Book Title: Aagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा [३३] मरणसमाहि * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 [email protected] Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिसेसो॥३०॥२०-१२३५॥ देविंदत्ययपइण्णं समत्तं ९॥ 30011-३३ - अथ श्रीमरणसमाधिपकीर्णकम्-तिहुयणसरीरिवंदं सप्प(प्र०संघ) वयणरयणमंगलं नमिउं । समणस्स उत्तमढे मरणविहीसंगहं बुच्छं ॥१॥१२३६॥ सुणह सुयसारनिहर्स ससमयपरसमयसायनिम्मायं। सीसो समणगुणड्ढं परिपुच्छइ वायर्ग कंची ॥२॥ अभिजाइसत्तविकमसुयसीलविमुत्तिखंतिगुणकलियं । आयारविणयमहबविजाचरणागरमुदारं ॥३॥ कित्तीगुणगम्भहरं जसखाणिं तवनिहिं सुयसमिद्धं । सीलगुणनाणदसणचरित्तरयणागरं धीरं ॥ ४॥ तिविह तिकरणसुद्ध मयरहियं दुविठाण पुणरत्तं (रुटुं)। विणएण कमविसुद्धं चउस्सिरं बारसावत्तं ॥५॥दुओणयं अहाजायं एवं काऊण तस्स किइकम्मं । भत्तीइ भरियहियओ हरिसवसुभिन्नरोमंचो ॥६॥ उबएसहेउकुसलं तं पश्यणरयणसिरिघरं भणइ । इच्छामि जाणिउं जे मरणसमाहिं समासेणं ॥ ७॥ अम्भुजय विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्यं । नाउं महापुरिसदेसियं तु अम्भुजयं मरणं ॥८॥ तुम्भित्थ सामि ! सुअजलहिपारगा समणसंघनिजवया। तुझं खु पायमूले सामन्नं उजमिस्सामि ॥९॥ सो भरियमहुरजलहरगंभीरसरो निसनओ भणइ। सुण दाणि धम्मवच्छल! मरणसमाहिं सममासेणं ॥१०॥ सुण जह पच्छिमकाले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं। पच्छा निच्छियपत्थं उविति अग्भुजयं मरणं ॥१॥ पबजाई सर्व काऊ. गालोयणं च सुविसुद्धं । दसणनाणचरित्ने निस्सलो विहर चिरकालं ॥२॥ आउशेयसमत्ती तिगिच्छिए जह विसारओ विजो। रोआयंकागहिओ सो निरुयं आउरं कुणइ ॥३॥ एवं पवयणसुयसारपारगो सो चरित्तसुद्धीए। पायच्छित्तविहिनू तं अणगारं विसोहेइ॥४॥ भणइ यतिविहा भणिया सुविहिय ! आराहणा जिणिंदेहिं । सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अण्णा ॥५॥ सहगा पत्तियगा रोयगा जे य वीरवयणस्स । सम्मत्तमणुसरंता दंसणआराहगा हुंति ॥ ६॥ संसारसमावण्णे य छविहे मुक्खमस्सिए चेव। एए दुविहे जीवे आणाए ९३५ मरणसमाधिपकीर्णकं, आहा-१-१७ मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहहे निचं ॥ ७॥ धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकार्य च। आणाइ सहहंता सम्मत्ताराहगा भणिया॥८॥ अरहंतसिद्धचेइयगुरुसु सुयधम्मसाहुबम्गे य। आयरियउबज्झाए पत्रयणे सत्रसंघे य॥९॥ एएसु भत्तिजुत्ता पूर्यता अहरहं अणण्णमणा। सम्मत्तमणुसरिन्ता परित्तसंसारिया हुंति ॥२०॥सुविहिय! इर्म पाइण्णं असहहंतेहिं णेगजीवहिं। बालमरणाणि पूणी पहूणि मरणाणि। न मरति अप्पमत्ता चरित्तमाराहियं जेहिं ॥२॥ दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुढा पुत्रसंगओ मुका। जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं ॥३॥ एवं पंडियमरणं जे धीरा उवगया उवाएणं । तस्स उवाए उइमा परिकम्मविही उ जुंजीया ॥४॥ जे कुम्मसंखताडणमास्यजियगगण पंकयतरूणं। सरिकप्पा सुयकप्पियाहारणीहारचिट्ठागा ॥५॥ निचं तिदंडविरया तिगृत्तिगुत्ता तिसहनिस्सला । तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयावरा समणा ॥ ६॥ पंचमहायसुअस्थिय संपुण्णचरित्त सीलसंजुत्ता। तह तह मया महेसी हवंति आराहगा समणा ॥७॥ इक अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च। तो नाणदसणचरित्ततवेसु सुठिया मुणी हुँति ॥८॥ परिणामजोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता। इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव ॥९॥ संसारबंधणाणि य रागहोसनियलाणि छित्तूर्ण। सम्मईसणसुनिसियसुतिक्खधिइमंडलग्गेणं ॥३०॥ दुष्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारव विमुक्का । कार्य मणं च वार्य मणवयसा कायसा चेव ॥१॥ तवपरसुणा य छिनूण तिण्णि उजुखंतिविहियनिसिएण। दुग्गइमग्गा नरएण मणवयसाकायए दंडे ॥२॥ तं नाऊण कसाए चउरो पंचहिय पंच हन्तूर्ण। पंचासवे उदिण्णे पंचहि य महजयगुणेहिं ॥३॥ छज्जीवनिकाए रक्खिऊण छलदोसबजिया जइणो। तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुआ य॥४॥ एकगद्गतिगचउपणसत्तट्ठगनवदसगठाणेसु । असुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सइ संठिया जे उ॥५॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिताए॥६॥ छसु ठाणेसुइमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पण्णे। कडजोगी आहार करंति जयणानिमित्तं तु॥७॥ जीएम सरीरसंकप्पचेटुमचयंता। अविकप्पऽवजभीर उर्विति अब्भुजयं मरणं ॥८॥आर्यके उवसग्गे तितिक्खयाबमचेरगुत्तीस। पाणिया नवहेउं सरीरपरिहार वृच्छेयो॥९॥ पडिमासु सीहनिकीलियासु घोरे अ(सुड)भिग्गहाईसु। चिय अम्भितरए बजो अतवे समणुरत्ता॥४०॥ अविकलसीलायारा पडिबन्ना जे उ उत्तम अहूं। पुचिडाण इमाण य. भणिया आराहणा चेव ॥१॥ जह पुत्रदुअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोओ। तीरासन्न पावइ रहिओऽवि अवलगाईहिं ॥२॥ तह सुकरणो महेसी तिकरण आराहओ धुर्व होइ। अह लहह उत्तम8 तं अइलाभत्तणं जाण ॥३॥ एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहिवजणस्स । इत्तो जह करणिज पंडियमरणं तहा सुणह ॥ ४ ॥ फासेहंति चरितं सा महसीलयं पजहिऊणं। घोरं परीसहवम अहियासितो धिइवलेणं ॥५॥ सदे रूवे गंधे रसे अ फासे अ निग्घिणधिईए। सवेसु कसाएसु अनिहंतु परमो सया होहि ॥६॥ चाऊण कसाए इंदिए अ सवे अ गारवे हंतूं। नो मलियरागदोसो करेह आराहणासुद्धिं ॥७॥ दसणनाणचरिते पव्वजाईसु जो अ अइयारो। तं सव्वं आलोयहि निरवसेसे पणिहियप्पा ॥८॥जह कंटएण विद्यो सवंगे चेयणहिओ होइ। नह चेव उद्धियमि उ निस्साडो निवुओ होइ ॥९॥ एवमणुद्धियदोसो माइण्डो तेण दुक्खिओ होइ। सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निाओ होइ ॥५०॥ रागहोसाभिहया ससड़मरणं मरंति जे मूढा। ते दुक्खसडबहुला भमंति संसारकतारे ॥१॥ जे पुण तिगारवजढा निस्सला दसणे चरिते य। विहरंति मुक्कसंगा खर्वति ते सवदुक्खाई ॥२॥ सुचिरमवि संकिलिट्ठ विहरितं झाणसंवरविहीणं । नाणी संवरजुनो जिणइ अहोरत्तमित्तेणं ॥३॥जं निजरेइ कम्मं असंवुडो सुबहुणाऽवि कालेणं । तं संबुडो तिगुत्तो खवेद ऊसासमिनेणं ॥४॥ सुबहुस्सुयावि संता जे मूढा सीलसंजमगुणेहिं। न करंति भावसुदि ते दुक्खनिभेलणा हुंति ॥५॥ जे पुण सुयसंपन्ना चरित्नदोसेहिं नोबलिप्पति। ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुक्खक्वयं साहू ॥६॥ पुव्वमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । न भवद परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥ ७॥ तंएवं जाणतो महत्तरं लागं सुविहिएस । दसणचरित्नमुद्दीइ निस्सहलो विहर नं धीर ! ॥ ८॥ इत्थ पुण भावणाओ पंच इमा हुंति संकिलिट्ठाओ। आराहत सुविहिया जा निचं वजणिजाओ॥९॥ कंदप्पा देवकिक्सि अभिओगा आसुरी य संमोहा । एयाउ संकिलिट्ठा असंकिलिट्ठा ह्वइ छट्ठा ॥६०॥ कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निचहासणकहाओ। विम्हावितो उ परं कंदप्पं भावणं कुणइ ॥१॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियम्स संघसाहणं । माई अचण्णवाई किविसियं भावणं कुणइ ॥२॥ मंताभिओगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ । सायरसइढिहउँ अभिओगं भावणं कुणइ ॥३॥ अणचबरोसबुग्गहसंपन्न तहा निमित्तपडिसेबी। एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥४॥ उम्परादेसणा नाण (मग्ग) सणा मम्गविप्पणासो अमोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोह ॥ ५॥ एयाउ पंच बजिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर!। पंचसमिओ निगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं ॥६॥ एयाए भावणाए बिहर चिसुद्धाइ दीहकालम्मि । काऊण अंतसुदि दसणनाणे चरिते य ॥७॥ पंचविहं जे सुदि पंचविहविवेगसंजुयमकाउं। इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति ॥८॥ पंचविहं जे सुधि पत्ता निखिलेण निच्छियमईया। पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता ॥९॥ लहिऊणं संसारे सुदुहं कवि माणुसं जम्म। न लहंति मरणदुलहूं जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥७॥ किच्छाहि पावियम्मिवि (२३४) ९३६ मरणसमाधिमकीर्णकं जाहा-१७-७१ मुनि दीपरत्नसागर ARAT Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामण्णे कम्मसत्तिओसन्ना। सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो॥१॥जह कागणीइ हेउं मणिरयणाणं तु हारए कोडिं। तह सिद्धसुहपरुक्खा अबुहा सजति कामेसुं ॥२॥ चोरो रक्खसपहओ अस्थत्थी हणइ पंथियं मूढो। इस लिंगी मुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्मं ॥३॥ तेमुवि अलद्धपसरा अवियोहा दुक्खिया गयमईया। समुर्विति मरणकाले पगामभयभेखं नस्यं ॥४॥ धम्मो न कओ साहून जेमिओ न य नियंसियं सहं । इण्हि परं परासु(प. क)त्ति य नेव य पत्ताई सुक्लाई॥५॥ साहूर्ण नोक्कयं परलोयच्छेय संजमो न कओ। दुहओऽवि नओ विहलो अह जम्मो धम्मरुक्खाणं ॥६॥ दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्तसागराभिहया। तस्स अपडिकमंता मरंति ते बालमरणाई ॥