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वा चुकं ॥ १ ॥ आराहओ तहवि सो गारवपरिकुंचणामयविहृणो। जिणदेसियस्स धीरो सदगो मुत्तिमग्गस्स ॥ २ ॥ आपण अणुमाणण जंदिहं वायरं च सुदुमं च छ सहाउलां बहुजण अवत्त तस्सेची ॥ ३ ॥ आलोयणाइ दोसे दस दुग्गइवइढणा पमुत्तूणं आलोइज सुविहिओ गारवमायामयविहूणो ॥ ४ ॥ तो परियागं च बलं आगम कालं च कालकरणं च । पुरिसं जी व तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ॥ ५ ॥ जोगं पायच्छित्तं तस्स अ दाऊण चिंति आयरिया दंसणनाणचरिते तवे अ कुणमप्पमायति ॥ ६ ॥ अणसणमूणोयरिया वित्ति च्छेओ रसस्स परिचाओ। कायस्स परिकिलेसो छट्टो संलीणया चेव ॥ ७ ॥ विणए वेयावचे पायच्छिते विवेग सज्झाए। अमितरं तवविहिं छट्टै झाणं वियाणाहि ॥ ८ ॥ वारसविहम्मिति अभितरवाहिरे कुसलदिट्टे नवि अस्थि नवि य होही सज्झाय समं तवोकम्मं ॥ ९ ॥ जे पयणुभत्तपाणा सुबहेऊ ते तवस्सिणो समए जो अ तवो सुबहीणो बाहिरियो सो हाहारो ॥ १३० ॥ छट्टमदसमदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही तत्तो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स ॥ १ ॥ कहां कहांपि वरं आहारो परिमिजो अ पंतो अ । नय खमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ ॥ २ ॥ एगाहेण तबस्सी हविज्ञ नत्थित्थं संसओ कोइ एगाहेण सुबहरो न होइ धंतंपि तूरमाणो ॥ ३ ॥ सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगलं न चिंते । जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायंति ॥ ४ ॥ जं अमाणी कम्मं स्ववेइ बहुआहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ ५ ॥ नाणे आउत्ताणं नाणी नाणजोगजुत्ताणं को निजरं तुलिज़ा चरणे य परकमंताणं ? ॥ ६ ॥ नाणेण वजणिजं वज्जिज्ज किजई य करणिजं नाणी जाणइ करणं कजमकजं च बजेउं ॥ ७॥ नासहियं चरितं नाणं संपायगं गुणसयाणं एस जिणाणं आणा नत्यि चरितं विणा णाणं ॥ ८॥ नाणं सुसिक्खियां नरेण लधूण दुलई बोहिं जो इच्छ नाउं जे जीवस्स विसोहणामगं ॥ ९ ॥ नाणेण सभाषा णज्जंती सहजीवलोयंमि तम्हा नाणं कुसले सिक्खियां पयतेणं ॥ १४० ॥ न हुसका नासेडं नाणं अरहंतभासियं लोए। ते धना ते पुरिसा नाणी य चरित जुत्ता य ॥ १ ॥ बंधं मुक्खं गइरागडं च जीवाण जीवलोयम्मि जाणंति सुयसमिद्धा जिणसासणचेइयविहिष्णू ॥ २ ॥ भहं सुबहुसुयाणं समपयत्येसु पुच्छणिजाणं नाणेण जोऽवयारे सिद्धिपि गए सिसु ॥ ३ ॥ किं इतो लट्टयरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा ? चंदमिव सबलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति ॥ ४ ॥ चंदाउ नीइ जुन्हा बहुस्यमुहाओ नीइ जिणवयणं जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं ॥ ५ ॥ चउदसपुत्रधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च लोगुत्तमपुरिसाणं तेसिं नाणं अभिवाणं ॥ ६ ॥ नाणेण विणा करणं न होइ नापि करणहीणं तु नाणेण य करणेण य दोहिवि दुक्खक्खयं होइ ॥ ७॥ दढमूलमहाणंमिवि वरमेगोऽवि य सुयसीलसंपण्णो मा हु सुयसीलविगला काहिसि मा (प्र०ना)णं पवयणम्मि ॥८॥ तम्हा सुय म्मि जोगो कायो होइ अप्पमत्तेणं। जेणऽप्पाण परंपि य दुक्खसमुद्दाओ तारेइ ॥ ९ ॥ परमत्यम्मि सुदि अविणट्टेमु तवसंजमगुणेसु। लम्भइ गई विसुद्धा सरीरसारे विणडुम्मि ॥ १५०॥ अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहिवि गुत्तीहिं न य कुणइ रागदोसे तस्स चरितं हवइ सुद्धं ॥ १ ॥ उक्कोसचरित्तोऽविय परिवडई मिच्छभावणं कुणइ । किं पुण सम्मद्दिद्वी सरागधम्मंमिवतो ? ॥ २ ॥ तम्हा पत्तह दोमुवि काउं जे उज्जमं पयत्तेणं सम्मत्तम्मि चरिते करणम्मि य मा पमाएह ॥ ३ ॥ जाव य सुई न नासइ जाव य जोगा न ते पराहीणा । सद्धा व जा न हायइ इंदियजोगा अपरिहीणा ॥ ४ ॥ जाव य खेमसुभिक्खं आयरिया जाव अस्थि निजवगा। इड्ढीगारवरहिया नाणचरणदंसणंमि रया ॥ ५ ॥ ताव खमं काउं जे सरीरनिक्वणं विउपसत्यं समयपडागाहरणं सुविहियइहं नियमजुत्तं ॥ ६ ॥ हंदि अणिचा सदा सुई य जोगा य इंदियाई च तम्हा एवं नाउं विहरह तवसंजमुज्जुत्ता ॥ ७ ॥ ता एवं नाऊणं ओवार्य नाणदंसणचरिते। धीरपुरिसाणुचिनं करिति सोहिं सुयसमिदा ॥ ८ ॥ अम्मितरबाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं । तिविण तिविहकरणे तिविहे काले विपडभावा ॥ ९ ॥ परिणामजोगसुद्धा उबहिविवेगं च गणविसग्गे य। अजाइयउवस्सयवज्जणं च विगईविवेगं च ॥ १६० ॥ उग्गमउप्पायणएसणाविमुद्धिं च परिहरणमुद्धिं । सन्निहिसंनिचयमिय तववेयावच करणे य ॥ १ ॥ एवं करंतु सोहिं नवसारयसलिलनलसभादा कमकाल पजबअत्तपरजोगकरणे य ॥ २ ॥ तो ते कयसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामं पुप्फाकिन्नयम्मिय तवम्मि जुत्ता महासत्ता ॥ ३ ॥ तो इंदियपरिकम्मं कर्रिति विसयसुनिग्गहसमत्वा जयणाइ अप्पमत्ता रागद्दोसे पयणुयंता ॥ ४ ॥ पुत्रमकारियजोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि न भवति परीसहसहा विसयमुपमोइया अप्पा ॥ ५ ॥ इंदियसुहसाउलओ पोरपरीसहपराइयपरज्झो अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ ६ ॥ वाति इंदियाई पुत्रं दुन्नियमियप्पयाराई अकयपरिकम्म कीवं मरणे सुअसंपउत्तंपि ॥ ७ ॥ आगममयप्पभाविय इंदियसुहलोल्यापट्टस्स। जइवि मरणे समाही हुज न सा होइ बहुयाणं ॥ ८ ॥ असमन्तमु ओऽवि मुणी पुत्रिं सुकयपरिकम्मपरिहृत्यो संजमनियमपइन्नं सहुमत्तहिओ समण्णेइ ॥ ९ ॥ न चयंति किंचि काउं पुषिं सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसह चम् चिइवलपराइया मरणे ॥ १७० ॥ तो तेऽवि पुढचरणा जयणाए जोगसंग विहीहिं तो ते करिंति दंसणचरित्तसद् भावणारं ॥ १ ॥ जो पुब्वभाविया किर होइ सुई चरणदंसणे बहुहा। ९३८ मरणसमाधिप्रकीर्णकं, आहा- १२१-२७२
मुनि दीपरत्नसागर