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(१३) उत्तरज्ज्झयणं (चउत्यं मूलसुती अ. ३२
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सद्दाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे? ॥४१॥ १२७६. सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढिं। अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥४२॥ १२७७. तुण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥४३॥ १२७८. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥४४॥ १२७९. सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्न कयाइ किंचि। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ||४५|| १२८०. एमेव सद्दम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।।४६।। १२८१. सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥४७॥ १२८२. घाणस्स गंधं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो॥४८॥ १२८३. गंधस्स घाणं गहणं वयंति, घाणस्स गंधं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥४९॥१२८४. गंधेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥५०॥ १२८५. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि गंधं अवरज्झई से॥५१|| १२८६. एगंतरत्तो रुइरंसि गंधे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे ।।५२।। १२८७. गंधाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरुवे। चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिडे ॥५३।। १२८८. गंधाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? ॥५४॥ १२८९. गंधे अतित्ते य परिग्णहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥५५॥ १२९०. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥५६|| १२९१. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो गंधे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥५७।। १२९२. गंधाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥५८॥ १२९३. एमेव गंधम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ । पट्टट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥५९।। १२९४. गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥६०॥ १२९५. जिब्भाए रसं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥६१।। १२९६. रसस्स जिब्भं गहणं वयंति, जिब्भाए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥६२॥ १२९७. रसेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आभिसभोगगिद्धे ॥६३।। १२९८. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तस्सिं खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू रसं न किंची अवरज्झई से॥६४|| १२९९. एगंतरत्तो रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागे॥६५॥ १३००. रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिटे ॥६६|| १३०१. रसाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे?॥६७|| १३०२. रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिँ । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८।। १३०३. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।।६९।। १३०४. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥७०|| १३०५. रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो
सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥७१।। १३०६. एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। का पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥७२।। १३०७. रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा
पुक्खरिणीपलासं ॥७३।। १३०८. कायस्स फासं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ||७४।। १३१०. xoxo555 555555
श्री आगमगुणमजूषा - १६७५
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