७॥ इय अवि मोहपउत्ता मोहं मोनूण गुरुसगासम्मि। आलोइय निस्सहा मरिउं आराहगा तेऽवि ॥८॥ इत्थ विसेसा भण्णइ छलणा अवि नाम हुज जिणकप्पो। किं पुण इयरमणीणं तेण विही देसिओ इणमो ॥९॥ अप्पविहाणी जाहे धीरा मुयसारमरियपरमत्था। ते आयरिय विदिन्नं उचिंति अन्भुजयं मरणं ॥८०॥ आलोयणाइ संलेहणाइ खमणाइ काल उस्सगे। ओगासे संथारे निसग्ग वेरमा मुक्खाए ॥१॥प्राणविसेसो लेसा सम्मत्तं पायगमणयं चेव। चउदसओ एस विही पढमो मरणंमिनायो ॥२॥ विणओवयार माणस्स भंजणा पृयणा गुरुजणस्स। तित्थयराण | य आणा मुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ॥३॥ छत्तीसाठाणेमु य जे पवयणसारमरियपरमत्था। तेसिं पासे सोही पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं ॥४॥ वयछक्क कायछकं बारसर्ग तह अकप्प गिहि9 भाण। पलियंक गिहिनिसिज्ञा ससोभ पलिमजण सिणाणं ॥५॥ आयावं च उवधारवं च ववहारविहिविहिन य। उशीलगा य धीरा परूवणाए विहिण्णू या ॥६॥ तह य अवायवि. | हिजू निजवगा जिणमयम्मि गहियत्था। अपरिस्साई यतहा विस्सासरहस्सनिच्छिड्डा॥ ७॥ पदमं अट्ठारसर्ग अट्ट य ठाणाणि एव भणियाणि । इत्तो इस ठाणाणि य जेसु उवट्ठावणा मणिया ॥८॥ अणवट्ठतिगं पारंचिगं च निगमेय छहि गिहीभूया। जाणंति जे उ एए सुअरयणकरंडगा सूरी ॥९॥ सम्मईसणचत्तं जे य बियाणंति आगमविहिन्न। जाणति चरित्ताओ य निम्गय अपरिसेसाओ ॥९॥ जो आरंभे पहा चिअत्तकिचो अणणुताची या सोगो अभवे दसमो जेसूबट्ठावणा भणिया ॥१॥ एएम विहि विहष्णू छत्तीसाठाणएम जे सूरी। ते पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणनि नायचो ॥२॥ तेसिं मेरुमहोयहिमेयणिससिसूरसरिसकप्पाण। पायमूले अविसोही करणिजा सुविहियजणेणं ॥३॥ काइयवाइयमाणसियसेवणं दुप्पओ. गर्सभूयं । जो अइयारो कोई ने आलोए अगृहितो ॥४॥ अमुगंमि इओ काले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं। जं जह निसेवियं खलु जेण य स नहाऽऽलोए॥५॥ मिच्छादसणसाल मायासाडं नियाणसा च। न संखेवा दुविहं दधे भावे य बोद्धच ॥६॥ वि(ति)विहं तु भावसई दसणनाणे चरित्तजोगे य। सञ्चित्ताचित्तेऽविय मीसए याचि दबमि ॥ ७॥ सुहूर्मपि भावसात अणुदरिना उ जो कुणइ कालं । लजाय गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ॥८॥ तिविहंपि भावसाई समुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं । पञ्चजाई सम्म म होइ आराहओ मरणे ॥९॥ तम्हा सुत्नरमूलं अविकूलमविदुर्य अणुविम्यो। निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोअए सवं ॥१०॥जह बालो जपतो कजमकजं च उजुयं भणइ । नं नह आलोएजा मायामयविष्पमुक्को य॥१॥ कयपाचोऽवि मणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरोश भारवहो ॥२॥ लजाइ गारवेण य जे नालोयंति गुम्सगासम्मि। | घंपि सुयसमिदा नहुने आराहगा हुनि ॥३॥जह मुकुसलोऽवि विजो अनस्स कहेइ अत्तणो वाहितिं तह आन्द्रीय मुवि ववह जहकर्म सर्व आलोइन सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो ॥५॥ अनंपरजोगेहि य एवं समबडिए पोगेडिं। अमगेहि य अमगेहि य अमुयगर्सठाणकरणेहि ॥६॥वण्णेहि य गंधेहि य सरफरिसरसरूवगंधेहिं । (सदेहि य रसफरिसठाणेहिं)। पडिसेवणा कया पजवेहि कया जेहि य जहि च ॥७॥ जो जोगओ अपरिणामओ अ दंसणचरिनअइयारो। छट्ठाणबाहिरो वा उवाणभंनरो वावि ॥८॥ नं उजुभावपरिणउ रार्ग दोसं च पयणु काऊणं। तिविहण उदरिजा गुरुपामूले अगृहितो ॥९॥ नवितं सत्यं च विसं च दुप्पउनु कुणह वेयालो। जनव दुपउत्तं सप्पुत्र पमाइणो कुरो॥११०॥ जं कुणइ भावसतुं अणुदियं उत्तमढकालम्मि । दाइहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥१॥ तो उदरंति गारवरहिया मूलं पुणभवलयाणं । मिच्छादसणसाई मायासाई नियाणं च ॥२॥ रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं। रोगेणायंकेण व वत्तीइ पराभिओगेणं ॥३॥ गिहिविजापडिएण व सपक्सपरधम्मिओवसम्गेणं । निरियजोणिगएण व दिनमणूसोबसग्गेणं ॥४॥ उवहीइ व नियडीइब नह सावयपेलिएण व परेणं । अप्पाण भएण कयं परस्स छंदाणुवनीए ॥५॥ सहसकारमणाभोगओ अज पक्यणाहिगारेणं । सन्निकरणे विसोही पुण्णागारो य पण्णत्तो ॥६॥ उजअमालोइना इनो अकरणपरिणामजोगपरिसुद्धो। सो पया परकम्मं सुग्गइमग अभिमुहह ।। ७॥ उवहीनियडिपइट्टो सोहि जो कुणइ सोगईकामो। माई पलिकुंचतो करेइ बुंदुरियं मूढो ॥८॥ आन्टोयणाइदोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतो। नम्हा आरोइना मार्य मुनूण निम्सेसं ॥९॥ जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेमु ठाणेसु। ते तह आलोएमी उवडिओ सबभावेणं ॥१२०॥ एवं उबट्ठियस्सवि आलोएउ विमुखभावस्स।ज किंचिवि विस्सरियं सहसकारण ९३७ मरणसमाधिपकीर्णकं, महा-90-१२१ मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क 1 . 1 वा चुकं ॥ १ ॥ आराहओ तहवि सो गारवपरिकुंचणामयविहृणो। जिणदेसियस्स धीरो सदगो मुत्तिमग्गस्स ॥ २ ॥ आपण अणुमाणण जंदिहं वायरं च सुदुमं च छ सहाउलां बहुजण अवत्त तस्सेची ॥ ३ ॥ आलोयणाइ दोसे दस दुग्गइवइढणा पमुत्तूणं आलोइज सुविहिओ गारवमायामयविहूणो ॥ ४ ॥ तो परियागं च बलं आगम कालं च कालकरणं च । पुरिसं जी व तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ॥ ५ ॥ जोगं पायच्छित्तं तस्स अ दाऊण चिंति आयरिया दंसणनाणचरिते तवे अ कुणमप्पमायति ॥ ६ ॥ अणसणमूणोयरिया वित्ति च्छेओ रसस्स परिचाओ। कायस्स परिकिलेसो छट्टो संलीणया चेव ॥ ७ ॥ विणए वेयावचे पायच्छिते विवेग सज्झाए। अमितरं तवविहिं छट्टै झाणं वियाणाहि ॥ ८ ॥ वारसविहम्मिति अभितरवाहिरे कुसलदिट्टे नवि अस्थि नवि य होही सज्झाय समं तवोकम्मं ॥ ९ ॥ जे पयणुभत्तपाणा सुबहेऊ ते तवस्सिणो समए जो अ तवो सुबहीणो बाहिरियो सो हाहारो ॥ १३० ॥ छट्टमदसमदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही तत्तो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स ॥ १ ॥ कहां कहांपि वरं आहारो परिमिजो अ पंतो अ । नय खमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ ॥ २ ॥ एगाहेण तबस्सी हविज्ञ नत्थित्थं संसओ कोइ एगाहेण सुबहरो न होइ धंतंपि तूरमाणो ॥ ३ ॥ सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगलं न चिंते । जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायंति ॥ ४ ॥ जं अमाणी कम्मं स्ववेइ बहुआहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ ५ ॥ नाणे आउत्ताणं नाणी नाणजोगजुत्ताणं को निजरं तुलिज़ा चरणे य परकमंताणं ? ॥ ६ ॥ नाणेण वजणिजं वज्जिज्ज किजई य करणिजं नाणी जाणइ करणं कजमकजं च बजेउं ॥ ७॥ नासहियं चरितं नाणं संपायगं गुणसयाणं एस जिणाणं आणा नत्यि चरितं विणा णाणं ॥ ८॥ नाणं सुसिक्खियां नरेण लधूण दुलई बोहिं जो इच्छ नाउं जे जीवस्स विसोहणामगं ॥ ९ ॥ नाणेण सभाषा णज्जंती सहजीवलोयंमि तम्हा नाणं कुसले सिक्खियां पयतेणं ॥ १४० ॥ न हुसका नासेडं नाणं अरहंतभासियं लोए। ते धना ते पुरिसा नाणी य चरित जुत्ता य ॥ १ ॥ बंधं मुक्खं गइरागडं च जीवाण जीवलोयम्मि जाणंति सुयसमिद्धा जिणसासणचेइयविहिष्णू ॥ २ ॥ भहं सुबहुसुयाणं समपयत्येसु पुच्छणिजाणं नाणेण जोऽवयारे सिद्धिपि गए सिसु ॥ ३ ॥ किं इतो लट्टयरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा ? चंदमिव सबलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति ॥ ४ ॥ चंदाउ नीइ जुन्हा बहुस्यमुहाओ नीइ जिणवयणं जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं ॥ ५ ॥ चउदसपुत्रधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च लोगुत्तमपुरिसाणं तेसिं नाणं अभिवाणं ॥ ६ ॥ नाणेण विणा करणं न होइ नापि करणहीणं तु नाणेण य करणेण य दोहिवि दुक्खक्खयं होइ ॥ ७॥ दढमूलमहाणंमिवि वरमेगोऽवि य सुयसीलसंपण्णो मा हु सुयसीलविगला काहिसि मा (प्र०ना)णं पवयणम्मि ॥८॥ तम्हा सुय म्मि जोगो कायो होइ अप्पमत्तेणं। जेणऽप्पाण परंपि य दुक्खसमुद्दाओ तारेइ ॥ ९ ॥ परमत्यम्मि सुदि अविणट्टेमु तवसंजमगुणेसु। लम्भइ गई विसुद्धा सरीरसारे विणडुम्मि ॥ १५०॥ अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहिवि गुत्तीहिं न य कुणइ रागदोसे तस्स चरितं हवइ सुद्धं ॥ १ ॥ उक्कोसचरित्तोऽविय परिवडई मिच्छभावणं कुणइ । किं पुण सम्मद्दिद्वी सरागधम्मंमिवतो ? ॥ २ ॥ तम्हा पत्तह दोमुवि काउं जे उज्जमं पयत्तेणं सम्मत्तम्मि चरिते करणम्मि य मा पमाएह ॥ ३ ॥ जाव य सुई न नासइ जाव य जोगा न ते पराहीणा । सद्धा व जा न हायइ इंदियजोगा अपरिहीणा ॥ ४ ॥ जाव य खेमसुभिक्खं आयरिया जाव अस्थि निजवगा। इड्ढीगारवरहिया नाणचरणदंसणंमि रया ॥ ५ ॥ ताव खमं काउं जे सरीरनिक्वणं विउपसत्यं समयपडागाहरणं सुविहियइहं नियमजुत्तं ॥ ६ ॥ हंदि अणिचा सदा सुई य जोगा य इंदियाई च तम्हा एवं नाउं विहरह तवसंजमुज्जुत्ता ॥ ७ ॥ ता एवं नाऊणं ओवार्य नाणदंसणचरिते। धीरपुरिसाणुचिनं करिति सोहिं सुयसमिदा ॥ ८ ॥ अम्मितरबाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं । तिविण तिविहकरणे तिविहे काले विपडभावा ॥ ९ ॥ परिणामजोगसुद्धा उबहिविवेगं च गणविसग्गे य। अजाइयउवस्सयवज्जणं च विगईविवेगं च ॥ १६० ॥ उग्गमउप्पायणएसणाविमुद्धिं च परिहरणमुद्धिं । सन्निहिसंनिचयमिय तववेयावच करणे य ॥ १ ॥ एवं करंतु सोहिं नवसारयसलिलनलसभादा कमकाल पजबअत्तपरजोगकरणे य ॥ २ ॥ तो ते कयसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामं पुप्फाकिन्नयम्मिय तवम्मि जुत्ता महासत्ता ॥ ३ ॥ तो इंदियपरिकम्मं कर्रिति विसयसुनिग्गहसमत्वा जयणाइ अप्पमत्ता रागद्दोसे पयणुयंता ॥ ४ ॥ पुत्रमकारियजोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि न भवति परीसहसहा विसयमुपमोइया अप्पा ॥ ५ ॥ इंदियसुहसाउलओ पोरपरीसहपराइयपरज्झो अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ ६ ॥ वाति इंदियाई पुत्रं दुन्नियमियप्पयाराई अकयपरिकम्म कीवं मरणे सुअसंपउत्तंपि ॥ ७ ॥ आगममयप्पभाविय इंदियसुहलोल्यापट्टस्स। जइवि मरणे समाही हुज न सा होइ बहुयाणं ॥ ८ ॥ असमन्तमु ओऽवि मुणी पुत्रिं सुकयपरिकम्मपरिहृत्यो संजमनियमपइन्नं सहुमत्तहिओ समण्णेइ ॥ ९ ॥ न चयंति किंचि काउं पुषिं सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसह चम् चिइवलपराइया मरणे ॥ १७० ॥ तो तेऽवि पुढचरणा जयणाए जोगसंग विहीहिं तो ते करिंति दंसणचरित्तसद् भावणारं ॥ १ ॥ जो पुब्वभाविया किर होइ सुई चरणदंसणे बहुहा। ९३८ मरणसमाधिप्रकीर्णकं, आहा- १२१-२७२ मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि ॥२॥ तं फासेहि चरितं तुमंपि सुहप्तीलयं पमुत्तूर्ण । सवं परीसहच, अहियासतो घिइबलेणं ॥३॥ सहे रूवे गंधे रसे य फासे य मुविहिय! जिणेहि । सवेसु कसाएमु य निग्गहपरमो सया होहि ॥४॥ सके रसे पणीए निजूहेऊण पंतलुक्खेहिं । अन्नयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो ॥५॥ सलेहणा य दुविहा अभिनरिया यबाहिरा चेव। अभितरिया कसाए बाहिरिया होइ यसरीरे ॥६॥ उग्गमउप्पायणएसणाविसुदेण अण्णपाणेणं । मियविरसलक्खलहेण दुबलं कुणसु अप्पार्ग॥७॥ उहीणोडीणेहि य अहवण एगंतवद्धमाणेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहिं पयणुयंतो ॥ ८॥ तत्तो अणुपुत्रेणाहारं उवहिं सुजओचएसेणं। विविहतवोकम्मेहि य इंदियविकीलियाईहिं ॥९॥ विविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहि उम्गेहिं। संजममविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं ॥१८०॥ विविहाहि व पडिमाहिय बलवीरियजई य संपहोइ मुहाताओवि नबाहिती जहक्कम संलि. हंतम्मि ॥१॥ छम्मासिया जहला उक्कोसा बारसेव बरिसाई। आयंबिलं महेसी तत्य य उक्कोसयं चिंति ॥२॥ उद्द्वमदसमदुवालसेहिं भत्तेहिं चित्तकडेहिं । मियलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ॥३॥ परिवढिओवहाणो ण्हारुविरावियवियडपांसुलिकडीओ। संलिहियतणुसरीरो अज्झप्परओ मुणी निचं ॥४॥ एवं सरीरसंलेछणाविहिं बहुविहंपि फार्सितो। अज्झवसाणविमुदि खणंपि तो मा पमाइत्था ॥५॥ अज्झवसाणविसुद्धीविचजिया जे तवं विगिट्ठमवि। कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी॥६॥ एवं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई समायरइ। अज्झप्पसंजयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ॥ ७॥ निखिला फासेयवा सरीरसलेहणाविही एसा। इत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं परम वुच्छ ॥८॥ कोहं खमाइ माणं मद्दवया अजवेण मायं च । संतोसेण व लोहं निजिण चत्तारिवि कसाए ॥९॥ कोहस्स व माणस्स व मायालोमेसु वा न एएसि। वच्चई वसं खणंपि हु दुग्गगईवड्ढणकराणं ॥१९॥ एवं तु कसायम्गि संतोसेणं तु विझवेयो। रागहोसपवर्ति बजेमाणस्स विज्झाइ॥१॥ जाति केड ठाणा उदीरगा हुँति हु (इह) कसायाणं। ते उसया बजतो विमुत्तसंगो मुणी विहरे ॥२॥ सतोवसंतधिइमं परीसह विहिं व समहियासंतो। निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिह मोहे कसाए य॥३॥ इट्ठाणिद्वेसु सया सहफरिसरसरूवगंधेहिं। सुहदुक्खनिविसेसो जियसं. गपरीसहो विहरे ॥४॥ समिईम पंचसमिओ जिणाहितं पंच इंदिए सुठु। तिहिं गारखेहिं रहिओ होइ तिगुत्तो य दंडेहिं ॥५॥ सन्नासु आसबेमु अ अट्टे कहे अतं विमुद्दप्पा। रागद्दोसपवंच निजिणि उं सव्वणो जुत्तो ॥६॥ को दुक्खं पाविजा? कस्स य सुक्खेहिं विम्हओ हुज्जा? को वा न लभिज मुक्वं? रागहोसा जइन हुज्जा ॥७॥ नविन कुणइ अमित्तो सुदढ़त्रिय बिराहिओ समयोचि। जं दोचि अनिम्गहिया करंति रागो य दोसो य॥८॥ तं मुयह रागदोसे सेयं चिंतेह अपणो नियं। जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा ॥९॥ इहलोए आयास अयसं च करिति गुणविणासं च। पसर्वति य परलोए सारीरमणोगए दुक्खे ॥२०॥ घिदी अहो अकजं जं जाणतोऽवि रागदोसेहिं । फलमउलं कडुयरसं तं चेव निसंबए जीवो ॥१॥ तं जइ इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स। तो तवसंजमभंडं सुविहिय! गिण्हाहि तुरंतो ॥२॥ बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । न हु वसमा. गंतवं रागहोसाण पावाणं ॥३॥जंन लहइ सम्मत्तं लघृणवि जन एइ वेरग्गं। विसयमुहेमु य रज्जइ सो दोसो रागदोसाणं ॥४॥ भवसयसहस्सदुलहे जाइजरामरणसागरुत्तारे। जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥५॥ दवेहिं पजवेहि य ममत्तसंगेहिं सुट्ठवि जियप्पा । निप्पणयपेमरागो जइ सम्म नेइ मुक्वत्थं ॥६॥ एवं कयसलेह अभितरवाहिरम्मि संलेहे । संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहाहि ॥ ७॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणगंभीरो। आउरपञ्चक्खाणं पुणरवि सीहाबलोएणं ॥८॥न हु सा पुणगनविहीं जा संवेगं करइ भण्णंनी। आउरपञ्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥९॥ एस करेमि पणामं तिस्थयराणं अणुत्तरगईणं। सवेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥२१०॥ जंकिचिवि दुचरियं नमहं निंदामि सवभावणं । सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं ॥१॥ अभितरं च तह बाहिरं च उवहीं सरीर सा(रमा)हारं । मणवयणकायतिकरणसुद्धोऽहं रहमरई दीणयं भयं सोगं। रागहोस बिसायं उस्सुगभावं च पयहामि ॥३॥ रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नुया पडिनिवेसेणं । जो मे किंचिवि भणिओ नमहं निविहण खामेमि ॥४॥ सवेसु य दव्वेसु य उचट्ठिओ एस निम्ममत्ताए। आलंबणं च आया सणनाणे चरिते य ॥५॥ आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे तवे जोगो। जिणवयणविहिविलम्गो अवसेसविहिं नु दंसेहि ॥६॥ मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पमाएणं। ते सवे निंदामि पडिकमे आगमिस्साणं ॥७॥ एगो सयंकडाई आया मे नाणद. सणवलक्खो। संजोगलक्खणा खल सेसा मे पाहिरा भावा ॥८॥ पत्ताणि दुहसयाई संजोगस्सा(वसा)णुएण जीवेणं । तम्हा अर्णतदुक्खं चयामि संजोगसंबंध ॥९॥ अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सवो ममनं च। जीवेसु अजीवेसु य तं निदे तं च गरिहामि ॥२२०॥ परिजाणे मिच्छत्तं सवं अस्संजमं अकिरियं च सर्व चेव ममत्तं चयामि सर्व च खामेमि ॥१॥ जे में जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते तह आलोएमि उवडिओ सवभावेणं ॥२॥ उप्पना उप्पना माया अणुमग्गओ निहंतचा। आलोयणनिंदणगरिहणाहिंन पुणोत्ति या बिइयं ९३९मरणसमाधिप्रकीर्णकं, जहा-१२-२२३ मुनि दीपरत्नसागर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३॥जह बालो जंपनी कजमकजं च उज्जुयं भणड। न नह आलोया माय मुजूण निस्सेस ॥४॥ सुबहुंपि भावसलु आलोएऊण गुरुसगासम्मि। निस्सालो संथारं उबेइ आराहओ होइ॥५॥ अपि भावसई जे णालोयंनि गुम्सगासम्मि। धपि मुयसमिद्धा न हुने आराहगा हुंनि ॥६॥ नवि तं विसं च सत्यं च दुप्पउत्तो व कुणइ क्यालो। जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुपिओ ॥७॥ जंकुगइ भावसलं अणुदियं उनमकालम्मि । दुलहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्नं च ॥८॥तो उदरंति गारवरहिया मूलं पुणभवलयाणं। मिच्छादसणसवं मायासाई नियाणं च ॥९॥ कयपावोऽवि मणुसो आलोइय निदिउँ गुम्सगासे। होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरूख भारवहो ॥२३०॥ तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसति। नं नह अणूचरियावं अणवन्यपसंगभीएणं ॥१॥ दसदोसविप्पमुकं नम्हा सर्व अमग्ग(गृह)माणेणं। जंकिंचि कयमकजं आलोए तं जहावत्तं ॥२॥ सर्व पाणारंभ पञ्चक्खामिति अलियवयणं च। सर्व अदिन्नदाणं अभपरिग्गहं चेव ॥३॥ सव्वं च असणपाणं चाउविहं जाय वाघिरा उवही। अभिनरं च उवहिं जावजीवं तु बोसिरामि ॥४॥ कंतारे दुम्भिक्खे आर्यके वा महया(ई) समुपर्छ । जं पालियं न भगं नं जाणसु पालणासुदं ॥५॥ रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दृसियं जंतु । न खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्ध मुणेयव्वं ॥६॥ पीयं थणच्छीर सागरसलिलाउ बढ्यरं इन्त्रा। संसारे संसरतो माऊणं अन्नमन्नाणं ॥ ७॥ नत्थि किर सो पएसो लोए वालगकोडिमिनोऽवि। संसारे संसरतो जत्यनजाओ मओ वाऽवि ॥८॥ चुलसीई किर लोए जोणीण पमुहसयसहम्साई। इकिमि य इनो अणंतबुनो समुप्पन्नो॥९॥ उड्ढमहे तिरियम्मि य मयाणि बालमरणाणिऽणताणि । तो ताणि संभरतो पंडियमरणं मरीहामि ॥२४॥ माया मिनि पिया मे भाया भजनि पुत्त धूया अ। एयाणिऽचिंतयंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥१॥ मायापिइबंधूहि संसारत्येहि पूरिओ लोगो। बहुजोणि-- निवासीहिं न अ ते नाणं च सरणं च ॥२॥ इक्को जायइ मरइ इको अणुहबइ य दुक्लयविवागं । इक्कोऽणुसरइ जीओ जरमरणचउग्गईगविलं ॥३॥ उब्वेयणयं जम्मणमरणं नरएम वेयणाओ अ। एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥४॥ इकं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाणि बहुयाणि। तं मरणं मरियव्यं जेण मओ सुम्मओ (मुकओ) होइ॥५॥ कंझ्या णुनं। ममरणं पंडियमरणं जिणेहि पणनं । मुद्धा उद्वियसाडो पाओवगमं मरीहामि ॥६॥ संसारचकवाले सब्वेऽवि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिया य न य नेमु तितोऽहं ॥ ७॥ आहारनिमिनेणं मच्छा वचंनिष्णुनरं नस्य । सचिनाहारविहिं नेण उ मणसाऽवि निच्छामि ॥८॥ तणकटेणव अग्गी लवणसमुहोव नइसहस्सेहि। न इमो जीवो सक्को निप्पेर्ड कामभोगेहि ॥९॥ लवणयमुहसामाणो नुपूरो धणरओ अपरिमिजो। न हुसको तिप्पेउं जीवो संसारियमुहेहिं ॥२५०॥ कप्पनरसंभवेमु य देवुत्तरकुम्वंसपमूएमुं। परिभोगेण न निनो न य नरविजाहरमुरेम् ॥ १॥ देविंदचक्कवहिनणाई रजाइं उत्नमा भोगा। पत्ता अणंतबुत्तो न यऽहं तित्तिं गओ तेहिं ॥२॥पयखीमच्छरसेमु य साऊम महोदहीम बहुसोवि । उववो नयतण्डा छिया ते सीयलजहि ॥३॥ निविहेणवि मुहमउलं जम्हा कामरहविसयमुक्खाणं । बहुसोऽपि समणुभ्यं न य नुह नण्हा परिचिटण्णा ॥४॥जा काइ पत्थणाओ कया मए रागदोसवसएणं। पडिबंधेण बहुविहा नं निदे ने च गरिहामि ॥५॥ तृण मोहजालं छित्तूण य अट्ठकम्मसंकलियं । जम्मणमरणऽरह भिनूण भवा णु मुश्चिहिसि ॥६॥ पंच य महपयाई तिविहतिविहण आम्हऊण । मणवयणकायगना सन्ना मरण पडिच्छिज्जा (लाहजा)॥9॥ काहमाण मायलाह पिज नहव दासचा पाऊण अप्पमत्ना रखामि महाए मुबंपिय परम्स परिवायं । परिवजितो गुत्तो रक्वामि०॥९॥ किण्हा नीला काऊलेसा झाणाणि अप्पसत्थाणि । परिवर्जिनो गुत्नो०॥२६०॥ नेऊ पम्हे सकलेसा माणाणि मुप्पसन्धाणि। उपसंपनो जुनो रक्खामि ॥१॥ पंचिंदियसंवरणं पंचेव निरंभिऊण कामगुणे। अचासायणपिरो रक्खामि ॥२॥ सत्तभयविषमुको पनारि निर। भिऊण य कसाए। अट्ठमयट्ठाणजइढो रक्खामि०॥ ३॥ मणसा मणसचविऊ वायासमेण करणसघेण। तिविहेण अप्पमनो रक्खामि ॥४॥ एवं निरंडचिरओ निकरणमुयो निसाल - निम्सालो। निविहेण अप्पमतो रक्खामि ॥५॥ सम्मन समिईओ गुनीओ भावणाओ नाणं च । उपसंपलो जुत्तो रक्खामि०॥६॥ संग परिजाणामि सापि य उबरामि तिबिहेण । गुनी ओ समिईओ मनं नाणं च सरणं च ॥ ७॥ जह सुहियचकवाले पोयं स्यणभरियं समुहम्मि। निजामया परिनी कयकरणा बुद्धिसंपण्णा ॥८॥ तवपो गुणभरिय परीसहुम्मीहि धणियमाइई। आराहिति नह विऊ उपएसऽवलंबगा धीरा ॥९॥ जइ ताव ते मुपूरिसा आयारोबियभरा निरवयक्खा। गिरिकहरकंदरगया साहनिय अप्पणो अद्वै ॥२७० ॥ जा ताब सावयाकुलगिरिकंदरविसमदग्गमग्गेमु । धिडधणियबदकच्छा साहति य उत्तम अहूँ ॥१॥ किं पुण अणगारसहायगेण वेरगसंगहबलेणं । परलोएण ण सका संसारमहोदहि तरिई? ॥२॥ जिणवयणमप्पमेयं महुरं कामयं सुणताणं । सका हु साहुमज्मा साहेउं अप्पणो अटुं ॥३॥ धीरपुरिसपण्णनं सप्पुरिसनिसेवियं परमपोरं। धना सिलानलगया साहिती अपणो अटुं ॥४॥ बाहेइ इंदियाई पुचमकारियपइट्ट(ण)चारिम्स। अकयपरिकम्म कीवं मरणे मुअसंपउमि ॥५॥ पुष्वमकारियजोगो समाहिकामोऽपि मरणकालम्मि। न मका परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥ ६॥ पुष्यि कारियजोगो समाहिकामो य मरणकानम्मि। होइ उ परीसहसहो विसयमुहनिवारिओ जीवो ॥ ७॥ पुषि कारियजोगो अनियाणो (२३५) - ९४० मरणसमाधिप्रकीर्णक, 18/-२0-२७ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईहिऊण सुहभावो। ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छिला ॥८॥ पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माण। सका पलाइउं जे तवेण सम्म पउत्तेणं ॥९॥ इक पंडियमरणं पहिवनइ सुपुरिसो असमतो। सिप्प सो मरणाणं काहिह अंसं अर्णताणं ॥२८०॥ किं तं पंडियमरणं? काणि ब आलंबणाणि भणियाणि । एयाई नाऊणं किं आयरिया पसंसंति? ॥१॥ अणसणपाउवगमणं आलंबण झाण मावणाओ या एयाईनाऊणं पंडियमरणं पसंसंति ॥२॥ इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरझो। अकयपरिकग्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥३॥ लज्जाइ गारवेणं बहुस्सुयमएण वापि बुचरियं । जे न कहिंति गुरूणं न हु ते आराहगा इंति ॥४॥ सुजाइ तुकरकारी जाणइ मम्गति पावए किति। विणिगृहितो निर्द नम्हा आलोयणा सेया ॥५॥ अग्गिम्मि य उवयम्भियपाणेसुय पाणबीयहरिएसुं। होइमओ संथारो पडिवजह जो(जइ) असंभंतो॥६॥ नवि कारणं तणमओ संथारो नवि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मरंतस्स ॥७॥ जिणवयणमणुगया मे होउ मई माणजोगमीणा । जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चए देहं ॥ ८॥ जाहे होइ पमत्तो जिणव| यणेण रहिरो अणायत्तो। वाहे इंदियचोरा करेंति तबसंजमविलोम(व)॥९॥जिणवयणमणुगयमई जंवेलं होइ संवरपविट्ठो। अग्गीव वायसहिओ समूलढालं डहइ कम्मं ॥२९०॥ जह डहइ वायसहिओ अम्गी हरिएवि रुक्खसंघाए। तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं खयं नेइ ॥१॥जह अस्मिमिव पवले खडपुलिन लिप्पमेव झामेइ। तह नाणीबि सकम्म खवेइ ऊसासमित्तेण ॥२॥न हु मरणम्मि उवम्गे सको बारसविहो सुयक्खंधो। सब्बो अणुचिंतेउं घेतंपि समत्यचित्तेणं ॥३॥ इक्कम्मिवि जमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए। बच्चइ नरो अविग्धं ते मरण तेण मरितव्यं ॥४॥ इकमिवि०। सो तेण मोहजाल छिंदइ अझप्पओगेणं ॥५॥ जेण विरागो जायइ तं तं सब्बायरेण करणि । मुच्चइ हु ससंवेगी अणंतओ होअसं. वेगी॥६॥ (म० धर्म जिणपण्णसं सम्मत्तमिणं सरहामि तिविहेणं । तसथाचरभूयहियं पंथं निव्वाणमग्गस्स ॥१॥) समणोऽहंतिअ पढम बीयं सव्वस्थ संजओमित्ति। सब्वं च बोसिरामी जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं॥७॥ मणसाऽविचितणिज सर्व भासाइऽभासणिजं च।काएण अ अकरणिजं वोसिरि तिविहेण सावज ॥८॥अस्संजमवोसिरण खंतो मत्तो विवेगो अ॥९॥एवं पञ्चस्खाणं आउरजण आवईस भावेणं । अन्नतरं पडिवन्नो जंपतो पावइ समाहि ॥३०॥ मम मंगलमरिहंता सिदा साहू सुर्य च धम्मो य। तेसिं सरणोषगओ सावज वोसिरामित्ति ॥१॥ इति सिरिमरणविभत्तिसुए सलेहणासुयं समत्तं १॥ अथ आराहणासुयं सिद्ध उवसंपन्नो अरिहंते केवली अभावण। इत्तो एगतरेणवि पएण आराहओ होइ॥२॥ समुइनवेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिज्जा ?। आलंवणं च काई काऊण मुणी दुहं सहइ? ॥३॥ नरएसु अणुत्तरेसु - अ अणुत्तरा वेयणाओ पत्ताओ। बट्टतेण पमाए ताओवि अणंतसो पत्ता ॥४॥ एयं सयं कयं मे रिणव कम्मं पुरा असायं तु । तमहं एस धुणामी मणम्मि सत्तं निवेसिज्जा ॥५॥ नाणाविहतुस्खेहि य समुइन्नेहि उ सम्म सहणिज्ज । न य जीवो उ अजीवो कयपुष्वो वेयणाईहिं॥६॥ अन्भुजय विहार इत्थं जिणदेसियं विउपसस्थं । नाउं महापुरिससेविय जं अन्भुजयं मरणं ॥ ७॥ ज(अ)ह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्ययरदेसियमुयारा पच्छानिच्छयपत्यं उवेइ अब्भुजयं मरणं ॥८॥ छत्तीसमट्टि(मंडि)याहि य कडजोगी जोगसंगबलेणं । उन्नमिऊणं बारसविहेण तवनियमठाणेणं ॥९॥ संसाररंगमज्मे घिवलसन्नद्धबद्धकच्छाओ। हतूण मोहमलं हराहि आराहणपडागं ॥३१०॥ पोराणयं च कम्म खवेइ अन्नन्नबंधणायायं । कम्म२ कलंकलवल्लिं छिंदा संधारमारुदो ॥१॥ धीरपुरिसेहिं कहियं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । उत्तिण्णोमि हु रंग हरामि आराहणपडागं ॥२॥ धीर ! पडागाहरणं करेहि जह तंसि देसका. लम्मि । मुत्तस्थमणुगुणितो घिइनिचलबद्धकच्छाओ॥३॥ चत्तारि फसाए तिन्नि गारखे पंच इंदियग्गामे । जिणिउं परीसहसहे हराहि आराहणपडागं ॥४॥ न य मणसा चितिजा जीवामि चिरं मरामि व लहुँति। जइ इच्छसि तरिउंजे संसारमहोअहिमपारं ॥५॥ जइ इच्छसि नीसरि सवेसिं चेव पावकम्माणं। जिणवयणनाणदंसणचरित्तभावुज्जुओ जग्ग॥६॥ दसणनाणचरिते तवे य आराहणा चउक्खंधा । सा पेय होइ तिविहा उकोसा मज्झिम जहण्णा ॥७॥ आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं । कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झिजा ॥८॥ आराहेण विऊ मज्झिमआराहणं चउक्खंघ। उकोसेण यचउरो भवे उगंतूण सिज्झिजा ॥९॥ आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्संध। सत्तट्ट भवग्गहणे परिप्रणामेऊण सिज्झिज्जा ॥३२०॥ धीरेणवि मरियई काउरिसेणवि अवस्स मरियाछ । तम्हा अवस्समरणे वरं खुधीरत्तणे मरिउ॥१॥ एवं पञ्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्म। वेमा. णिओ व देवो हविज अहवावि सिज्झिजा॥२॥ एसो सवियारकओ उवकमो उत्तमढकालम्मि। इत्तो उ पुणो बुच्छं जो उ कमो होइ अवियारे ॥३॥ साहु कयसंलेहो विजियपरीसहकसायसंताणो। निजबए मग्गिजा सुयरयणस(र)हस्सनिम्माए ॥४॥ पंचसमिए तिगुत्ते अणिस्सिए रागदोसमयरहिए। कडजोगी कालण्णू नाणचरणदसणसमिद्धे ॥५॥ मरण समाहीकुसले इंगियपस्थियसभाववेत्तारे । ववहारविहिविहिण्णू अब्भुजयमरणसारहिणो ॥६॥ उवएसहेउकारणगुणनिस(ढा)णायकारणविहण्णू । विण्णाणनाणकरणोवयारसुयधारण1 ९४१ मरणसमाधिपकीर्णकं 10-७८-२२७ मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAS समत्थे ॥७॥ एगंतगुणे रहिया बुद्धीइ चउबिहाइ उववेया। छंदण्णू पवइया पञ्चक्खाणंमि य विहण्णू ॥८॥ दुहं आयरियाणं दो वेयावञ्चकरणनिज्जुत्ता। पाणगवेयावच्चे तवस्सिणो वत्ति दो पत्ता ॥९॥ उवत्तण परिवत्तण उच्चारुस्सास(व)करणजोगेसुं। दो वायगत्ति णजा असुत्तकरणे जहोणं ॥३३०॥ असदह वेयणाए पायच्छित्ते पडिकमणए य। जोगायकहाजोगे पञ्चक्खाणे य आयरिओ ॥१॥ कप्पाकप्पविहिन दुवालसंगसुयसारही(सई) छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविया(सारया धीरा॥२॥एएते गुणसंखाणं न समस्या पायया वृत्तुं ॥३॥ एरिसयाण सगासे सूरीणं पवयणप्पवाईणं । पडिवजिज महत्यं समणो अन्भुजयं मरणं ॥४॥ आयरियउवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे आजे मे किया कसाया (जंमि कसाओ कोइविप्र०) सवे तिविहेण खामेमि ॥५॥ सबस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करे सीसे। सई खमावडत्त मिमि॥५॥ सबस्स समणसघस्स भगवा अजलि कर सास। सबसमावइत्ता खमामि सबस्स अहयपि (ख| मिज सव्वस्सवि सयंमि प०)॥६॥ गरहित्ता अप्पाणं अपुणकारं पडिक्वमित्ताण। नाणम्मि वंसणम्मि अ चरित्तजोगाइयारे अ॥७॥ तो सीलगुणसमग्गो अणुवयक्खो बलं च थाम च। विहरिन तवसमग्गो अनियाणो आगमसहाओ॥८॥ तवसोसियंगमंगो संधिसिराजालपागडसरीरो। किच्छाहियपरिहत्यो परिहरड कलेवरं जाहे॥९॥ पवस्खाइ अताहे अन्नम्नसमाहिपत्तियंमित्ती। तिविहेणाहारविहिं दियसुग्गइकायपगईए॥३४०॥ इहलोए परलोए निरासओ जीविए अमरणे अ। सायाणुभवे भोगे जस्स अ अवहट्टणाऽईए॥१॥ निम्म मनिरहंकारो निरासयोऽकिंचणो अपडिकम्मो। बोसट्टविसटुंगो चत्तचियत्तेण देहेणं ॥२॥तिविहेणवि सहमाणो परीसहे दूसहे अ उवसम्गे। विहरिज विसयतण्हारयमलमसुभ विहुणमाणो ॥३॥ नेहक्खएव दीवो जह खयमुवणेइ दीववट्टिम्मि (ट्टिपि) खीणाहारसिणेहो सरीखटैि तह खवेइ ॥४॥ एव परज्झा असई परकमे पुष्वमणियसूरीण । पासम्मि उत्तमद्वे कुज्जा तो एस परिकम्मं ॥५॥ आगरसमुट्ठियं तह अज्झुसिरवागतणपत्तकडए य। कट्ठसिल्डाफलगंमिव अणभिज्जय निप्पकप्पंमि ॥६॥ निस्सधिणा तर्णमिव सुहपडिलेहेण जइपसस्थेणं । संथारो कायको उत्तरपुस्सिरो वावि ॥ ७॥ दोसुत्य अप्पमाणे अंधकारे समम्मि अ णिसिट्टे । निस्वयम्मि गुणमणे वणम्मि गुत्ते (घणंनिगुत्ते) य संघारो ॥८॥ जुत्ते पमाण| रहओ उभओकालपडिलेहणासुद्धो। बिहिविहिओ संथारो आरुहियो तिगुत्तेणं ॥९॥ आरुहियचरित्तमरो अनेसु उ परमगुरुसगासम्मि। दबेसु पजवेसु य खित्ते काले य समि ॥३५०॥ एएसु चेव ठाणेसु चउसु सबो चउबिहाहारो। तवसंजमुत्ति किच्चा वोसिरियको तिगुत्तेणं ॥१॥ अहवा समाहिहेउं कायद्यो पाणगस्स आहारो। तो पाणगंपि पच्छा बोसि. रियध्वं जहाकाले ॥२॥ निसिरित्ता अप्पाणं सव्वगुणसमन्नियम्मि निजवए। सैथारगसंनिविट्ठो अनियाणो चेव विहरिजा ॥३॥ इहलोए परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य। बासीचंदणकप्पो समो य माणावमाणेसु ॥४॥ अह महुरं फुडवियर्ड तहप्पसायकरणिजविसयकयं । इज कहं निजवओ सुईरसमन्नाहरणहेउं ॥५॥ इहलोए परलोए नाणचरणदसगंमि य अवार्य । सेह नियाणम्मि य मायामिच्छत्तसलेणं ॥६॥बालमरणे अवायं तह य उवार्य अबालमरणम्मि । उस्सासरज्जुवेहाणसे य तह गिद्धपढे य॥७॥जह य अणुद्धयसको ससष्टमरणेण कइ मरेऊणं । दसणनाणविहूणो मरेति असमाहिमरणेणं ॥८॥जह सायरसे गिद्धा इस्थिअहंकारपावसुयमत्ता। ओसन्नबालमरणा मर्मति संसारकतारं ॥९॥ अह मिच्छत्त ससाडा मायासलेण जह ससला य। जह य नियाण ससला मरंति असमाहिमरणेणं ॥३६० ।। जह वेयणावसट्टा मरंति जह केइ इंदियवसट्टा। जह य कसायवसहा मरंति असमाहिमरणेणं॥१॥ जह सिद्धमग्गदुग्गइ(ह)सम्गग्गलमोडणाणि मरणाणि । मरिऊण केइ सिदि उविति सुसमाहिमरणेणं ॥२॥ एवं बहुप्पयारं तु अवार्य उत्तमढकालम्मि। संति इति य सिं उवएसं गुरुणो नाणाविहेहि हेऊहिं। जेण सुगई मयंतो संसारमयदुओ (दुहो) होइ॥४॥नहु तेसु बेयर्ण खलु अहो चिरम्मित्ति दारुणं दुक्खं । सहणिजं देहेणं मणसा एवं विचिंतिजा ॥५॥ सागरतरणत्यमई इयस्स पोयस्स जए (उजये) धृवे। जो रज्ज़ (रुख ए (उजय) धूर्व। जो रज्जु (रक्स) मुक्खकालो न सो विलंबत्ति कायहोn तिल्डबिहूणो दीवो न चिरं दिप्पइ जगम्मि पञ्चक्खं । न य जलरहिओ मच्छो जिअइ चिरं नेव पउमाई ॥७॥ अर्ज इमं सरीरं अजोऽहं इय मणम्मि ठाविजा। जं सुचिरेणऽवि मोच्च देहे को तत्थ पडिबंधो?॥८॥ दूरत्यंपि विणासं अवस्सभा उवडियं जाण । जो अह वह कालो अणागओ इत्य आसिण्हा ॥९॥ सुचिरेणवि होहिइ अणावसं तंमि को ममीकारो। देहे निस्संदेहे पिएवि सुयणत्तर्ण नत्यि ॥३७०॥ उक्लबो सिदिपहो न य अणुचिण्णा पमायदोसेणं। हा जीव! अप्पवेरिय! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ ॥ १॥ नस्थि य ते संघयणं घोरा य परीसहा अहे निरया। संसारोव असारो अइप्पमाओ यतं जीव ! ॥२॥ कोहाइकसाया खलु वीयं संसारमेरवदुहाणं । तेसु पमत्तेसु सया कत्तो सुक्खो य मुक्खो वा ॥३॥ जाजो परब्बसेणं संसारे वेयणाओ घोराओ। पत्ताओ नारगत्ते अहुणा ताओ विचिंतिजा ॥४॥ इहिं सर्व वसिस्स उ निस्वमसुक्खावसाणमुहदूर्य (कडुर्य)। कल्लाणमोसह पिव परिणामसुई न तं दुस्खं ॥५॥ संबंधि पंचवेसु अन अ अणुराओ खर्णपि कायव्यो। तेचिय हुँति अमित्ता जह जणणी भवत्तस्स ॥६॥ वसिऊण व सहिमज्झे बच्चइ एगाणिओ इमो जीवो। ९४२ मरणसमाधिमकीर्णकं. 10/-३२७-२08 मुनि दीपरत्नसागर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोनूण सरीरघरं जह कण्हो मरणकालम्मि ॥७॥ इण्हि व मुहुनेणं गोसे व सुए व अद्धरने वा । जस्स न नजइ वेला कहियसं गच्छिई जीवो ? ॥८॥ एवमणुचिंतयंतो भावणुभावाणुरत्त सियलेसो। तदिवस मरिउकामो व होइ झाणम्मि उजुत्तो॥९॥ नरगतिरिक्खगईसु अ माणुसदेवत्तणे वसतेणं। जं सुहदुक्खं पत्तं तं अणुचिकिज संथारे ॥३८॥ नरएसु वेय. णाओ अणोवमा सीयउण्हवेरा(गा)ओ। कायनिमित्तं पत्ता अर्णतखुत्तो बहुविहाओ ॥१॥ देवत्ते माणुसत्ते पराहिओगत्तर्ण उवगएणं । दुक्खपरिकेसविही अर्णतखुनो समणुभूया ॥२॥ चदियतिरिक्खकायम्मि णेगसंठाणं। जम्मणमरणऽरहट्टे अर्णतखुत्तो गओ जीवो ॥३॥ सुविहिय! अईयकाले अर्गतकाएसु तेण जीवेणं। जम्मणमरणमणत बहुभवगहणं समणुभूर्य ॥४॥ घोरम्मि गम्भवासे कलमलजंबालअसुइबीभच्छे । वसिओ अर्णवखुत्तो जीवो कम्माणुभावणं ॥५॥ जोणीमुह निम्गच्छंतेणं संसारे इमे(रिमे)ण जीवेणं । रसियं अइबीभच्छं कडीकडाहंतरगएणं ॥६॥ जे असियं बीभच्छ असुईघोरम्मि गम्भवासस्मिात चिंतिऊण सयं मुक्खम्मि मई निवेसिज्जा ॥७॥ वसिऊण बिमाणेसु य जीवो पसरंतमणिमऊहेसु । वसिओ पुणोबि सुचिय जोणिसहस्संधयारेमुं॥८॥ बसिऊण देवलोए निचुजोए सयंपमे जीवो। बसइ जलवेगकलमलविउले बलयामुहे घोरे ॥९॥ बसिऊण सुरनरीसरचामीयररिदिमणहरघरेसु। वसिओ नरग निरंतरभयभेरवपंजरे जीवो ॥३९०॥ वसिऊण विचित्तेसु अविमाणगणभवणसोभसिहरेसु । यसइ तिरिएमु गिरिगुहविवरमहाकंदरदरीसु॥१॥ भुत्तूणवि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएण। पियइ नरएसु भेरवकलंततउतंबपाणाई॥२॥ सोऊण मुइयणरवइभवे अ जयसहमंगलरवोघं । मुणइ नरएमु दुहपरअकंदुद्दामसहाई॥३॥ निहण हण गिह दह पय उबंध पबंध बंध रुवाहि । फाले खोले घोले थरे खारेहि से गत्तं ॥४॥ वेयरणिखारकलिमलसकुसलउडकरकयकुलेसु । वसिओ नरएम जीवों हणहणघणघोरसहेसु ॥५॥ तिरिएम व भेरवसद्दपक्षणपरपक्वणच्छणसएसु । वसिओ उश्वियमाणो जीवो कुटिलम्मि संसारे ॥६॥ मणुयत्तणेवि बहुविहविणिवायसहस्सभेसणघणम्मि । भोगपिबासाणुगओ यसिओ भय(ब)पंजरे जीवो ॥७॥ बलियं दरीसु वसियं गिरीसु बसियं समुहमोसु । कक्वम्गेसु य वसियं संसारे संसरतेणं ॥८॥ पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाओ बहुयरं हुजा। संसारम्मि अणते माईणं अण्णमण्णाणं ॥९॥ नयणोदगंपि वासिं सागरसलिलाओ बहुयरं हुजा। गलिय स्यमाणीणं माईणं अण्णमण्णाण ॥४०॥ नस्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिस न विजए दुक्खं । तम्हा जरमरणकरं छिंद ममत्तं सरीराओ॥१॥ अनं इमं सरीरं अण्णो जीवृत्ति निच्छियमईओ । दुक्खपरीकेसकरं छिंद ममत्तं सरीराओ॥२॥ जावइयं किंचि दुई सारीरं माणसं च संसारे। प(ए)त्तो अर्णतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ॥३॥ तम्हा सरीरमाई अभितर बाहिरं निरवसेस। छिंद ममत्तं मुविहिय! जइ इच्छसि मुचिउ दुहाणं ॥४॥सवे उवसम्म परीसहे य विविहेण निजिणाहि लहु। एएसु निजिएसुं होहिसे आराहओ मरणे ॥५॥ मा हु य सरीरसंताविओ यतं झाहि अट्टरुहाई। सुठु विरूवियलिंगेवि अगुरुदाणि रुवति ॥६॥ मित्तसुयबंधवाइसुइट्टाणि सुइंदियत्येसु। रागावा दासा वाइसि मणणं न काया ॥७॥रांगायकेसु पुणा विउलासुय वयणामुहन्नासुासम्म अहियासता हेयएण चिंतिजा ॥८॥बहुपलियसागराईस(सो)ड्ढाणि मे(मए)नरयतिरियजाईसुं। किं पुण सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहति? ॥९॥ सोलस रोगार्यकासहिया जहचकिणाचउ. त्वणं । वाससहस्सा सत्त उ सामणघरं उवगएणं ॥४१॥ तह उत्तमहकाले देहे निरवक्खयं उवगएण। तिलांछत्तलावगा इव आयंका चिसहिया उ॥१॥ पारिवायगभत्ता राया पट्टी मुढो। अचण्डं परमनं दासी य-सुकोवियमणस्सा ॥२॥ सा य सलिलोहियमंसवसापेसिथिम्गलं चित्तं । उप्पइया पट्ठीओ पाई जह रक्खसबहुब ॥३॥ तेण य निवेएर्ण ॐ निमगंतूर्णं तु सुविहियसगासे। आरुहियचरितभरो सीहोरसियं समारुढो ॥४॥ तम्मि य महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो। बोसिरह थिरपइनो सबाहारं मह तणु य॥५॥ तिविहोवसम्ग सहिउँ पडिमं सो अण्णमासियं धीरो। ठाइ य पुवाभिमूहो उत्तमधिइसत्तसंजुत्तो ॥६॥ सा य पगलंतलोहियमेयवसा मसला परी (लं चरा) पट्टी। खजड खगेहि दूसहनि हि य कीडीहिवि मंससंपलम्गाहिं। खज्जतोचि न कंपइ कम्मविचागं गणेमाणो || रत्ति च पयइविहसियसियालियाहि निरणुकंपाहिं। उव. सम्गिजइ धीरो नाणाविहरूवधारीहिं ॥९॥ चितेइ य खरकरवयअसिपंजरखग्गमुग्गरवहाओ। इणमो न हु कट्ठयरं दुक्खं निरयम्गिदुक्खाओ ॥४२० ॥ एवं च गओ पक्खो बीओ पक्खो य दाहिणदिसाए । अवरेणवि पक्खोपि य समइकतो महेसिस्स ॥१॥ तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमाणसो सहइ । पडिओ य दुमासते नमोत्ति वोनुं जिणिंदाणं ॥२॥ इम चारयपय तउ एय कित्तिममुणिस्स1॥३॥ जह तण वितयाणणा उक्सग्गा परमदूसहा साहया। तह उवसग्गा सुवि हिय ! सहियचा उत्तमट्ठमि ॥४॥ निप्फेडियाणि दुणिवि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि। न य संजमाउ चलिओ मेअजो मंदरगिरिव ॥५॥जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगंपि नाइA क्खे। जीवियमणपेहंत मेयजरिसिं नमसामि ॥६॥ जो तिहि पएहिं धम्म समइगओ संजमे समारूढो । उवसमविवेगसंवर चिलाइपुत्तं नमसामि ॥ ७॥ सोएहिं अइगयाओ लोहि. ९४३ मरणसमाधिप्रकीर्णकं, MET-299-२८ मुनि दीपरत्नसागर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यगंधेण जस्स कीडीओ। खायंति उत्तमंगं तं दुकरकारय वंदे ॥८॥ देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणिव कओ। तणुओवि मणपओसो न य जाओ तस्स ताणुवरि ॥९॥ धीरो चिलाइपुत्तो मुइंगलियाहिं चालिणिव कओ। न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकास्यं वंदे ॥४३०॥ गयसुकुमालमहेसी जह दो पिइवणंसि ससुरेणं । न य० ॥१॥जह तेण सो हुयासो सम्म अइरेगद्सहो सहिओ। तह सहियो सुविहिय ! उपसम्गो देहदुक्खं च ॥२॥ कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुइंहि नभसेणं । आगंतूण सुरत्ता संपइ संपाइणो वारे ॥३॥ जा तस्स समा तइया जो भावो जा य दुकरा पडिमा । तं अणगार ! गुणागर तुमंपि हियएण चिंतेहि ॥४॥ सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो। संभरियदेवलोओ उजेणि सबंदिशआहारो। बाहिं सकुडंगे पायवगमणं निवण्णो उ॥६॥ वोसटुनिसटुंगो ताहि सो मुड़कियाइ खाओ उ। मंदरगिरिनिकपं तं दुक्करकारयं वंदे ॥७॥ मरणंमि जस्स मुकं सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं । अज्जवि गंधवई सा तं च कुडंगी सरट्ठाणं ॥८॥ जह नेण तत्थ मुणिणा सम्म सुमणेण इंगिणी तिषणा। तह तूरह उत्तम? तं च मणे सचिवेसेह ॥९॥ जो निच्छएण गिण्हइ देहचाएवि न अट्ठियं (दिई) कुणइ । सो साहेइ सकजं जह चंदवडिंसओ राया ॥४४०॥ दीवाभिग्गहधारी नूसहवणविणयनिचलनगिंदो। जह सो तिण्णपण्णो तह तूरह तुम पढ़मंमि ॥१॥ जह दमदंतमहेसी पंडयकोरब मुणी थुयगरहिओ। आसि समो दुण्डंपिहु एवं समा होइ सम्वत्थ ॥२॥ जह खंदगसीसेहिं सुक्कमहाझाणसंसियमणेहि। न कओ मणप्पओसो पीलिज्जतेसु जंतमि ॥३॥ तह धन्नसालिभद्दा अणगारा दोवि तधमहिड्ढीया। वेभारगिरिसमीचे नालंदाए समी ४॥ जुअलसिलासंथारे पायवगमणं उवागया जुगवं । मासे अणूणर्ग ते वोसट्टनिसट्टसबंगा॥५॥सीयायवझडियंगा लम्गुखियमसहारुणि विणट्टा। दोवि अणुत्तरवासी महेसिणो रिदिसंपण्णा ॥६॥ अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं । अज्जवि अद्विनिवेसं पंकिव सनामगा हत्यी ॥७॥जह ते समंसचम्मे दुबलाविलम्गेवि णो सयं चलिया। तह अहियासेयवं गमणे थेबंपिमं दुक्ख ॥ ८॥ अयलग्गाम कुटुंबिय सुरइपसयदेवसुमणयमुभदा। सब उ गया खमगं गिरिगृहनिलयं नियच्छीय ॥९॥ ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुवागं। उबलन्दपुष्णपावा फासुयसुम(मुस)हं करेसीह ॥४५०॥सुगहियसावयधम्मा जिणमहिमाणेसु जणियसोहगा । जसहरमुणिणो पासे निक्खंता तिवसंवेगा॥१॥मुगिहियजिणवयणामयपरिपुट्टा सीलसुरहिगंधड्ढा। विहरिय गुरुस्सगासे जिणवस्वासुपुजतित्थंसि ॥२॥ कणगावलिमुत्तावलिरयणावलिसीहकीलियकलंता। काही य ससंवेगा आयंबिलवइडमाणं च ॥३॥ ओस. रिया य मणोहरसिहरंतरसंचरंतपुक्खस्यं । आइकरचलणपंकयसिरसेचियमालहिमवतं ॥४॥ रमणिज्जहरतरूवरपरहुअसिहिभमरमहुयरिविलोले। अमरगिरिविसयमणहरजिणवयणसुकागणुहेसे ॥५॥ तमि सिलायल पुहवी पंचवि देहविईसु मुणियत्था । कालगया उववण्णा पंचवि अपराजियविमाणे ॥६॥ताओ चइऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा। पंहुनराहिवतणया जाया जयलच्छिभत्तारा ॥७॥ ते कण्हमरणदूसहदुक्खसमुप्पन्नतिवसंवेगा । सुट्टियथेरसगासे निक्खंता खायकित्तीया ॥८॥ जिट्ठो चउदसपुची चउरो इकारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासे जसपडहमरंतजियलोया ॥९॥ ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुरई कमेण संपत्ता । साउंजिणनिवार्ण भत्तपरिच करेसीय ॥४६० ॥ घोराभिग्गहधारी भीमो कुंतग्गगहियभिक्खाओ। सतुंजयसेलसिहरे पाओवगओ गयभवोघो ॥१॥ पृधविराहियवंतरउक्सग्गसहस्समारुयनगिंदो। अविकंपो आसि मुणी भाईणं इकपासम्मि ॥२॥ दो मासे संपुण्णे सम्मं विधणियबद्धकच्छाओ। ताव उवसग्गिओ सो जाव उ परिनिवुओ भगवं ॥३॥ सेसावि १९ । पाओलगया उ निघुया सवे । एवं घिइसंपन्ना अण्णेवि दुहाओं मुचंति ॥४॥ दंडोविय अणगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिबओ भगवं ॥५॥ सेलम्मि चित्तकडे सकोसलो सहि भावं उबगयाए ॥६॥ पडिमाय गओ अ मुणी लंबं सुठिओ बहूसु ठाणेसुं। तहवि य अकलसभावो सा हु खमा ससाहूणं ॥ ७॥ पंचसयापvिडया वइररिसी पञ्चए रहावत्ते। मुत्तूण | खुइड्गं किर अन्नं गिरिमस्सिओ मुजसोटातत्य यसो उबलतले एगागी धीरनिच्छयमईओ।बोसिरिऊण सरीरै उण्हम्मि ठिओ बियप्पा(विगयपा)णो॥९॥ता सो अइसुकुमालो दिणयर| किरणग्गितावियसरीरो। हविपिंडुन बिलीणो उबवण्णो देवलोयम्मि ॥४७० ॥ तस्स य सरीरपूयं कासीय रहेहि लोगपाला उ। तेण रहावत्तगिरी अजवि सो विस्सुओ लोए ॥१॥ भगवंपि वइरसामी बिदयगिरीदेवयाइ कयपूओ। संपूइओऽत्य मरणे कुंजरभरिएण सकेर्ण ॥२॥ पूइयसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेले। कासीय सुस्वरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ॥३॥ तत्तो य जोगसंगहउवहाणक्खाणयम्मि कोसंबी। रोहगमवंतिसेणो रुज्झेइ मणिप्पभो भासो(उच्भासं)॥४॥ धम्मगसुसीसजुयलं धम्मजसे तत्थ रण्णदेसम्मि। भत्तं पञ्चक्खाइय सेल. म्मि उ बच्छमातीरे ॥५॥ निम्ममनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए। कासी य उत्तमढे सो भावो सवसारणं ॥६॥ उण्हम्मि सिलाबहे जह तं अरहण्णएण सुकुमालं। विग्धारियं सरीरं अणचिंतिजा तमुच्छाहं ॥७॥ गब्बर पाओवगओ सुवृद्धिणा णिग्घिणेण चाणको। दइढो न य संचलिओ साहघिई चिंतणिज्जा उ॥८॥जह सोऽवि चत्तदेहो उ। वंसीपत्तेहिं विनिम्गएहिं आगासमुक्खित्तो॥९॥जह सा बत्तीसघडा बोसट्ठनिसट्टचत्तदेहागा । धीरावाएण उ दीवएणवि गलिम्मि ओलइया ॥४८०॥ जतेण (२३६) १४४ मरणसमाधिपकीर्णकं, आबा-२८-360 मुनि दीपरत्नसागर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क 1 करकरण व सत्येहिं व सावएहिं विविहेहिं देहे विदस्ते इंसिपि अकप्पणारु (झ)मणा ॥ १ ॥ पडिणीययाइ केसिं चम्मंसे खीलएहिं निहणित्ता । महुघयमक्खियदेहे पिवीलियाणं तु दिजाहि ॥ २ ॥ जेण विरागो जायइ तं तं समायरेण करणिजं सुबइ हु ससंवेगो इत्थ इलापुत्तविहंतो ॥ ३ ॥ समुइण्णेस य सुविहिय! घोरेसु परीसहेमु सहणेणं सो अत्यो सरणिज़ो जोऽपीओ उत्तरायणे ॥ ४ ॥ उजेणि हत्थिमित्तो सत्यसमग्गो वणम्मि कट्टेणं पायरो संवरणं चिल्लग भिक्खा वण सुरेसुं ॥ ५ ॥ तत्थेव य धणमित्तो चेलगमरणं नईइ तहाए। निच्छिण्णेऽणजंत बिंटियविस्सारणं कासी ॥ ६ ॥ मुणिचंदेण विदिष्णस्स रायगिहि परीसहो महाघोरो जस्तो हरिवंसविसणस्स बुध जिनिंदस्त ॥ ७ ॥ रायगिनिग्गया खलु पडिमा पडिवन्नगा मुणी चउरो सीयविह्वय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ॥ ८ ॥ उसिणे तगरडरहन्चग चंपा मसएसु सुमणभद्दरिसी । समसमण अजरक्खिय अचेलयत्ते अ उणी ॥ ९ ॥ अरईय जाइसूकरो (मूओ) भो अ दुलहबोहीओ कोसंबीए कहिओ इत्थीए थूलभद्दरिसी ।। ४९० ॥ कुलइरम्मि अ दत्तो चरियाई परीसहे समक्खाओ। सिडिमुयतिगिच्छणणं अंगुलदीवो य वासम्मि ॥ १ ॥ गयपुर कुरुदत्तसुओ निसीहिया अडविदेस पडिमाए। गाविकुविएण दड्ढो गयसुकुमालो जहा भगवं ॥ २ ॥ तो (दो) अणगारा चिनाइयाइ कोसंवि सो मदत्ताई। पाओवगया णदिणेसिजाए सागरे छूटा ॥ ३ ॥ महुराइ महुरखमओ अकोसपरीसहे उ सविसेसो बीओ रायगिम्मि उ अज्जुणमालारदितो ॥ ४ ॥ कुंभारकडे नगरे खंदग सीसाण जंतपीलणया । एवंविहे कहिज्जइ जह सहियं तस्स सीसेहिं ॥ ५ ॥ तह झाणनाणवु (जु) तं गीए संठि (पट्टि) यस्स समुयाणं तत्तो अलाभगंमि उ जह को निजिणे कण्हो ॥ ६ ॥ किसिपारासरढंढो बीयं तु अलाभगे उदाहरणं कण्हबलभद्दमन्नं चइऊण खमन्निओ सिद्धो ॥ ७॥ महरा जियसत्तुमुओ अणगारो कालवेसिओ रोगे। मोग्गइसेलसिहरे खइओ किल सुरसियालेणं ॥ ८ ॥ सावत्थी जियसत्तूतणओ निक्खमण पडिम तणफासे वीरिय (वेरज) पविय विकिंचण कुसलेसण कढणा सहणं ॥ ९ ॥ चंपा सुनंदगं चिय साहदुर्गुछाइ जखउरंगे। कोसंब जम्म निक्खमण वेयणं साहुपडिमाए ॥ ५०० ॥ महुराइ इंददत्तोऽसकारा पायछेयणे सदो पन्नाइ अजकाला सागरखमणो य दितो ॥ १ ॥ नाणे असगडनाओ खंभगनिधी अणहियासणे भदो दंसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ आयरिया ॥ २ ॥ चरियाए मरणम्मि उ समुष्णपरीसहो मुणी एवं भाविज निउणजिणमयउवएसईइ अप्पाणं ॥ ३ ॥ उम्मम्मासंपयायं मणहत्थि विसयसुमरियमणतं नाणंकुसेण धीरो धरेइ दित्तंपि गईदं ॥ ४ ॥ एए उ महामूरा महिड्दिए को व भाणि सत्तो ? कि वातियमुवमाए जिणगणधरथेरचरिए ॥ ५ ॥ किं चित्तं जड़ नाणी सम्मदिट्टी करंति उच्छाहं तिरिएहिवि दुरणुचरो केहिवि अणुपालिओ धम्मो ॥ ६ ॥ अरुणसिहं दद्रूणं मच्छो सण्णी महासमुद्दम्मि। हा ण गंहिउत्ति काले झस (ड) त्ति संवेगमावण्णो ॥ ७॥ अप्पाणं निरंतो उत्तरिकणं महन्नवजलाओ। सावज जोगविरओ भत्तपरिपूर्ण करेसीय ॥८॥ खगतुंडभिन्नदेहो दूसहसूरग्गितावियसरीरो । कालं काऊण सुरो उववन्नो एव सहणिजं ॥ ९ ॥ सो वानरजूहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवरबुंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥ ५१० ॥ तं सहस्रेणगयवरचरियं सोऊण दुकरं रण्णे । को हु णु तवे पमायं करेज्ज जाओ मणुस्सेसुं ? ॥ १ ॥ भुयगपुरोहियडको राया मरिऊण सहइवणम्मि सुपसत्यगंधहत्थी बहुभयगयभेलणो जाओ ॥ २ ॥ सो सीहचंदमुणिवरपडिमापडिवोहिओ सुसंवेगो पाणवहालियचोरियअब्वंभपरिग्गहनियत्तो ॥ ३ ॥ रागद्दोसनियत्तो छट्ठक्खमणस्स पारणे ताहे आससिऊणं पंडं आयवततं जलं पासी ॥ ४ ॥ खमगत्तणनिम्मंसो धमणिसिरोजालसंतयसरीरो विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएस विचितो ॥ ५ ॥ सो अन्नया विदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो चिरवेरिएण दट्ठो कुकुडसप्पेण घोरेणं ॥ ६ ॥ जिणवयणमणुगुणितो ताहे सवं चउबिहाहारं । वोसिरिऊण गहंदो भावेण जिणे नम॑सीय ॥ ७ ॥ तत्थ य वणयरसुरवरविम्यिकीरंतपूयसकारो मज्झत्थो आसी किर कलहेसु य जजरितो ॥ ८ ॥ सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमंमि कप्पम्मि सिरितिलयम्मि विमाणे उक्कोसठिई सुरो जाओ ॥ ९ ॥ सुयदिद्विवायकहियं एयं अक्खाणयं निसामित्ता। पंडियमरणम्मि मई दैढं निवसिज्ज भावेणं ॥ ५२०॥ जिणवयणमणुस्सट्टा दोवि भुयंगा महाविसा घोरा कासीय कोसिया सयतणूस भत्तं मुइंगाणं ॥ १ ॥ एगो विमाणवासी जाओ बरवजपंजरसरीरो। बीओ उ नंदणकुले मलुत्ति जक्खो महदिओ ॥ २ ॥ हिमचूलसुरुप्पत्ती भद्दगमहिसी य थूलभदो य वेरोवसमे कहणो सुरभावे दंसणे खमणो ॥ ३ ॥ बावीसमाणुपुविं तिरिक्खमणुयावि भेसणट्टाए। विसयाणुकंपरक्लण करेज देवा उ उवसग्गं ॥ ४ ॥ संघयणधिईजुत्तो नवदसपुत्री सुएण अंगा वा इंगिणि पाओवगमं पडिवजइ एरिसो साहू ॥ ५ ॥ निश्चल निष्पडिकम्मो निक्खिवए जं जहिं जहां अंगं एवं पाओवगमं सनिहारिं वा अनीहारिं ॥ ६ ॥ पाओवगमं भणियं समविसमे पायवुड जह पडिओ नवरं परप्पओगा कंपिज जहा फलतरुष्व ॥ ७॥ तसपाणबीयरहिए विच्छिण्णवियारथंडिलविसुद्धे एगंते निद्दोसे उर्विति अब्भुजयं मरणं ॥ ८ ॥ पुवभवियवेरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले। मा सो चरिमसरीरो न अणं किंचि पाविजा ॥ ९ ॥ उप्पन्ने उवसग्गे दिने माणुस्सए तिरिक्खे अ । सबै पराजिणित्ता पाओवगया पविहरति ॥ ५३० ॥ जह नाम असी कोसा अन्नो कोसो असीइ खलु ९४५ मरणसमाधिप्रकीर्णकं, आहा ४८१-५३१ मुनि दीपरत्नसागर Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्नो । इय मे अन्नो जीवो अनो देहुत्ति मन्निजा ॥ १ ॥ पुजावरदाहिण उत्तरेण वाएहिं आवडतेहि। जह नवि कंपइ मेरू तह झाणाओ नवि चलति ॥ २ ॥ पढमम्मिय संघयणे व सेलकुड्डसामाणे । तेसिंपिय बुच्छेओ चउदसपुत्रीण बुच्छेए ॥३॥ पुढविदगअगणिमारुयतरुमाइ तसेसु कोइ साहरइ। वोसद्वचत्तदेहो अहाउअं तं परि ( डि) क्खिज्जा ॥४॥ देवो नेहेण गए देवागमणं च इंदगमणं वा। जहियं इड्ढी कंता समुहा हुंति सुहभावा ॥ ५॥ उवसग्गे तिविहेविय अणुकूले चैव तह य पडिकूले। सम्मं अहियासतो कम्मक्खयकारओ होइ ॥ ६ ॥ एवं पाओवगमं इंगिणि पडिकम्म वष्णियं सुत्ते । तित्थयरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं ॥ ७ ॥ सत्रे सङ्घदाए सङ्घ सङ्घकम्मभूमीसु सजगुरू सहिया सबै मेसु अहिसिना ॥ ८ ॥ साहिवि लदीहिं सवेऽवि परीसहे पराइत्ता सवेऽचिय तित्थयरा पाओवगया उसिद्धिगया ॥ ९॥ अवसेसा अणगारा तीयपडुप्पन्नऽणागया सवे केई पाओवगया पञ्चकखाणि गिणि केई || ५४० ॥ सावि अ अज्जाओ सचेऽवि य पढमसंघयणवज्जा सङ्के व देसविरया पञ्चक्खाणेण य मरंति ॥ १ ॥ सङ्घसुहप्पभवाओ जीवियसाराओ सहजणिगाओ। आहाराओ रयणं न विजए उत्तमं लोए ॥ २ ॥ विग्गहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जे मिया जीवा सधे सावत्थं आहारे हुंति आउत्ता ॥३॥ तं तारिसगं रयणं सारं जं सबलोयरयणाणं सहं परिबत्ता पाओवगया परि(चि) हरंति ॥ ४ ॥ एवं पाओवगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नत्तं तं सोऊणं खमओ ववसायपरकमं कुणइ ॥ ५ ॥ धीरपुरिसपण्णने सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे । घण्णा सिलायलगया निरावयक्खा णिवति ॥ ६ ॥ सुवंति य अणगारा घोरासु भयाणियासु अडवीमुं। गिरिकुहरकंदरासु य विजणेस य रुक्लहेसुं ॥ ७॥ धीधणियवदकच्छा भीया जरमरणजम्मणसयाणं । सेलसिलासयणत्था साइंति उ उत्तमट्ठाई ॥ ८ ॥ दीवोदहिरण्णेसु य खयरावहियासु पुणरविय तासु कमलसिरीमहिलादिसु भन्नपरिक्षा कया श्रीसु ॥ ९ ॥ जइ ताब साल्या कुलगिरिकंदरविसमकडगदुग्गासुं। साहिति उत्तमहं धिधणियसहायगा धीरा ॥ ५५० ॥ किं पुण अणगारसहायगेण अण्णुझसंगह बलेणं। परलोए य न सक्का साहेउं अप्पणी अहं ? ॥ १ ॥ समुइन्नेसु य सुविहिय! उवसग्गमहन्मएस विविहेसु हियएण चिंतणिज्जं रयणनिही एस उवसग्गो ॥ २ ॥ किं जायं जइ मरणं अहं च एगाणिओ इहं पाणी। वसिओऽहं तिरियते बहुसो एगागिओ रणे ॥ ३ ॥ वसिऊणऽवि जणमज्झे बच्चइ एगागिओ इमो जीवो। मुत्तूण सरीरघरं मच्चुमुहा कडिओ संतो ॥ ४ ॥ जह बीहंति य जीवा विविहाण वि हासियाण एगागी। तह संसारगएहिं जीवेहिवि हंसिया असे ॥ ५ ॥ सावयभयाभिभूआ बहुसु अडवी निरभिरामासु। सुरहिहरिणमहिसस्यरकरवोडियमक्खछायासु ॥ ६ ॥ गयगवयखग्गगंडयत्रग्घतरच्छच्छ भचरियासु । भकिकंकदीवियसंचरसन्भावकिण्णासुं ॥ ७॥ मत्तगदनिवाडियभिलपुलिंदाविकुंडियवणासुं । वसिओऽहं निरियते भीसणसंसारचारम्मि ॥ ८ ॥ कत्थ य मुद्धमिगत्ते बहुसो अटवीस पयइविसमासु बग्धमुहावडिएणं रसियं अइभीयहियएणं ॥ ९ ॥ कत्थइ अइदुक्खिो भीसणविगरालघोरवयणोऽहं । आसि महंबिय वरघो रुरुमहिसवराहविद्दवओ ॥ ५६० ॥ कत्थइ दुधिहिएहिं रक्खसवेयालभूयरूवेहिं छलिओ बहिओ य अहं मणुस्सजम्मम्मि निस्सारो ॥ १ ॥ पयइकुडिलम्मि कन्थड संसारे पाविऊण भूयतं । बहुसो उब्वियमाणो मएवि बीहाविया सत्ता ॥ २ ॥ विरसं आरसमाणो कत्थई रण्णेसु घाइओ अह्यं । सावयग्रहणम्मि वणे भयभीरू खुभियचित्तोऽहं ॥ ३ ॥ पत्तं विचित्तविरसं दुक्खं संसारसागरगएणं । रसियं च असरणेणं कथंतदंतंतरगएणं ॥ ४ ॥ तइया कीस न हायड़ जीवो जइया सुसाणपरिविद्धं भकिकंकवायससएम ढोकिलए देहं ॥ ५ ॥ ता तं निजिणिऊणं देहं मुत्तूण बचाए जीवो। सो जीवो अविणासी भणिओ तेलुकदंसीहिं ॥ ६ ॥ तं जइ ताव न मुञ्चइ जीवो मरणस्स उनियंतोऽवि । तम्हा मज्झ न जुज्जइ दाऊण भयम्स अप्पार्ण ॥ ७ ॥ एवमणुचिंतयंता सुविहिय! जरमरणभावियमईया पार्वति कयपयत्ता मरणसमाहिं महाभागा ॥ ८ ॥ एवं भावियचित्तो संधारवरंमि सुविहिय! सयावि भावेहि भावणाओ वारस जिणवयणदिट्ठाओ ॥ ९ ॥ इह इत्तो चउरंगे चउत्थमगं (मंगं) सुसाधम्मम्मि बने भावणाओ बार सिमो बारसंगधिऊ ॥ ५७० ॥ समणेण सावएण य जाओ निचंपि भावणिजाओ। दढसंवेगकरीओ विसेसओ उत्तमम्मि ॥ १ ॥ पढमं अणिचभावं असरणगं एगयं च अन्नन्तं संसारमसुभयाविय विविहं लोगस्सहावं च ॥ २ ॥ कम्मम्स आसवं संवरं च निजरणमुत्तमे य गुणे । जिणसासणस्मि मोहिं च दुइहं चितए मइमं ॥ ३ ॥ सबाणाई असासयाई इह चैव देवलोगे य सुरअसुरनराईणं रिदिविसेसा सुहाई वा ॥४॥ मायापिडंहिं सहवडिएहिं मित्नेहिं पुत्तदारेहिं एगयओ सहवासो पीई पणओऽविय अणिचो ॥ ५॥ भवणेहिं व वणेहि य सयणास जाणवाहणाईहिं। संजोगोऽवि अणिच्चो तह परोगेहि सह तेहि ॥ ६ ॥ बलवीरियरूवजोवणसामग्गीसुभगया वपुसोभा देहस्स य आरुम्गं असासयं जीवियं चैव ॥ ७॥ जम्मजरामरण भए अ (ह) भिद्दुए विविवाहितत्ते लोगम्मि नन्थि सरणं जिणिदवरसासणं मुत्तुं ॥ ८ ॥ आसेहि य हत्थीहि य पवयमित्तेहिं निश्चमित्तेहिं सावरणपहरणेहि य बलवयमतेहिं जोहेहिं ॥९॥ महया भडचडगरपहकरेण अवि चकवट्टिणा मच्चू न य जियपु के नीलेावि लोगं ॥ ५८० ॥ विविहेहि मंगलेहि य विज्जामंतोसहीपओगेहिं । नवि सका तारे (ए) उं मरणा गवि रुण्णसोएहिं ॥ १ ॥ पुत्ता मित्ता य पिया सयणो बंधवजणो य ९४६ मरणसमाधिप्रकीर्णक, आला-५३१- पर 1 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्था य। न समत्था ताएउ मरणा सिंदावि देवगणा ॥२॥ सयणस्स य मज्झगओ रोगाभिहओ किलिस्सइ इहेगो। सयणोऽविय से रोग न विरिंच नेव नासेइ ॥३॥ मज्मम्मि बंध. वाणं इको. मरद कलुण रुयंताणं । न य णं अनेति तओ बंधुजणो नेच दाराई ॥४॥ इको करेइ कम्मै फलमवि तस्सेकओ समणुहवइ । इको जायइ मरद य परलोयं इकओ जाई ॥५॥ पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफलमणहवंतार्ण। को कस्स जए सयणो? को कस्स ब परजणो मणिओ?॥