०|| १२७. मुहुं मुहुं मोहगुणे जयंतं अणेगरूवा समणं चरंतं । फासा फुसंती असमंजसं च न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से ||११|| १२८. मंदा य फासा बहुलोभणिज्जा तहप्पगारेसु मणं न कुज्जा | रक्खेज्न कोहं विणएज्ज माणं पायं न सेवे पयहिज्ज लोहं ॥ १२ ॥ १२९. जे संख्या तुच्छ परप्पवाई ते पेज्ज - दोसाणुगया परज्झा। 'एए अहम्मे ' त्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीरभेओ ॥१३॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ असंखयं समत्तं ॥ ४॥ ★★★ ५ पंचमं अकाममरणिज्जं अज्झयणं ★★★ १३०. अन्नवंसि महोहंसि एगे तिन्ने दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापन्ने इमं पण्हमुदाहरे ||१|| १३१. संतिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणंतिया । अकाममरणं चेव अकाममरणं तहा ||२|| १३२. बालाणं अकामं तु मरणं असई भवे । पंडियाणं सकामं तु उक्कोसेण स भवे || ३ || १३३. तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । कामगिद्धे जहा बाले भिसं कराई कुव्वई ||४|| १३४. जे गिद्धे काम - भोगेसु एगे कूडाय गच्छई । न मे दिट्ठे परे लोए चक्खुदिट्ठा इमा रई || ५ || १३५. हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए अत्थि वा पत्थि वा पुणो ? ||६|| १३६. 'जणेण सद्धिं होक्खामि' इइ बाले पगब्भई । माक-भोगाणुरागेणं केसं संपडिवज्नई ||७|| १३७. तओ से दंड समारमई तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए भूयगामं विहिंसई ||८|| १३८. हिंसे बाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे । भुंजमाणे सुरं मंसं 'सेयमेयं' ति मन्नई ॥९॥ १३९. कायसा वयसा मते वित्ते गिद्धे य इत्थिसु । दुहओ मलं संचिणई सिसुनागो व्व मट्ठियं ॥ १० ॥ १४० तओ पुट्ठो आयंकेणं गिलाणो परितप्पई । पभीओ परलोगस्स कम्माणुप्पेहि अप्पणो ॥ ११॥ १४१. सुया मे नरए ठाणा असीलाणं च जा गई । बालाणं कूरकम्माणं पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १२ ॥ १४२. तत्थोववाइयं ठाणं जहा मे तमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गच्छंतो सो पच्छा परितप्पई ॥ १३ ॥ १४३. जहा सागडिओ जाणं समं हेच्चा महापहं । विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भग्गम्मि सोयई ॥१४॥ १४४. एवं धम्मं विउक्कम्म अहम्मं पडिवज्जिया । बाले मच्चुमुहं पत्ते अक्खे भग्गे व सोयई || १५ || १४५. तओ से मरणंतम्मि बाले संतसई भया । अकाममरणं मरइ धुत्ते वा कलिणा जिए ।। १६ ।। १४६. एवं अकागमरणं बालांण तु पवेइथं उतो सकाममरणं पंडियाणं सुणे मे ||१७|| १४७. मरणं पि सपुण्णाणं जहा मे तमणुस्सुयं । विप्पसन्नमणाघायं संजयाणं वुसीमओ ॥ १८॥ १४८. न इमं सव्वेसु भिक्खूसु न इमं सव्वेसु गारिसु । नाणासीला य गारत्था विसमसीला य भिक्खुणो || १९|| १४९. संति एगेहिं भिक्खूहिं गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहि य सव्वेहिं साधवो संजमुत्तरा ||२०|| १५०. चीराजिणं निगिणिणं जडी संघाडि श्री आगमगुणमंजूषा - १६४३ 502293 फ्र (४) फ्र फफफफफफफफ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. ५,६,७ मुंडिणं । एयाणि वि न तायंति दस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥ १५१. पिंडोलए व्व दुस्सीलो नरगाओ न मुच्चई । भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुव्वए कमई दिवं ॥ २२ ॥ १५२. अगारसामाइयंगाई सड्डी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं एगराई न हावए ||२३|| १५३. एवं सिक्खासमावन्नो गिहवासे वि सुव्वए । मुच्चई छवि पव्वाओ गच्छे जक्खसलोगयं ॥२४॥ ९५४. अह जे संवुडे भिक्खु दोण्हमन्नतरे सिया । सव्वदुक्खप्पहीणे वा देवे वा वि महिड्डिए || २५ || १५५. उत्तराई विमोहाई जुइमंताऽणुपुव्वसो । समाइन्नाइं जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो ||२६|| १५६. दीहाउया इड्डिमंता समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्नसंकासा भुज्जोअच्चिमालिप्पभा ॥२७॥ १५७.ताई ठाणाइं गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संतिपरिनिव्वुडा ॥२८॥। १५८. तेसिं सोच्चा सपुज्जाणं संजयाणं वसीमओ । न संतसंति मरणंते सीलमंता बहुस्सुया ||२९|| १५९. तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ||३०|| १६०. तओ काले अभिप्पेए सड्डी तालिसमंतिए । विणएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ॥ ३१ ॥ १६१. अह कालम्मि आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरइ तिण्हमण्णतरं मुणि ||३२||त्ति बेमि ||★★★|| अकाममरणिज्जं अज्झयणं समत्तं ॥५॥ ★★★ ६ छठ्ठे खुड्डागनियंठिज्जं अज्झयणं ★★★ १६२. जावंतऽविजापुरा सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पंति बहुसो मूढा संसारम्मि अनंतए || १ || १६३. समिक्ख पंडिए तम्हा पासजाईपडे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भूएसु कप्प ||२|| १६४. माया पिया हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा। नालं ते मम ताणाय लुप्पंतस्स सकम्मुणा ||३|| १६५. एयमट्टं सपेहाए पासे समियदंसणे । छिंद गिद्धिं सिणेहं च न कखे पुव्वसंथवं || ४ || १६६. गवासं मणि- कुडलं पसवो दास-पोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं कामरूवी भविस्ससि ||५|| १६७. अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे भय-वेराओ उवरए || ६ || १६८. आयाणं निरयं दिस्स नाइएज्ज तणामवि । दोगुंछी अप्पणो पाए दिन्नं भुंजेज्ज भोयणं ||७|| १६९. इहमेगे तु मन्नंति अपच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ता णं सव्वदुक्खा विमुच्चई ||८|| १७०. भणंता अकरेंता य बंध- मोक्खपइन्निणो । वायाविरिमंत्तेणं समासासेति अप्पयं ॥९॥ १७१. न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं ? । विसंन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमाणिणो || १०|| १७२. जे केइ सरीरे सत्ता वन्ने रूवे य सव्वसो । मणसा काय वक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ||११|| १७३. आवण्णा दीहमद्धाणं संसारम्मि अणंतए । तम्हा सव्वदिसं पस्स अप्पमत्तो परिव्वए ॥१२॥। १७४. बहिया उड्डमादाय नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे || १३|| १७५. विविच्च कम्मुणो हेउं कालकंखी परिव्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स क ल भक्खए || १४ || १७६. सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए। पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ।। १५ ।। १७७. एसणासमिओ लज्जू गामे अनियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए । १६ ।। १७८. एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाण-दंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेंसालीए वियाहिए ॥१७॥त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ खड्डागनियंडिज्जं समत्तं ॥६॥★★★ ७ सत्तमं एलइज्जं अज्झयणं ★★★ १७९. जहाऽऽएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलगं । ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥ १॥ १८०. तओ से पुट्ठे परिव्वूढे जायमेदे महोदरे। पीणिए विपुले देहे आएसं पडिकंखए ॥२॥ १८१. जाव न एइ आएसे ताव जीवइ से दुही। अह पत्तम्मि आएसे सीसं छेत्तूण भुज्जई || ३ || १८२. जहा खलु से ओरब्भे आएसाय समीहिए। एवं बाले अधम्मिट्ठे ईहई निरयाउयं ||४|| १८३. हिंसे बाले मूसावाई अद्धाणम्मि विलोवए । अण्णऽदत्तहरे तेणे माई कण्णुहरे सढे ||५|| १८४. इत्थीविसयगिद्धे य महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ||६|| १८५. अयकक्करभोई य तुंदिले चियलोहिए। आउयं निरए कंखे जहाऽऽएस व एलए ||७|| १८६. आसणं सयणं जाणं वित्तं कामे य भुजिया । दुस्साहडं धणं हेच्चा बहुं संचिणिया रयं ||८|| १८७. तओ कम्मगुरू जंतू पच्चुप्पण्णपरायणे । अय व्व आगयाऽऽएसे मरणंतम्मि सोयई || ९ || १८८. तओ आउपरिक्खीणे चुया देहा विहिंसगा। आसुरियं दिसं बाला गच्छंति अवसा तमं ॥ १० ॥ १८९. जहा कागणिए हेउ सहस्सं हारए नरो । अपत्थं अंबगं भोच्चा राया रज्जं तु हार || ११|| १९० एवं माणुस्साया कामा देवकामाण अंतिए । सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिव्विया ॥ १२ ॥ १९१. अणगेवासानउया जासा NORO [] 原POR श्री आगमगुणमंजूषा १६४४ ०० Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MONIOS כתבת תל 明明明明明明明明明乐乐乐乐乐明明明明明明乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐乐听$ 5CM PAGRO555555555555555 (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्य मूलसुत्तं) अ.७,८,९ (६] 59935955555aarameercom पण्णवओ ठिई । जाणि जीयंति दुम्मेहा ऊणे वाससताउए॥१३॥ १९२. जहा य तिण्णि वणिया मूलं घेतूण निग्गया। एगोऽत्थ लभते लाभं एगो मूलेण आगओ ||१४||१९३. एगो मूलं पि हारेत्ता आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह ।।१५।। १९४. माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे । मूलच्छेदेण जीवाणं नरग-तिरिक्खत्तणं धुवं ।।१६।। १९५. दुहओ गई बालस्स आवई-वहमूलिया। देवत्तं माणुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ॥१७॥ १९६. तओ जिए सई होइ दुविहं दोग्गई गए। दुल्लहा तस्स उम्मग्गा अद्धाए सुचिरादपि ।।१८।। १९७. एवं जिए सपेहाए तुलिया बाले च पंडियं । मूलियं ते पवेसंति माणुसं जोणिमिति ते ॥१९।। १९८. वेमायाहिं सिक्खाहिँ जे नरा गिहि-सुव्वया । उवेति माणुसं जोणिं कम्मसच्चा हु पाणिणो॥२०॥ १९९. जेसिं तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया। सीलवंता सवीसेसा जंति देवयं ॥२१॥ २००. एवमद्दीणवं भिक्खुं अगारिं च वियाणिया। कहं णु जिच्चमेलिक्खं जिच्चमाणो न संविदे ॥२२॥ २०१. जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए ।।२३।। २०२. कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्धम्मि आउए । कस्स हेउं पुरेकाउं जोगक्खेमं न संविदे? ॥२४॥२०३. इय कामाऽणियट्टस्स अत्तढे अवरज्झई। सौच्चा नेयाउयं मग्गं अं भुज्जो परिभस्सई ॥२५॥ २०४. इह कामाऽनियट्टस्स अत्तढे नावरज्झई। पूइदेहनिराहेणं भवे देवे त्ति मे सुयं ॥२६॥ इड्डी जुई जसो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ॥२७॥ २०६. बालस्स पस्स बालत्तं अहम्म पडिवज्जिया। चेच्चा धम्म अहम्मिटे नरए उववज्जई।।२८।। २०७. धीरस्स पस्स धीरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो। चेच्चा अधम्मं धम्मिढे देवेसु उववज्जई ।।२९।। २०८. तुलिआण बालभावं अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभाव अबाल सेवई मुणि ॥३०॥ त्ति बेमि ||★★★॥ एलइज्ज समत्तं ॥७॥★★★८ अट्ठमं क काविलीयं अज्झयणं ★★★ २०९. अधुवे असासयम्मी संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज तं कम्मगं जेणाहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ? ||१|| २१०. विजहित्तु पुव्वसंजोगं न सिणेहं कहिचि कुव्वेज्जा । असिणेह सिणेहकरेहिं दोस-पओसेहि मुच्चए भिक्खू ।।२।।२११. तो पाण-दसणसमग्गो हियनिस्सेसाए य सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥३॥ २१२. सव्वं गंथं कलहं च विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजाएसु पासमाणो न लिप्पई ताई ॥४॥२१३. भोगामिसदोसविसण्णे हियनिस्सेसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मंदिए मूढे बज्झई मच्छिया व खेलम्मि ।।५।।२१४. दुपरिच्चया इमे कामा नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अह संति सुव्वया साहू जे तरंति अतरं वणिया व ।।६।। २१५. समणा मु एगे वदमाणा पाणवह मिया अजाणता । मंदा निरयं गच्छति बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ।।७।। २१६. न हु पाणवहं अणुजाणे मुच्चेज्जा कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवायरिएहिं अक्खायं जेहिं इमो साहुधम्मो पण्णत्तो ।।८।। २१७. पाणे य नाइवाएज्जा से समिए त्ति वुच्चई ताई। तओ से पावगं कम्मं निज्जाइ उदगं व थलाओ।।९।। २१८. जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो तेसिं आरभे दंडे मणसा वयस कायसा चेव ।।१०।। २१९. सुद्धसणाओ नच्चा णं तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए।॥११॥ २२०. पंताणि चेव सेवेज्जा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वक्कसं पुलागं वा जवणट्ठा वा निसेवए मंथु ।।१२।। २२१. जे लक्खणं च सुविणं च अंगविजं च जे पउंजंति । न हु ते समणा वुच्चंति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥१३॥ २२२. इह जीवियं अनियमेत्ता पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं । ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जति आसुरे काए॥१४॥ २२३. तत्तो वि य उव्वद्वित्ता संसारं बहुं अणुपरिति । बहुकम्मलेवलित्ताणं बोही होई सुदुल्लहा तेसिं॥१५॥ २२४. सिणं पिगो इमं लोयं पडिपुन्नं दलेज एक्कस्स। तेणावि से ण संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया।।१६।। २२५. जहा लाभो तहालाभो लाभा लोभो पवड्डई। दोमासकयं कज्ज कोडीए वि न निट्ठियं ।।१७।। २२६. नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासु णेगचित्तासु । जाओ पुरिसंपलोभित्ता खेलंति जहा व दासेहिं ।।१८॥२२७. नारीसुनो पगिज्झेज्जा इत्थी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ।।१९।। २२८. इति एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिति जे उ काहिति तेहिं आराहिया दुवे लोग ||२०|| त्ति बेमि ॥ **॥ काविलीयं समत्तं ॥८॥★★★९ नवमं नमिपव्वज्जाअज्झयणं ** २२९. चइऊण देवलोगाओ उववण्णो माणुसम्मि लोयम्मि। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明C 55555555555555555555श्री आगमगणमजूषा - १६४५ 1555555555555555555555555 FOTOK Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. ९ [७] उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई ॥१॥ २३०. जाई सरित्तु भगवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवित्तु रज्जे अभिनिक्खमई नमी राया ||२|| २३१. सो 'देवलोगसरिसे अंतेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोए परिच्चयइ ॥ ३ ॥ २३२. मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परिजणं सव्वं । चेच्चा अभिनिक्खंतो एतमहिओ भवं ||४|| २३३. कोलाहलगब्भूतं आसी मिहिलाए पव्वयंतम्मि । तइया रायरिसिम्मि नमिम्मि अभिनिक्खमंतम्मि ||५|| २३४. अब्भुट्टियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरुवेणं इमं वयणमब्बवी ||६|| २३५. किं णु भौ ! अज्ज मिहिलाए कोलाहलगसंकुला । सुव्वंति दारुणा सद्दा पासाए गिहे ? ||७|| २३६. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । ततो नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ||८|| २३७. मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फ-फलोवे बहू बहुगुणे सय ॥ ९ ॥ २३८. वाएण हीरमाणम्मि चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता एए कंदंति भो ! खगा ॥। १० ।। २३९. एयमहं निसामेत्ता - कारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ||११|| २४०. एस अग्गी य वाओ य एवं डज्झति मंदिरं । भगवं ! अंतेउरंतेणं कीस णं नाववेक्खह ? ||१२|| २४१. एयमहं निसामित्ता हेउ कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥ १३ ॥ २४२. सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए डज्झमाणीए न मे डज्झइ किंचणं ॥ १४ ॥ २४३. चत्तपुत्त- कलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जइ || १५ || २४४. बहुं खु मुणिणो भद्दं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वतो विप्पमुक्कस्स एगंतमणुपस्सओ ||१६|| २४५. एयमहं निसामेत्ता हेऊ-कारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥१७॥ २४६. पागारं कारइत्ताणं गोपुरऽट्टालगाणि य। ओमूलग सयग्घीओ तओ गच्छसि खत्तिया ! ||१८|| २४७. एयमहं निसामेत्ता हेऊ- कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणब्बवी ||१९|| २४८. सद्धं नगरं किच्चा तवसंवरमग्गलं । खंत्तिं निउणपागारं तिगुत्तं दुप्पहंसयं ॥ २० ॥ २४९. धणुं परक्कमं किच्चा जीवं च इरियं सया । धिरं च केयणं किच्चा सच्चेणं पलिमंथए ॥ २१ ॥ २५०. तवनारायजुत्तेणं भेत्तूर्ण कम्मकंचुयं । मुणी विगयसंगामो भवाओ परिमुच्चई ||२२|| २५१. एयमट्टं . निसामेत्ता हेउ-कारणचोइओ । तओ नमिरायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ||२३|| २५२. पासाए कारइत्ताणं वद्धमाणगिहाणि य । वालग्गपोइयाओ य ततो गच्छसि खत्तिया ! ||२४|| २५३. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥ २५ ॥ २५४. संसयं खलु कुणइ जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव तुमिच्छेज्जा तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ॥ २६ ॥ २५५. एयंमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविदं इणमब्बवी ||२७|| २५६. आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं ततो गच्छसि खत्तिया |||२८|| २५७. एयमहं निसामेत्ता हेऊ- कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ||२९|| २५८. असइं तु मणुस्सेहिं मिच्छादंडो पउंजई । अकारिणोऽत्थ बज्झंति मुच्चई कारओ जणो ||३०|| २५९. एयमद्वं निसामेत्ता हेऊ-कारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ||३१|| २६०. जे केइ पत्थिवा तुब्भं नाऽऽणमंति नराहिवा ! वसे ते ठावइत्ताणं ततो गच्छसि खत्तिया ! ||३२|| २६१. एयमहं निसामित्ता हेऊ-कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ||३३|| २६२. जो सहस्सं सहस्साणं संगमे दुज्जए जिणे । एवं जिणेज्न अप्पाणं एस से परमो जओ ||३४|| २६३. अप्पाणमेव जुज्झाहि किं ते जुज्झेण बज्झओ । अप्पाणमेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेह ||३५|| २६४. पंचिदियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोभं च । दुज्जयं चेव अप्पाणं सव्वमप्पे जिए जियं ||३६|| २६५. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नभिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ||३७|| २६६. जइत्ता विपुले to भोत्ता समण-माहणे । दत्ता भोच्चा य जट्ठा य तओ गच्छसि खत्तिया ! ||३८|| २६७. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंद इणमब्बवी ||३९|| २६८. जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सावि संजमो सेओ अदितस्स वि किंचिणं ||४०|| २६९. एयमहं निसामेत्ता हेउकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ||४१|| २७०. घोरासमं चइत्ताणं अण्णं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरओ भवाहि मणुयाहिवा ! ||४२|| २७१. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ||४३|| २७२. मासे मासे उ जो बालो कुसग्गेण तु भुंजए। न सो सक्खायधम्मस्स niras सोलसिं ॥ ४४ ॥ २७३. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमि रायरिसीं देविंदो इणमब्बवी || ४५|| २७४. हिरण्णं सुवण्णं मणि मुत्तं कंसं LOOK श्री आगमगुणमंजूषा - १६४६ HORO Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. ९, १० I दूसंच वाहणं । कोसं वढावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ४६ ॥ २७५. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ||४७|| २७६. सुवण्ण-रुपस्स उ पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंख्या । नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ॥४८॥ २७७. पुढवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स इइ विज्जा तवं चरे ॥ ४९ ॥ २७८. एयमहं निसामेत्ता हेऊ कारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥५०॥ २७९. अच्छेरयमब्भुदए भोए चयसि पत्थिवा ! । असंते कामे पत्थेसि संकप्पेण विहण्णसि ॥ ५१ ॥ २८०. एयमहं निसामेत्ता हेऊ- कारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ।। ५२ ।। २८१. सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा। कामे पत्थेमाणा अकामा जंति दुग्गई ||५३ || २८२. अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गई। माया गइपडिग्घाओ लोहाओ दुहओ भयं ॥ ५४॥ २८३. अवइज्झिऊण माहणरूवं विउरुव्विऊण इंदत्तं । वंदइ अभित्थुणंतो इमाहिं महुरांहिं वग्गूहिं ।। ५५ ।। २८४. अहो ! ते निज्जिओ कोहो अहो ! माणो पराजिओ । अहो ते निरक्किया माया अहो ! लोहो वसीकओ ॥ ५६ ॥ २८५. अहो ! ते अज्जवं साहु अहो ! ते साहु मद्दवं । अहो ! ते उत्तमा खंती अहो ! ते मुत्ति उत्तमा ॥५७॥ २८६ . इहं सि उत्तमो भंते ! पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं ठाणं सिद्धिं गच्छसि नीरओ ॥५८॥ २८७. एवं अभित्थुणंतो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। पयाहिणं करेंतो पुणो पुणो वंदई सक्को|| ५९ ॥ २८८. तो बंदिऊण पाए चक्कंकुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ ललियचवलकुंडलतिरीडी ॥६०॥ २८९. नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ । चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवडिओ ॥ ६१ ॥ २९०. एवं करेति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा। विणियद्वंति भोगेसु जहा से नमी रायरिसि ॥६२॥ त्ति बेमि || ★ ★ ★ । नमिपव्वज्जाऽज्झयणं समत्तं ||९|| ★★★ १० दसमं दुमपत्तयं अज्झयणं ★★★ २९१. दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चइ । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमा ॥ १ ॥ २९२. कुसग्गे जह ओसबिंदुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए। एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए || २ || २९३. इइ इत्तिरियम्मि आउए जीवियए बहुचवा | वाहिरयं पुरेकडं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३॥ २९४. दुल्लभे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम ! मा पमायए ॥४॥ २९५. पुढवीकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ||५|| २९६. आउक्कायमइगओ उक्कोसं वो संवसे । कालं संखातीयं समयं गोयम ! मा पमायए ||६|| २९७. तेउक्कायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे। कालं संखातीयं समयं गोयम ! मा पमायए ||७|| २९८. वाउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए || ८|| २९९. वणस्सइकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे। कालमणंत दुरंतं समयं गोयम ! मा पमायए ||९|| ३००. बेइंदियकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे । कालं संखेज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमाय ॥१०॥ ३०१. तेइंदियकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे । कालं संखेज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए ।। ११ ।। ३०२. चउरिदियकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे । कालं संखेज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए ||१२|| ३०३. पंचिदियकायमइगओ उक्कोस्सं जीवो उ संवसे। सत्तडट्ट भवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए ॥१३॥ ३०४. देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे। एक्क्कभवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमाय ॥ १४॥ ३०५ एवं भवसंसारे संसरइ सुभासुभेहिं कम्मेहिं । जीवो पमा बहुलो समय गोयम ! मा पमाय ॥ १५ ॥ ३०६. लद्धूण वि माणुसत्तणं आयरियत्तं पुणरावि दुल्लहं । बहवे दसुया मिलक्खुया समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १६ ॥ ३०७. लद्धूण वि आयरियत्तणं अहीणपंचिंदियता हु दुल्लहा। विगलिंदियता हु दीसई समयं गोयम ! मा पमायए ||१७|| ३०८. अहीणपंचेदियत्तं पि से लभे उत्तम धम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए जणे समयं गोयम ! मा पमायए ।। १८ ।। ३०९. लद्धूण वि उत्तमं सुइं सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवए जणे समयं गोयम ! मा पमायए || १९|| ३१०. धम्मं पि हु सद्दहंतया दुल्लभया कारण फासया । इह कामगुणेसु मुच्छिया समयं गोयम ! मा पमायए ||२०|| ३११. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से सोयबले य हायई समयं गोयम ! मा पमाय ॥ २१ ॥ ३१२. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से प्र श्री आगमगुणमंजूषा १६४७ YOR KOK [८] ॐॐॐॐॐॐॐএএএএউএব Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. १०, ११ Fe चक्खुबले य हायई समयं गोयम ! मा पमाय ॥ २२ ॥ ३१३. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २३ ॥ ३१४: परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से जिब्भबले य हायई सयमं गोयम ! मा पमायए ||२४|| ३१५. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से फासबले य हायई सयमं गोयम ! मा पमाय ॥ २५ ॥ ३१६. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया भवंति ते । से सव्वबले य हायई सयमं गोयम ! मा पमाय ||२६|| ३१७. अरई गंडं विसूइया आयंका विविहा फुसंति ते । विहडइ विद्वंसइ ते सरीरयं समयं गोयमं ! मा पमायए ॥ २७॥ ३१८. वोच्छिंद सिणेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए समयं गोयमं ! मा पमाय ॥२८॥ ३१९. चेच्चा ण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वंतं पुणो वि आविए समयं गोयमं ! मा पमायए ||२९|| ३२०. अवइज्झिय मित्त- बंधवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बितियं गवेसए समयं गोयमं ! मा पमायए ॥ ३० ॥ ३२१. न हु जिणे अज्ज दीसई हुए दीस मग्गदेसिए । संपइ नेआउए पहे समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३१ ॥ ३२२. अवसोहिय कंटगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोमं ! मा पमायए ||३२|| ३२३. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छांणुतावए समयं गोयमं ! मा पमायए ||३३|| ३२४. तिण्णो हुन्न महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ ? | अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए ||३४|| ३२५. अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धिं गोयम ! लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयमं ! मा पमायए ||३५|| ३२६. बुद्धे परिनिव्वुए चरे गाम गए नगरे व संजए। संतिमग्गं च वूहए समयं गोयम ! मा पमायए ||३६|| ३२७. बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमट्ठपदोवसोहियं । रागं दोसं च छिदिया सिद्धिगई गए गोयमे ||३७|| त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ दुमपत्यं समत्तं ॥१०॥ ★★★११ एगारसमं बहुस्सुयपुज्जं अज्झयणं ★★★ ३२८. संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुव्विं सुणेह मे ||१|| ३२९. जे यावि होइ निव्विज्जे थद्धे लुद्धे अनिग्गहे । अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए ||२|| ३३०. अह पंचहिं ठाणेहिं जेहिं • सिक्खा न लभ । थंभा १ कोहा २ पमाएणं ३ रोगेणाऽऽलस्सएण य ४-५ || ३ | ३३१. अह अट्ठहिं ठाणेहिं सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहस्सिरे १ सया दंते २ न य मम्ममुयाहरे ३ ||४|| ३३२. नासीले ४ ण विसीले ५ न सिया अइलोलुए ६ । अकोहणे ७ सच्चरए ८ सिक्खासीले त्ति वुच्चइ ||५|| ३३३. अह चोद्दसहिं ठाणेहिं [3] माणे संजए । अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च ण गच्छई || ६ || ३३४. अभिक्खणं कोही भवइ १ पबंधं च पकुव्वई २ । मित्तिज्जमाणो वमई ३ सुयं लद्धूण मज्जई ४ ॥७॥। ३३५. अवि पावपरिक्खेवी ५ अवि मित्तेसु कुप्पई ६ । सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ पावगं ७ ॥ ८ ॥ ३३६. पइण्णवाई ८ दुहिले ९ थद्धे १० लुद्धे ११ अणिग्गहे १२ । असंविभागी १३ अचियत्ते १४ अविणीए त्ति वुच्चई || ९ || ३३७. अह पण्णरसहिं ठाणेहिं सुविणीए त्ति बुच्चई । नीयावत्ती १ अचवले २ अमाई ३ अकुतूहले ४ ||१०|| ३३८. अप्पं च अभिक्खिवई ५ पबंधं च न कुव्वई ६ । मेत्तिज्जमाणो भवई ७ सुयं लब्धुं न मज्जई ८ ॥ ११ ॥ ३३९. न य पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई । ३४०. कलह - डमरवज्जए १२ बुद्धे अभिजाइए १३ | हिरिमं १४ पडिसंलीणे १५ सुविणीए त्ति वुच्चई ||१३|| ३४१. वसे गुरुकुले निच्चं जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लडुमरि हई || १४ || ३४२. जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विरायई । एवं बहुस्सु भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ||१५|| ३४३. जहा से कंबोयाणं आइण्णे कंथए सिया आसे जवेण पवरे एवं भवइ बहुस्सुए || १६ || ३४४. जहाऽऽइण्ण समारूढे सूरे दढपरक्कमे । उभओ नंदिघोसेणं एवं भवइ बहुस्सुए ||१७|| ३४५. जहा करेणुपरिकिन्ने कुजरे सट्ठिहायणे । बलवंते अप्पडिहए एवं भवइ बहुस्सए ।। १८ । '३४६. जहा से तिक्खसिंगे जायक्खंधे विरायई । वसहे जूहाहिवई एवं भवइ बहुस्सए ||१९|| ३४७. जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए। सीहे मियाण पवरे एवं भवइ बहुस्सु ॥२०॥ ३४८. जहा से वासुदेवे संख-चक्क गदाधरे । अप्पडिहयबले जोहे एवं भवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥ ३४९. जहासे चाउरंते चक्कवट्टी महिड्डिए । चोद्दसरयणाहिवई एवं भवइ बहुस्सुए ||२२|| ३५०. जहा से सहस्सक्खे वज्नपाणी पुरंदरे । सक्के देवाहिवई एवं भवइ बहुस्सु ॥ २३ ॥ ३५१. जहा से तिमिरविद्धंसे श्री आगमगुणमंजूषा - १६४८ फ्र YOX Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO555555555555555 _ (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. १०, ११ [१०] 5555%8 ERUTORY HOTO乐乐听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明5台 उत्तिर्युत्ते दिवाकरे । जलते इव तेएणं एवं भवइ बहुस्सुए ||२४|| ३५२. जहा से उडुवई चंदे नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णमासीए एवं भवइ बहुस्सुए ॥२५॥ ३५३. जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधन्नपडिपुन्ने एवं भवइ बहुस्सुए ॥२६।। ३५४. जहा सा दुमाण पवरा जंबू नाम सुदंसणा। अणाढियस्स देवस्स एवं भवइ बहुस्सुए॥२७॥ ३५५. जहा सा नईण पवरा सलिला सागरंगमा। सीया नीलवंतपहवा भवइ बहुस्सुए ॥२८॥ ३५६. जहा से नगाण पवरे सुमहं मंदरे गिरी । नाणोसहिपज्जलिए एवं भवइ बहुस्सुए ।।२९।। ३५७. जहा से सयंभुरमणे उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे एवं भवइ बहुस्सुए ॥३०॥ ३५८. समुद्दगंभीरासमा दुरासया अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णा विपुलस्स ताइणो खवेत्तु कम्मं गइमुत्तमं गया॥३१।। ३५९. तम्हा सुयमहिट्ठिज्जा उत्तमट्ठगवेसए । जेणऽप्पाणं परं चेव सिद्धिं संपाउणिज्जासि ॥३२॥त्ति बेमि ।। *** ॥ बहुसुयपुज्जं समत्तं ॥११|| *** १२ बारसमं हरिएसिज्ज अज्झयणं * * ३६०.सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएस बलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिओ।। ३६१. इरिएसण-भासाए उच्चारसमिईसु य । जओ आदाणनिक्खेवे संजमो सुसमाहिओ॥२॥ ३६२. मणगुत्तो वइगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खट्ठा बंभइज्जम्मि जन्नवाडमुवट्ठिओ॥३॥ ३६३. तं पासिऊणमेज्जतं तवेण परिसोसियं । पंतोवहिउवगरणं ओहसंति अणारिया ॥४॥ ३६४. जाईमयपडिबद्धा हिंसगा अजिइंदिया। अबंभचारिणो बाला इमं वयणमब्बवी ॥५॥ ३६५. कयरे आगच्छइ दित्तरूवे काले विकराले फोक्कणासे। ओमचेलगे पंसुपिसायभूए संकरसं परिहरिय कंठे? ||६|| ३६६. कयरे तुम इय अदंसणिज्जे? काए व आसा इह मागओ सि?। ओमचेलया! पंसुपिसायभूया ! गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओ सि? ||७||३६७. जक्खो तहिं तिंदुयरुक्खवासी अणुकंपसो तस्स महामुणिस्स। पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाइं वयणाइं उदाहरित्था ||८|| ३६८. समणो अहं संजओ बंभचारी विरओ धण-पयण-परिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अण्णस्स अट्ठा इह मागओ मि ॥९॥३६९. विटरिज्जइ खज्जई भुज्जई य अण्णं पभूयं भवयाणमेयं । जाणेह मे जायणजीविणो त्ति सेसावसेसं लहऊ तवस्सी॥१०॥ ३७०.ऊवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । नऊ वयं एरिसमण्ण-पाणं दाहामु तुझं किमिहं ठिओ सि ?|११|| ३७१. थलेसु बीयाइं ववंति कासगा तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं आराहएपुण्णमिणं तु खेत्तं ॥१२॥ ३७२. खेत्तेणि अम्हं विइयाणि लोए जहिं पइण्णा विरुहंति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया ताई तु खेत्ताइं सुपेसलाई ।।१३।। ३७३. कोहो य माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहो य । ते माहणा जाइ-विज्जाविहूणा ताई तु खेत्ताई सुपावगाई ॥१४॥ ३७४. तुब्भेऽत्थ भो ! भारहरा गिराणं अटुं न जाणेह अहिज्ज वेए । उच्चावयाइं मुणिणो चरंति ताई तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥१५॥ ३७५. अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किण्णु सगासे अम्हं । अवि एवं विणस्सउ अण्ण-पाणं न यणं दाहामु तुहं नियंठा!॥१६॥ ३७६. समिईहिंमज्झं सुसमाहियस्स गुत्तीहिं गुत्तस्स जिइंदियस्स । जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्जं किमज्न जण्णाण लभित्थ लाभं ? ||१७|| ३७७. के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह ॥ खंडिएहिं । एयं दंडेण फलेण हंता कंठम्मि घेत्तूण खलेज जो णं ।।१८।। ३७८. अज्झवयाणं वयणं सुणेत्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दंडेहिं वेत्तेहिं कसेहिं चेव समागया तं इसि तालयंति ॥१९॥ ३७९. रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया भद्द त्ति नामेण अनिदियंगी । तं पासिया संजयं हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ ॥२०॥ ३८०. देवभिओगेण निओइएणं दिन्ना मुरण्णा मणसा न झाया। नरिंद-देविंदऽभिवंदिएणं जेणामि वंता इसिणा स एसो॥२१॥ ३८१. एसो हु सो उग्गतवो महप्पा जिइंदिओ संजओ बंभयारी। जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणी पिउणा सयं कोसलिएण रण्णा |२२|| ३८२. महाजसो एस महाणुभागो घोरव्वओ घोरपरक्कमो य। मा एयं हीलेह अहीलणिज्ज मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा ॥२३।। ३८३. एयाई तीसे वयणाई सोच्चा पत्तीए भद्दाए सुभासियाई । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विनिवारयति तहिं तं जणं तालयंति ||२४|| ३८४. ते घोररवा ठिय अंतलिक्खे असुरा तहिं तं जणं तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रूहियं वमन्ते पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥२५॥ ३८५. गिरिं नहेहिं खणह अयं दंतेहिं खायह। जायतेयं पाएहिं हणह जे भिक्खुं अवमण्णह ।।२६।। ३८६. आसीविसो उग्गतवो महेसी घोरव्वओ घोरपरक्कमो श्य। अगणिं व पक्खंद पयंगसेणा जे भिक्खुयं भत्तकाले वहेह ॥२७॥ ३८७. सीसेण एयं सरणं उवेह समागया सव्वजणेण तुब्भे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा लोयं xors55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६४९॥ 5555555555555EOxx GO乐乐乐乐明明听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐所听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐SOR Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. १२, १३ [११] पि कुविओ हेना ||२८|| ३८८. अवहेडियपट्टिसउत्तमंगे पसारियाबाहु अकम्मट्ठे । निब्भेरियच्छे रुहिरं वमंते उड्डम्मुहे निग्गयजीह नेते ॥२९॥ ३८९. ते पासियाखंडिय कभू विमणो विसन्नो अह माहणो सो । इसिं पसाएइ सभारियाओ हीलं च निंदं च खमाह भंते ! ||३०|| ३९०. बालेहिं मूढेहिं अयाणएहिं जं हीलिया तस्स खमाह भंते! । महप्पसाया इसिणो भवंति न हू मुणी कोवपरा भवंति ॥ ३१ ॥ ३९१. पुव्विं च इण्डिं च अणागयं च मणप्पओसो न मे अत्थि कोई । क्खा हु वेयावडियं करेति तम्हा हु एए निहया कुमारा ||३२|| ३९२. अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा तुब्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना । तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजणेण अम्हे ||३३|| ३९३. अच्चेमो ते महाभाग ! न ते किंचि, न अच्चिमो । भुंजाहि सालिमं कूरं नाणावंजणसंजुयं ॥ ३४ ॥। ३९४. इमं च मे अत्थि पभूयमण्णं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा। बाढं ति पडिच्छइ भत्त-पाणं मासस्स ऊ पारणए महप्पा ||३५|| ३९५. तहियं गंधोदय- पुप्फवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा। पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं आगासे अहोदाणं च घुट्टं ||३६|| ३९६. सक्खं खु दीसइ तवोविसेसो न दीसई जाइविसेसो कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहुं जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ।। ३७।। ३९७. किं माहणा ! जो समारभंता उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा ? | जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिनं कुसला वयंति ॥ ३८ ॥ ३९८. कसं च जूवं तण-कट्ठमग्गिं सायं च पायं उदगं फुसंता । पाणाई भूयाई विहेडयंता भुज्जो वि मंदा ! पकरेह पावं ||३९|| ३९९. कहं चरे भिक्खु ! वयं जयामो पावाइं कम्माई पणुल्लयामो ? । अक्खाहि णे संजय ! जक्खपूइया ! कहं सुजद्वं कुसला वयंति ? ॥४०॥ ४००. छज्जीवकाए असमारभंता मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिहं इथिओ माण मायं एयं परिन्नाय चरंति दंता ॥ ४१ ॥ ४०१. सुसंवुडा पंचहिं संवरेहिं इह जीवियं अणवकंखमाणा । वोसट्टकाया सुचिचत्तदेहा महाजयं जयई जन्नई जन्नसिहं ॥ ४२ ॥ ४०२. के ते जोई ? के व ते जोइठाणा ? ते सुया ? किं व ते कारिसंगं ? । एह्वा य ते कयरा संति भिक्खू ? कयरेण होमेण हुणासि जोई ? ॥४३॥ ४०३. तवो जोई जीवो जोइठाणं जोया सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मं एहा संजमजोग संती होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ||४|| ४०४. के ते हरए ? के य ते संतितित्थे ? कहिं सि ण्हाओ व रयं जहासि ? । आइक्ख णे संजय ! जक्खपूइया ! इच्छामु नाउं भवओ सकासे ॥४५॥ ४०५. धम्मे हरए बंभे संतितित्थे अणाइले अत्तपसण्णलेसे । जर्हिसि ण्हाओ विमलो विसुद्धो सुसीइओ पहामि दोसं ॥ ४६ ॥ ४०६. एवं सिणाणं कुसलेहिं दिट्टं महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहिंसि व्हाया विमला विसुद्धा महारिसी उत्तमं ठाण पत्त ॥ ४७॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ हरिएसिज्जं समत्तं ॥ ★★★ १३ तेरसमं चित्त- सभूइज्जं अज्झयणं ★★★ ४०७. जाईपराजिओ खलु कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि । चुलणीए बंभदत्तो उववण्णो परमगुम्माओ ॥ १ ॥ ४०८. कंपिल्ले संभूओ, चित्तो पुण जाओ पुरिमतालम्मि । सेट्ठिकुलम्मि विसाले धम्मं सोऊण पव्वइओ || २ || ४०९. कम्पिलाम्मि य नयरे समागया दो वि चित्तसंभूया । सुहदुक्खफलविवागं कहेति ते एगमेगस्स ||३|| ४१०. चक्कवट्टी महिडिओ बंभदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेण इमं वयणमब्बवी ||४|| ४११. आसिमो भायरो दो वि अण्णमण्णवसाणुगा । अण्णमण्णमत्ता अन्नमन्नहि सिणो ||५|| ४१२. दासा दसने आसी मिगा कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीराए सोवागा कासभूभिए || ६ || ४१३. देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे हड्डिया । इमाण छट्टिया जाई अण्णमण्णेण जा विणा ||७|| ४१४. कम्मा निदाणपगडा तुमे रायं ! विचितिया । तेसिं फलविवागेण विप्पओगमुवागया ॥ ८ ॥ ४१५. सच्च-सोयप्पगडा कम्मा मए पुरा कडा । ते अज्ज परिभुंजामो किं नु चित्तो वि से तहा ? || ९ || ४१६. सव्वं सुच्चिण्णं सफलं नराणं कडाण कम्माण न मोक्खु अत्थि । अत्थेहिं कामेहिं य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववे ॥ १०॥ ४१७. जाणाहि संभूय ! महाणुभागं महिड्डियं पुन्नफलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं ! इड्डी जुई तस्स वि य प्पभूया || ११ || ४१८. महत्थरूवा वयणऽप्पभूया गाहाऽणुगीया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया इहं जयंते समणो मि जाओ ||१२|| ४१९. उच्चोदए १ महु २ कक्के ३ य बंभे ५ पवेइया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं वित्तधणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १३ ॥ ४२०. नट्टेहिं गीएहिं य वाइएहिं नारीजणाई परिचारयंतो। भुंजाहि भोगाई इमाई भिक्खू ! मम रोयई पव्वज्जा हु दुक्खं || १४ || ४२१. तं पुव्वनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स KOAA श्री आगमगुणमंजूषा- १६५० 67295 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. १३, १४ ॐॐॐॐॐॐॐॐ T हियाणुपेही चित्तो इमं वक्कमुदाहरित्था ॥ १५ ॥ ४२२. सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नट्टं विडंबियं । सव्वे आभरणा भारा सव्वे कामा दुहावहा ।। १६ ।। ४२३. बालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु रायं ! । विरत्तकामाण तवोधणाणं जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं ॥ १७॥ ४२४. नरिंद ! जाई अधमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं । ज वयं सव्वजरस्स वेसा वसीय सोवागनिवेसणेसु || १८|| ४२५. तीसे य जाईय उ पावियाए वुत्था मु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा, इहं तु कम्मा पुरेकडाई ||१९|| ४२६. सो दाणि सिं राय ! महाणुभागो महिडिओ पुण्णफलोववेओ । चइत्तु भोगाई असासयाई आदाणहेउं अभिनिक्खमाहि ||२०|| ४२७. इह जीविए राय ! असासयम्मि धणियं तु पुन्नाइं अकुव्वमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए धम्मं अकाऊण परम्भि लोए ॥ २१ ॥ ४२८. जहेह सीहो व मियं गहाय मच्चू नरं नेइ हु अंतकाले । न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तम्मंसहरा भवंति ॥२२॥। ४२९. न तस्स दुक्खं विभयंति नायओ न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं कत्तारमेवा अणुजाई कम्मं ॥२३॥ ४३०. चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च खेत्तं गिहं धण धन्नं च सव्वं । सकम्मबिइओ अवसो पयाइ परं भवं सुंदर पावगं वा ॥२४॥ ४३१. तमेगयं तुच्छसरीरगं से चिईगयं दहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्तो वि य नायओ य दायारमण्णं अणुसंकमंति ||२५|| ४३२. उवणिज्जइ जीवियमप्पमायं वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं !। पंचालराया ! वयणं सुणाहि मा कासि कम्माणि महालयाणि ॥ २६ ॥ ४३३. अहं पि जाणामि जहेह साहू ! जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा भवंति जे दुज्जया अज्जो ! अम्हारिसेहिं ||२७|| ४३४. हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दवणं नरवई महिड्डीयं । कामभोगेसु गिद्धेणं निदाणमसुहं कडं ॥२८॥ ४३५. तस्स में अपडिकंतस्स इमं एयारिसं फलं । जाणमाणो वि जं धम्मं कामभोगेसु मुच्छिओ ||२९|| ४३६. नागो जहा पंकजलावसन्नो दहुं थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥ ३० ॥ ४३७. अच्चेइ कालो तूरंति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा । उवेच्च भोगा पुरिसं चयंति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ||३१|| ४३८. जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाई कम्माई करेहि रायं ! | धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकंपी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ||३२|| ४३९. न तुज्झ भोए चइऊण बुद्धी गिद्धो सि आरंभ-परिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिओ विप्पलावो गच्छामि रायं ! आमंतिओ सि ॥३३॥ ४४०. पंचालराया वि य बंभदत्तो साहुस्स तस्सा वयणं अकाउं। अणुत्तरे भुंजिय कामभोए अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥ ३४ ॥ ४४१. चित्तो वि कामे हिं विरत्तकामो उदत्तचारित्त-तवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धिगइं गओ ॥३५॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ चित्त-संभूइज्जं समत्तं ॥ १३॥ ★★★१४ चउदसमं उसुयारिज्जं अज्झयणं ★★★४४२. देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी केई चुया एगविमाणवासी । पुरे पुराणे उसुयारनामे खाए समिद्धे सुरलोयरम्मे ॥१॥ ४४३. सकम्मसेसेण पुराकएणं कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया । निव्विण्ण संसारभया जहाय जिणिंदमग्गं सरणं पवण्णा ॥२॥ ४४४. पुमत्तमागम्म कुमार दो वि पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसालकित्ती य तहोसुयारो रायऽत्थ देवी कमलावई य || ३ | ४४५. जाई - जरा मच्चुभयाभिभूया बहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा दट्टूण ते कामगुणे विरत्ता ||४|| ४४६. पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाईं तहा सुचिणं तव संजमं च ॥ ५ ॥ ४४७. ते कामभोगेसु असज्जमाणा माणुस्सएसुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकखी अभिजायसड्डा तायं उवागम्म इमं उदाहु ||६|| ४४८. असासयं दट्टु इमं विहारं बहुअंतरायं न य दीहमाउं । तम्हा गिहंसि न रई लभामो आमंतयामो चरिस्सामो मोणं ||७|| ४४९. अह तायओ तत्थ मुणीण तेसिं तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविदो वयंति जहां न होई असुयाण लोगो ||८|| ४५०. अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे पुत्ते परिट्ठप्प गिहंसि जया ! भोच्चा ण भोए सह इत्थियाहिं आरण्णगा होह मुणी पसत्था || ९ || ४५१. सोयग्गिणा आयगुणिंधणेणं मोहानिला पज्जलणाहिएणं । संतत्तभावं परितप्पमाणं लालप्पमाणं बहु बहु ॥१०॥ ४५२. पुरोहियं तं कमसोऽणुर्णेतं निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहक्कमं कामगुणेहिं चेव कुमारगा ते पसमिक्ख वक् ||११|| ४५३. वेया अधीया न भवंति ताणं, भुत्ता दिया णेति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न भवंति ताणं, को नाम ते अणुमण्णेज्ज एयं ? || १२ || ४५४. खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पकामदुक्खा ५ श्री आगमगुणमंजूषा - १६५० XORO [१२] Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9555555555555555 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. १४ [१३] OTO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐明玩乐乐明乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明格 अनिकामसोक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खभूया खाणी अणत्थाण उ कामभोगा||१३|| ४५५. परिव्वयंते अनियत्तकामे अहो य राओ परितप्पमाणे। अण्णप्पमत्ते धणमेसमाणे पप्पोति मच्, पुरिसे जरं च॥१४|| ४५६. इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि इमं च मे किच्च इमं अकिच्वं । तं एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरंति त्ति कहं पमाओ? ॥१५॥ ४५७. धणं पभूयं सह इत्थियाहिं सयणा तहा कामगुणा पकामा । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो तं सव्व साहीणमिहेव तुब्भं ।।१६।। ४५८. धणेण किं धम्मधुराधिगारे सयणेण वा कामगुणेहिं चेव ? । समणा भविस्सामो गुणोहधारी बहिविहारा अहिगम्म भिक्खं ।।१७।। ४५१. जहा य अग्गी अरणीअसंतो खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु। एमेव जाया ! सरीरंसि सत्ता सम्मुच्छई नासइ नावचिद्वे॥१८|| ४६०. नो इंदियग्गेज्झो अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्झत्थहेउं निययऽस्स बंधो संसारहेउं च वयंति बंधं ।।१९।। ४६१. जहा वयं धम्ममयाणमाणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुब्भमाणा परिरक्खियंता तं नेव भुज्जो वि समायरामो ॥२०॥ ४६२. अब्भाहयम्मि लोयम्मि सव्वओ परिवारिए । अमोहाहिं पडंतीहिं गिहंसि न रई लभे ॥२१॥ ४६३. केण अब्भाहओ लोगो ? केण वा ॥ परिवारिओ ? । का वा अमोहा वुत्ता ? जाया ! चिंतावरो हुमि ॥२२॥ ४६४. मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता एवं ताय ! वियाणह |२३|| ४६५. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। अधम्म कुणमाणस्स अफला जंति राइओ ।।२४।। ४६६. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स सफला जंति राइओ ॥२५॥ ४६७. एगओ संवसित्ता णं दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया ! गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले ॥२६।। ४६८. जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं जस्स चऽत्थि पलायणं । जो जाणइ न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया ॥२७॥ ४६९. अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो जहिं पवण्णा न पुणब्भवामो । अणागयं नेव य अत्थि किंचि सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ।।२८।। ४७०. पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्ठि ! भिक्खायरियाए कालो । साहाहिं रुक्खो लभई समाहिं छिन्नाहिंसाहाहिं तमेव खाणुं॥२९॥ ४७१. पंखाविहूणो वजहेव पक्खी भिच्चविहूणो व्व रणे नरिंदो। विवण्णसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तो मितहा अहं पि॥३०॥ ४७२. सुसंभिया कामगुणा इमे ते संपिडिया अग्गरसा पभूया। जामु ता कामगुणे पकामं पच्छा गमिस्सामो पहाणमग्गं ॥३१॥ ४७३. भुत्ता रसा भोइ ! जहाति णे वओ, नजीवियट्ठा पयहामि भोए। लाभं अलाभं च सुह च दुक्खं संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं॥३२॥ ४७४. मा हू तुमं सोयरियाण संभरे जुन्नो व हंसो पडिसोयगामी । भुंजाहि भोगाइं मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खाचरिया विहारो॥३३|| ४७५. जहा य भोई ! तणुयं भुजंगमो निम्मोयणि अच्च पलेइ मुत्ते। एमए जाया पयहंति भोए ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्को ? ॥३४॥ ४७६. छिदित्तु जालं अबलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेज्जसीला तवसा उदारा धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ॥३५|| ४७७. नहे व्व कोंचा समइक्कमंता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा। पलिति पुत्ता य पई य मज्झं ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ? ॥३६|| ४७८. पुरोहियं तं ससुयं सदारं सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोगे। कुडुंबसार विउलुत्तमं तं रायं अभिक्खं समुवाय देवी ॥३७।। ४७९. वंतासी पुरिसोरायं ! न सो होइ पसंसिओ । माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ॥३८॥ ४८०. सव्वं जगं जइ तुहं सव्वं वा वि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाए तं तव ॥३९॥ ४८१. मरिहिसि रायं ! जया तया वा मणोरमे कामगुणे पहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं, न विज्जए अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ ४८२. नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा संताणछिन्ना चरिसामि मोणं !। अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा परिग्गहारंभनियत्तदोसा॥४१॥ ४८३. दवग्गिणा जहाऽरन्ने डज्झमाणेसु जंतुसु । अन्ने सत्ता पमोयंति राग-दोसवसं गया ।।४२।। ४८४. एवमेव वयं मूढा कामभोगेसु मुच्छिया । डज्झमाणं न बुज्झामो राग-दोसग्गिणा जयं ॥४३।। ४८५. भोगे भोच्चा वमित्ता य लहुभूयविहारणो । आमोयमाणा गच्छंति दिया कामकमा इव ॥४४॥ ४८६. इमे य बद्धा फंदति मम हत्थऽज्जमागया। वयं च सत्ता कामेसु भविस्सामो जहा इमे ॥४५॥ ४८७. सामिसं कुललं दिस्सा बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामो निरामिसा ॥४६|| ४८८. गिद्धोवमे उ नच्चा णं कामे संसारवद्धणे! उरगो सुवण्णपासे व्वं संकमाणो तणु चरे॥४७।। ४८९. नागो व्व बंधणं छेत्ता अप्पणो वसहिं वए। एयं पत्थं महारायं । उसुयार ! त्ति मे सुयं ॥४८॥ ४९०. चइत्ता विउलं रहूँ कामभोगे य दुच्चए । निव्विसया निरामिसा निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥४९।। ४९१. सम्मं धम्मं वियाणित्ता चेच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्झऽहक्खायं घरं Xeks5555555555555 5 555 श्री आगमगुणमजूषा - १६५२555555555555555555555555567OK GO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听兵明明只 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HORO (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्यं मूलसुत्त) अ. १५, १६ [१४] फफफफफफफ घोरपरक्कमा ॥५०॥। ४९२. एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे धम्मपरायणा । जम्म- मच्चुभउव्विग्गा दुक्खस्संतगवेसिणो ॥ ५१ ॥ ४९३. सासणे विगयमोहाणं पुव्विं भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण दुक्खस्संतमुवागया ॥ ५२॥। ४९४. राया सह देवीए माहणो य पुरोहिओ । माहणी दारगा चेव सव्वे ते परिनिव्वुड ॥ ५३ ॥ त्ति बेमि || ★★★ ॥ उयारिज्जं समत्तं || १४ || १५ पण्णरसमं सभिक्खुयं अज्झयणं ★★★ ४९५. मोणं चरिस्सामि समेच्च धम्मं सहिए उज्जुकडे निदाणछिन्ने । संथवं जहेज्न अकामकामे अण्णाएसी परिव्वए स भिक्खू || १ || ४९६. ओवरयं चरेज्न लाढे विरए वेदवियाऽऽयरक्खिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे कहिंचि न मुच्छिएस भिक्खू || २ || ४९७. अक्कोस वहं विइत्तु धीरे मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । अव्वग्गमणे असंपहिट्टे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू || ३ || ४९८. पंतं सणास भत्ता सीउण्हं विविहं च दंस-मसगं । अव्वग्गमणे असंपहिले जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ||४|| ४९९. नो सक्कियमिच्छई न पूयं नो वि य वंदणयं कुओ पसंसं ? | से संजए सुव्वए तवस्सी सहिए आयगवेसए स भिक्खू ||५|| ५००. जेण पुण जहाइ जीवियं मोहं वा कसिणं नियच्छई। नर-नारिं पजहे सया तवस्सी न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ ५०१. छिन्नं सरं भोम्मं अंतलिक्खं सुविणं लक्खण दंड वत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं जे विज्जाहिं न जीवई स भिक्खू ||७|| १०२. नंतं मुलं विविहं वेज्जचितं कमण- विरेयण धुम- नेत्त सिणाणं । आतुरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिण्णाय परिव्वए स भिक्खू ||८|| ५०३. खत्तिय-गण-उग्ग रायपुत्ता माहण भोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोग- पूयं तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ||९|| ५०४. गिहिणो जे पण अपव्वइएण व संथुया हवेज्जा । तेसिं इहलोगफलट्टयाए जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥१०॥ ५०७ संथणासण पाण-भोयणं विविहं खाइम साइमं परेसिं । अदए पडिहिए नियंते ये तत्व न उस्सती स भिक्खू || १ || ५०६. जं किंचाहार-पाणं विविहं खाइम साइमं परेसिं लब्धुं । जो तं तिविहेण नाणुकंपे मण-वइपायसुसंवुडे स भिक्खू ॥१२॥ ५०७. आयामगं चेद जवोयणं च सीयं सोवीर जवोदगं च। नो हीलए पिंडं नीरसं तु पंतकुलाई परिव्वए स भिक्खू ॥१३॥ ५०८. सद्दा विविहा भवंति लोए दिव्वा माणुसया तहा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा उराला जे सोच्चा ण वहिज्जई स भिक्खू || १४ || ५०९. वायं विविहं समेच्च लोए सहिए यागए सकोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी उवसंते अविहेडए स भिक्खू ।। १५ ।। ५१०. असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते जिइंदिए सव्वओ विप्पमुक्के। अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खु || १६ |त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ सभिक्खुयऽज्झयणं पण्णरसमं समत्तं ॥ १५ ॥ ★★★ १६ सोलसमं भरसमाहिद्वाणं अज्झयणं ★★★ ५११. सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिद्वाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ॥ १ ॥ ५१२. १ कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता जाव अप्पमत्ते विहरेज्न त्ति । तं जहा २ विवित्ताइं सयणासणाई सेविज्जा से निग्गंथे, नो इत्थि पसु पंडगसंसत्ताई सणासणाई सेवित्ता भवति । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु इत्थि - पसु -पंडगसंसत्ताई सयणासणाई सवमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा विचिछा वा समुपज्जेज्जा, भेयं वा लभेज्ना, उम्मार्थ वा पाउणेज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थि पसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाहिं सेवित्ता हवइ से निग्गंथे १ । ३ नो इत्थीण कह कहेत्ता भवति से निग्गंथे । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिंछा वा समुप्पज्जेज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा २ । ४ नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेत्ता हवइ से निग्गंथे। तं कहमिइ ? निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धि सन्निज्जायस विहरमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा जाव केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धि ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १६५३ A S S S S S 2010 03 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. १६, १७ सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ३ । ५ नो इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवति से निग्गंथे । तं कहमिइ ? निग्गंथस्स खलु इत्थी इंदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोअमाणस्स निज्झायमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा जाव केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु इत्थी इंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोएज्जा निज्झाएज्जा ४ । ६ नो इत्थीणं कुतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तिअंतरंसि वा कूइयसद्दं वा रुइयसद्द वा गीयसद्दं वा हसियसद्दं वा थणियसद्दं वा कंदियसद्दं वा विलवियसद्दं वा सुणेत्ता भवइ से निग्गंथे । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कुतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तिअतरंसि वा कूइयसद्दं वा जाव विलवियसद्दं सुणमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिंछा वा जाव केवलिपन्नत्ताओ वा धमाओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीणं कुडुंतरंसि वा जाव सुणमाणे विहरेज्जा ५ । ७ नो निग्गंथे पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरित्ता भवइ । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा जाव केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा - खलु नो निग्गंथे पुव्वरयं पुब्वकीलियं अणुसरेज्जा ६ । ८ नो पणीयं आहारं आहारिता भवइ से निग्गंथे । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु पणीयं पाण-भोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा जाव केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा ७ । ९ नो अइमायाए पाण-भोयणं आहारिता भवइ से निग्गंथे । तं कहमिति ? निग्गंथस्स खलु अइमायाए पाण-भोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वाजाव केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे अइमायाए पाण-भोयणं भुंजेज्ना ८ । १० नो विभूसाणुवाई भवइ से निग्गंथे । तं कहमिइ ? विभूसावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अहिलसणिज्जे भवइ । तओ णं तस्स इत्थिजणेणं अहिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिंछा वा समुप्पज्जेज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणेज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया ९ । ११ नो सद्द-रूव-रस-गंध-फासाणुवाई भवति से निग्गंथे तं कहमिति ?- निग्गंथस्स खलु सद्द- रुव-रस गंध फासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कखा वावितिगिंछा वा समुप्पज्जेज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणेज्जा, दीकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो सद् रूव-रस-गंध-फासाणुवाई हवइ से निग्गंथे । दसमे बंभचेरसमाहिट्ठाणे हवइ ||१०|| २ || ५१३. भवंति एत्थ सिलोगा, तं जहा जं विवित्तमणाइण्णं रहियं इत्थिजणेण य | बंभचेरस्स रक्खट्ठा आलयं तु निसेवए || ३ || ५१४. मणपल्हायजणणिं कामरागविवड्ढणिं। बंभचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए ॥४॥ ५१५. समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं । बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए ॥ ५॥ ५१६. अंग-पच्चंगसंठाणं चारुल्लविय पेहियं । बंभचेररओ थीणं चक्खुगेज्झं विवज्जए ||६|| ५१७. कुइयं रुइयं गीयं हसियं थणिय कंदियं । बंभचेररओ थीणं सोयगेज्झं विवज्जए ॥ ७ ॥ ५१८. हासं किड्डुं रडं दप्पं सहसाऽवत्तासियाणि य | बंभचेररओ थीणं नाणुचिंते कयाइ वि ॥ ८ ॥ ५१९. पणीयं भत्त-पाणं तु खिप्पं मयविवड्ढणं । बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए || ९ || ५२०. धम्मलब्द्धं मियं काले जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु भुंजेज्जा बंभचेररओ सया ॥ १०॥ ५२१. विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमंडणं । बंभचेररओ भिक्खू सिंगारत्थं न धारए ॥ ११ ॥ ५२२. सद्दे रूवे य गंधे य रसे फासे तहेव य । पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए ।।१२।। ५२३. आलओ थीजणाइन्नो थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं तासिं इंदियदरिसणं ||१३|| ५२४. कुइयं रुइयं गीयं सहभुत्तासियाणि य । पणीयं भत्त-पाणं च अइमायं पाण- भोयणं ।। १४ ।। ५२५. गत्तभूसणमिदं च कामभोगा य दुज्नया। नरस्सऽत्तगवेसिस्स विसं तालउड जहा ॥ १५॥ ५२६. दुज्जए कामभोगे य निच्चसो परिवज्जए । संकाठाणाणि सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं ।। १६ ।। ५२७. धम्मारामे चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही धम्मारामरए दंते बंभचेरसमाहिए । १७।। ५२८. देव-दाणव- गंधव्वा जक्ख- रक्खस- किन्नरा । बंभयारिं नम॑संति दुक्करं जे करंति तं ।।१८।। ५२९. एस धम्मे धुवे नियए सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्झति चाणेणं सिज्झिस्संति तहाऽवरे || १९|| त्ति बेमि ★ ★ ★ ॥ बंभचेरसमाहिट्ठाणं 1 2010 03 原 ZOOK श्री आगमगुणमंजूषा १६५४ ५५० Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. १७, १८ [१६] सोलसमं समत्तं ॥ १६ ॥ ★★★ १७ सत्तरसमं पावसमणिज्जं अज्झयणं ★ ★ ★ ५३०. जे केइ उ पव्वइए नियंठे धम्मं सुणित्ता विणओववन्ने । सुदुल्लहं हिउं बोहिलाभं विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥ १॥ ५३१. सेज्ना दढा पाउरणं मे अत्थि उप्पज्जई भोत्तु तहेव पाउं । जाणामि जं वट्टइ आउसो त्ति, किं नाम काहामि सुण भंते! || २ || ५३२. जे केइ उ पव्वइए निद्दासीले पकामसो । भोच्चा पेच्चा सुहं सुयइ पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ ३ ॥ ५३३. आयरिय उवज्झाएहिं सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिसई बाले पावसमणे त्ति वुच्चई ||४|| ५३४. आयरिय उवज्झायाणं सम्मं न पडितप्पई। अप्पडिपूयए थद्ध पावसमणे त्ति वुच्चई ||५|| ५३५. सम्मद्दमाणे पाणाणि बीयाणि हरियाणि य । असंजए संजयमन्नमाणे पावसमणे ति वच्चई ||६|| ५३६. संथारं फलगं पीढं निसेज्जं पायकंबलं । अपमज्जिय आरुहइ पावसमणेत्ति वुच्चई ||७|| ५३७. दवदवस्स चरई पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चंडे य पावसमणे त्ति वुच्चई ||८|| ५३८. पडिलेहेइ पमत्ते अवउज्झ पायकंबलं । पडिलेहणाअणाउत्ते पावसमणे त्ति वुच्चई || ९ || ५३९. पडिले पमत्ते से किंचि हु निसामिया । गुरुपरिभावए निच्चं पावसमणे ति वच्चई ॥ १० ॥ ५४०. बहुमाई पमुहरी थद्दे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अचियत्ते पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ ११ ॥ ५४१. विवायं च उदीरेइ अधम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते पावसमणे त्ति वच्चई ||१२|| ५४२. अथिरासणे कुक्कुइए जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते पावसमणे त्ति वुच्चई || १३ || ५४३. ससरक्खपाए सुवति सेज्जं न पडिलेहए । संथारए अणाउत्ते पावसमणे त्ति वुच्चई || १४ || ५४४. दुद्ध-दधी विगईओ आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे पावसमणे ति वच्चई || १५ || ५४५. अत्यंतम्मि य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ पावसमणे त्ति वुच्चई ||१६|| ५४६. आयरियपरिच्चाई परपासंडसेवए । गाणंगणिए दुब्भूए पावसमणे त्ति वुच्चई ।।१७।। ५४७. सयं गेहं परिच्चज्ज परगेहंसि वावरे। निमित्तेण यववहरई पावसमणेत्ति वुच्चई || १८|| ५४८. सन्नायपिडं जेमेइ नेच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ १९ ॥ ५४९. एयारिसे पंचकुसीलऽसंबुडे रूवंघरे मुणिपवराण हेट्ठिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए न से इहं नेव परत्थ लोए ॥ २०॥ ५५०. जे वज्जए एए सा उ दोसे से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे। अयंसि लोए अमयं व पूइए आराहए दुहओ लोगमणि ॥ २१ ॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ पावसमणिज्जं समत्तं ॥१७॥ ★★★१८ अट्ठारसमं संजइज्जं अज्झयणं ★★★ ५५१. कंपिल्ले नयरे राया उदिन्नबल-वाहणे । नामेणं संजए नाम मिगव्वं उवणिग्ग ॥ १ ॥ ५५२. हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य । पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए ||२|| ५५३. मिए छिवेत्ता हयगए कंपिल्लुज्जाणकेसरे । भीए संते मिए तत्थ वहेइ रसमुच्छिए ||३|| ५५४. अह केसरम्मि उज्जाणे अणगारे तवोधणे । सज्झाय-ज्झाणसंजुत्ते धम्मज्झाणं झियाय || ४ || ५५५. अप्फोयमंडवम्मी झायई झवियासवे । तस्सागए मिए पास वहेइ से नराहिवे ||५|| ५५६. अह आसगओ राया खिप्पमागम्म सो तहिं । हुए मिए उपासित्ता अणगारं तत्थ पासई || ६ || ५५७. अह राया तत्थ संतो अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मंदपुन्नेणं रसगिद्धेण घन्नुणा ।।७।। ५५८. आसं विसज्जइत्ता णं अणगारस्स सो निवो। विणएण वंदई पाए भगवं ! एत्थ मे खमे ।।८।। ५५९. अह मोणेण सो भयवं अणगारो झाणमासिओ । रायाणं न पडिमंतेइ तओ राया भयद्दुओ ||९|| ५६०. संजओ अहमंसीति भयवं वाहराह मे । कुद्धे तेएण अणगारे sहेज्ज नरकोडिओ ॥१०॥ ५६१. अभओ पत्थिवा ! तुज्झं अभयदाया भवाहि य। अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसी ? ||११|| ५६२. जया सव्वं परिच्चज्ज गंतव्वमवसस्स ते । अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसी ? ||१२|| ५६३. जीवियं चेव रूवं च विज्जुसंपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं ! पेच्चत्थं T नावबुज्झसी ||१३|| ५६४. दाराणि य सुया चेव मित्ता य तह बंधवा । जीवंतमणुजीवंति मयं नाणुवयंति य ॥ १४ ॥ ५६५. नीहरंति मयं पुत्ता पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते बंधू रायं तवं चरे || १५|| ५६६. तओ तेणऽज्जिए दव्वे दारे य परिरक्खिए। कीलंतऽन्ने नरा रायं ! हट्ठतुट्टमलंकिया || १६ || ५६७. तेणावि जं कयं कम्मं सुहं वा जइवा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्ते गच्छती तु परं भवं ||१७|| ५६८. सोऊण तस्स सो धम्मं अणगारस्स अंतिए । महया संवेग - निव्वेयं समावन्नो नराहिवो ।। १८ ।। ५६९. संजओ चइउं रज्जं निक्खंतो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ अणगारस्स अंतिए । १९ ॥ ५७०. चेच्चा रद्वं पव्वइए खत्तिए परिभासा । जहा YOYOR श्री आगमगुणमंजूषा १६५५ ॐॐॐॐॐॐॐ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOXOF555555555555 (४३) उत्तरज्ज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. १८, १९ [१७] 555555555555 pxoly ते दीसती रूवं पसन्नं ते जहा मणो॥२०॥ ५७१. किंनामे ? किंगोत्ते? कस्सट्ठाए व माहणे? । कहं पडियरसि बुद्धे ? कहं विणीए त्ति वुच्चसि ? ॥२१|| ५७२. संजओ नाम मनामेणं तहा गोत्तेण गोयमो। गद्दभाली ममायरिया विज्जा-चरणपारगा ।।२२।। ५७३. किरियं अकिरियं विणयं अण्णाणं च महामुणी ! | एएहिं चउहिं ठाणेहिं मेयन्ने किं पभासई ॥२३॥ ५७४. इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए। विज्जा-चरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे ॥२४॥ ५७५. पडंति नरए घोरे जे नरा पावकारिणो। दिव्वं च गई गच्छंति चरित्ता धम्ममारियं ॥२५।। ५७६. मायावुइयमेयं तु मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं वसामि इरियामि य ॥२६।। ५७७. सव्वे ते विदिया मज्झं 5 मिच्छादिट्ठी अणारिया । विज्जमाणे परे लोए सम्मं जाणामि अप्पयं ||२७|| ५७८. अहमंसि महापाणे जुइमं वरिससओवमे । जा सा पाली महापाली दिव्वा वरिससओवमा ||२८|| ५७९. से चुए बंभलोगाओ माणुस्सं भवमागए। अप्पणो य परेसिंच आउं जाणे जहा तहा ।।२९।। ५८०. नाणा रुइं च छंदं च परिवज्जेज्ज संजए। अणट्ठा जे य सव्वत्था इइ विज्जामणुसंचरे ॥३०॥ ५८१. पडिक्कमामि पसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो । अहो ! उठ्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे॥३१॥ ५८२. 4 जं च मे पुच्छसी काले सम्मं सुरेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ॥३२॥ ५८३. किरियं च रोयए धीरे अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठीए दिट्ठिसंपन्ने धम्मं चर सुदुच्चरं ॥३३॥ ५८४. एयं पुण्णपयं सोच्चा अत्थ-धम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वासं चेच्चा कामाई पव्वए॥३४॥ ५८५. सगरो वि सागरंतं भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हेच्चा दयाए परिनिव्वुओ॥३५॥ ५८६. चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्डिओ। पव्वज्जमब्भुवगओ मघवं नाम महाजसो॥३६|| ५८७. सणंकुमारो मणुस्सेदो चक्कवट्टी महिड्डिओ। पुत्तं रज्जे ठवेऊणं सो वि राया तवं चरे॥३७॥ ५८८. चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्डिओ। संती संतिकरो लोए पत्तो गइमणुत्तरं ।।३८।। ५८९. इक्खागरायवसहो कुंथू नाम नरीसरो। विक्खायकित्ती धिइमं पत्तो गइमणुत्तरं ॥३९॥ ५९०. सागरंतं चइत्ता णं भरहं नरवरीसरो। अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं ॥४०॥ ५९१. चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्डिओ। चेच्चा य उत्तमे भोए महापउमो दमं चरे॥४१॥ ५९२. एगछत्तं पसाहेत्ता महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मणुस्सेदो पत्तो गइमणुत्तरं ।।४२।। ५९३. अन्निओ रायसहस्सेहिं सुपरिच्चाई दमं चरे । जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुत्तरं ॥४३॥ ५९४. दसण्णरज मुइयं चइत्ता णं मुणी चरे। दसण्णभद्दो णिक्खंतो सक्खं सक्केण चोइओ॥४४॥ ५९५. नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवट्ठिओ॥४५|| ५९६. करकंडु कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसुगंधारेसु य नग्गई ॥४६॥ ५९७. एए नरिंदवसभा निक्खंता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवेऊणं सामण्णे पज्जुवट्ठिया ॥४७॥ ५९८. सोवीररायवसभो चेच्चो ण मुणी चरे। उदायणो पव्वइओ पत्तो गइमणुत्तरं ॥४८॥ ५९९. तहेव कासीराया वि सेओ-सच्चपरक्कमो । कामभोगे परिच्चज्ज पहणे कम्ममहावणं ।।४९।। ६००. तहेव विजओ राया अणट्टा कित्ति पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महाजसो॥५०॥६०१. तहेवुग्गं तवं किच्चा अव्वक्खित्तेण चेतसा । महब्बलो रायरिसी आदाय सिरसा सिरिं॥५१॥६०२. कहं धीरो अहेऊहिं उम्मतो व महिं चरे? । एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा ॥५२|| ६०३. अच्वंतनियाणखमा सच्चा मे भासिया वई। अतरिंसु तरंतेगे तरिस्संति अणागया ।।५३।। ६०४. कहं धीरे अहेऊहिं आयाय परियावसे ? । सव्वसंगविणिम्मुक्के सिद्धे भवइ नीरए।।५४॥त्ति बेमि॥*॥ संजइज्जं समत्तं ॥१८॥★★★१९ एगूणवीसइमं मियापुत्तिज्ज अज्झयणं *** ६०५. सुग्गीवे नगरे रम्मे काणणुज्जाणसोहिए। राया बलभद्दे त्ति मिया तस्सऽग्गमाहिसी ॥१॥६०६. तेसिं पुत्ते बलसिरी मियापुत्ते त्ति विस्सुए। अम्मा-पितीण दइए जुवराया दमीसरे ||२|| ६०७. नंदणे सो उपासाए कीलए सह इत्थिहिं । देवो दोगुंदुगो चेव निच्चं मुइयमाणसो ||३|| ६०८. मणि रयणकोट्टिमतले पासायालोयणे ठिओ। आलोएइ नगरस्स चउक्क-तिय-चच्चरे ॥४॥६०९. अह तत्थ अइच्छंतं पासई समण संजयं । तव-नियम-संजमधरं सीलहूं म गुणआगरं ।।५।। ६१०. तं देहती मियापुत्ते दिट्ठीए अनमिसाए उ। कहिं मन्नेरिसं रूवं दिट्ठपुव्वं मए पुरा ?||६॥ ६११. साहुस्स दरिसणे तस्स अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहं गयस्स संतस्स जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ ६१२. देवलोगा चुओ संतो माणुसं भवमागओ। सण्णिणाणे समुप्पन्ने जाई सरइ पुराणियं ।।८।।६१३. जाईसरणे TOUC5明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听FSC GNC历听听听听听听听听听听听听听乐乐明乐坂乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐园 Yo:555555555555555555555) श्री आगमगुणमंजूषा-१६५६5555555555555555555555555OOR Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGRO555555555555555 (४३) उत्तररुज्झयणं (चउत्थं मूलसुत) अ. १९ १ ८] 55555555555555eog 0 %%%%%%$2 %%%%%%%%%%%%%%%%% समुप्पन्ने मियापुत्ते महिड्डिए। सरई पोराणियं जाई सामण्णं च पुराकयं ॥९॥६१४. विसएहिं अरज्जतो रज्जतो संजमम्मि य। अम्मा-पियरं उवागम्म इमं वयणमब्बवी ॥१०|| ६१५. सुयाणि मे पंच महव्वयाणि नरएसु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु । निविण्णकामो मि महण्णवाओ अणुजाणह पव्वइस्सामो अम्मो ! ।।११।। ६१६. अम्म ! ताय ! मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुयविवागा अणुबंधदुहावहा ।।१२।। ६१७. इमं सरीरं अणिच्चं असुइं असुइसंभवं । असासयावासमिणं दुक्खकेसाण भायणं ॥१३॥ ६१८. असासए सरीरम्मि रई नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे फेणबुब्बुयसन्निभे ।।१४।। ६१९. माणुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए। जरा-मरणपत्थम्मि खणं पि न रमामहं ।।१५।। ६२०. जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य । अहो ! दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसंति जंतवो ||१६|| ६२१. खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पुत्त-दारं च बंधवा । चइत्ताणं इमं देहं गंतव्वमवसस्स मे ।।१७।। ६२२. जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरो । एवं भुत्ताण ॐ भोगाणं परिणामो न सुंदरो॥१८|| ६२३. अद्धाणं जो महंतं तु अपाहेज्जो पवज्जई । गच्छंते से दुही होइ छुहा-तण्हाए पीलिए ।।१९।। ६२४. एवं धम्मं अकाऊणं जो ' गच्छइ परं भवं । गच्छंते से दुही होइ वाहि-रोगेहिं पीलिए॥२०॥ ६२५. अद्धाणं जो महतं तु सपाहेज्नो पवज्जई । गच्छंते से सुही होइ छुहा-तण्हाविवज्जिए।।२१।। ६२६. एवं धम्म पि काऊणं जो गच्छइ परं भवं । गच्छंते से सुही होइ अप्पकम्मे अवेयणे ।।२२।। ६२७. जहा गेहे पलित्तम्मि तस्स गेहस्स जो पहू । सारभंडाणि नीणेइ असारं अवइज्झइ ।।२३।। ६२८. एवं लोए पलित्तम्मि जराए मरणेण य । अप्पाणं तारयिस्सामि तुब्भेहिं अणुमन्निओ ॥२४॥ ६२९. तं बेंतऽम्मा-पियरो सामन्नं पुत्त ! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाइं भिक्खुणा ॥२५।। ६३०. समता सव्वभूएसु सत्तु-मित्तेसुवा जगे। पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करं ॥२६|| ६३१. निच्चकालऽप्पमत्तेणं मुसावायविवज्जणं । भासियव्वं हियं सच्चं निच्चाउत्तेण दुक्करं ॥२७॥ ६३२. दंतसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ।।२८।। ६३३. विरई अबंभचेरस्स कामभोगरसन्नुणा । उग्गं महव्वयं बंभं धारेयव्वं सुदुक्करं ||२९|| ६३४. धण-धन्न-पेसवग्गेसु परिग्गहविवज्जणा । सव्वारंभपरिच्चाओ निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥३०॥ ६३५. चउब्विहे वि आहारे राईभोयणवज्जणा । सन्निहीसंचओ चेव वज्जेयव्वो सुदुक्करं ॥३१।। ६३६. छुहा तण्हा य सीउण्हं दंस-मसगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य तणफासा जल्लमेव य ।।३२|| ६३७. तालणा तज्जणा चेव वध-बंधपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया जायणा य अलाभया ।।३३।। ६३८. कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो । दुक्खं बंभव्वयं घोरं धारेउं अमहप्पणो ॥३४॥ ६३९. सुहोइओ तुमं पुत्ता ! सुकुमालो य सुमज्जिओ। न हु सी पभू तुमं पुत्ता ! सामण्णमणुपालिया ॥३५।। ६४०. जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महब्भरो। गरुओ लोहभारो व्व जो पुत्ता ! होइ दुव्वहो ॥३६|| ६४१. आगासे गंगसोओ व्व पडिसोओ व्व दुत्तरो। बाहाहिं सागरो चेव तरियव्वो गुणोदही ॥३७॥ ६४२. वालुयाकवलो चेव निरस्सादे उ संजमे । असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउं तवो ॥३८॥ ६४३. अहीवेगंतदिट्ठीए चरित्ते पुत्त ! दुक्करे। जवा लोहमया चेव चावेयव्वा सुदुक्करं ||३९।। ६४४. जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करं । तह दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ॥४०॥ ६४५. जहा दुक्खं भरेउंजे होइ वायस्स कोत्थलो। तह दुक्खं करेउंजे कीवेणं समणत्तणं ॥४१॥ ६४६. जहा तुलाए तोलेउं दुक्करं मंदरो गिरी। तहा निहुय नीसंकं दुक्करं समणत्तणं ॥४२॥ ६४७. जहा भुयाहिं तरिउं जे दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसंतेणं दुत्तरो दमसागरो॥४३॥ ६४८. भुंज माणुस्सए भोए पंचलक्खणए तुमं । भुत्तभोगी तओ जाया ! पच्छा धम्मं चरिस्ससि ॥४४॥६४९. सो बेंतऽम्मा-पियरो एवमेयं जहाफुडं । इहलोगे निप्पिवासस्स नत्थि किंचि वि दुक्करं ॥४५|| ६५०. सारीर-माणसा चेव वेयणाओ अणंतसो | मए सोढाओ भीमाओ असई दुक्खभयाणि य ॥४६|| ६५१. जरा-मरणकंतारे चाउरते भयागरे। मए सोढाणि भीमाणि जम्माणि मरणाणि य ||४७|| ६५२. जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोऽणंतगुणो तहिं । नरएसु वेयणा उपहा असाया वेदिया मए ।।४८॥ ६५३. जहा इमं इहं सीयं एत्तोऽणंतगुणं तहिं । नरएसु वेयणा सीया असाया वेइया मए ॥४९॥ ६५४. कंदंतो कंदुकुंभीसु उद्धपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलंतम्मि पक्कपुव्वो अणंतसो॥५०॥ ६५५. महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए। कलंबवालुयाए य दड्डपुब्बो अणंतसो॥५१॥ ६५६. रसंतो कंदुकुंभीसु उद्धं बद्धो अबंधवो। करवत्त-करकयादीहिं छिन्नपुव्वो अणंतसो॥५२।। ६५७. अइतिक्खकंटकाइण्णे तुंगे सिंबलिपायवे। खेवियं पासबद्धेणं Exero+555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १६५७55555555555555555555555GHORA 必所乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐明乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明明2O ORC5%%%%%%%%%%% Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (CK66666666666 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. १९ फफफफफफफ कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं ॥ ५३॥ ६५८. महाजंतेसु उच्छू वा आरसंतो सुभेरवं । पीलिओ मि सकम्मेहिं पावकम्मो अणंतसो ॥५४॥। ६५९. कूवंतो कोलसुणहेहिं सामेहिं सबलेहि य । पाडिओ फाडिओ छिण्णो विप्फुरंतो अणेगसो ॥ ५५ ॥ ६६०. असीहिं अदसिवन्नेहिं भल्लीहिं पट्टिसेहि य। छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य ओइण्णो पावकम्मुणा ||५६|| ६६१. अवसो लोहरहे जुत्तो जलते समिलाजुए। चोइओ तोत्त- जुत्तेहिं रोज्झो वा जह पाडिओ || ५७|| ६६२. हुयासणे जलंतम्मि चियासु महिसो विव । दड्ढो पक्को य अवसो हं पावकम्मेहिं पाविओ ॥ ५८ ॥ ६६३. बला संडासतुंडेहिं लोहतुंडेहिं पक्खिहिं । विलुत्तो विलवंतो हं ढंक-गिद्धेहिं णंतसो ॥५९॥। ६६४. तण्हाकिलंतो धावंतो पत्तो वेयरण नई । जलं पाहं ति चिंतंतो खुरधाराहिं विवाइओ ||६०|| ६६५. उण्हाभित्ततो संपत्तो असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडतेहिं छिन्नपुव्वो अणेगसो ||६१॥ ६६६. मोग्गरेहिं मुसंढीहिं सूलेहिं मुसलेहि य । गयासं भग्गगत्तेहिं पत्तं दुक्खं अनंतसो ||६२|| ६६७. खुरेहिं तिक्खधाराहिं छुरियाहिं कप्पणीहिं य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्कत्तो य अणेगसो ॥ ६३६६८. पासेहिं कूडजालेहिं मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरुद्धो य बहुसो चेव विवाइओ || ६४ || ६६९. गहिं मगरजाहिं मच्छो वा अवसो अहं । उल्लितो पाडिओ गहिओ मारिओ य अणंतसो ||६५|| ६७०. वीदंसएहिं जालेहिं लेप्पाहिं सउणो विव । गहिओ लग्गो य बद्धो य मारिओ य अनंतसो || ६६|| ६७१. कुहाड - फरसुमाईहिं वडईहिं दुमो विव । कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अनंतसो ||६७|| ६७२. चवेडमुट्ठिमाहिं कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो चुण्णिओ य अणंतसो ||६८|| ६७३. तत्ताइं तंब - लोहाई तउयाइं सीसगाणि य । पाइओ कलकलेंताई आरसंतो सुभेरवं ॥ ६९ ॥ ६७४. तुहं पियाई मंसाई खंडाई सोल्लगाणि य । खाविओ मि समंसाई अग्गिवन्नाई णेगसो ॥७०॥। ६७५. तुहं पिया सुरा सीहू मेरओ य । जिओ जलतीओ वसाओ रुहिराणि य ॥ ७१ ॥ ६७६. निच्चं भीएण तत्थेणं दुहिएणं वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेइया मए ॥ ७२ ॥ ६७७. तिव्वचंडपगाढाओ घोराओ अइदुस्सहा । महब्भयाओ भीमाओ नरएसुं वेइया मए ||७३ || ६७८. जारिसा माणुसे लोए ताया ! दीसंति वेयणा । एत्तो अणंतगुणिया नरएसुं दुक्खवेयणा ||७४|| ६७९. सव्वभवेसु असाया वेयणा वेइया मए । निमिसंतरमेत्तं पि जं साया नत्थि वेयणा ॥ ७५॥। ६८०. तं बेंतऽम्मा-पियरो छंदेणं पुत्त ! पव्वय । नवरं पुण सामण्णे दुक्खं निप्पडिकम्मया || ७६ ।। ६८१. सो बेंतऽम्मा-पियरो एवमेयं जहाफुडं । परिकम्मं को कुणई अरण्णे मिय-पक्खिणं ? ॥७७|| ६८२. गए अरणे वा जहा उ चरई मिए । एवं धम्मं चरिस्सामि संजमेण तवेण य ॥ ७८६८३. जया मिगस्स आयंको महारण्णम्मि जायई । अच्छंतं रुक्खमूलम्मि को णं ताहे तिगिंछई ? ||७९ ।। ६८४. को वा से ओसहं देह ? को वा से पुच्छई सुहं ? । को से भत्तं व पाणं वा आहारित्तु पणामए ? ||८०|| ६८५. जया य से सुही होइ तया गच्छ गोयरं । भत्त-पाणस्स अट्ठाए वल्लराणि सराणि य ॥८१॥ ६८६. खाइत्ता पाणियं पाउं वल्लरेहिं सरेहिं य । मिगचारियं चरित्ताणं गच्छई मिगचारिय ॥८२॥। ६८७. एवं समुट्ठिए भिक्खू एवमेव अणेगए। मिगचारियं चरित्ताणं उद्धुं पक्कमई दिसं ॥ ८३ ॥ ६८८. जहा मिए एग अणेगचारी अणेगवासे ध्रुवगोयरे य । एवं गोरि पनि हीलए नो वि य खिसएज्जा ॥ ८४॥ ६८९. मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता ! जहासुहं । अम्मा-पिऊहिंऽणुन्नाओ जहाइ उवेहिं तओ ॥८५॥ ६९०. मिगजारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं । तुब्भेहिं अंबुऽणुन्नाओ, गच्छ पुत्त ! जहासुहं ॥ ८६॥ ६९१. एवं सो अम्मा-पियरं अणुमात्ताण छिंदा महानागो व्व कंचुयं ॥ ८७ ॥ ६९२. इहिं वित्तं च मित्ते य पुत्त- दारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं निद्धुणित्ताण निग्गओ ॥८८॥ ६९३. पंचमहव्वयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य । सब्मिंतरबाहिरए तवोकम्मम्मि उज्जुओ ||८९|| ६९४. निम्ममो निरहंकारो नीसंगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य ॥९०॥। ६९५ लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा । समो निंदो - पसंसासु तहा माणावमाणओ ।। ९९ ।। ६९६. गारवेसु कसाएसु दंड- सल्लभए । नियत्तो हास- सोगाओ अनियाणो अबंधणो ९२ ।। ६९७. अनिस्सिओ इहं लोए परलोए अनिस्सिओ। वासी चंदणकप्पो य असणे अणसणे तहा || ९३ || ६९८. अप्पसत्थेहिं दारेहिं सव्वओ पिहियासवो। अज्झप्पझाणजोगेहिं पसत्थदम - सासणो ||९४।। ६९९. एवं नाणेण चरणेण दंसणेण तवेण य । भावणाहिं य सुद्धाहिं सम्मं भावेत्तु अप्पयं ॥ ९५ ॥ ७००. बहुयाणि उ वासाणि सामण्णमणुपालिया । मासिएणं तु भत्तेणं सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ||९६ ।। ७०१. एवं करेंति संबुद्धा BOYS श्री आगमगुणमंजूषा १६५८ [१] फ्रफ़ फफफफफ्र Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR955555555555555 (४३) उत्तरायणं (चउत्यं मूलसुत्त) अ. १९, २० (२०5 5555555$$$sexe MONOFFS$$$$K$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$FFFFFFFFSSSSSSSSSSSSSION पंडिया पवियक्खणा । विणियटृति भोगेसु मियापुत्ते जहा मिसी ॥९७|| ७०२. महापभावस्स महाजसस्स मियाए पुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुयं ।।९८॥ ७०३. वियाणिया दुक्खविवड्डणं धणं ममत्तबंधं च महाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं धारेह निव्वाणगुणावहं महं ॥९९||त्ति बेमि || || मियापुत्तिज समत्तं ॥१९||★★★२० वीसइम महानियंठिनं अज्झयण★★★७०४. सिद्धाण नमो किच्चा संजयाणं च भावओ। अत्यधम्मगई तच्चं अणुसद्धिं सुणेह मे ॥१|| ७०५. पभूयरयणो राया सेणिओ मगहाहिवो । विहारजत्तं निजाओ मंडिकुच्छिसि चेइए ।।२।। ७०६. नाणादुम-लयाइण्णं नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं उज्जाणं नंदणोवमं ॥३॥ ७०७. तत्थ सो पासई साहुं संजयं सुसमाहियं । निसन्नं सक्खमूलम्मि सुकुमालं सुहोइयं ।।४।। ७०८. तस्स रूवं तु पासित्ता राइणो तम्मि संजए। अच्चंतपरमो आसी अतुलो रूवविम्हओ ।।५।। ७०९. अहो ! वण्णो अहो ! रूवं अहो ! अज्जस्स सोमया। अहो ! खंती अहो ! मुत्ती अहो ! भोगे असंगया ||६|| ७१०. तस्स पाए उ वंदित्ता काउण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने पंजली पडिपुच्छई ।।७।। ७११. तरुणो सि अज्जो ! पव्वइओ भोगकालम्मि संजया ! । उवढिओ सि सामण्णे एयमढे सुणेमु ता ।।