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करकरण व सत्येहिं व सावएहिं विविहेहिं देहे विदस्ते इंसिपि अकप्पणारु (झ)मणा ॥ १ ॥ पडिणीययाइ केसिं चम्मंसे खीलएहिं निहणित्ता । महुघयमक्खियदेहे पिवीलियाणं तु दिजाहि ॥ २ ॥ जेण विरागो जायइ तं तं समायरेण करणिजं सुबइ हु ससंवेगो इत्थ इलापुत्तविहंतो ॥ ३ ॥ समुइण्णेस य सुविहिय! घोरेसु परीसहेमु सहणेणं सो अत्यो सरणिज़ो जोऽपीओ उत्तरायणे ॥ ४ ॥ उजेणि हत्थिमित्तो सत्यसमग्गो वणम्मि कट्टेणं पायरो संवरणं चिल्लग भिक्खा वण सुरेसुं ॥ ५ ॥ तत्थेव य धणमित्तो चेलगमरणं नईइ तहाए। निच्छिण्णेऽणजंत बिंटियविस्सारणं कासी ॥ ६ ॥ मुणिचंदेण विदिष्णस्स रायगिहि परीसहो महाघोरो जस्तो हरिवंसविसणस्स बुध जिनिंदस्त ॥ ७ ॥ रायगिनिग्गया खलु पडिमा पडिवन्नगा मुणी चउरो सीयविह्वय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ॥ ८ ॥ उसिणे तगरडरहन्चग चंपा मसएसु सुमणभद्दरिसी । समसमण अजरक्खिय अचेलयत्ते अ उणी ॥ ९ ॥ अरईय जाइसूकरो (मूओ) भो अ दुलहबोहीओ कोसंबीए कहिओ इत्थीए थूलभद्दरिसी ।। ४९० ॥ कुलइरम्मि अ दत्तो चरियाई परीसहे समक्खाओ। सिडिमुयतिगिच्छणणं अंगुलदीवो य वासम्मि ॥ १ ॥ गयपुर कुरुदत्तसुओ निसीहिया अडविदेस पडिमाए। गाविकुविएण दड्ढो गयसुकुमालो जहा भगवं ॥ २ ॥ तो (दो) अणगारा चिनाइयाइ कोसंवि सो मदत्ताई। पाओवगया णदिणेसिजाए सागरे छूटा ॥ ३ ॥ महुराइ महुरखमओ अकोसपरीसहे उ सविसेसो बीओ रायगिम्मि उ अज्जुणमालारदितो ॥ ४ ॥ कुंभारकडे नगरे खंदग सीसाण जंतपीलणया । एवंविहे कहिज्जइ जह सहियं तस्स सीसेहिं ॥ ५ ॥ तह झाणनाणवु (जु) तं गीए संठि (पट्टि) यस्स समुयाणं तत्तो अलाभगंमि उ जह को निजिणे कण्हो ॥ ६ ॥ किसिपारासरढंढो बीयं तु अलाभगे उदाहरणं कण्हबलभद्दमन्नं चइऊण खमन्निओ सिद्धो ॥ ७॥ महरा जियसत्तुमुओ अणगारो कालवेसिओ रोगे। मोग्गइसेलसिहरे खइओ किल सुरसियालेणं ॥ ८ ॥ सावत्थी जियसत्तूतणओ निक्खमण पडिम तणफासे वीरिय (वेरज) पविय विकिंचण कुसलेसण कढणा सहणं ॥ ९ ॥ चंपा सुनंदगं चिय साहदुर्गुछाइ जखउरंगे। कोसंब जम्म निक्खमण वेयणं साहुपडिमाए ॥ ५०० ॥ महुराइ इंददत्तोऽसकारा पायछेयणे सदो पन्नाइ अजकाला सागरखमणो य दितो ॥ १ ॥ नाणे असगडनाओ खंभगनिधी अणहियासणे भदो दंसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ आयरिया ॥ २ ॥ चरियाए मरणम्मि उ समुष्णपरीसहो मुणी एवं भाविज निउणजिणमयउवएसईइ अप्पाणं ॥ ३ ॥ उम्मम्मासंपयायं मणहत्थि विसयसुमरियमणतं नाणंकुसेण धीरो धरेइ दित्तंपि गईदं ॥ ४ ॥ एए उ महामूरा महिड्दिए को व भाणि सत्तो ? कि वातियमुवमाए जिणगणधरथेरचरिए ॥ ५ ॥ किं चित्तं जड़ नाणी सम्मदिट्टी करंति उच्छाहं तिरिएहिवि दुरणुचरो केहिवि अणुपालिओ धम्मो ॥ ६ ॥ अरुणसिहं दद्रूणं मच्छो सण्णी महासमुद्दम्मि। हा ण गंहिउत्ति काले झस (ड) त्ति संवेगमावण्णो ॥ ७॥ अप्पाणं निरंतो उत्तरिकणं महन्नवजलाओ। सावज जोगविरओ भत्तपरिपूर्ण करेसीय ॥८॥ खगतुंडभिन्नदेहो दूसहसूरग्गितावियसरीरो । कालं काऊण सुरो उववन्नो एव सहणिजं ॥ ९ ॥ सो वानरजूहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवरबुंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥ ५१० ॥ तं सहस्रेणगयवरचरियं सोऊण दुकरं रण्णे । को हु णु तवे पमायं करेज्ज जाओ मणुस्सेसुं ? ॥ १ ॥ भुयगपुरोहियडको राया मरिऊण सहइवणम्मि सुपसत्यगंधहत्थी बहुभयगयभेलणो जाओ ॥ २ ॥ सो सीहचंदमुणिवरपडिमापडिवोहिओ सुसंवेगो पाणवहालियचोरियअब्वंभपरिग्गहनियत्तो ॥ ३ ॥ रागद्दोसनियत्तो छट्ठक्खमणस्स पारणे ताहे आससिऊणं पंडं आयवततं जलं पासी ॥ ४ ॥ खमगत्तणनिम्मंसो धमणिसिरोजालसंतयसरीरो विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएस विचितो ॥ ५ ॥ सो अन्नया विदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो चिरवेरिएण दट्ठो कुकुडसप्पेण घोरेणं ॥ ६ ॥ जिणवयणमणुगुणितो ताहे सवं चउबिहाहारं । वोसिरिऊण गहंदो भावेण जिणे नम॑सीय ॥ ७ ॥ तत्थ य वणयरसुरवरविम्यिकीरंतपूयसकारो मज्झत्थो आसी किर कलहेसु य जजरितो ॥ ८ ॥ सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमंमि कप्पम्मि सिरितिलयम्मि विमाणे उक्कोसठिई सुरो जाओ ॥ ९ ॥ सुयदिद्विवायकहियं एयं अक्खाणयं निसामित्ता। पंडियमरणम्मि मई दैढं निवसिज्ज भावेणं ॥ ५२०॥ जिणवयणमणुस्सट्टा दोवि भुयंगा महाविसा घोरा कासीय कोसिया सयतणूस भत्तं मुइंगाणं ॥ १ ॥ एगो विमाणवासी जाओ बरवजपंजरसरीरो। बीओ उ नंदणकुले मलुत्ति जक्खो महदिओ ॥ २ ॥ हिमचूलसुरुप्पत्ती भद्दगमहिसी य थूलभदो य वेरोवसमे कहणो सुरभावे दंसणे खमणो ॥ ३ ॥ बावीसमाणुपुविं तिरिक्खमणुयावि भेसणट्टाए। विसयाणुकंपरक्लण करेज देवा उ उवसग्गं ॥ ४ ॥ संघयणधिईजुत्तो नवदसपुत्री सुएण अंगा वा इंगिणि पाओवगमं पडिवजइ एरिसो साहू ॥ ५ ॥ निश्चल निष्पडिकम्मो निक्खिवए जं जहिं जहां अंगं एवं पाओवगमं सनिहारिं वा अनीहारिं ॥ ६ ॥ पाओवगमं भणियं समविसमे पायवुड जह पडिओ नवरं परप्पओगा कंपिज जहा फलतरुष्व ॥ ७॥ तसपाणबीयरहिए विच्छिण्णवियारथंडिलविसुद्धे एगंते निद्दोसे उर्विति अब्भुजयं मरणं ॥ ८ ॥ पुवभवियवेरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले। मा सो चरिमसरीरो न अणं किंचि पाविजा ॥ ९ ॥ उप्पन्ने उवसग्गे दिने माणुस्सए तिरिक्खे अ । सबै पराजिणित्ता पाओवगया पविहरति ॥ ५३० ॥ जह नाम असी कोसा अन्नो कोसो असीइ खलु ९४५ मरणसमाधिप्रकीर्णकं, आहा ४८१-५३१
मुनि दीपरत्नसागर