६॥ को केण समं जाय? को केण समं च परमर्व जाई?। को वा करइ किचा? कस्स व को के नियत्तेइ ? ॥७॥ अणुसोअइ अण्णजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो। नवि सोयइ अप्पाणं किलिस्समार्ण भवसमुद्दे ॥८॥ अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवावि मे अन्ने। एवं नाऊण खम कुसलस्स न तं खमं काउं? ॥९॥ हा ! जह मोहियमइणा सग्गइमग अजाणमाणेणं। भीमे भवकतारे सुचिर भमियं भयकरम्मि ॥५९० ॥ जोणिसयसहस्सेसु य असई जायं मयं चऽणेगासु। संजोगविप्पओगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि ॥१॥ समोसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं। जायं मयं च बहुसो संसारे संसरतेणं ॥२॥ निभस्थणाबमाणणवबंधणरुंधणा धणविणासो। णेगा य रोगसोगा पत्ता जाईसहस्सेसुं ॥३॥ सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि। जम्मणमरणाबाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता ॥४॥ सवाणि सबलोए रूबी दवाणि पत्तपुवाणि । देहोवक्खरपरिभोगयाइ दुक्खेसु य बहुमुं ॥५॥ संबंधिबंधवत्ते सके जीवा अणेगसो मझं। विविह्ववेरजणया दासा सामी य में आसी ॥६॥ लोगसहावो धी धी जत्थ व माया मया हवइ धूया। पुत्तोऽविय होइ पिया पियावि पुत्तत्तणमुवेद ॥ ७॥ जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया छाया भवंतरगयस्स। तुट्ठा खायइ मंसं इत्तो कि कट्ठयरमन्नं १ ॥८॥धी संसारो जहियं जुवाणओ परमरूवगवियओ। मरिऊण जायइ किमी तत्येव कलेवरे नियए॥९॥ बहुसो अणुभूयाई अईयकालम्मि सबदुक्खाई। पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जणो धम्म ॥६००॥ धम्मेण विणा जिणदेसिएण नन्नत्य अस्थि किंचि सुई। ठाणं चा कर्ज वा सदेवमणुयासुरे लोए॥१॥ अत्थं धम्म कामं जाणिय कजाणि तिन्नि मिच्छत्ति(न्ति)। तत्थ धम्मकजं तं सुभमियराणि असुभाणि ॥२॥ आयासकिलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो या बहुदुक्खदुग्गइकरो अत्यो मूलं अणत्थाणं ॥३॥ किच्छाहिं पाविउं जे पत्ता बहुभयकिलेसदोसकरा। तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविक्दणा कामा॥४॥नस्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निस्वदुयं नाम। ससुरासुरेसु मणुए नरएम तिरिक्खजोणीसुं ॥५॥ बहुतुक्सपीलियाणं मइमूढाणं अणप्पक्सगाणं । तिरियाणं नत्यि सुह नेरइयाणं कओ चेव? ॥६॥ह्यगम्भवासजम्मणवाहिजरामरणरोगसोगेहिं। अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिं न सुहमस्थि ॥ ७॥ मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिड्डे । असुई परिस्सवंते सुई सरीरम्मि किं अस्थि ॥८॥ इट्ठजणविप्पओगो चवणभयं चेव देवलोगाओ। एयारिसाणि सम्गे देवावि दुहाणि पाविति ॥९॥ ईसाविसायमयकोहलोहदोसेहिं एक्माईहिं। देवावि समभिभूया तेसुवि य कओ सुहं अत्यि ? ॥६१०॥ एरिसयदोसपुण्णे खुत्तो संसारसायरे जीवो। जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेउयं सच्वं ॥१॥ रागदोसपमत्तो इंदियवसओ करेइ कम्माई। आसवदारेहिं अविगुणेहिं तिविहेण करणेणं ॥२॥ धीधी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावमायरइ। न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स ॥३॥ रागस्स य दोसस्स य धिरत्यु जं नाम सइहंतोऽवि। पावेसु कुणइ भावं आउरविजन | अहिएम् ॥४॥ लोभेण अहव पत्थो कवं न गणेइ आयअहियाई। अइलोहेण विणस्तइ मच्छुव जहा गलं गिलिओ ॥५॥ अत्यं धम्म कामं तिण्णिवि बुद्धो जणो परिचयइ। ताई करेइ जेहि उ (न) किलिस्सह इह परभवे य॥६॥ ९ति अजुतस्स विणासमाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स। उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहिं विणा ॥७॥ आसवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासबइ। जह नावाइ विणासो छिदेहिं जलं उयहिमज्झे ॥८॥ कस्मासवदाराइं निरंभियवाइं इंदियाई च। हतशा य कसाया तिविहंतिविहेण मुक्खत्वं ॥९॥ निमगहियकसाएहि आसवा मूलओ हया हुंति । अहियाहारे मुके रोगा इव आउरजण ॥६२०॥ नाणेण य झाणेण य तबोबलेण य बला निरंभंति। इंदियविसयकसाया घरिया तुरगा व रहि ॥१॥ ९ति गुणकारगाइं सुयरतहिं धणियं नियमियाई। नियगाणि इंदियाई जइणो तुरगा इव सुदंता ॥२॥ मणपयणकायजोगा जे भणिया करणसणिया तिषिण । ते जुत्तस्स गुणकरा हुँति अजुत्तस्स दोसकरा ॥३॥ जो सम्मं भूयाई पासइ भूए अ अप्पभूए य। कम्ममलेण न लिप्पड़ सो संवरियासबदुवारो ॥४॥ धण्णा सत्तहियाई मुणंति धण्णा करंति सुणियाई। घण्णा समगइमम्गं मरंति धण्णा गया सिदि ॥५॥ घण्णा कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्को सुसत्तसंजुत्ता। वारीओव गयवरा घरवारीओवि निफिडिया ॥६॥धण्णा (उ) करंति तवं संजम जोगेहि कम्ममढविहं । तवसलिलेणं मुणिणो धुणंति पोराणयं कम्मं ॥७॥ नाणमयवायसहिओ सीलनलिओ तवो मओ अम्गी। संसारकरणवीयं दहा दवग्गीव तणरासिं ॥८॥ इणमो सुगइगइपहो सुदेसिओ उक्खिओ य जिणवरेहिं । ते धन्ना जे एवं पहमणवजं पवजति ॥९॥ जाहे य पावियर्थ इह परलोए य होइ कालाणं । ता एवं जिणकहियं पडिवजइ भावओ धम्म ॥६३०॥ जह जह दोसोवरमो जहजह विसएसु होइ वेरगं । वह वह विजाणयाहि आसन से पयं परमं ॥१॥ दुग्गो भवकतारे भममाणेहिं सुचिरं पणद्वेहिं। दिह्रो जिणो९४७मरणसमाधिप्रकीर्णकं OET-५२-६३२ मुनि दीपरत्नसागर Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | यदिट्टो सम्गाइमम्गो कहवि लदो // 2 // माणुस्सदेसकुलकालजाइइंदियवलोक्याणं च। विनाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूर्ण // 3 // पत्तेसुवि एएसु मोहस्सुदएण दुलहो सुपहो। कुपहबहुयत्तणेण य विसयमहार्ण च लोमेण // 4 // सो य पहो उवलदो जस्स जए बाहिरो जणो बहुओ। संपत्तिश्चियन चिरं तम्हा न खमो पमाओ भे॥५॥ जह जह बढप्पाण्णो समणो बेरम्गभावणं कुणइ। तह तह असुमं आयवयं व सीय खयमुवेइ // 6 // एगअहोरत्तेणवि दढपरिणामो अणुत्तरं जंति। कंडरिओ पुंडरिओ अहरगईउड्ढगमणेसु ॥७॥बारसवि भावगाओ एवं संखेवओ समत्ताओ।भावमाणो जीवो जाओ समुवेइ वेरगं॥८॥भाविज मावणाओ पालिज वयाई रयणसरिया(सा)ई। पडिपुण्णपावखवणे अइरा सिदिपि पाचिहिसि // 9 // कत्थइ मुहं सुरसमं कत्था निरओवर्म हवइ दुक्खं / कत्था तिरियसरित्थं माणुसजाई बहुविचित्ता॥६४०॥ वठूणवि अप्पसुहं माणुस्स गदोस(सोग)संजुत्तं / सुठुवि हियमुवइट्ठ कर्ज न मुणे मूढजणो // 1 // जह नाम पट्टणगआ संते मुलुमि मूढभावेण / न लहंति नरा लाई माणुसमावं तहा पत्ता // 2 // संपत्ते बलविरिए सम्भावपरिक्खणं अजाणता। न लहंति नरा बोहिं बुग्गहमगं च पावंति // 3 // अम्मापियरो भाया भज्जा पुत्ता सरीर अत्यो य। भवसागरंमि घोरे न ९ति ताणं च सरणं च // 4 // नवि माया नविय पिया न पुत्तदारा न चेव बंधुजणो। नविय धणं नवि धनं दुक्खमुह उवसमेति // 5 // जइया सयणिज्जगओ दुम्वत्तो सयणबंधुपरिहीणो। उत्तइ परियत्तइ उरगो जह अम्गिमजसंमि // 6 // अगुइ सरीरं रोगा जम्मणसयसाहणं हा तण्हा / उहं सीयं वाओ पहाभिघाया याणेगविहा // 7 // सोगजरामरणाई परिस्समो दीणया य दारिदं / तहय पियविप्पओगा अप्पियजणसंपओगा य // 8 // एयाणि य अण्णाणि अ माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि / पचक्खं पेक्वंतो को न मरइ तं विचिंततो?॥९॥ लणवि माणुस्सं सुदुलहं केइ कम्मदोसेणं / सायासुहमणुरत्ता मरणसमहेऽवगाडिति // 650 // तेण उहलोगसुहं मोत्तृणं मा(माणसंसियमईओ।विरतिक्खमरणऽभीरू लोगसुईकरणदोगुंछी॥१॥ दारिहरखवेयणवह विहसीउण्हखप्पिवासाण। अरईभयसोगसामियतकरम्भिक्खमरणाई // 2 // एएसि तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहति तं लोए। जं पुण अचंतसुहं तस्स परुक्खा सया लोया // 3 // जस्स न छुहा ण तण्हा न य सीउण्हं न दुक्खमुकिट्ठ। न य असुइयं सरीरं तस्सऽसणाईसु किं कर्ज ? // 4 // जह निवदुमुप्पन्नो कीडो कडुयंपि मन्नए महुरं। तह मुक्खसुहपरुक्खा संसारदुहं सुहं चिंति // 5 // जे कडुयदुमुप्पन्ना कीडा वरकप्पपायवपक्खा / तेसिं विसालवल्ली विसं व सम्गो य मुक्खो य // 6 // तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुरविमूढदिट्ठीया। जिणसासणकप्पतरुवरपारुक्खरसा किलिस्संति // 7 // तम्हा सुक्खमहातरुसासयसिवफलयसुक्खसत्तेणं / मोत्तूण लोगसणं पंडियमरणेण मरियचं // 8 // जिणमयभाविअचित्तो लोगसुईमलविरेयणं काउं। धम्ममि तओ झाणे सुके य मई निवेसेह // 9 // सुणह-जह जिणवयणामय(रस) भावियहियएण झाणवावारो। करणिज्जो समणेणं जं झाणं जेसु झायचं // 660 // इति संले(आरा)हणासुयं // एवं मरणविभत्ति मरणविसोहिं च नाम गुणरयणं / मरणसमाहीतइयं सलेहणसुयं चउत्थं च // 1 // पंचम भत्तपरिण्णा छ8 आउरपश्चखाणं चासत्तम महपञ्चखाणं अट्ठम आराहणपइष्णो॥२॥ इमाउ अट्ठसुयाओ भावे गहियंमि लेस अत्थाओ।मरणविभत्तीरइयं विय नाम मरणसमाहिं च // 663 // सू०२०,१८९८ गाथाः // सिरिमरणविभत्तिपइण्णय १०॥श्रीप्रकीर्णकदशकं श्रीका सिदाद्रितलहडिकागतशिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममंदिरे शिलायामुत्कीर्ण शोधितं च तपोगच्छीयाचार्यानन्दसागरेणावीरस्य२४६८गतेप्वब्देषु भाद्रशुकचतुर्दश्याम् // SICमरण समिकर्षक, RET-532-43 मुनि दीपरत्नसागर