८॥ ७१२. अणाहो मि महारायं ! नाहो मज्झ न विजई। अणुकंपगं सुहिं वा वि कंची नाभिसमेमऽहं ।।९।। ७१३. तओ सो पहसिओ राया सेणिओ मगहाहिवो । एवं ते इड्डिमंतस्स कहं नाहो न विजई ॥१०॥ ७१४. होमि नाहो भयंताणं भोगे भुंजाहि संजया। मित्त-नाईपरिवुडो माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥११॥७१५. अप्पणा वि अणाहो सि सेणिया ! मगहाहिवा !| अप्पणा अणाहो संतो कस्स नाहो भविस्ससि ? ॥१२॥ ७१६. एवं वुत्तो नरिंदो सो सुसंभंतो सुविम्हिओ। वयणं असुयपुव्वं साहुणा विम्हयन्नितो ॥१३॥ ७१७. अस्सा हत्थी मणुस्सा मे पुरं अंतेउरं च मे। भुंजामि माणुसे भोए आणा इस्सरियं च मे ॥१४॥ ७१८. एरिसे संपयग्गम्मि सव्वकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ मा हुभंते ! मुसं वए।।१५।। ७१९. न तुम जाणे अणाहस्स अत्थं पोत्थं व पत्थिवा !। जहा अणाहो भवइ सणाहो वा नराहिवा !।१६।। ७२०. सुणेह मे महारायं ! अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवति जहा मे य पवत्तियं ।।१७।। ७२१. कोसंबी नाम नयरी पुराणपुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झं पभूयधणसंचओ ।।१८।। ७२२. पढमे वए महाराय ! अतुला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो दाहो सव्वगत्तेसु पत्थिवा ॥२०|| ७२३. सत्थं जहा परमतिक्खं सरीरवियरंतरे। पविसेज्ज अरी कुद्धो एवं मे अच्छिवेयणा ||२०|| ७२४.तियं मे अंतरिच्छं च उत्तमंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा वेयणा परमदारुणा ||२१|| ७२५. उवट्ठिया मे आयरिया विज्जा-मंतचिगिच्छगा। अबीया सत्थकुसला मंत-मूलविसारया ॥२२॥ ७२६. ते मे तिगिच्छं कुव्वंति चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ।।२३।। ७२७. पिया मे सव्वसारं पि देज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ॥२४॥ ७२८. माया वि मे महाराय ! पुत्तसोगसुहऽट्टिया । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाया ।।२५।। ७२९. भायरो मे महाराय सगा जेट्ठ-कणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ॥२६।। ७३०. भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ठ-कणिढगा। न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ॥२७॥ ७३१. भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया। अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचई ।।२८|| ७३२. अन्नं पाणं च ण्हाणं च गंध मल्ल-विलेवणं । मए णायमणायं वा सा बाला नोवभुंजई ।।२९।। ७३३. खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया॥३०॥ ७३४. तओ हं एवमाहंसुदुक्खमा हु पुणो पुणो। वेयणा अणुभविउं जे संसारम्मि अणंतए ॥३१।। ७३५. सई च जइ मुच्चिज्जा वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो पव्वए अणगारियं ||३२|| ७३६. एवं च चिंतइत्ताणं पासुत्तो मि नराहिवा !। परियत्तंतीए राईए वेयणा मे खयं गया ||३३|| ७३७. तओ कल्ले पभायम्मि आपुच्छित्ताण बंधवे। खंतो दंतो निरारंभो पव्वइओ अणगारियं॥३४॥७३८. तो हं नाहो जाओ अप्पणो य परस्सय। सव्वेसिं चेव भूयाणं तसाणं थावराण य॥३५॥ ७३९. अप्पा नदी वेयरणी अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदणं वणं ।।३६॥ ७४०. अप्पा कत्ता विकत्ता य दुक्खाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्टिओ॥३७।। ७४१. इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा ! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि मे । नियंठधम्म लभियाण वी जहा T$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐CQ MOTOS55555555555555555# श्री आगमगुणमंजूषा - १६५९॥5 55555555555555555555OTO Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOXO545555555555555 (४३) उत्तर न्झयणं (चउत्थं मूलसुत) अ. २०,२१ २ १] 5555555555555sexey 2YO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐6C सीयंति एगे बहुकायरा नरा ॥३८॥ ७४२. जे पव्वइत्ताण महव्वयाइं सम्मं नो फासयती पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिंदइ बंधणं से ॥३९|| ७४३. आउत्तया जस्स य नत्थि काई इरियाए भासाए तहेसणाए। आयाण-निक्खेव दुगुंछणाए न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥४०॥ ७४४. चिरं पि से मुंडरुई भवित्ता अथिरव्वए तव-नियमेहिं भट्ठे। चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता न पारए होइ हु संपराए ।।४१|| ७४५. पोल्लेव मुट्ठी जह से असारे अयंतिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरूलियप्पकासे अमहग्घए होइ हु जाणएसु॥४२॥ ७४६. कुसीललिगं इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय विहइत्ता। असंजए संजय लप्पमाणे विणिघायमागच्छइ से चिरं पि॥४३॥७४७. विसं तु पीयं जह कालकूडं हणाइ सत्थं जह कुग्गिहीयं । एसेव धम्मो विसओववन्नो हणाइ वेयाल इवाविवन्नो।।४४||७४८. जे लक्खणं सुविणं ॥ पउंजमाणे निमित्त कोऊहलसंपगाढ़े। कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥४५॥ ७४९. तमं तमेणेव उजे असीले सया दुही विप्परियासुवेई। संघावई नरग-तिरिक्खजोणिं मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥४६॥ ७५०. उद्देसियं कीयगडं नियागं न मुंचई किंचि अणेसणिज्ज । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता इओ चुए गच्छइ कट्ट पावं ॥४७॥७५१. नतं अरी कंठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा । से णाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणे ॥४८।। ७५२. निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तिमटुं विवज्जासमेइ । इमे वि से नत्थि परे वि लोए दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ।।४९|| ७५३. एमेवऽहाछंद-कुसीलरूवे मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं । कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा निरट्ठसोया परितावमेइ ॥५०॥ ७५४. सोच्वाण मेहावि ! सुभासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं ।।५१।। ७५५. चरित्तमायारगुणन्निए तओ अणुत्तरं संजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥५२॥ ७५६. एवुगदंते वि महातवोधणे महामुणी महापइन्ने महाजसे। महानियंठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ॥५३।। ७५७. तुट्ठोय सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली । अणाहत्तं जहाभूयं सुट्ट मे उवदंसियं ॥५४॥ ७५८. तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्मं लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी! तुब्भे सणाहा य सबंधवा य जंभे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ।।५५|| ७५९. तं सि नाहो अणाहाणं सव्वभूयाण संजया ! । खामेमि ते महाभाग ! इच्छामि अणुसासिउं ॥५६।। ७६०. पुच्छिऊण मए तुभं झाणविग्यो उ जो कओ। निमंतिया य भोगेहिं तं सव्वं मरिसेहि मे ॥५७|| ७६१. एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाए भत्तिए। सओरोहो सपरिजणो य धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा॥५८|| ७६२. ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवंदिऊण सिरसा अतियाओ नराहिवो ॥५९॥७६३. इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥६०|| त्ति बेमि || |महानियंठिज्ज समत्तं ॥२०॥ २१ इगवीसइमं समुद्दपालिज्ज अज्झयणं★★★ ७६४. चंपाए पालिए नामं सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ सीसो सो उ महप्पणो ॥१॥ ७६५. निग्गंथे पावयणे सावए से विकोविए । पोएण ववहरते पिहुंडं नगरमागए ।।२।। ७६६. पिहुंडे ववहरंतस्स वाणिओ देइ धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिए ॥३॥ ७६७. अह पालियस्स घरिणी समुद्दम्मि पसवई । अह दारए तहिं जाए समुद्दपाले त्ति नामए ॥४॥७६८. खेमेण आगए चंपं सावए वाणिए घरं । संवड्डए घरे तस्स दारए से सुहोइए।।५।। ७६९. बावत्तरि कलाओ य सिक्खिए नीइकोविए। जोव्वणेण य संपन्ने सुरुवे पियदंसणे ।।६।। ७७०. तस्स रूववइं भज्जं पिया आणेह रूविणिं । पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुंदुगो जहा ||७|| ७७१. अह अन्नया कयाई पासायालोयणे ठिओ । वज्झमंडणसोभागं वज्झं पासइ वज्झगं ।।८।। ७७२. तं पासिऊण संवेगं समुद्दपालो इमं बवी । अहो असुहाण कम्माणं निजाणं पावगं इमं ।।९।। ७७३. संबुद्धो सो तहिंभगवं परं संवेगमागओ। आपुच्छऽम्मा-पियरो पव्वए अणगारियं ॥१०|| ७७४. जहित्तु संग थ महाकिलेसं महंतमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चऽभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य॥११॥ ७७५. अहिंस सच्चं च अतेणयं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महव्वयाइं चरेज धम्म जिणदेसियं विदू ।।१२।। ७७६. सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी खंतिक्खमे संजयबंभयारी। सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरेज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए।।१३।। ७७७. कालेण कालं विहरेज रढे बलाबलं जाणिय अप्पणो उ। सीहो $明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明 (OnEducation international-2010-03 E l Lise On www.jainelibrary.oa. MOo5555555555555555555555श्री आगमगुणमंजूषा - १६६०5555555555555555555555555446YOK Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HORO5555555555555555 (४३) उत्तरउज्झयण (चउत्थं मूलसुत) अ. २१,२२ २] %95%EsssxxStox C%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明5C व सद्देण न संतसेज्जा वइजोग सोच्चा न असब्भमाहु॥१४॥७७८. उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा। न सव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जान यावि पूयं गरहं च संजए।।१५।। ७७९. अणेगछंदा मिह माणवेहिं जे भावओ संपकरेइ भिक्खू। भयभेरवा तत्थ उदेति भीमा दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ।।१६।। ७८०. परीसह दुव्विसहा अणेगे सीयंति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहेज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥१७॥ ७८१. सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसंति देहं । अकुक्कुओ तत्थऽहियासएज्जा रयाई खेवेज पुरेकडाइं॥१८।। ७८२. पहाय रागं च तहेव दोसं मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणे । मेरु व्व वाएण अकंपमाणे परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा |१९|| ७८३. अणुन्नए नावणए महेसी न यावि पूयं गरहं च संजए । से उज्जभावं पडिवज्ज संजए निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ ७८४. अरइ-रइसहे पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्ठपदेहिं चिट्ठई छिन्नसोए अममे अकिंचणे ।।२१।। ७८५. विवित्तलयणाई भएज्ज ताई निरोवलेवाइं असंथडाई। इसीहिं चिण्णाइं महायसेहिं काएण फासेज परीसहाई।।२२।। ७८६. सन्नाणनाणोवगए महेसी अणुत्तरं चरिय धम्मसंचयं । अणुत्तरेनाणधरे जसंसी ओभासई सूरिए वंतलिक्खे ।।२३।। ७८७. दुविहं खवेऊण य पुण्ण-पावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोहं समुद्दपाले अपुणागमं गई गए॥२४|| त्ति बेमि||***|समुद्दपालितिज्जयं समत्तं ॥२१॥★★★२२ बावीसइमं रहनेमिनं अन्झयणं★★७८८. सोरियपुरम्मि नयरे आसि राया महिड्डिए। वसुदेवे त्ति नामेणं रायलक्खणसंजुए।।१।। ७८९. तस्स भज्जा दुवे आसि रोहिणी देवई तहा। तासिं दोण्हं पि दो पुत्ता इट्ठा राम-केसवा ।।२।। ७९०. सोरियपुरम्मि नयरे आसि राया महिड्डिए। समुद्दविजए नामं रायलक्खणसंजुए।।३।। ७९१. तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्ते महायसे । भगवं अरिट्ठनेमि त्ति लोगनाहे दमीसरे॥४॥७९२. सो रिट्ठनेमिनामोउलक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥५|| ७९३. वज्जरिसहसंघयणो समचउरसो झसोदरो। तस्स राईमई कन्नं भज्जं जायइ केसवो ॥६॥ ७९४. अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणी । सव्वलक्खणसंपन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा ||७|| ७९५. अहाऽऽह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्डियं । इहाडडगच्छउ कुमारोजा से कन्नं दलामहं ।।८।। ७९६. सव्वोसहीहिं ण्हविओ कयकोउय-मंगलो। दिव्वजुयलपरिहिओ आहरणेहिं विभसिओ।।९।। ७९७. मत्तं च गंधहत्थिं वासुदेवस्स जेट्ठगं । आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा ॥१०॥ ७९८. अह ऊसिएण छत्तेणं चामराहिं य सोहिओ। दसारचक्केण य सो सव्वओ परिवारिओ ||११|| ७९९. चउरंगिणीए सेणाए रझ्याए जहक्कमं । तुरियाणं सन्निनाएणं दिव्वेणं गयणंफुसे ॥१२॥ ८००. एयारिसीए इड्डीए जुईए उत्तमाए य । नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥१३॥ ८०१. अह सो तत्थ निज्जतो दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरूद्धे सुदुक्खिए।१४।। ८०२. जीवियंतं तु संपत्ते मंसट्ठा भक्खियव्वए। पासेत्ता से महापन्ने सारहिं इणमब्बवी ।।१५।। ८०३. कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो। वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छहिं ? ॥१६।। ८०४. अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुन्भं विवाहकजम्मि भोयावेउं बहुं जणं ॥१७॥ ८०५. सोऊण तस्स वयणं बहुपाणविणासणं । चिंतेइ से महापन्ने साणुक्कोसे जिएहि उ॥१८॥ ८०६. जइ मज्झ कारणा एए हम्मति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई॥१९॥ ८०७. सो कुंडलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए॥२०॥ ८०८. मणपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा । सविड्डीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥२१॥ ८०९. देव-मणुस्सपरिवुडो सीयारयणं तओ समारूढो । निक्खमिय बारगाओ रेवययम्मि ठिओ भयवं।।२२।। ८१०. उज्जाणं संपत्तो ओइण्णो उत्तमाओ सीयाओ। साहस्सीय परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहिं ।।२३।। ८११. अह सो सुगंधगंधिए तुरियं मउयकुंचिए । सयमेव लुचई केसे पंचट्ठाहिं समाहिओ ॥२४॥ ८१२. वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइंदियं । इच्छियमणोरहं तुरियं पावसूतं दमीसरा ! ॥२५।। ८१३. नाणेण दंसणेणं च चरित्तेण तवेण य । खंतीए मुत्तीए वद्धमाणो भवाहि य ॥२६।। ८१४. एवं ते राम-केसवा दसारा य बहू जणा । अरिट्ठनेमिफ वंदित्ता अइगया बारगापुरि ॥२७॥ ८१५. सोऊण रायकन्ना पव्वजं सा जिणस्स उ। नीहासा य निराणंदा सोगेण उ समुच्छया ।।२८।। ८१६. राईमई विचितेइ धिरत्थु मम जीवियं । जाहं तेणं परिचत्ता सेयं पव्वइउं मम ।।२९।। ८१७. अहसा भमरसन्निभे कुच्च-फणगपसाहिए। सयमेव लुचई केसे धिइमंता ववस्सिया ॥३०॥ wer55555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६६१555555555555555555555557 30%折$历历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. २२, २३ [२३] ८१८. वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसिं जिइंदियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने ! लहुं लहुं ॥ ३१ ॥ ८१९. सा पव्वइया संती पव्वावेसी तहिं बहुं । सयणं परिजणं चे सीलवंता बहुस्सुया ||३२|| ८२०. गिरिं रेवतकं जंती वासेणोल्ला उ अंतरा । वासंते अंधकारम्मि अंतो लयणस्स सा ठिया ||३३|| ८२१. चीवराहं विसारेंती जयति पासिया । रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ॥ ३४॥ ८२२. भीया य सा तहिं दहुं एगंते संजयं तयं । बाहाहिं काउ संगोफं वेवमाणी निसीयई ॥ ३५॥। ८२३. अ सोह वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेइयं दद्धुं इमं वक्कमुदाहरे || ३६ || ८२४. रहनेमी अहं भद्दे ! सुरुवे ! चारुपेहिणि ! । ममं भयाहि सुतणू ! न ते पीला भविस्सई ||३७|| ८२५. एहि ता भुंजिमो भोगे माणुस्सं खु सुदुल्लहं । भुत्तभोगा तओ पच्छा जिणमग्गं चरिस्सिमो ||३८|| ८२६. दट्टूण रहनेमिं तं भग्गुज्जोयपराइयं । राईमई असंभंता अप्पाणं संवरे तहिं ॥ ३९ ॥। ८२७. अह सा रायवरकन्ना सुट्टिया नियमव्वए । जाई कुलं च सीलं च रक्खमाणी तयं वदे ||४०|| १८२८. जइ सिरूवेण वेसमणो ललिएण नलकुब्बरो । तहा वि ते न इच्छामि जइ सि सक्खं पुरंदरे ॥४१॥। ८२९. धिरत्थु ते जसो कामी ! जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥ ४२ ॥ ८३०. अहं च भोगरायस्स तं च सि अंधगवण्हिणो । मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर ॥४३॥ ८३१. जइ तं काहिसि भाव जा जा दच्छसि नारिओ । वायाइद्धो व हढो अट्ठियप्पा भविस्ससि ॥४४॥ ८३२. गोवालो भंडपालो वा जहा तद्दव्वऽणीसरो। एवं अणीसरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ॥४५॥ ८३३. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ || ४६ ॥ ८३४. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ । सामण्णं निच्चलं फासे जावज्जीवं दढव्वओ || ४७|| ८३५. उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दोन्नि वि केवली । सव्वं कम्मं खवेत्ताणं सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥४८॥ ८३६. एवं कति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा । विणियति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमे ॥ ४९ ॥ त्ति बेमि || ★★★ ॥ रहनेमिज्जं समत्तं ॥ ★★★ २३ तेवीसइमं केस - गोयमिज्जं अज्झयणं ★★★ ८३७. जिणे पासे त्ति नामेणं अरहा लोगपूइए। संबुद्धप्पा य सव्वन्नू धम्मतित्थयरे जिणे ॥ १॥ ८३८. तस्सलोगप्पदीवस्स आसि सीसे महायसे । केसी कुमारसमणे विज्जा - चरणपारगे ॥२॥ ८३९. ओहिनाण- सुए बुद्धे सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयंते सावत्थिं नगरिमागए || ३ || ८४०. तेंदुयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमंडले । फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥ ४॥ ८४१. अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणो ति सव्वलोगम्मि विस्सुए ||५|| ८४२ तस्स लोगप्पदीवस्स आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं विज्जा - चरणपारए ||६|| ८४३. बारसंगविऊ बुद्धे सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयंते से वि सावत्थिमागए ।।७।। ८४४. कोट्टगं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमंडले । फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥। ८ ।। ८४५. केसी कुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिंसु अल्लीणा सुसमाहिया || ९ || ८४६. उभओ सीससंघाणं संजयाण तवस्सिणं । तत्थ चिंता समुप्पन्ना गुणवंताणताणं ॥ १०॥ ८४७. 'केरिसो वा इमो धम्मो ?' इमो धम्मो व केरिसो ? । आयारधम्मप्पणिही इमा वा सा व केरिसी ? ॥ ११ ॥ ८४८. चाउज्नामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ । देसिओ वद्धमाणेणं पासेण य महामणी ।। १२ ।। ८४९. अचेलगो य जो धम्मो जो इमो संतरुत्तरो । एककज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? ।।१३।। ८५०. अह ते तत्थ सीसाणं विन्नाय पवितक्कियं । समागमे कयमती उभओ केसि - गोयमा ॥ १४॥ ८५१. गोयमे पडिरूवन्नू सीससंघसमाकुले। जेट्टं मक्खतो तेंदुयं वणमागओ ।।१५।। ८५२. केसी कुमारसमणे गोयमं दिस्स मागयं । पडिरूवं पडिवत्तिं सम्मं संपडिवज्जई ||१६|| ८५३. पलालं फासुयं तत्थ पंचमं कुस-तणाणि य । गोयमस्स निसेज्जाए खिप्पं संपणामए ॥१७॥ ८५४. केसी कुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहंति चंद-सूरसमप्पभा ॥१८॥ ८५५. समागया बहू तत्थ पासंडा कोउगा मिया । गिहत्थाण य णेगाओ साहस्सीओ समागया || १९|| ८५६. देव- दाणव- गंधव्वा जक्ख- रक्खस- किन्नरा । अद्दिस्साण य भूयाणं आसि तत्थ समागमो || २० ।। ८५७. 'पुच्छामि ते महाभाग !' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ २१ ॥ ८५८. ‘पुच्छ भंते ! जहिच्छं ते' केसि गोयममब्बवी । तओ केसी अणुन्नाए गोयमं इणमब्बवी ॥ २२ ॥ ८५९. 'चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ । देसिओ फफफफफफफ Yo55 श्री आगमगुणमंजूषा १६६२ ० Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGO545555555555559 (४३) उत्तरऽज्यणं (चउल्य मूलसुत्त) अ, २३ २४] 555555555555555OOK रवद्धमाणेणं पासेण य महामुणी ।।२३।। ८६०. एककज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? | धम्मे दुविहे मेहावी ! कहं विप्पच्चओ न ते ? ॥२४|८६१. तओ केसिंबुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी। ‘पन्ना समिक्खए धम्मतत्तं तत्तविणिच्छयं ।।२५।। ८६२. पुरिमा उज्जुजडा उ वंकजडा य पच्छिमा । मज्झिमा उज्नुपन्ना उ तेण धम्मो दुहा कओ||२६|| ८६३. पुरिमाणं दुव्विसोज्झो उ चरिमाणं दुरणुपालओ। कप्पो मज्जिमगाणं तु सुविसोज्झो सुपालओ॥२७।। ८६४. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ।।२८।। ८६५. अचेलगोय जो धम्मो जो इमो संतरुत्तरो। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी! ||२९|| ८६६. एककज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? । लिंगे दुविहे मेहावी । कहं विप्पच्चओ न ते ? ॥३०॥ ८६७. तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी । 'विन्नाणेणं समागम्म धम्मसाहणमिच्छियं ॥३१॥ ८६८. पच्चयत्थं च लोगस्स नाणाविहविगप्पणं | जत्तत्थं गहणत्थं च लोए लिंगप्पओयणं ||३२।। ८६९. अह भवे पइन्ना उ मोक्खसब्भूयसाहणा। नाणं च दंसणं चेव चरित्तं चेव निच्छए।।३३।। ८७०. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसुगोयमा ! ॥३४॥ ८७१. अणेगाणं सहस्साणं मज्झे चिट्ठसि गोयमा ! । ते य ते अभिगच्छंति कहं ते निज्जिया तुमे ? ||३५ ।। ८७२. 'एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस। दसधा उ जिणित्ता णं सव्वसत्तू जिणामहं ॥३६।। ८७३. 'सत्तू य इति के वुत्ते?' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिंबुवंतं तु गोयमो इणमब्वी ॥३७|| ८७४. 'एगऽप्पा अजिए सत्तू कसाया इंदियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं विहरामि अहं मुणी ! ॥३८॥ ८७५. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥३९।। ८७६. दीसंति बहवे लोए पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुब्भूओ कहं तं विहरसी मुणी ! ॥४०॥ ८७७. ते पासे सव्वसो छेत्ता निहतूण उवायओ। मुक्कपासो लहुब्भूओ विहरामि अहं मुणी ! ॥४१।। ८७८. 'पासा य इति के वुत्ता ? केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥४२॥ ८७९. 'राग-द्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा । ते छिदित्तु जहानायं विहरामि जहक्कमं ।।४३।। ८८०. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥४४॥ ८८१. अंतोहिययसंभूया लया चिट्ठइ गोयमा ! || फलेइ विसभक्खीणं सा उ उद्धरिया कहं ? ॥४५।। ८८२. 'तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं ॥४६॥' ८८३. 'लया य इति का वुत्ता ?' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिंबुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥४७|| ८८४. 'भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया। तमुद्धिच्च जहानायं विहरामि अहं मुणी!।।४८॥ ८८५. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥४९॥ ८८६. संपज्जलिया धोरा अग्गी चिट्ठइ गोयमा !| जे डहंति सरीरत्था कहं विज्झाविया तुमे? ॥५०॥ ८८७. 'महामेहप्पसूयाओ गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि सययं ते उ सित्ता नो व डहति मे॥५१॥' ८८८. 'अग्गी य इति के वुत्ता?' केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवंतं तु गोयमा इणमब्बवी॥५२॥ ८८९. 'कसाया अग्गिणो वुत्ता सुय-दील-तवो जलं । सुयधाराभिहया संता भिन्ना हुन डहंति मे॥५३॥' ८९०. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा !||५४|| ८९१. अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई । जंसि गोयम ! आरूढो कहं तेण न हीरसि ? ॥५५।। ८९२. 'पहावंतं निगिण्हामि सुयरस्सिसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मंग्गं च पडिवज्जई ॥५६।। ८९३. 'अस्से य इति के वुत्ते ?' केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।।५७।। ८९४. 'मणो साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्मं निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कंथगं ॥५८|| ८९५. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा ! ॥५९।। ८९६. कुप्पहा बहवे लोए जेहिं नासंति जंतवो । अद्धाणे कह वÉतो तं न नाससि गोयमा !।।६०।। ८९७. 'जे य मग्गेण गच्छंति जे य उम्मग्गपट्ठिया । ते सव्वे विदिया मज्झं तो न नस्सामहं मुणी ! ||६१।। ८९८. 'मग्गे य म इति के वुत्ते ?' केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥६२।। ८९९.'कुप्पवयणपासंडी सव्वे उम्मग्गपट्ठिया। सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे ||६३||' ९००. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ||६४॥९०१. महाउदगवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पइट्टा य दीवं कं मन्नसी मुणी ! ? ॥६५॥ ९०२. 'अत्थि एगो महादीवो वारिमज्झे महालओ । महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई ॥६६||' Oro555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा -१६६३555555555555555555555555SSION 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C Mero55555555555555555555555555555555555555555555555555OR Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR9555555555555555 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ, २३, २४ २५] 555555555555teroy TO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听FM ९०३. 'दीवे य इति के वुत्ते ?' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥६७।। ९०४. 'जरा-मरणवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य गई सरणमुत्तमं ॥६८॥९०५. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ।।६९||९०६. अन्नवंसि महोहंसि ॥ नावा विपरिधावई । जंसि गोयम ! आरूढो कहं पारं गमिस्ससि ? ||७०॥' ९०७. 'जा उ आसाविणी नावा न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा सा तु पारस्स गामिणी ॥७१||' ९०८. 'नावा य इति का वुत्ता ? केसी गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥७२॥९०९. 'सरीरमाहु नाव त्ति जीवो ॥ वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो जं तरंति महेसिणो ॥७३॥' ९१०. “साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥७४||९११. अंधयारे तमे घोरे चिट्ठति पाणिणो बहू। को करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगम्मि पाणिणं ? ||७५।।' ९१२. 'उग्गओ विमलो भाणु सव्वलोकपभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगम्मि पाणिणं ॥७६।।' ९१३. 'भाणू य इति के वुत्ते ?' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥७७|| ९१४. 'उग्गओ खीणसंसारो सव्वणु जिणभक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगम्मि पाणिणं ।।७८॥ ९१५. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! |७९।। ९१६. सारीर-माणसे दुक्खे बज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सिवं अणाबाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी ! |८०॥ ९१७. 'अत्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ॥८१॥' ८१८. 'ठाणे य इति के वुत्ते ?' केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥८२।। ९१९. 'निव्वाणं ति अबाहं ति सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सिवं अणाबाहं जं चरंति महेसिणो ।।८३।। ९२०. तं ठाणं सासर्यवासं लोगग्गम्मि दुरारुहं। जं संपत्ता नसोयंति भवोहतकरा मुणी ॥८४||' ९२१. 'साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओइमो। नमोते संसयातीत ! सव्वसुत्तमहोदही ! ||८५।। ९२२. एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरक्कमे । अभिवंदित्ता सिरसा गोयमं तु महायसं ॥८६॥९२३. पंचमहव्वय धम्म पडिवज्जइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमम्मी मग्गे तत्थ सुहावहे ||८७|| ९२४. केसी-गोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे । सुय-सीलसमुक्करिसो महत्थत्थविणिच्छओ ॥८८|| ९२५. तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवट्ठिया । संथुया ते पसीयंतु भयवं केसि-गोयम ॥८९||त्ति बेमि || * * ॥ केसि-गोयमिजं समत्तं ॥२३॥ *** २४ चउवीसइमं पवयणमायं अज्झयणं★★★९२६. अट्ठ पवयणमायाओ समिती गुत्ती तहेव य । पंचेव य समितीओ तओ गुत्तीओ आहिया ॥१॥९२७. इरिया-भासेसणादाणे १-४ उच्चारे ५ समिती इय । मणगुत्ती ६ वइगुत्ती ७ कायगुत्ती ८ य अट्ठमा ॥२॥ ९२८. एयाओ अट्ठ समितीओ समासेण वियाहिया । दुवालसंगं जिणऽक्खायं मायं जत्थ उपवयणं ॥३|| ९२९. आलंबणेण कालेणं मग्गेण जयणाय य । चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए।।४।।९३०. तत्थ आलंबणं नाणं दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥ ९३१. दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा । जयणा चउव्विहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥६|| ९३२. दव्वओ चक्खुसा पेहे, जुगमेत्तं च खेत्तओ। कालओ जावरीएज्जा, उवउत्ते य भावओ|७||९३३. इंदियत्थे विवज्जेत्ता सज्झायं चेव पंचहा । तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे उवउत्तेरियं रिए १॥८॥९३४. कोहे माणे य मायाए लोभे य उवउत्तया। हासे भय मोहरिए विगहासु तहेव य॥९॥९३५. एयाइं अट्ठ ठाणाइं परिवज्जितु संजए। असावजं मितं काले भासं भासेज्ज पन्नवं २॥१०॥९३६. गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा। आहारोवहि-सेज्जाए एए तिन्नि विसोहए।११।।९३७. उग्गमुप्पायणं पढमे बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोगम्मि चउक्कं विसोहेज्ज जयं जई ३ ।।१२।। ९३८. ओहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुणी। गिण्हंतो निक्खिवंतो य पउंज्जेज्ज इमं विहिं॥१३॥ ९३९. चक्खुसा पडिलेहित्ता पमज्जेज्जा जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया ४ ॥१४॥९४०. उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाण जल्लियं । आहारं उवहिं देहं अन्नं वा वितहाविहं ॥१५|| ९४१. अणावायमसंलोए अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए आवाए चेव संलोए॥१६॥९४२. अणावायमसंलोए परस्सऽणुवघाइए। समे अझुसिरे यावि अचिरकालकयम्मिय ॥१७|| ९४३. वित्थिण्णे दूरमोगाढे नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाण-बीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे ५ GO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐华圳乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐坊乐乐所听听QC EMOSo5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६६४5555555555555555555555555596OR Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26395555555555555555 ) उत्तरवण्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. २४, २५ (२६] 5555555555555sexong CSFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ॥१८||९४४. एयाओ पंच समिईओ समासेण वियाहिया। एत्तोय तओ गुत्तीओ वोच्छामि अणुपुव्वसो।।१९।।९४५. सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसाय मणगुत्ती चउव्विहा ।।२०।।९४६. संरंभ-समारंभे आरंभे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ६॥२१।। सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य वइगुत्ती चउव्विहा ।।२२।। ९४८. संरंभ-समारंभे आरंभे य तहेव य । वइं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ७॥२३|| ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघण पल्लंघण इंदियाण य जुंजणे ॥२४|| ९५०. संरंभ-समारंभे आरंभे य तहेव य । कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज जयं जई ८॥२५।। ९५१. एयाओ पंच समितीओ चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो।।२६।। ९५२. एया पवयणमाया जे सम्मं आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चति पंडिए॥२७॥त्ति बेमि ॥***||पवयणिज्ज पवयणमायं) समत्तं ॥२४||★★★२५पंचवीसइमं जन्नइज्ज अज्झयणं *** ९५३. माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो । जायाई जमजन्नम्मि जयघोसि त्ति नामओ॥१॥ ९५४. इंदियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयंते पत्ते वाणारसिं पुरिं॥२॥ ९५५. वाणारसीय बहिया उज्जाणम्मि मणोरमे। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए||३||९५६. अह तेणेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसे त्ति नामेणं जन्नं जयइ वेयवी ॥४॥९५७. अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नाभि भिक्खमट्ठा उवट्ठिए ॥५॥ ९५८. समुवट्टियं तहिं संतं जायगो पडिसेहए । 'न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खू ! जायाहि अन्नओ ॥६।। ९५९. जे य वेयविऊ विप्पा जन्नट्ठा य जे दिया। जाइसंगविऊ जे यजेय धम्माण पारगा ।।७।। ९६०.जे समत्था समद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य। तेसिं अन्नमिणं देयं भो भिक्खू ! सव्वकामियं ॥८॥९६१. सो तत्थ एव म पडिसिद्धो जायगेण महामुणी। न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो उत्तिमट्ठगवेसओ ॥९॥ ९६२. नऽन्नÉ पाणहेउं वा न निव्वाहणाय वा । तेसिं विमोक्खणट्ठाए इमं वयणमब्बवी 3 ॥१०॥ ९६३. 'न वि' जाणसि वेयमुहं, न वि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च, जं च धम्माण वा मुहं ।।११।।९६४. जे समत्था समुद्भुतुं परं अप्पाणमेव य । न ते तुमं वियाणासि, अह जाणासि तो भण ।।१२।। ९६५. तस्सऽक्खेवपमोक्खं च अचयंतो तहिं दिओ। सपरिसो पंजली होउं पुच्छई तं महामुणिं ॥१३॥ ९६६. 'वेयाणं च मुहं बूहि, बूहि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं बूहि, बूहि धम्माण वा मुहं ||१४||९६७.जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य। एयं मे संसयं सव्वं साहू ! कहय पुच्छिओ ॥१५|| ९६८. 'अग्निहोत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसां मुहं । नक्खत्ताण मुहं चंदो, धम्माणंकासवो मुहं ।।१६।। ९६९. जहा चंदं गहाईया चिटुंती पंजलीयडा । वंदमाणा नमसंता उत्तमं मणहारिणो ॥१७|| ९७०. अजाणगा जन्नवाई विज्जामाहणसंपया । गूढा सज्झाय-तवसा भासच्छन्ना इवऽग्गिरो॥१८|| ९७१. जे लोए बंभणा वुत्ता अग्गी वा महिओजहा । सया कुसलसंदि8 तं वयं बूम माहणं॥१९||९७२. जोन सज्जइ आगंतुं, पव्वयंतो नसोयई। रमई अज्जवयणम्मितं वयं बूम माहणं |१९|| १९३. जायरूवं जहामढें निद्धंतमलपावगं । राग-दोस-भयातीयं तं वयं बूम माहणं ॥२१|| ९७४. तसपाणे वियाणित्ता संगहेण य थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं ॥२१||९७५. कोहा वा जइ वा हासालोभा वा जइ वा भया। मुसंन वयई जो उतं वयं बूम माहणं ||२३|| ९७६. चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । न गेण्हति अदत्तं जे तं वयं बूम माहणं ॥२४॥९७७. दिव्व-माणुस-तेरिच्छं जो न सेवइ मेहुणं । मणसा काय-वक्केणं तं वयं बूम माहणं ॥२५|| ९७८. जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्त कामेहिं तं वयं बूम माहणं ॥२६|| ९७९. अलोलुयं मुहाजीवी अणगारं अकिंचणं | असंसत्तं गिहत्थेसुतं वयं बूम माहणं ॥२७|| जहित्ता पुव्वसंजोगं नाइसंगे य बंधवे । जो न सज्जइ एएहिं तं वयं बूम माहणं ॥ ९८०. पसुबंधा सव्ववेदा जट्टं च पावकम्मुणा । न तं तायंति दुस्सीलं कम्माणि बलवंतिह ।।२८।। ९८१. न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो॥२९|| ९८२. समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो॥३०॥ ९८३. कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो होइ उ कम्मुणा ॐ ॥३१।। ९८४. एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायओ। सव्वकम्मविणिम्मुक्कं तं वयं बूभ माहणं ॥३२॥९८५. एवं गुणसमाउत्ता जे भवंति दिउत्तमा। ते समत्था उ उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य॥३३॥९८६. एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे यमाहणे। समुदाय तओतं तु जयघोसं महामुणिं ।।३४।। ९८७. तुढे य विजयघोसे इणमुदाहु Keros555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १.६६५.5555555555555555555555555OR 听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C 5TION Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR$$$$$$$$ (१३) उत्तरायणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ, २५, २६ (२७] 5555555555555Etoxory MOMO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩乐乐乐乐乐中乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 2 कयंजली । 'माहणत्तं जहाभूयं सुट्ठ मे उवदंसियं ॥३५॥ ९८८. तुब्भे जइया जन्नाणं, तुब्भे वेयविऊ विऊ । जोइसंगविऊ तुब्भे, तुब्भे धम्माण पारगा॥३६।। ९८९. + तुब्भे समत्था उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । तमणुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा ! ||३७।। ९९०. 'न कज्ज मज्झ भिक्खेणं खिप्पं निक्खमसू दिया ! । मा म भमिहिसि भयावत्ते घोरे संसारसागरे ॥३८॥ ९९१. उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई ॥३९|| ९९२. उल्लो सुक्को य दो छूढा गोलया मट्टियामया। दो वि आवडियाकुड्डे जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई।४०||९९३. एवं लग्गंति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा। विरता उन लग्गंति म जह्वा से सुक्कगोलए॥४१॥ ९९४. एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अंतिए । अणगारस्स निक्खंते धम्म सोच्चा अणुत्तरं ।।४२|| ९९५. खवेत्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य । जयघोस-विजयघोसा सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥४३||ति बेमि ॥ * ॥ जन्नइज समत्तं ॥२५॥ XXX २६ छव्वीसइमं सामायारिज अज्झयणं ९९६. सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं । जं चरित्ता ण निग्गंथा तिण्णा संसारसागरं ||१|| ९९७. पढमा आवस्सिया नाम बिझ्या य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ।।२।। ९९८. पंचमा छंदणा नाम इच्छकारो य छट्ठओ । सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो ॥३२॥ ९९९. अब्भुट्ठाणं नवमं दसमा उवसंपदा । एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया ।।४।। १०००. गमणे आवस्सियं कुज्जा १, ठाणे कुज्जा निसीहियं २। आपुच्छणा सयंकरणे ३, परकरणे पडिपुच्छणा ४||||५|| १००१. छंदणा दव्वजाएणं ५, इच्छाकारो य सारणे ६ । मिच्छाकारोऽप्पनिदाए७, तहक्कारो पडिस्सुए ८॥६।। १००२. अब्भुट्ठाणं गुरुपूया ९, अच्छणे उवसंपदा १० । एवं दुपंचसंजुत्ता सामायारी पवेइया ॥७।। १००३. पुविल्लम्मि चउभागे आइच्चम्मि समुट्ठिए। भंडगं पडिलेहित्ता वंदित्ता य तओ गुरुं ॥८॥१००४. पुच्छेज्ज पंजलियडो किं कायव्वं मए इहं ? इच्छं निओइउं भंते ! वेयावच्चे व सज्झाए' ।।९।। १००५. वेयावच्चे निउत्तेणं कायव्वमगिलायओ। सज्झाए वा निउत्तेणं सव्वदुक्खविमोक्खणे॥१०॥१००६. दिवसस्स चउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्खणे। तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसुचउसु वि॥११||१००७. पढमं पोरिसि सज्झायं बितियं झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥१२॥ १००८. आसाढे मासे 5. दुपया, पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी॥१३॥ १००९. अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेणं तु दुयंगुलं । वड्डए हायए वा वि मासेणं चउरंगुलं ६ ॥१४॥ १०१०. आसाढ बहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुण-वइसाहेसु य नायव्वा ओमरत्ता उ॥१५॥ १०११. जेट्ठामूले आसाढ-सावणे छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा। अट्ठहिं बिझ्य तियम्मी, तइए दस, अट्ठहिं चउत्थे ।।१६।। १००१२. रत्तिं पि चउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा राईभागेसु चउसु वि ।।१७|| १०१३. पढमं पोरिसि सज्झायं बितियं झाणं झियायई । तझ्याए निद्दमोक्खं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ १०१४. जं नेइ जया रत्तिं नक्खत्तं तम्मि नहचउभागे। संपत्ते विरमेज्जा सज्झाय पओसकालम्मि ॥१९|| १०१५.तम्मेव य नक्खत्ते गयण चउब्भागसावसेसम्मि । वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा ॥२०॥ १०१६. पुव्विल्लम्मि चउब्भागे पडिलेहित्ताण भंडयं । गुरुं वंदित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।।२१ ॥ १०१७. पोरसीए चउब्भागे वंदित्ताण तओ गुरूं। अपडिक्कमित्तु कालस्स भायणं पडिलेडए ||२२|| १०१८. मुहपत्तिं पडिलेहित्ता पडिलेहिज्न गोच्छयं । गोच्छगलइयंगुलिओ वत्थाई पडिलेहए ॥२३॥ १०१९. उर्दु थिरं अतुरियं पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं प्पफोडे, तइयं च पुणो पमज्जेज्जा ॥२४॥ १०२०. अणच्चावियं अवलियं अणाणुबंधि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणिविसोहणं ॥२५॥ १०२१. आरभडा १ सम्मदा २ वज्नेयव्वा य मोसली तइया ३ । पप्फोडणा चउत्थी ४ विक्खित्ता ५ वेइया छट्ठा ६ ॥२६।। १०२२. पसिढिल-पलंब-लोला एगामोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणि पमायं संकिय गणणोवगं कुज्जा ।।२७।। १०२३. अणूणाइरित्तपडिलेहा अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं, सेसाइं उ अप्पसत्थाई ॥२८॥ १०२४. पडिलेहणं कुणतो मिहोकहं कुणइ जणवयकहं वा । देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥२९॥ १०२५. पुढवी-आउक्काए तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो छण्हं पि विराहओ होइ ॥३०॥ १०२६. तइयाए पोरिसीए भत्तं पाणं गवेसए। छण्हं अन्नयरागम्मि कारणम्मि समुट्ठिए॥३१॥१०२७. वेयण वेयावच्चे १-२ इरियट्ठाए ३ य संजमट्ठाए ४। तह पाणवत्तियाए rov 9 5954555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६६६ 55555555555555555555FOTOR GO乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明F2Q 956IOR Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. २६, २७, २८ [२८] ॐॐॐॐॐॐ ५ छटुं पुण धम्मचिंताए ||३२|| १०२८. निग्गंथो धितिमंतो निग्गंधी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं तु इमेहिं अणइक्कमणा य से होइ ||३३|| १०२९. आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु। पाणिदया- तवहेउं सरीरवोच्छेयणट्ठाए ॥ ३४ ॥ १०३०. अवसेसं भंडगं गिज्झा चक्खुसा पडिलेहए। परमदजोयणाओ विहारं विहरए मुणी ||३५|| १०३२. पोरिसीए चउब्भागे वंदित्ताण तओ गुरुं । पडिक्कमित्ता कालस्स सेज्जं तु पडिलेहए ||३७|| १०३३. पासवणुच्चारभूमिं च पडिलेहेज्न जयं जई। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ३८॥ १०३४. देसियं च अईयारं चिंतेज्ज अणुपुव्वसो । नाणम्मि दंसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य ॥ ३९ ॥ १०३५. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गुरुं । देसियं तु अईयारं आईयारं आलोएज्ज जहक्कमं ॥४०॥ १०३६. पडिकमित्तु निस्सल्लो वंदित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४१॥ १०३७. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गुरुं । थुइमंगलं च काऊणं कालं संपडिलेहए ॥४२॥ १०३८. पढमं पोरिसि सज्जायं, बिइए झाणं झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए ||४३|| १०३९. पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तु तओ अबोतो असंजए ॥ ४४॥ १०४०. पोरिसीए चउब्भागे वंदिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए ||४५|| १०४१. आगते कायवोसग्गे सव्वदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ||४६ || १०४२. राइयं च अईयारं चितेज्जं अणुपुव्वसो । नाणम्मि दंसणम्मी चरित्तम्मि तवम्मिय ॥४७॥ १०४३. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ||४८|| १०४४. पडिक्कमित्त निस्सल्लो वंदित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ||४९ || १०४५. 'किं तव पडिवज्जामि ?' एवं तत्थ विचिंतए । काउस्सग्गं तु पारित्ता वंदिऊण तओ गुरुं ॥ ५० ॥ १०४६. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गुरुं । तवं संपडिवज्जित्ता करेज्न सिद्धाण संभवं ॥ ५१|| १०४७. एसा सामायारी समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं || ५२ || || त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ सामायारिजं समत्तं ॥ २६ ॥ ★★★ २७ सत्तावीसइमं खलुंकियं अज्झयणं ★★★ १०४८. थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए । आइन्ने गणिभावम्मि समाहिं पडिसंध || १ || १०४९. वहणे वहमाणस्स कंतारं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ||२|| १०५०. खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई। असमाहिं च वेदेति तोत्तओ य से भज्जई || ३ || १०५१. एवं डसइ पुच्छम्मि, एगं विधइऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्ठिओ || ४ || १०५२. एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निविज्जई। उक्कुद्दइ उप्फिडई सढे बालगवी वए ॥ ५ ॥ १०५३. माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छइ पडिपहं । मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहावई ||६|| १०५४. छिन्नाले छिंदई सिल्लिं दुद्दते भंजई जुगं । से वि य सुस्सुयाइत्ता उज्जुहित्ता पलाय ||७|| १०५५. खलुंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि भज्जंती धिइदुब्बला ॥८॥ १०५६. इड्डीगारविए एगे, एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ||९|| १०५७. भिक्खालसिए एगे. एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एवं च अणुसासम्मी हेऊहिं कारणेहिं य ||१०|| १०५८. सो वि अंतरभासिल्लो दोसमेव पकुव्वई । आयरियाणं तं वयणं पडिकूलेइ अभिक्खणं ।। ११ ।। १०५९. 'न सा ममं वियाणाइ, न वि सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिती मन्ने, साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ || १२ || १०६०. पेसिया पलिउंचति ते परियंति समंतओ । रायवेट्ठि व मन्नंता करेंति भिउडिं मुहे ||१३|| १०६१. वाइया संगहिया चेव भत्तपाणेण पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा पक्कमंति दिसोदिसिं ॥ १४॥ १०६२. अह सारही विचिंतेइ खलुंकेहिं समागओ । 'किं मज्झ दुट्ठसीसेहिं ? अप्पा मे अवसीयई ॥ १५ ॥ १०६३. जारिसा मम सीसा उ तारिसा गलिगद्दभा । गलिगद्दभे चईत्ता णं दढं पगिण्हई तवं ||१६|| १०६४. मिउ मद्दवसंपन्नो गंभीरो सुसमाहिओ ।' विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पण ॥ १७॥ त्ति बेमि ॥ ★★★ । खलुंकियं समत्तं ॥ २७ ॥ ★★★ २८ अट्ठावीसइमं मोक्खमग्गगतीनामं अज्झणं १०६५. मोक्खमग्गगइं तच्चं सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाण- दंसणलक्खणं || १ || १०६६. नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। एस गोत्ति पत्तो जिहिं वरदंसिहिं || २ || १०६७. नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गई || ३ || १०६८. तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोहियं । ओहीनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ||४|| १०६९. एयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहिं देसियं ॥५॥ श्री आगमगुणमंजूषा १६६७ SONON फ्र Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्यं मूलसुत्तं) अ. २८, २९ [२९] १०७०. गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ||६|| १०७१. धम्मो अहम्मो आकासं कालो पोग्गल जंतवो । एस लोगो त्ति पत्तो जिणेहिं वसदंसिहिं ||७|| १०७२. धम्मो अहम्मो आकासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि कालो पोग्गल जंतवो ॥८॥ १०७३. गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं || ९ || १०७४. वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणेण दंसणेणं च सुहेण यदुहेण य ॥ १०॥ १०७५. नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य एवं जीवस्स लक्खणं ॥ ११ ॥ १०७६. सद्दधयार उज्जोओ पहा छायाऽऽतवेत्ति वा । वण्ण-रस-गंध-फासा पोग्गलाणं तु लक्खणं ॥१२॥ १०७७. एकत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं ।।१३।। १०७८. जीवाऽजीवा य बंधो य पुण्ण-पावाऽऽसवा तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव ॥१४॥ १०७९. तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं । भावेण सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं || १५ || १०८०. निसग्गुवदेसरुई १-२ अणारूइ ३ सुत्त - बीयरूइ ४-५ मेव । अभिगम - वित्थाररुई ६-७ किरिया-संखेव धम्मरुई ८-१० ||१६|| १०८१. भूयत्थेणाहिगया जीवाऽजीवा य पुण्ण पावं च । सहसम्मुइयाऽऽसव-संवरे य रोएइ उ निसग्गो ||१७|| १०८२. जो जिदि भावे चव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेय नन्नह त्ति य निसग्गरुइ त्ति नायव्वो १ || १८|| १०८३. एए चेव हु भावे उवइट्ठे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो २ ||१९|| १०८४. रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नामं ३ ||२०|| १०८५. जो सुत्तमहिज्जतो सुरण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ४ ||२१|| १०८६. एगेण अणेगाई पयाई जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्ल बिंदू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ५ ॥ २२ ॥ १०८७. सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिवं । एक्कारस अंगाई पइण्णगं दिट्ठवाओ य ६ ||२३|| १०८८. दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सव्वाहिं नयविहीहिं य वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ७ ॥ २४ ॥ १०८९. दंसण-नाण-चरित्ते तव विणए सच्चसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नामं ८ ||२५|| १०९०. अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ९ ॥२६॥ १०९१. जो अत्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो १० ||२७|| १०९२. परमत्थसंथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि । वावन्न कुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८॥। १०९३. नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयव्वं । सम्मत्त चरित्ताइं जुगवं, पुव्वं व सम्मत्तं ||२९|| १०९४. नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न होति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमुक्कस्स निव्वाणं ||३०|| १०९५. निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिंछा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल - पभावणे अट्ठ ||३१|| १०९६. सामाइयं थ पढमं छेओवट्ठावणं भवे बितियं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥३२॥ १०९७. अकसायमहक्खायं छउमत्थस्स जिणस्स वा । एयं चयरित्तकरं चारित्तं होइ आहियं ||३३|| १०९८. वो यदुविहो वुत्तो बाहिरऽब्भंतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमभिंत तवो ||३४|| १०९९. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे । चरित्तेण न हाइवे परिसुज्झई ||३५|| ११००. खवेत्ता पुव्वकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो ||३६|| त्ति बेमि || *** मोक्खमग्गगतीनामऽज्झयणं समत्तं ॥ २८ ॥ ★★★ २९ एगूणतीसइमं सम्मत्तपरक्कमं अज्झयणं ★★★ ११०१. सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नामऽज्झयणे; समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पत्तइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिज्झति बुज्झति मुच्वंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति ॥ १॥ ११०२. तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तं जहा - संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरु- साहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउवीसत्थए ९ वंदणे १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थय - थुइमंगले १४ कालपडिलेहणा १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २० परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मका २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमणसन्निवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोयाणे २८ श्री आगमगुणमंजूषा - १६६८ ॐ ॐ ॐ ॐ फ्र Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROOF555555555555 (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्थं मूलसुत) अ. २९ [३०] $ $$$$$ $5555 CICF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C सुहसाए २९ अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणिवट्टणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३९ भत्तपच्चक्खाणे ४० सम्भावपच्चक्खाणे ४१ पडिरुवया ४२ वेयावच्चे ४३ सव्वगुणसंपु(१५)ण्णया ४४ वीयरागया ४५ खंती ४६ मुत्ती ४७ मद्दवे ४८ अज्जवे ४९. भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे ५२ मणगुत्तया ५३ वइगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाहारणया ५६ वइसमाहारणया ५७ कायसमाहारणया ५८ नाणसंपन्नया ५९ दंसणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइंदियनिग्गहे ६२ चक्खिदियनिग्गहे ६३ घाणिदियनिग्गहे ६४ जिब्भिदियनिग्गहे ६५ फासिदियनिग्गहे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६९ लोहविजए ७० पेजदोस-मिच्छादसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ७३ ॥२।। ११०३. संवेगेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणपइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अणंताणुबंधिकोह-माण-माया-लोभे खवेई, कम्मं न बंधइ, तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ, दंसणविसोहीए यणं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गणेणं सिज्झइ। सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ १ ॥३॥ ११०४. निव्वेएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? निव्वेएणं दिव्व-माणुस-तेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ, सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चायं करेइ, आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गपडिवन्ने य भवइ२॥४॥११०५. धम्मसद्धाएणं भंते ! जीवे किंजणयइ ? धम्मसद्धाएणं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ, अगारधम्मं च णं चयइ, अणगारे णं जीवे सारीर-माणसाणं दुक्खाणं छेयण-भेयण-संजोगाईणं वोच्छेयं करेइ, अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ ३ ॥५॥ ११०६. गुरु-साहम्मियसुस्सूसणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? गुरु-साहम्मियसुस्सूसणयाए णं विणयपडिवत्तिं जणयइ । विणयपडिवन्ने य णं जीवे अणवासायणसीले नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवदुग्गईओ निरंभइ, वण्णसंजलण-भत्ति-बहुमाणयाए मणुस्स-देवसोग्गईओ निबंधइ, सिद्धिसोग्गइं च विसोहेइ, पसत्थाइं च णं विणयमूलाई सव्वकज्जाइं साहेइ, अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता भवइ ४॥६॥ ११०७. आलोयणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? आलोयणयाए णं माया-नियाण-मिच्छादरिसणसल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अणंतसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ, उज्जुभावं च णं जणयइ । उज्जुभावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेय नपुंसगवेयं च न बंधइ, पुव्वबद्धं च णं निज्जरेइ ५॥७॥११०८. निंदणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? निंदणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ। पच्छाणुतावेणं विरज्जमाणे करणगुणसेढिं पडिवज्जइ। करणगुणसेढीपडिवन्ने य अणगारे मोहणिज्ज कम्मं उग्याएइ ६॥८॥ ११०९. गरहणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? गरहणयाए णं अपुरेक्कारं जणयइ । अपुरेक्कारगए णं जीवे अप्पसत्येहितो जोगेहितो नियत्तेइ, पसत्थेहि य पवत्तइ । पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अणगारे अणंतघाई पज्जवे खवेइ७॥९॥ ११११. चउवीसत्थएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? चउवीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ९॥११॥१११२. वंदणएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वंदणएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ, उच्चागोयं निबंधइ, सोहग्गं च णं अप्पडियं आणाफलं निव्वत्तेइ, दाहिणभावं च णं जणयइ १०॥१२॥ १११३. पडिक्कमणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? पडिक्कमणेणं वयछिद्दाई पिहेइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते ॥ सुप्पणिहिए विहरइ ११ ॥१३॥ १११४. काउस्सग्गेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? काउस्सग्गेणं तीय-पडुप्पन्न पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभरु व्व भारवहे पसत्थझाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ १२ ।।१४।।१११५. पच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरुंभइ १३॥१५॥१११६. थय-थुइमंगलेणं भंते ! जीवे किंजणयइ ? थय-थुइमंगलेणं नाण-दंसण-चरित्तबोहिलाभं जणयइ। नाण-दंसण-चरित्तबोहिलाभसंपण्णे जीवे अंतकिरियं कप्प-विमाणोववत्तियं आराहणं आराहेइ १४ ॥१६॥ १११७. कालपडिलेहणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कालपडिहणाए नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ १५॥१७||१११८. पायच्छितकरणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ। पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहिं जणयइ, निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, आयारं च आयारफलं च आराहेइ १६॥१८॥ १११९. खमावणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? खमावणयाए णं reO555555 55555) श्री आगमगुणमंजूषा - १६६९555555555555 5 $$5 . WOO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐5CC Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. २९ [३१] पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाण-भूय जीव सत्तेसु मेत्तीभावं उप्पाएइ । मेत्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निब्भए भवइ १७ ॥१९॥ ११२०. सज्झाएणं भंते! जीवे किं जणवइ । सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ १८ ॥२०॥ ११२१. वायणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? वायणाए निज्जरं जणय, सुयस्स य अणासायणयाए वट्टइ । सुयस्स अणासायणयाए वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलंबइ । तित्थधम्मं अवलंबमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ १९ ||२१|| ११२२. पडिपुच्छणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? पडिपुच्छणाए णं सुत्तत्थ तदुभयाइं विसोहेइ, कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिंदइ २० ||२२|| ११२३. परियट्टणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? परियट्टणाए णं वंजणाई जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ २१ ॥ २३॥ ११२४. अणुप्पेहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? आउवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ धणियबंधणबद्धाओ सिढिलबंघणबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिझ्याओ हस्सकालट्ठिझ्याओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेs, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंघइ अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीईवयइ २२ ||२४|| ११२५. धम्मकहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ, पवयणपभावए णं जीवे आगमेसस्सभद्दत्ताए कम्मं निबंध २३ ||२५|| १९२६. सुयस्स आराहणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? सुयस्स आराहणयाए अन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सइ २४ ॥ २६ ॥ ११२८. संजमेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ २६ ||२८| ११३०. वोयाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वोयाणेणं अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ २८ ||३०|| ११३१. सुहसाएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ । अणुस्सुए णं जीवे अणुकंपए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्मं खवेइ २९ ॥३१॥ ११३२. अप्पडिबद्धयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ । निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया वा राओ वा असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ ३० ||३२|| ११३३. विवित्तसयणासणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? विवित्तसयणासणयाए णं चरित्तगुत्तिं जणयइ । चरणं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगंतरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निज्जरेइ ३१ ||३३|| ११३४. विणिवट्टणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? विणिवट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुट्ठेइ, पुव्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंतं संसारकंतारं वीइवयइ ३२ ||३४|| ११३५. संभोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? संभोगपच्चक्खाणेणं आलंबणाई खवेइ । निरालंबणस्स य आयतट्टिया जोगा भवंति, सएणं लाभेणं संतुस्सइ, परस्स लाभं नो आसाएइ, परलाभं नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ । परस्स लाभं अणस्साएमाणे अतक्केमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसेमाणे दोच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ३३ ||३५|| ११३६. उवहिपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ । ? उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमंथं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निक्कखे उवहिमंतरेण य न संकिलिस्सा ३४ ||३६|| १९३७. आहारपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणेणं जीवीयासंसप्पओगं वोच्छिंदइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिदित्ता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सा ३५ ||३७|| १९३८. कसायपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं वीरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुह- दुक्खे भवइ ३६ ॥ ३८ ॥ ११३९. जोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं निज्जरेइ ३७ ||३९|| १९४० सरीरपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सरीरपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तं निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ३८ ||४०|| १९४१. सहायपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ३९ ॥४१॥। ११४२. भत्तपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणेणं अणेगाई भवसयाइं निरुभइ ४० ॥ ४२॥। ११४३. सब्भावपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सब्भावपच्चक्खाणेणं अनियट्टि जणयइ । अनियट्टिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तं जहा वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं । 5 श्री आगमगुणमंजूषा - १६७० 5555 2010 03 9 0 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 TOK Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयण (चउत्थं मूलसुत्त) अ. २९ 559595000000000 तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ४१ ||४३|| ११४४. पडिरूवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ । लहुभूए य णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाण-भूय जीव-सत्तेसु वाससणिज्जरूवे अप्पपडिलेहे जिइंदिए विपुलतव समिइसमन्नागए यावि भवइ ४२ ॥४४॥। ११४५. वेयावच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वेयावच्चेणं तित्थगरनाम-गोयं कम्मं निबंधइ ४३ ॥ ४५॥ ११४६. सव्वगुणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणयइ । अपुणरावत्तिं पत्तए णं जीवे सारीर माणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ४४ ||४६|| ११४७. वीयरागयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? वीयरागयाए णं नेहाणुबंधणाणि तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिंदइ, मणुन्नेसु सद्द-फरिस - रस- रूवगंधेसु चेव विरज्जइ ४५ ॥ ४७॥। ११४८. खंतीए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? खंतीए णं परीसहे जिणइ ४६ ||४८|| ११४९. मुत्तीए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे यजीवे अत्थलोलाणं पुरिसाणं अपत्थणिज्जे भवइ ४७ ॥४९॥ ११५०. अज्जवयाए णं भते ! जीवे किं जणयइ ? अज्जवयाए णं काउज्जययं भावज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नयाएणं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ४८ ॥ ५० ॥ ११५१. महवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? मद्दवयाए णं मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्ठवेइ ४९ ॥ ५१ ॥ ११५२. भावसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भावसच्चेणं भावविसोहिं जणयइ । भावविसोहीए [३२] माणे जीवे अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठेइ । अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ ५० ||५२|| ११५३. करणसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? करणसच्चेणं करणसत्तिं जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणो जीवो जहावाई तहाकारी यावि भवइ ५१ ॥ ५३॥ ११५४. जोगसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ ५२ ॥ ५४ ॥ ११५५. मणगुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? मणगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गचित्ते जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ५३ ॥ ५५ ॥ ११५३. वइगुत्तया णं भंते! जीवे किं जणयइ ? वइगुत्तयाए णं निव्विकारं जणयइ । निव्विकारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भवइ ५४ ||५६ || १९५७. कायगुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणय ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोह करेइ ५५ ।। ५७ ।। ११५८. मणसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ। एगग्गं जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ । नाणपज्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ, मिच्छत्तं च निज्जरेइ ५६ || ५८|। ११५९. वइसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? वइसमाहारणयाए णं वइसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वइसाहारणदंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलभबोहियत्तं निव्वत्तेइ, दुल्लभबोहियत्तं निज्जरेइ ५७ || ५९ || १९६०. कायसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्नवे विसोहेइ । चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ। अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ५८ ||६० ११६१. नाणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? नाणसंपन्ना जीवे सव्वभावाभिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे ण विणस्सइ । जहा सूई ससुत्ता पडिया न विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ ॥ १॥ नाण- विणय-तव-चरित्तजोगे संपाउणइ, ससमय-परसमयसंघायणिज्जे भवइ ५९ ॥ ६१ ॥ ११६२. दंसणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? दंसणसंपन्नयाए णं जीवे भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ, अणुत्तरेणं नाण-दंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विहरइ ६० ||६२|| ११६३. चरित्तसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ । सेलेसिं पडिवन्ने अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ६१ ॥६३॥। ११६४. सोइंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सोइंदियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु सद्देसु राग-दोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ६२ ॥ ६४॥। ११६५. चक्खिदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? चक्खिदियनिग्गणं मणुन्नामणुन्नेसु रूवेसु राग-दोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ६३ ॥६५|| १९६६-६८. घाणिदिए एवं चेव ६४ ॥ ६६ ॥ जिब्भिदिए वि ६५ ||६७|| फासिदिए वि ६६ ||६८|| नवरं गंधेसु रसेसु फासेसु वत्तव्वं । ११६९. कोहविजएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खंतिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं श्री आगमगुणमंजूषा- १६७१ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. २९, ३० कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ६७ ||६९ | ११७०-७२. एवं माणे ६८ || ७०|| मायाए ६९ ||७१||लोभे ७० ||७२ || नवरं मद्दवं उज्जुभावं संतोसीभावं वत्तव्वं । ११७३. पिज्ज-दोस - मिच्छादंसणविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ ? पिज्ज-दोस मिच्छादंसणविजएणं नाण- दंसण- चरित्ताराहणयाए अब्भुट्ठेइ अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए । तप्पढमयाए जहाणुपुव्विं अट्ठावीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्जं पंचविहं अंतरायं एए तन्न विकम्मं जुगवं खवेइ । तओ पच्छा अणुत्तरं अनंतं कसिणं पडिपुन्नं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभासगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बंधइ सुहफरिसं दुसमयट्ठिईयं; तं पढमसमए बद्धं, बिइयसमए वेइयं, तइयसमए निज्जिण्णं । तं बद्धं पुढं उदीरियं वेइयं, नणं या अम्मं चावि भवइ ७१ || ७३ | ११७४ . अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कज्झाणं झयमाणे तप्पढयाए मणजोगं निरुंभइ, वइजोगं निरुभइ, कायजोगं निरुभइ, आणापाणुनिरोहं करेइ, ईसिपंचहस्सक्खरुच्चारणद्वाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरिय अणियट्टिं सुक्कज्झाणं झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ ७२ ॥ ७४ ॥ ११७५. तओ ओरालिय-कम्माई च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ड एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ७३ ||७५|| ११७६. एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेण भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परूविए दंसिए निदंसिए उवदंसिए त्ति बेमि ||७६|| ★★★ ॥ सम्मत्तपरक्कमं अज्झयणं समत्तं ||२९|| ★ ★ ★ ३० तीसइमं तवमग्गगइज्जं अज्झयणं ★★★ ११७७. जहा उ पावगं कम्म राग-दोससमज्जियं । खवेति तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण || १ | ११७८. पाणिवह मुसावाया अदत्त- मेहुण परिग्गहा विरओ | राईभोयणविरओ जीवो भवइ अणावो ॥२॥ ११७९. पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइंदिओ । अगारवो य निस्सल्लो जीवो भवइ अणासवो ||३|| ११८०. एएसिं तु विवच्चासे रागदोससमज्जियं । खवेइ तं जहा भिक्खू तं मे एगमाणे सुण ॥ ४ ॥ ११८१. जहा महातलागस्स सन्निरुद्धे जलागमे । उस्सिंचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥ ५ ॥ ११८२. एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जई || ६ || १९८३. सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरऽब्भंतरो तहा । बाहिरो छव्विो वत्तो एवमब्भंतरो तवो ॥७॥ ११८४. अणसणभूणोयरिया १-२ भिक्खायरिया ३ य रसपरिच्चाओ ४ । कायकिलेसो ५ संलीणया ६ य बज्झो तवो होइ ॥८॥| ११८५. इत्तरिय मरणकाला य अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा निरवकंखा उ बिइज्जिया || ९ || १९८६. जो सो इत्तरियतवो सो समासेण छव्विहो । सेदितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १०॥ ११८७. तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छट्टओ पइन्नतवो । मणइच्छियचित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरिओ ॥ ११ ॥ ११८८. जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया । सवियारा अवियारा कायचेट्टं पई भवे ||१२|| १९१८९. अहवा सप्परिकम्मा अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमनीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि १ ॥ १३ ॥ ११९०. ओमोयरणं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्त-कालेणं भावेणं पज्जवेहिं य ॥ १४ ॥ ११९१. जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ||१५|| १९९२. गामे नगरे तह रायहाणि-निगमे य आगरे पल्ली। खेडे कब्बडदो मुह-पट्टण - मडंब बाहे ||१६|| १९९३. आसमपए विहारे सन्निवेसे समाय- घोसे य। थलि सेणा खंधारे सत्ये संवट्ट कोट्टे य ॥१७॥ ११९४. वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमेत्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥१८॥। ११९५. पेडा य अपेडा गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव । संबुक्कावट्टाययगंतुंपच्चागया छट्ठा ॥१९॥ ११९६. दिवसस्स पोरिसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वं ॥ २०॥ ११९७. अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाए घासमेसंतो । चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे ||२१|| १९९८. इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि । अन्नतरवयत्थो वा अन्नतरेणं व वत्थेणं ॥२२॥ ११९९. अन्त्रेण विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमुयंते उ । एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयव्वं ॥ २३ ॥ १२००. दव्वे खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहिं ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू २ ||२४|| १२०१ अट्ठविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ३ Yo श्री आगमगुणमंजूषा १६७२ [३३] 原 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO555555555555555 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ, ३०,३१, ३२ [३४] 55555555555%serat Here4555555555555555555555555$$$$$$$$55555555550 ॥२५॥ १२०२. खीर-दहि-सप्पिमाई पणीयं पाण-भोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ४ ॥२६॥ १२०३. ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिजंति कायकिलेसं तमाहियं ५॥२७॥१२०४. एगंतमणावाए इत्थी-पसुविवज्जिए। सयणासणसेवणया विवित्तसयणासणं ६॥२८॥ १२०५. एसो बाहिरगतवो समासेण वियाहिओ। अब्भतरं तवं एत्तो वोच्छामि अणुपुव्वसो॥२९॥ १२०६. पायच्छित्तं १ विणओ २ वेयावच्चं २ तहेव सज्झाओ४। झाणं ५च/ विउस्सग्गो ६ एसो अन्र्भतरो तवो ॥३०॥ १२०७. आलोयणारिहादीयं पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं १ ॥३१|| १२०८. अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तहेवासणदायणं । गुरुभत्ति-भावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ २॥३२॥ १२०९. आयरियमाईए वेयावच्चम्मि दसविहे । आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ३ ॥३३॥ १२१०. वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा । अणुपेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ४ ॥३४॥ १२११. अट्ट-रोद्दाणि वजेत्ता झाएज्जा सुसमाहिए। धम्म-सुक्काई झाणाई झाणं तं तु बुहा वए ५॥३५॥ १२१२. सयणासण ठाणे वा जे उ भिक्खून वावरे(?डे) । कायस्स विउस्सग्गो छट्ठो सो परिकित्तिओ६॥३६॥ १२१३. एयं तवं तु दुविहं जे सम्मं आयरे मुणी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ।॥३७॥त्ति बेमि। ॥तवमग्ग? ग इज्ज समत्तं ३०॥३०॥ *** ३१ इगतीसइमं चरणविहिअज्झयणं १२१४. चरणविहिं पवक्खामि जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ।।१।। १२१५. एगओ विरई कुज्जा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ||२|| १२१६. राग-दोसे य दो पावे पावकम्मपवत्तणे। जे भिक्खू रुंभई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥३|| १२१७. दंडाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥४॥१२१८. दिव्वे य उवसग्गे तहा तेरिच्छ-माणुसे। जे भिक्खू सहई निच्चं सेन अच्छइ मंडले॥५॥१२१९. विगहाकसायसन्नाणं झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू वज्जए निच्चं से न अच्छइ मंडले ।।६।। १२२०. वएसु इंदियत्थेसु समितीसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥७॥ १२२१. लेसासु छसु काएसु छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥८॥ १२२२. पिंडोग्गहपडिमासू भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥९॥ १२२३. मएसु बंभगुत्तीसु भिक्खुधम्मम्मि दसविहे । जे भिक्खू जयई निच्च से न अच्छइ मंडले ॥१०॥ १२२४. उवासगाणं पडिमासु भिक्खूणं पडिमासुय। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥११॥१२२५. किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसुय। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ।।१२।। १२२६. गाहासोलसएहिं तहा असंजमम्मि य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥१३॥ १२२७. बंभम्मिनायज्झयणेसु ठाणेसु असमाहिए। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥१४॥ १२२८. एकवीसाए सबलेसुंबावीसाए परीसहे। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥१५॥ १२२९. तेवीसइसूयगडे रूवाहिएसु सुरेसुय। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥१६॥ १२३०. पणुवीसा भावणाहिं उद्देसेसु दसादिणं । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ||१७|| १२३१. अणगारगुणेहिं च पकप्पम्मि तहेव उ। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥१८॥१२३२. पावसुयपसंगेसु मोहट्ठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं सेन अच्छइ मंडले॥१९॥ १२३३. सिद्धाइगुण-जोगेसुतेत्तीसासायणासुय। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले॥२०॥१२३४. इइ एएसु ठाणेसु जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं से सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए॥२१||त्ति बेमि || | चरणविहिअज्झयणं समत्तं ॥३१॥***३२ बत्तीसइमं पमायट्ठाणं अज्झयणं ★★★ १२३५. अच्चंतकालस्स समूलगस्स सव्वस्स दुक्खस्स उजो पमोक्खो । तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता ! सुणेह एगंतहियं हियत्थं ॥१|| १२३६. नाणस्स सव्वस्स पगासणाए अन्नाण-मोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्सय संखएणं एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ।।२।। १२३७. तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा । सज्झायएगंतनिसेवणा य सुत्तत्थसंचिंतणया धिती य॥३॥ १२३८. आहारमिच्छे मितमेसणिज्जं सहायमिच्छे निउणट्ठबुद्धिं । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी ॥४॥१२३९. न वा लभेज्जा निउर्ण सहायं गुणाहियं वा गुणतो समं वा । एक्को वि पावाई विवज्जयतो विहरेज कामेसु असज्जमाणो॥५॥१२४०. जहाय अंडप्पभवा बलागा अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहायतणं खुतण्हं मोहं च तण्हायतणं वयंति xerc$4555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६७३ 55555555555555555555555555550Y More5555555555555555555555555555555555555555555555555567ORT Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) ॥६॥। १२४१. रागो य दोसो वि य कम्मबीयं कम्मं च मोहप्पभवं वदंति । कम्मं च जाई मरणस्स मूलं दुक्खं च जाई मरणं वयंति ||७|| १२४२. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाई ||८|| १२४३. रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं । जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तयिस्सामि अहाणुपुव्विं || ९ || १२४४. रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवंति दुमं जहा सादुफलं व पक्खी ॥ १०॥। १२४५. जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे समारुओ नोवसमं उवेइ। एविदियग्गी वि पगामभोइणो न बंभचारिस्स हियाय कस्सई ॥११॥ १२४६. विवित्तसेज्जासणजंतियाणं ओभासणाणं दमिइंदियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥। १२४७. जहा बिरालावसहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था। एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बंभचारिस्स खमो निवासो ||१३|| १२४८. न रूव-लावण्ण-विलास-हासं न जंपियं इंगिय पेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दहुं ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ १२४९. अदंसणं चेव अपत्थणं च अचिंतणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजोग्गं हियं सया बंभचेरे रयाणं ।। १५ ।। १२५०. कामं तु देवीहिं वि भूसियाहिं न चाइया खोभइतुं तिगुत्ता। तहा वि एगंतहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो || १६ || १२५१. मोक्खाभिकंखिस्स वि माणवस्त्र संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ बालमणोहराओ ||१७|| १२५२. एए य संगे समइक्कमित्ता सुहुत्तरा चेव भवंति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता नदी भवे अवि गंगासमाणा ॥ १८ ॥ १२५३. कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । जं काइयं माणसियं च किंचि तस्संतगं गच्छइ वीयरागो ॥ १९ ॥। १२५४. जहा व किंपागफला मणोरमा रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा । ते खुद्दए जीविए पच्चमाणा एओवमा कामगुणा विवागे ॥२०॥ १२५५. जे इंदियाणं विसया मणुन्ना न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुन्नेसु मणं पि कुज्ना समाहिकामे समणे तवस्सी ॥२१॥ १२५६. चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो उ जो तेसु स वीयरागो ॥ २२ ॥ १२५७. रूवस्स चक्खुं गहणं वयंति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ||२३|| १२५८. रूवेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे आलोगलोले समुवेइ मच्चुं ॥ २४ ॥ १२५९. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुर्द्दतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रूवं अवरज्झई से ||२५|| १२६०. एगंतरत्तो रुइरंसि रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥ २६ ॥ १२६१. रूवाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरुवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे ॥२७॥ १२६२. रूवाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पाय रक्खण-सन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? ॥२८॥ १२६३. रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ||२९|| १२६४. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ||३०|| १२६५. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो रूवे अतितो दुहिओ अणिस्सो ||३१|| १२६६. रुवाणुरत्तस्स रस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्ख ||३२|| १२६७. एमेव रूवम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ | पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ||३३|| १२६८. रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ||३४|| १२६९. सोयस्स सद्धं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥३५॥ १२७०. सद्दस्स सोयं गहणं वयंति, सोयस्स सद्दं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ||३६|| १२७१. सद्देसु जो हिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिए व्व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चुं ||३७|| १२७२. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुर्द्दतदोसेण सएण जंतू न किंचि सद्दं अवरज्झई से ॥३८॥ १२७३. एगंतरत्तो रुइरंसि सद्दे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे ।। ३९ ।। १२७४. सद्दाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिट्ठे ||४०|| १२७५. FOR 乐乐乐乐乐乐出乐乐乐, (४३) उत्तरऽज्झयणं (चंउत्थं मूलसुत्तं) अ. ३२ श्री आगमगुणमंजूषा १६७४ फफफफफफ 72OK Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TAGRO555555555555555 (१३) उत्तरज्ज्झयणं (चउत्यं मूलसुती अ. ३२ [३६] [३६] 35555555%8sssss OFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFHSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSH सद्दाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे? ॥४१॥ १२७६. सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढिं। अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥४२॥ १२७७. तुण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥४३॥ १२७८. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥४४॥ १२७९. सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्न कयाइ किंचि। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ||४५|| १२८०. एमेव सद्दम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।।४६।। १२८१. सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥४७॥ १२८२. घाणस्स गंधं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो॥४८॥ १२८३. गंधस्स घाणं गहणं वयंति, घाणस्स गंधं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥४९॥१२८४. गंधेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥५०॥ १२८५. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि गंधं अवरज्झई से॥५१|| १२८६. एगंतरत्तो रुइरंसि गंधे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे ।।५२।। १२८७. गंधाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरुवे। चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिडे ॥५३।। १२८८. गंधाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? ॥५४॥ १२८९. गंधे अतित्ते य परिग्णहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥५५॥ १२९०. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥५६|| १२९१. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो गंधे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥५७।। १२९२. गंधाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥५८॥ १२९३. एमेव गंधम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ । पट्टट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥५९।। १२९४. गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥६०॥ १२९५. जिब्भाए रसं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥६१।। १२९६. रसस्स जिब्भं गहणं वयंति, जिब्भाए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥६२॥ १२९७. रसेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आभिसभोगगिद्धे ॥६३।। १२९८. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू रसं न किंची अवरज्झई से॥६४|| १२९९. एगंतरत्तो रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे॥६५॥ १३००. रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिटे ॥६६|| १३०१. रसाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे?॥६७|| १३०२. रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिँ । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८।। १३०३. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।।६९।। १३०४. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥७०|| १३०५. रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥७१।। १३०६. एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। का पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥७२।। १३०७. रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥७३।। १३०८. कायस्स फासं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ||७४।। १३१०. xoxo555 555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६७५ फ $$$$ $ $$$$OOR DC明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明听听听听$2C JO७ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SROR9555555555555555 (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. ३२ [३७] OCs圳听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听 फासेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसन्ने गाहग्गहीए महिसे व रन्ने ॥७६।। १३११.जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिंखणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि फासं अवरज्झई से ||७७|| १३१२. एगंतरत्तो रुइरंसि फासे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ ई बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥७८॥ १३१४. फासाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? ॥८०॥ १३१५. फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।।८१|| १३१६. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से।।८२।। १३१७. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥८३।। १३१८. फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ।।८४११३१९. एमेव फासम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं ' विवागे॥८५|| १३२०. फासे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥८६।। १३२१. मणस्स भावं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसुस वीयरागो॥८७।। १३२२. मणस्स भावं गहणं वयंति भावस्स मणं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु।।८८॥ १३२३. भावेसुजोगेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणमग्गाऽवहिए गए वा ॥८९॥ १३२४. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिंखणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू न किंचि भावं अवरज्झई से ॥९०॥ १३२५. एगंतरत्तो + रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥९१॥ १३२६. भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ 4 णेगरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिडे॥९२॥ १३२७. भावाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे?॥९३|| १३२८. भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥९४।। १३२९. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥१५॥ १३३०. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरते। एवं अदत्ताणि समाययंतो भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥१६॥ १३३१. भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥९७|| १३३२. एमेव भावम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोधपरंपराओ। पदुट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥९८॥ १३३३. भावे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोधपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥९९।। १३३४. एविदियत्था य मणस्स अत्था दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो। ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं न वीयरागस्स करेति किंचि ॥१००॥ १३३५. न कामभोगा समयं उवेति, न यावि भोगा विगई उति । जे तप्पदोसी य परिग्गही य सो तेसु मोहा विगई उवेति ॥१०१॥ १३३६. कोहं च माणं च तहेव मायं लोभ दुगुंछं अरइं रइं च । हासं भयं सोग-पुमुत्थिवेयं नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥१०२।। १३३७. आवज्जई एवमणेगरूवे एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्ने य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से॥१०३॥१३३८. कप्पं न इच्छेज्ज सहायलिच्छू पच्छाणुतावेण तवप्पभावं । एवं विकारे अमियप्पकारे आवजई इंदियचोरवस्से ॐ ॥१०४॥ १३३९. तओ से जायंति पओयणाई निमज्जिउं मोहमहण्णवम्मि। सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा तप्पच्चयं उज्जमए य रागी।।१०५॥ १३४०. विरज्जमाणस्स क य इंदियत्था सद्दाइया तावइयप्पयारा। नतस्स सव्वे वि मणुन्नयं वा निव्वत्तयंती अमणुन्नयं वा॥१०६॥ १३४१. एवं ससंकप्पविकप्पणासुंसंजायती समयमुवट्ठियस्स। अत्थे. य संकप्पयतो तओ से पहीयए कामगुणेसु तण्हा ॥१०७॥ १३४२. स वीयरागो कयसव्वकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणेणं । तहेव जं दंसणमावरेइ जंचंतरायं पकरेइ कम्मं ॥१०८॥१३४३. सव्वं तओ जाणइ पासई य अमोहणे होइ निरंतराए। अणासवे झाणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेति सुद्धे ॥१०९॥ १३४४. सो तस्स GO乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$$$2.A. Education International 2010_03 Pornफफफफफ www.jaine For Povete & Personal Use Only #555555श्री आगमगणमंजषा - १६७६555555555555555555555555OOR Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO5555555555555555 (४३) उत्तरायण चिउत्यं मूलसुक्त अ. ३२, २३, स्वि5 55555555555%8DHOK %%%%%%%%%%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%% सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जंतुमेयं । दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो तो होइ अच्चंत सुही कयत्थो ॥१००|| त्ति बेमि|| ★★★||पमायट्ठाणं समत्तं ॥३२॥ ३३ तेत्तीसइमं कम्मपयडिअज्झयणं★★★ १३४६. अट्ठ कम्माइं वोच्छामि आणुपुव्विं जहक्कम । जेहिं बद्धे अयं जीवे संसारे परिवत्तई ॥१॥ १३४७. नाणस्सावरणिज्जं दरिसणावरणं तहा । वेयणिज्ज तहा मोहं आउकम्मं तहेव य ॥२॥ १३४८. नामकम्मं च गोयं च अंतरायं तहेव य । एवमेताइं कम्माइं अटेव उ समासओ।।३।। १३४९. नाणावरणं पंचविहं सुयं आभिनिबोहियं । ओहनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ॥४॥१३५०. निद्दानिद्दा तहेव पयला निद्दा य पयलपयला य । तत्तो य थीणगिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा ॥५॥ १३५१. चक्खु-मचक्खू-ओहिस्स दरिसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविकप्पं नायव्वं दरिसणावरणं ॥६॥१३५२. वेयणीयं पिय दुविहं सायमसायं च आहियं । सायस्स उ बहू भेया एमेव असायस्स वि॥७॥ १३५३. मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा। दसणे तिविहं वुत्तं चरणे दुविहं भवे ॥८॥ १३५४. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तमेव य । एयाओ तिन्नि पगडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे ॥९॥ १३५५. चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तु वियाहियं । कसायवेयणिज्जं च नोकसायं तहेवय ॥१०॥ १३५६. सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायजं । सत्तविह नवविहं वा कम्म नोकसायजं ॥११॥ १३५७. नेरइय-तिरिक्खाउं मणुस्साउं तहेव य । देवाउयं चउत्थं तु आउकम्मं चउव्विहं ॥१२॥ १३५८. नामकम्मं च दुविहं सुहं असुहं च आहियं । सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्स वी॥१३॥ १३५९. गोयं कम्मं दुविहं उच्चं नीयं च आहियं । उच्चं अट्ठविहं होइ, एवं नीयं पि आहियं ॥१४॥ १३६०. दाणे लाभे य भोगे य उवभोगे वीरिए तहा। पंचविहमंतरायं समासेण वियाहियं ॥१५॥ १३६१. एयाओ मूलपगडीओ उत्तराओ य आहिया । पएसग्गं खेत्त-काले य भावं चादुत्तरं सुण ॥१६॥ १३६२. सव्वेतसं चेव कम्माणं पएसग्गं अणंतगं । गंठिगसत्ताईयं अंतो सिद्धाण आहियं ॥१७|| १३६३. सव्वजीवाणं कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं । सव्वेसु वि पएसेसु सव्वं सव्वेण वद्धगं ॥१८॥ १३६४. उदहिसरिसनामाणं तीसतिं कोडिकोडीओ। उक्कोसिया होइ ठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१९|| १३६५. आवरणिज्जाण दोण्हं पि वेयणिज्ने तहेव य। अंतराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया॥२०॥१३६६. उदहिसरिसनामाणं सत्तरिकोडिकोडीओ।मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्निया॥२१॥ १३६७. तेत्तीससागरोवम उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स, अंतोमुहुत्तं जहन्निया॥२२॥ १३६८. उदहिसरिसनामाणं विसतिं कोडिकोडीओ।नाम-गोयाण उक्कोसा, अट्ठमुहुत्ता जहन्निया॥२३|| १३६९. सिद्धाणऽणंतभागो अणुभागा भवंति उ। सव्वेसु विपएसग्गं सव्वजीवेसऽइच्छियं ॥२४॥ १३७०. तम्हा एएसि कम्माणं अणुभागे वियाणिया। एएसिं संवरे चेव खवणे य जए बुहे ॥२५॥त्ति बेमि || || कम्मपगडी समत्ता ॥३३॥ AA★ ३४ चउतीसइम लेसऽज्झयणं ★★★ १३७१. लेसज्झयणं पवक्खामि आणुपुव्विं जहक्कम । छण्हं पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे ॥१|| १३७२. नामाई १ वण्ण-रस-गंध-फास-परिणाम-लक्खेणं २-७। ठाणं ८ ठिइं९ गई १० चाउं ११ लेसाणं तु सुणेह मे ॥२॥ दारगाहा १३७३. किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कमं ॥३॥ दारं १ १३७४. जीमूतनिद्धसंकासा गवल-रिट्ठगसन्निभा । खंजंजण-नयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ ॥४|| १३७५. नीलासोगसंकासा चासपिछसमप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ ॥५॥ १३७६. अयसीपुप्फसंकासा अ कोइलच्छदसन्निभा र पारेवयगीर्वामा काउलेसा उ वण्णओ॥६॥ १३७७. हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुंड-पईवन्निभा तेउलेसा उ वण्णओ॥७॥ १३७८. हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसन्निभा। सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उवण्णओ||८||१३७९. संखंक-कुंदसंकासा खीरपूरसमप्पभा। रयय-हारसंकासा व सुक्कलेसा उ वण्णओ॥९|| दारं २ १३८०.जह कडुयतुंबगरसो निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ किण्हाए नायव्वो ॥१०॥ १३८१. जह तिगडुगस्स य रसो तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ नीलाए नायव्वो ॥११।। १३८२. जह तरुणअंबगरसो तुवरकविट्ठस्स वा वि 5 जारिसओ। एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ काऊए नायव्वो ॥१२॥ १३८३. जह परिणयंबगरसो पक्ककविट्ठस्स वा वि जारिसओ । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ तेऊए 明明听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$3 C5%%%%%%%%%%%%% verro55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा १६७७5555555555555555 55555IORY Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. ३४ [३९] फ्र नायव्वो ||१३|| १३८४. वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ । महु-मेरगस्स व रसो एत्तो पम्हाए परएणं ॥ १४ ॥ १३८५. खज्जूर- मुद्दियरसो खीररसो खंड-सक्कररसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो रसो उ सुक्काए नायव्वो ॥ १५॥ | दारं ३ १३८६. जह गोमडस्स गंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तो वि अनंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ||१६|| १३८७. जह सुरहिकुसुमसुगंधो गंध- वासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अनंतगुणो पसत्थलेसाण तिन्हं पि ॥ १७॥ दारं ४ १३८८. जह करगयस्स फासो गोजिब्भाए व सागपत्ताणं । एत्तो वि अणंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ||१८|| १३८९. जह बूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । एत्तो वि अनंतगुणो पसतत्थलेसाणं तिहं पि ॥ १९ ॥ दारं ५ १३९०. तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा । दुसओ तेयालो वा साण होइ परिणाम ||२०|| दारं ६ १३९१. पंचासवप्पवत्तो तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य। तिव्वारंभपरिणओ खुद्द साहसिओ नरो ||२१|| १३९२. निबंधसपरिणामो निस्संसो अजिइंदिओ । एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे ॥ २२ ॥ १३९३. ईसा - अमरिस- अतवो अविज्न माया अहीरिया । गिद्धी पओसे य सढे पमत्ते रसलोलु ॥ २३ ॥ सायगवेसए य ॥ १३९४. आरंभाओ अविरओ खुद्दो साहसिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे ॥ २४॥ १३९५. वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए || २५ | १३९६. उप्फालग दुट्ठवाई य तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तोकाउलेसं तु परिणमे ||२६|| १३९७. नीयावत्ती अचबले अमाई अकुतूहले । विणीयविणए दंते जोगवं उवहाणवं ||२७|| १३९८. पियधम्मे दधम्मे वज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे ||२८|| १३९९. पयणुकोह -माणे य माया लोभे य पयणुए। पसंतचित्ते दंतप्पा जोगवं उवहाणवं ||२९|| १४००. तहा पणुवाई य उवसंते जिइंदिए। एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ||३०|| १४०१. अट्ट- रोद्दाणि वज्जेत्ता धम्म सुक्काणि साहए। पसंतचित्ते दंतप्पा समिए गुत्ते यत्तिसु ॥ ३१ ॥ १४०२. सरागे वीयरागे वा उवसंते जिइंदिए। एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ॥ ३२॥ दारं ७ १४०३. असंखेज्जाणोसप्पिणीण उस्सप्पिणी समया । संखाईया लोगा लेसाण हवंति ठाणाई ||३३|| दारं ८ १४०४. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तऽहिया । उक्कोसा होइ ठिती नायव्वा किण्हलेसाए ||३४|| १४०५. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेसाए ||३५|| १४०६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिष्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउलेसाए ||३६|| १४०७. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोष्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसा ||३७|| १४०८. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही हुंति मुहुत्तमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा पम्हलेसाए ||३८|| १४०९. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्ती सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ||३९|| १४१०. एसा खलु लेसाण ओहेण ठिई उ वण्णिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो लेसाणं ठितिं तु वोच्छामि ॥ ४० ॥ १४११. दस वाससहस्साइं काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिण्णुदही पलियमसंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥ १४१२. तिण्णुदही पलियमसंखभागो "जहन्न नीलठिई । दस उदही पलियमसंखभागं च उक्कोसा ॥४२॥ १४१३. दस उदही पलियमसंखभागं जहन्निया होइ। तेत्तीससागराई उक्कोसा होइ किण्हाए ||४३|| १४१४. एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामी तिरिय मणुस्साण देवाणं ॥ ४४ ॥ १४१५. अंतोमुहुत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ । . तिरियाणं च नराणं वज्जेत्ता केवलं लेसं ॥ ४५ ॥ १४१६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा नायव्वा सुक्कसाए ॥ ४६ ॥ १४१७. एसा तिरिय - नराणं लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामी ठिती उ देवाणं ॥ ४७॥ १४१८. दस वाससहस्साइं किण्हाए ठिती जहन्निया होइ। पलियमसंखेज्जइमो उक्कोसा होइ किण्हाए || ४८|| १४१९. जा किण्हाए ठिती खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं नीलाए नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥ ४९ ॥ १४२०. जा नीला ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ||५० | १४२१. तेण परं वोच्छामी तेऊलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइ-वाणमंतर - जोइस वेमाणियाणं च ॥ ५१|| १४२२. पलिओवमं जहन्नं, उक्कोसा सागरा उ दोण्णऽहिया । पलियमसंखेज्जेणं होई भागेण तेऊए ॥ ५२॥ १४२३. दस वाससहस्साइं तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दोण्णुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥ ५३ ॥ १४२४. जा तेऊए ठिती खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । ४ श्री आगमगुणमंजूषा - १६७८ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ XOXO 55555555555555 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ POR9555555555555555y (३) उत्तरऽज्झयण (चउत्थ मूलसुत्त) अ. ३४, ३५, ३६ ( 80 5 555555555550oY GO乐乐乐乐明明听听听听听听乐乐明明明乐明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐555 जहन्नेणं पम्हाए, दस मुहुत्तऽहियाइं उक्कोसा ॥५४॥ १४२५. जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमब्भहिया।।५५।। दारं ९ १४२६. किण्हा नीला काऊ तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ । एयाहिं तिहिं वि जीवो दोग्गइं उववज्जई ॥५६॥ १४२७. तेऊ पम्हा सुक्का तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहिं तिहिं वि जीवो सोग्गइं उववज्जई ।।५७।। दारं १० १४२८. लेसाहिं सव्वाहिं पढमे समयम्मिपरिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ परे भवे होइ जीवस्स ।।५८।। १४२९. लेसाहिं सव्वाहिं चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु न हु कस्सइ उववाओ परे भवे हवइ जीवस्स ॥५९॥ १४३०. अंतोमुहुत्तम्मि गए अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव। लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोगं ॥६०|| दारं ११ १४३१. तम्हा एयासि लेसाणं अणुभावं वियाणिया। अप्पसत्थाओ वज्जेत्ता पसत्थाओ अहिट्ठए ॥६१॥ त्ति बेमि ॥ ** || लेसऽज्झयणं समत्तं ॥३४॥★★★ ३५ पंचतीसइमं अणगारमग्गगईयं अज्झयणं ★★★ १४३२. सुणेह मे एगग्गमणा मग्गं बुद्धेहिं देसियं । जमायरंतो भिक्खू दुक्खाणंतकरो भवे ॥१॥ १४३३. गिहवासं परिच्चज्ज पव्वज्जामासिओ मुणी । इमे संगे वियाणेज्जा जेहिं सज्जति माणवा ॥२॥१४३४. तहेव हिंसं अलियं चोजं अब्बंभसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ||३|| १४३५. मणोहरं चित्तघरं मल्ल-धूवेण वासियं । सकवाडं पंडरुल्लोयं मणसा वि न पत्थए ।॥४॥ १४३६. इंदियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए। दुक्कराई निवारेउं कामरागविवड्डणे ॥५॥ १४३७. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगगो । पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थऽभिरोयए ॥६॥ १४३८. फासुयम्मि अणाबाहे इत्थीहिं अणभिहुए । तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू परमसंजए |७|| १४३९. न सयं गिहाई कुव्वेज्जा नेव अन्नेहिं कारए। गिहकम्मसमारंभे भूयाणं दिस्सए वहो ||८|| १४४०. तसाणं थावराणं च सुहुमाणं बायराण य । तम्हा गिहसमारंभ संजओ परिवज्जए ।।९।। १४४१. तहेव भत्त-पाणेसु पयणे पयावणेसु य । पाण-भूयदयट्ठाए न पए न पयावए ||१०|| १४४२. जल-धन्ननिस्सिया जीवा पुडवी-कट्ठनिस्सिया। हम्मंति भत्त-पाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ||११|| १४४३. विसप्पे सव्वओधारे बहुपाणविणासणे। नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए |१२|| १४४४. हिरण्णं जायरूवं च मणसा वि न पत्थए । समलेट्ठ-कंचणे भिक्खु विरए कय-विक्कए ।।१३।। १४४५. किणंतो कइओ होइ, विक्किणंतो य वाणिओ। कय-विक्कयम्मि वढ्तो भिक्खू होइन तारिसो।।१४।।१४४६. भिक्खियव्वं, न केयव्वं भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा। कयविक्कओ महादोसो भिक्खावित्ती सुहावहा ॥१५|| १४४७. समुयाणं उंछमेसेज्जा जहासुतमणिदियं । लाभालाभम्मि संतुढे पिंडवायं चरे मुणी||१६|| १४४८. अलोले, न रसे गिद्धे जिब्भादंते अमुच्छिए। न रसट्ठाए मुंजेज्जा, जावणट्ठा महामुणी ॥१७॥ १४४९. अच्चणं रयणं चेव वंदणं पूयणं तहा। इड्डी-सक्कार-सम्माणं मणसा वि न पत्थए॥१८॥१४५०. सुक्कज्झाणं झियाएज्जा अनियाणे अकिंचणे। वोसट्ठकाए विहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ॥१९॥ १४५१. निज्जूहिऊण आहारं कालधम्मे उवट्ठिए। चइऊण माणुसं बोदिं पहू दुक्खा विमुच्चई ॥२०॥ १४५२. निम्ममो निरहंकारो वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलंनाणं सासयं परिनिव्वुडे ॥२१॥ त्ति बेमि || *अणगारमग्गं समत्तं ॥३५॥ *** ३६ छत्तीसइमं जीवाजीवविभत्तिअज्झयणं *** १४५३. जीवाजीवविभत्तिं सुणेह मे एगमणा इओ । जं जाणिऊण भिक्खू सम्मं जयइ संजमे ॥१॥ १४५४.जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए। अजीवदेसमागासे अलोए से वियाहिए ।।२।। १४५५. दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा। परूवणा तेसि भवे जीवाणमजीवाण य॥३|| १४५६. रूविणो चेवऽरूवी य अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो वि चउव्विहा ॥४॥ १४५७. धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पदेसे य आहिए । अधम्मे तस्स देसे य तप्पदेसे य आहिए ॥५॥ १४५८. आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे ॥६॥ १४५९. धम्माधम्मे य दो वेए लोगमेत्ता वियाहिया। लोगालोगे य आकासे, समए समयखेत्तिए।७।। १४६०. धम्माधम्मागासा तिन्नि वि एए अणादिया । अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया ।।८।। १४६१. समए वि संतई पप्प एवमेव वियाहिए । आएसं पप्प साईए अप्पज्जवसिए विय॥९॥ १४६२. खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा॥१०॥ १४६३. एगत्तेण पुहत्तेण खंधा य परमाणुणो । लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तओ । एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥१॥१४६४. संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य । ठिइं Mor5 55555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १६७९॥55555555555555 F ORY OC$听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听明明明明明乐明明明明明明明2C Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROO5555555555555555 (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्तं) अ. ३६ [११] 55555555%$$$ROC 5555555555555$$$$OTOR # OPIC乐听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明 पडुच्च सादीया सपज्जवसिया वि य ॥१२॥ १४६५. असंखकालमुक्कोसा एवं समयं जहन्निया । अजीवाण य रूवीणं ठिती एसा वियाहिया ॥१३॥ १४६६. अणंतकालमुक्कोसं एवं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीणं अंतरेयं वियाहियं ।।१४।। १४६७. वण्णओ गंधओ चेव रसओ फासओ तहा । संठाणओ य विन्नेओम परिणामो तेसि पंचहा ॥१५॥ १४६८. वण्णओ परिणया जे उपंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा॥१६।। १४६९. गंधओ परिणया जे उ दुविहा ते वियाहिया। सुब्भिगंधपरिणामा दुब्भिगंधा तहेव य॥१७॥ १४७०. रसओ परिणया जे उपंचहा ते पकित्तिया । तित्त-कडुय-कसाया अंबिला महुरा तहा ।।१८।। १४७१. फासओ परिणया जे उ अट्ठहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा ।।१९।। १४७२. सीया उण्हा य निद्धा य तहा लुक्खा य आहिया । इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया ||२०|| १४७३. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । परिमंडला य वट्टा तंसा चउरंसमायया ॥२१॥ १४७४. वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उगंधओ । रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२२॥ १४७५. वण्णओ जे भवे नीले भइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ विय॥२३॥ १४७६. वण्णओलोहिए जे उभइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥२४|| १४७७. वण्णओ पीयए जे उ भइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ विय॥२५॥ १४७८. वण्णओ सुक्किले जे उभइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२६॥ १४७९. गंधओ जे भवे सुब्मी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२७॥ १४८०. गंधओ जे भवे दुब्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥२८|| १४८१. रसओ तित्तए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२४॥ १४८२. रसओ कडुए जे उभइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ विय॥३०॥ १४८३. रसओ कसाए जे उ भइए से उवण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३१॥ १४८४. रसओ अंबिले जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३२॥ १४८५. रसओ महुरए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।।३३।। १४८६. फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ विय॥३४॥ १४८७. फासओ मउए जे उभइए सेउवण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ विय॥३५॥ १४८८. फासओ गरुएजे उ भइए सेउवण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३६|| १४८९. फासओ लहुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३७|| १४९०. फासओ सीयए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३८॥ १४९१. फासओ उण्हए जे उभइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३९॥ १४९२. फासओ निद्धए जे उ भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य॥४०|| १४९३. फासओ लुक्खए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥४१॥ १४९४. परिमंडलसंठाणे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४२॥ १४९५. संठाणओ भवे वट्टे भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४३॥ १४९६. संठाणओ भवे तंसे भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४४|| १४९७. संठाणओ य चउरंसे भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४५॥ १४९८. जे आययसंठाणे भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४६॥ १४९९. एसा अजीवविभत्ती समासेण वियाहिया । एत्तो जीवविभत्तिं वोच्छामि अणुपुव्वसो॥४७|| १५००. संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धाणेगविहा वूत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥४८॥