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________________ यगंधेण जस्स कीडीओ। खायंति उत्तमंगं तं दुकरकारय वंदे ॥८॥ देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणिव कओ। तणुओवि मणपओसो न य जाओ तस्स ताणुवरि ॥९॥ धीरो चिलाइपुत्तो मुइंगलियाहिं चालिणिव कओ। न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकास्यं वंदे ॥४३०॥ गयसुकुमालमहेसी जह दो पिइवणंसि ससुरेणं । न य० ॥१॥जह तेण सो हुयासो सम्म अइरेगद्सहो सहिओ। तह सहियो सुविहिय ! उपसम्गो देहदुक्खं च ॥२॥ कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुइंहि नभसेणं । आगंतूण सुरत्ता संपइ संपाइणो वारे ॥३॥ जा तस्स समा तइया जो भावो जा य दुकरा पडिमा । तं अणगार ! गुणागर तुमंपि हियएण चिंतेहि ॥४॥ सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो। संभरियदेवलोओ उजेणि सबंदिशआहारो। बाहिं सकुडंगे पायवगमणं निवण्णो उ॥६॥ वोसटुनिसटुंगो ताहि सो मुड़कियाइ खाओ उ। मंदरगिरिनिकपं तं दुक्करकारयं वंदे ॥७॥ मरणंमि जस्स मुकं सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं । अज्जवि गंधवई सा तं च कुडंगी सरट्ठाणं ॥८॥ जह नेण तत्थ मुणिणा सम्म सुमणेण इंगिणी तिषणा। तह तूरह उत्तम? तं च मणे सचिवेसेह ॥९॥ जो निच्छएण गिण्हइ देहचाएवि न अट्ठियं (दिई) कुणइ । सो साहेइ सकजं जह चंदवडिंसओ राया ॥४४०॥ दीवाभिग्गहधारी नूसहवणविणयनिचलनगिंदो। जह सो तिण्णपण्णो तह तूरह तुम पढ़मंमि ॥१॥ जह दमदंतमहेसी पंडयकोरब मुणी थुयगरहिओ। आसि समो दुण्डंपिहु एवं समा होइ सम्वत्थ ॥२॥ जह खंदगसीसेहिं सुक्कमहाझाणसंसियमणेहि। न कओ मणप्पओसो पीलिज्जतेसु जंतमि ॥३॥ तह धन्नसालिभद्दा अणगारा दोवि तधमहिड्ढीया। वेभारगिरिसमीचे नालंदाए समी ४॥ जुअलसिलासंथारे पायवगमणं उवागया जुगवं । मासे अणूणर्ग ते वोसट्टनिसट्टसबंगा॥५॥सीयायवझडियंगा लम्गुखियमसहारुणि विणट्टा। दोवि अणुत्तरवासी महेसिणो रिदिसंपण्णा ॥६॥ अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं । अज्जवि अद्विनिवेसं पंकिव सनामगा हत्यी ॥७॥जह ते समंसचम्मे दुबलाविलम्गेवि णो सयं चलिया। तह अहियासेयवं गमणे थेबंपिमं दुक्ख ॥ ८॥ अयलग्गाम कुटुंबिय सुरइपसयदेवसुमणयमुभदा। सब उ गया खमगं गिरिगृहनिलयं नियच्छीय ॥९॥ ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुवागं। उबलन्दपुष्णपावा फासुयसुम(मुस)हं करेसीह ॥४५०॥सुगहियसावयधम्मा जिणमहिमाणेसु जणियसोहगा । जसहरमुणिणो पासे निक्खंता तिवसंवेगा॥१॥मुगिहियजिणवयणामयपरिपुट्टा सीलसुरहिगंधड्ढा। विहरिय गुरुस्सगासे जिणवस्वासुपुजतित्थंसि ॥२॥ कणगावलिमुत्तावलिरयणावलिसीहकीलियकलंता। काही य ससंवेगा आयंबिलवइडमाणं च ॥३॥ ओस. रिया य मणोहरसिहरंतरसंचरंतपुक्खस्यं । आइकरचलणपंकयसिरसेचियमालहिमवतं ॥४॥ रमणिज्जहरतरूवरपरहुअसिहिभमरमहुयरिविलोले। अमरगिरिविसयमणहरजिणवयणसुकागणुहेसे ॥५॥ तमि सिलायल पुहवी पंचवि देहविईसु मुणियत्था । कालगया उववण्णा पंचवि अपराजियविमाणे ॥६॥ताओ चइऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा। पंहुनराहिवतणया जाया जयलच्छिभत्तारा ॥७॥ ते कण्हमरणदूसहदुक्खसमुप्पन्नतिवसंवेगा । सुट्टियथेरसगासे निक्खंता खायकित्तीया ॥८॥ जिट्ठो चउदसपुची चउरो इकारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासे जसपडहमरंतजियलोया ॥९॥ ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुरई कमेण संपत्ता । साउंजिणनिवार्ण भत्तपरिच करेसीय ॥४६० ॥ घोराभिग्गहधारी भीमो कुंतग्गगहियभिक्खाओ। सतुंजयसेलसिहरे पाओवगओ गयभवोघो ॥१॥ पृधविराहियवंतरउक्सग्गसहस्समारुयनगिंदो। अविकंपो आसि मुणी भाईणं इकपासम्मि ॥२॥ दो मासे संपुण्णे सम्मं विधणियबद्धकच्छाओ। ताव उवसग्गिओ सो जाव उ परिनिवुओ भगवं ॥३॥ सेसावि १९ । पाओलगया उ निघुया सवे । एवं घिइसंपन्ना अण्णेवि दुहाओं मुचंति ॥४॥ दंडोविय अणगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिबओ भगवं ॥५॥ सेलम्मि चित्तकडे सकोसलो सहि भावं उबगयाए ॥६॥ पडिमाय गओ अ मुणी लंबं सुठिओ बहूसु ठाणेसुं। तहवि य अकलसभावो सा हु खमा ससाहूणं ॥ ७॥ पंचसयापvिडया वइररिसी पञ्चए रहावत्ते। मुत्तूण | खुइड्गं किर अन्नं गिरिमस्सिओ मुजसोटातत्य यसो उबलतले एगागी धीरनिच्छयमईओ।बोसिरिऊण सरीरै उण्हम्मि ठिओ बियप्पा(विगयपा)णो॥९॥ता सो अइसुकुमालो दिणयर| किरणग्गितावियसरीरो। हविपिंडुन बिलीणो उबवण्णो देवलोयम्मि ॥४७० ॥ तस्स य सरीरपूयं कासीय रहेहि लोगपाला उ। तेण रहावत्तगिरी अजवि सो विस्सुओ लोए ॥१॥ भगवंपि वइरसामी बिदयगिरीदेवयाइ कयपूओ। संपूइओऽत्य मरणे कुंजरभरिएण सकेर्ण ॥२॥ पूइयसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेले। कासीय सुस्वरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ॥३॥ तत्तो य जोगसंगहउवहाणक्खाणयम्मि कोसंबी। रोहगमवंतिसेणो रुज्झेइ मणिप्पभो भासो(उच्भासं)॥४॥ धम्मगसुसीसजुयलं धम्मजसे तत्थ रण्णदेसम्मि। भत्तं पञ्चक्खाइय सेल. म्मि उ बच्छमातीरे ॥५॥ निम्ममनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए। कासी य उत्तमढे सो भावो सवसारणं ॥६॥ उण्हम्मि सिलाबहे जह तं अरहण्णएण सुकुमालं। विग्धारियं सरीरं अणचिंतिजा तमुच्छाहं ॥७॥ गब्बर पाओवगओ सुवृद्धिणा णिग्घिणेण चाणको। दइढो न य संचलिओ साहघिई चिंतणिज्जा उ॥८॥जह सोऽवि चत्तदेहो उ। वंसीपत्तेहिं विनिम्गएहिं आगासमुक्खित्तो॥९॥जह सा बत्तीसघडा बोसट्ठनिसट्टचत्तदेहागा । धीरावाएण उ दीवएणवि गलिम्मि ओलइया ॥४८०॥ जतेण (२३६) १४४ मरणसमाधिपकीर्णकं, आबा-२८-360 मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003933
Book TitleAagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages16
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_maransamadhi
File Size11 MB
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