१५०१. इत्थी-पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य ||४९।। १५०२. उक्कोसोगाहणाए य जहन्न-मज्झिमाए य । उहुं अहे य तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ॥५०॥ १५०३. दस य नपुंसएसुं वीसतिं इत्थियासु य । पुरिसेसुथ अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई॥५१||१५०४. चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिगें दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण । सिज्झई ॥५२॥ १५०५. उक्कोसोगाहणाए उ सिज्झंते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए जवमज्झऽद्रुत्तरं सयं ||५३|| १५०६. चउरुड्ढलोगे य दुवे समुद्दे तओ जले वीसमहे तहेव । सयं च अद्वत्तरं तिरियलोए समएणेगेण उ सिज्झई धुवं ।।५४।। १५०७. कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? । कहिं बोदिं चइत्ताणं कत्थ। Hero5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६८०5555555555555555555555555GO %%%%%%%%%号 后历历历 in Education International Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NORO (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुतं) अ. ३६ [४२] ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ तूण सिझई ? ॥ ५५॥। १५०८. अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया । इहं बोदिं चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ॥ ५६ ॥ १५०९. बारसहिं जोयणेहिं सव्वस्सुवरं भवे । ईसीपब्भारनामा पुढवी छत्तसंठिया ॥५७॥ १५१०.१५१०. पणयालसयसहस्सा जोयणाणं तु आयया । तावइयं चेव वित्थिण्णातिगुणो तस्सेव परिरओ ॥ ५८ ॥ १५११. अट्ठजोयणबाहल्ला. सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायंती चरिमंते मच्छियपत्ताओ तणुययरी ॥५९॥ १५१२. अज्जुणसुवण्णगमई सा पुढवी निम्ला सहावेण । उत्ताणगछत्तयसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ॥ ६० ॥ १५१३. संखंक- कुंदसंकासा पंडरा निम्मला सुभा । सीयाए जोयणे तत्तो लोयंतो उ वियाहिओ ॥ ६१ ॥ १५१४. जोयणस्स उ जो तत्थ कोसो उवरिमो भवे। तस्स कोसस्स छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६२ ॥ १५१५. तत्थ सिद्धा महाभागा लोयग्गम्मि पइट्टिया । भवपवंचउम्मुक्का सिद्धिं वरगई गया ॥ ६३ ॥ १५१६. उस्सेहो जस्स जो होइ भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणां तत्तो य सिद्धाणोगाहा भवे ||६४ || १५१७. एगत्तेण सादीया अपज्जवसिया विय। पुहत्तेण अणादीया अपज्जवसिया वि य ॥ ६५ ॥ १५१८. अरूविणो जीवघणा नाण दंसणसन्निया । अतुलं सुह संपत्ता उवमा जस्स नत्थि उ ||६६ || १५१९. लोएगदेसे ते सव्वे नाण दंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा सिद्धिं वरगई गया ॥ ६७ ॥ १५२०. संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया । तसा यथावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥६८॥ १५२१. पुढवी आउजीवा य तहेव य वणस्सई । इच्चेते थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ६९ ॥ १५२२. दुविहा पुढविजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेव दुहा पुणो ||७०|| १५२३. बायरा जे पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया | सण्हा खरा य बोद्धव्वा, सहासत्तविहा तहिं ॥ ७१ ॥ १५२४. किण्हा नीला य रुहिरा य हालिद्दा सुक्किला तहा। पंडू पणगमट्टीया, खरा छत्तीसईविहा ॥७२॥। १५२५. पुढवी १ य सक्करा २ वालुया ३ य उवले ४ सिला ५ य लोणूसे ६-७ । अय ८ तंब ९ तउय १० सीसग ११ रुप्प १२ सुवण्णे १३ य वइरे य १४ ।।७३|| १५२६. हरियाले १५ हिंगुल १६ मणोसिला १७ सासगंजण १८-१९ पवाले २० । अब्भपडल-ऽब्भवालुय २१-२२, बादरकाए मणिविहाणे ||७४ || १५२७. गोमेज्जए य रुयए अंके फल य लोहियक्खे य। मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनीले य ॥७५ || १५२८. चंदण गेरुय हंसगब्भ पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे । चंदप्पभ वेरुलिए जलकंते सुरमंते य ॥ ७६ ॥ १५२९. एए खरपुढवीए भेया छत्तीसमाहिया । एगविहमनाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया || ७७|| १५३०. सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । एत्तो कालविभागं तु वच्छं तेसिं चउव्विहं ||७८ || १५३१. संतई पप्पऽणादीया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ||७९ || १५३२. बावीससहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ||८०|| १५३३. असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अचओ ॥ ८१ ॥। १५३४. अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए पुढविजीवाण अंतरं ॥८२॥। १५३५. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ । संठाणादेसओ वा वि विहाणाई सहस्ससो ॥८३॥ १५३६. दुविहा आउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥८४॥ १५३७. बादरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से हरतणु महिया हिमे ॥ ८५॥ १५३८. एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ।। ८६ ।। १५३९. संतई पप्पऽणादीया अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च सादीया सपज्जवसिया वि य || ८७ || १५४०. सत्तेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिती आऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ८८॥। १५४१. असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिती आऊणं तं कायं तु अमुंचओ ||८९|| १५४२. अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए आउजीवाण अंतरं ||१०|| १५४३. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वा वि विहाणाइ सहस्ससो ||११|| १५४४. दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो || १२ || १५४५. राजे उपजता दुवा ते वियाहिया। साहरणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य ॥ ९३ ॥ १५४६. पत्तेयसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली ता ता ॥ ९४ ।। १५४७. वलय पव्वया कुहणा जलरुहा ओसही तहा । हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेया इति आहिया || ९५|| १५४८. साहारणसरीरा उ गहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य ॥९६॥ १५४९. हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केयकंदली। पलंडु-लसणकंदे य कंदनी य कुहुव्व HONOR श्री आगमगुणमंजूषा - १६८१ [10]ducation International 2010_03 50720X Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OTC明听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐历乐乐乐乐乐 PROXOFFFFFFFFFFFFFFF (४३) उत्तरउज्झयणं (चउत्यं मूलसुतं) अ. ३६ ४ ३] 55555555555555FExog ॥९७|| १५५०. लोहि णीहू य थीहू य तुहगा य तहेव य । कण्हे य वज्जकंदे य कंदे सूरणए तहा॥९८॥ १५५१. अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य । मुसुंढी य हलिहा य णेगहा एवमायओ ॥९९|| १५५२. एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥१००|| १५५३. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया वि य ।।१०१|| १५५४. दस चेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । वणप्फईण आउं तु, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१०२।। १५५५. अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुंचओ ॥१०३|| १५५६. असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए पणगजीवाण अंतरं ।।१०४॥१५५७. एएसिवण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो ॥१०५॥ १५५८: इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया ! एत्तो उ तसे तिविहे वोच्छामि अणुपुव्वसो॥१०६॥१५५९. तेऊ वाऊ य बोधव्वा ओराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे।।१०७।। १५६०. दुविहा तेउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो॥१०८।१५६१. बायरा जे उपज्जत्ता णेगहा ते वियाहिया । इंगाले मुम्मुरे अगणी अच्ची जाला तहेव य ॥१०९|| १५६२. उक्का विज्जू य बोधव्वा णेगहा एवमायओ। एगविहमनाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ॥११०॥ १५६३. सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ||११|| १५६४. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥११२॥ १५६५. तिण्णेव अहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । आउठिती तेऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ||११३॥ १५६६. असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥११४॥ १५६७. अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए तेउजीवाण अंतरं ॥११५।। १५६८. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ । संठाणादेसओ वा वि विहाणाई सहस्ससो॥११६॥ १५६९. दुविहा वाउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो॥११७|| १५७०. बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । उक्कलिया-मंडलिया-धणगुंजा-सुद्धवाया य॥११८।। १५७१. संवट्टगवाए य णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया॥११९॥ १५७२. सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ।।१२०॥ १५७३. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१२१॥ १५७४. तिन्नेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई वाऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१२२।। १५७५. असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं तं कार्य तु अमुंचओ॥१२३॥ १५७६. अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए वाउजीवाणं अंतरं ॥१२४॥ १५७७. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥१२५|| १५७८. ओराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया । बेइंदिय तेइंदिय चउरो पंचेंदिया चेव ॥१२६॥ १५७९. बेइंदिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥१२७।। १५८०. किमिणो सोमंगला चेव अलसा माइवाया। वासीमुहा य सिप्पीया संखा संखणगा तहा ॥१२८॥ १५८१. घल्लोया अणुल्लया चेव तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव चंदणा य तहेव य॥१२९॥ १५८२. इइ बेइंदिया एए णेगहा एवमादओ। लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥१३०|| १५८३. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१३१।। १५८४. वासाइं बारसेव उ उक्कोसेण वियाहिया । बेइंदियआउठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१३२॥ १५८५. संखेजकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्निया। बेइंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥१३३।। १५८६. अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥१३४॥ .१५८७.एएसिवण्णओचेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥१३५।। १५८८.तेइंदिया उजीवा दुविहाते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥१३६।। १५८९. कुंथू पिवीलिउइंसा उक्कलुद्देहिया तहा। तणहार कट्ठहारा य मालूगा पत्तहारगा॥१३७|| १५९०. कप्पासहिमिजा य तिदुगा तुउसमिजगा । सतावरी य गुम्मी य बोद्धव्वा इंदगाइया ॥१३८|| १५९१. इंदगोवगमाईया णेगहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥१३९॥ १५९२. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया विय। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय॥१४०॥१५९३. एगणपण्णऽहोरत्ता उक्कोसेण वियाहियो । तेइंदियआउठिई, reO F 5 श्री आगमगुणमंजूषा - १६८२॥55555555555555555555FORORE GO明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明。 乐乐中乐乐乐乐明乐乐乐明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐56CM NOKOS Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत्त) अ. ३६ [४४] अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१४९॥। १५९४. संखेज्जकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । तेइंदियकायठिई तं कायं तु अमुचओ || १४२ ।। १५९५. अनंतकालमुक्कासं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥ १४३॥। १५९६. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणारं सहस्ससो || १४४|| १५९७. चउरिदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४५ ॥ १५९८. अंधिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य ढेंफुणे कुक्कुडे तहा ॥१४६॥ १५९९. कुक्कुडे (? हे) सिगिरीडी य नंदावत्ते य विछिए । डोले भिंगारी य पिरिली अच्छिवेहए || १४७|| १६००. अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी य नीया तंतवगाइया || १४८।। १६०१. इइ चउरिदिया एए णेगहा एवमायओ। लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे परिकित्तिया ॥ १४९ ॥ १६०२. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिडं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। १५० ।। १६०३. छच्चेव य मासा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । चउरिदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५१ ॥। १६०४. संखेज्जकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । चउरिदियकायठिई तं कायं तु अचओ ॥ १५२ ।। १६०५. अनंतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥ १५३॥। १६०६. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस. फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाई सहस्ससो || १५४|| १६०७. पंचिदिया उ जे जीवा चउहा ते वियाहिया । नेरइय तिरिक्खा य मणुया देवा य आहिया || १५५ || १६०८. नेरइया सत्तविहा पुढवीसू सत्तसू भवे। रयणाभ सक्कराभा वालुयामा य आहिया ।। १५६ ।। १६०९. पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए सत्ता परिकित्तिया ||१५७|| १६१०. लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥ १५८॥ १६११. संत पप्पऽणाईया अपज्जवसिया विय। ठियं पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १५९ ॥ १६१२. सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए, जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥१६०॥ १६१३. तिण्णेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए, जहन्नेणं एगं तू सागरोवमं || १६१|| १६१४. सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए, जहन्नेणं तिन्नेव सागरोवमा ।। १६२ ।। १६१५. दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए, जहन्त्रेणं सत्तेव उ सागरोवमा ॥ १६३॥। १६१६. सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए, जहन्त्रेणं दस चेव उ सागरोवमा || १६४|| १६१७. बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । छट्टीए, जहनेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६५॥ १६१८. तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। सत्तमाए, जहन्त्रेणं बावीसं सागरोवमा || १६६ ।। १६१९. जा चेव य आउठिई नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे || १६७ || १६२०. अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए नेरइयाणं तु अंतरं || १६८|| १६२१. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादंसओ वा वि विहाणाई सहस्ससो ॥१६९ || १६२२. पंचिदियतिरिक्खा ऊ दुविहा ते वियाहिया । सम्मुच्छिमतिरिक्खा ऊ गब्भवक्कंतिया तहा ।। १७० ।। १६२३. दुविहा ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खहयरा य बोद्धव्वा तेसि भेए सुणेह मे ॥ १७१ ॥ १६२४. मच्छा य कच्छभा या गाहा मगराता । सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराऽऽहिया ।। १७२ ।। १६२५. लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्य वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ||१७३|| १६२६. सतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १७४॥ १६२७. एगा य पुव्वकोडी ऊ उक्कोण वियाहिया । आउठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १७५ ॥। १६२८. पुव्वकोडीपुहत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया। कायठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १७६ ॥ १६२९. अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए जलयराणं तु अंतरं ॥ १७७ ।। १६३०. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस- फासओ । संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥१७८॥ १६३१. चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा उ ते मे कित्तयओ सुण || १७९ | १६३२. एगखुरा दुखुरा चेव गंडीपय सणप्पया । हयमाई गोणमाई गयमाई सीहमाइणो || १८० | १६३३. भुओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाईया एक्क्का णेगहा भवे ||१८१॥ १६३४. लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥ १८२॥। १६३५. संतई पप्पाईया अपज्जवसिया विय । ठिडं पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १८३ || १६३६. पलिओवमा उ तिन्नि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अंतोमुहुत्तं श्री आगमगुणमंजूषा १६८३ Moon ४० प्र NON Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Foot0555555555555555 (४३) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलसुत) अ, ३६ ४ ५) 555555页55555520 DSC明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐GO जहन्निया||१८४।। १६३७. पलिओवमा उ तिन्नि उक्कोसेण वियाहिया । पुव्वकोडीपुहत्तेणं, अंतोमुहत्तं जहन्निया ।।१८५।। १६३८. कायठिई थलयराणं; अंतरं तेसिमं 卐 भवे । कालं अणंतमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१८६।। १६३९. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥१८७।। १६४०. चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खी य । विततपक्खी य बोद्धव्वा पक्खिणो य चउव्विहा ॥१८८॥ १६४१. लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वस्थ वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु तेसिं वोच्छं चउब्विहं ॥१८९।। १६४२. संतइं पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥१९०॥ 卐 १६४३. पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१९१।। १६४४. असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ। पुव्वकोडिपुहत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।।१९२।। १६४५. कायठिई खहयराणं; अंतरं तेसिमं भवे । कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।।१९३।। १६४६. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्सासो॥१९४|| १६४७. मणुया दुविहभेया उते मे कित्तयओ सुण । समुच्छिमा य मणुया गब्भवक्वंतिया तहा ॥१९५।। १६४८. गब्भवक्कंतिया जे उ तिविहा ते वियाहिया । अकम्म-कम्मभूमा य अंतरद्दीवया तहा ।।१९६।। १६४९. पन्नरस-तीसइविहा भेयाय अठ्ठवीसइं। संखा उ कमसो तेसिं इइ एसा वियाहिया ॥१९७|| १६५०. सम्मुच्छिमाण एसेव भेओ होइ आहिओ। लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे वि वियाहिया ॥१९८|| १६५१. संतइं पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साइया सपज्जवसिया वि य ॥१९९|| १६५२. पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई मणुयाणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।।२००|| १६५३. पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया। पुव्वकोडिपुहत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया॥२०१।। १६५४. कायठिई मणुयाणं; अंतरं तेसिमं भवे । अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥२०२।। १६५५. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥२०३।। १६५६. देवा चउव्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण । भोमेज्ज वाणमंतर जोइस वेमाणिय तहा ।।२०४।। १६५७. दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥२०५|| १६५८. असुरा नाग सुवण्णा विज्जू अग्गी य आहिया । दीवोदहि दिसा वाया थणिया भवणवासिणो ॥२०६।। १६५९. पिसाय भूय जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा अट्टहा वाणमंतरा ||२०७।। १६६०. चंदा सूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा । दिसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया ॥२०८॥ १६६१. वेमाणिया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य॥२०९।। १६६२. कप्पोवगा बारसहा-सोहम्मीसाणगा तहा। सणंकुमार माहिंदा बंभलोगा य लंतगा ॥२१०|| १६६३. महासुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा। आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा ॥२११|| १६६४. कप्पाईया उजे देवा दुविहा ते वियाहिया। गेवेज्जाऽणुत्तरा चेव जेवेग्गा नवविहा तहिं।।२१२॥ १६६५.हेट्ठिमाहेट्ठिमा चेव हेट्ठिमामज्झिमा तहा। हेट्ठिमाउवरिमा चेव, मज्झिमहेट्ठिमा तहा ।।२१३।। १६६६. मज्झिमामज्झिमा चेव मज्झिमाउवरिमा तहा । उवरिमाहेट्ठिमा चेव उवरिमामज्झिमा तहा ।।२१४।। १६६७. उवरिमाउवरिमा चेव इइ गेवेज्जगा सुरा । विजया वेजयंता य जयंता अपराजिया ॥२१५|| १६६८. सव्वट्ठसिद्धगा चेव पंचहाऽणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया एए णेगहा एवमादओ॥२१६॥ १६६९. लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया। एत्तो कालविभागं तु तेसिंवोच्छं चउव्विहं ।।२१७॥ १६७०. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठियं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥२१८।। १६७१. साहीयं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्नाण, जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥२१९|| १६७२. पलिओवममेगं तु उक्कोसेण ठिई भवे । वंतराणं, जहन्नेणं दसवाससहस्सिया।।२२०॥ #. १६७३. पलिओवमं तु एगं वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्ठभागो जोइसेसु जहन्निया ।।२२१।। १६७४. दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि, है जहन्नेणं एगं तु पलिओवमं ॥२२२॥ १६७५. सागरा साहिया दोण्णि उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि, जहन्नेणं साहियं पलिओवमं ।।२२३॥ १६७६. सागराणि य सत्तेव उक्कोसेण ठिती भवे । सणंकुमारे, जहन्नेणं दोन्नि ऊ सागरोवमा ।।२२४।। १६७६. साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे । माहिदम्मि, जहन्नेणं साहिया दोन्नि सागरा ॥२२५|| १६७८. दस चेव सागराई उक्कोसेण ठिती भवे । बंभलोए, जहन्नेणं सत्त ऊ सागरोवमा ।।२२६।। १६७९. चोइस उ सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे। Mero555555555555555555555555 श्री आगमगणमंजूषा - १६८४55555555555555555555555OOR MONOFFFFFFFFFFFFFFFF5f5ff5$FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF5SQON Aperienadee iww.jainelibrary.org Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOR945555555555555 (43) उत्तरऽज्झयणं (चउत्थं मूलमुत्त) अ. 36 46] 55555555555; FONOR MOSC玩乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐 乐乐乐听听听听听听听 听听听听听听听听乐乐玩玩乐乐乐格 लंतगम्मि, जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा / / 227 / / 1680. सत्तरस सागराई उक्कोसेण ठिती भवे / महासुक्के, जहन्नेणं चोद्दस सागरोवमा / / 228 / / 1681. अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे / सहस्सारे, जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा / / 229 / / 1682. सागरा अऊणवीसं तु उक्कोसेण ठिती भवे / आणयम्मि, जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा / / 230 // 1683. वीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे / पाणयम्मि, जहन्नेणं सागरा अउणवीसई॥२३१।। 1684. सागरा एक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे / आरणम्मि, जहन्नेणं वीसइं सागरोवमा / / 232 / / 1685. बावीस सागराई उक्कोसेण ठिती भवे / अच्चुयम्मि, जहन्नेणं सागरा एक्कवीसइं // 233|| 1686. तेवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे / पढमम्मि, जहन्नेणं बावीसं सागरोवंमा ||234|| 1687. चउवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे / बिइयम्मि, जहन्नेणं तेवीसं म सागरोवमा / / 235 / / 1688. पणवीस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / तइयम्मि, जहन्नेणं चउवीसं सागरोवमा // 236|| 1689. छव्वीस सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे | चउत्थम्मि, जहन्नेणं सागरा पणुवीसई / / 237 / / 1690. सागरा सत्तवीसं तु उक्कोसेण ठिती भवे / पंचमम्मि, जहन्नेणं सागरा उ छवीसई // 238 / / 1691. सागरा अट्ठावीसं तु उक्कोसेण ठिती भवे / छट्ठम्मि, जहन्नेणं सागरा सत्तवीसइं / / 239|| 1692. सागरा अउणतीसं तु उक्कोसेण ठिती भवे / सत्तमम्मि, जहण्णेणं सागरा अट्ठवीसइं॥२४०|| 1693. तीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे / अट्ठमम्मि, जहन्नेणं सागरा अउणतीसई / / 241 / / 1694. सागरा एक्कतीसं तु उक्कोसेण ठिती भवे / नवमम्मि, जहन्नेणं तीसई सागरोवमा // 242 / / 1695. तित्तीस सागराइं उक्कोसेण ठिती भवे / चउसुं पि विजयाईसुं जहन्नेणं एगतीसई / / 243 / / 1696. अजहन्नमणुक्कोसा तित्तीसं सागरोवमा / महाविमाणसव्वढे ठिती एसा वियाहिया ||244 / / 1697. जा चेव य आउठिई देवाणं तु वियाहिया / सा तेसिं कायठिई जहन्नमुक्कोसिया भवे / / 245 / / 1698. अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं / विजढमि सए काए देवाणं होज्जं अंतरं / / 246 / / 1699. एएसिवण्णओ चेव गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वा वि विहाणाइं सहस्ससो॥२४७॥ 1700. संसारत्था य सिद्धाय इति जीवा वियाहिया। रूविणो चेवऽरूवी य अजीवा है दुविहा वि य // 248 // 1701. इति जीवमजीवे य सोच्चा सद्दहिऊण य / सव्वनयाणं अणुमए रमेज्जा संजमे मुणी // 249 / / 1702. तओ बहूणि वासाणि सामण्णमणुपालिया। इमेण कमजोएणं अप्पाणं संलिहे मुणी॥२५०।। 1703. बारसेव उ वासाइं संलेहुक्कोसिया भवे / संवच्छर मज्झिमिया छम्मासे य जहन्निया // 251 / / 1704. पढमे वासचउक्कम्मि विगईनिजूहणं करे। बितिए वासचउक्कम्मि विचित्तं तु तवं चरे॥२५२।। 1705. एगंतरमायाम कट्ट संवच्छरे दुवे / तओ संवच्छरऽद्धं तु नाऽइविगि8 तवं चरे // 253 / / 1706. तओ संवच्छरऽद्धं तु विगिढं तु तवं चरे / परिमियं चेव आयामं तम्मि संवच्छरे करे // 254 / / 1707. कोडीसहियमायाम कट्ट संवच्छरे मुणी। मासऽद्धमासिएणं आहारेणं तवं चरे // 255 / / 1708. कंदप्पमाभिओगं किब्बिसियं मोहमासुरुत्तं च / एयाओ दोग्गईओ मरणम्मि विराहिया होति / / 256 / / 1709. मिच्छादसणरंता सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही // 257 / / 1710. सम्मइंसणरत्ता // अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरंति जीवा सुलभा तेसिं भवे बोही // 258 / / 1711. मिच्छाइंसणरत्ता सनियाणा किण्हलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही // 259 / / 1712. जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेति भारेणं / अमला असंकिलिट्ठा ते होति परित्तसंसारी // 260 / / 1713. बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव य बहूणि / मरिहिति ते वराया जिणवयणं जे न याणंति / / 261|| 1714. बहुआगमविन्नाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही / एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं / / 262|| 1715. कंदप्प-कोक्याइं तहसील-सहाव-हसण-विकहाहिं / विम्हावितो य परं कंदप्प भावणं कुणइ // 263 / / 1716. मंताजोगं काउं भुईकम्मं च जे पउंजंति / साय-रस-इविहेउं अभिओगं भावणं कुणइ ||264 / / 1717. नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ-साहूणं / माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ // 265 // 1718. अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवी / एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ / / 266 / / 1719. सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य / अणायारभंडसेवा जम्मण-मरणाणि बंधंति // 267 / / 1720. इति पादुकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरउज्झाए भवसिद्धियसम्मए॥२६८॥ त्ति बेमि।।।।जीवाजीवविभत्ती॥३६॥ मा उत्तरज्झयणसुयक्खंधो समत्तोम उत्तरज्झयणाणि समत्ताणिक Moo 5 555 5555555555 श्री आगमगुणमंजूषा 1685 $$$$$$$$$$$$$$$$$ $Fort OFF乐明听听听听听听听听明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C