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________________ अत्था य। न समत्था ताएउ मरणा सिंदावि देवगणा ॥२॥ सयणस्स य मज्झगओ रोगाभिहओ किलिस्सइ इहेगो। सयणोऽविय से रोग न विरिंच नेव नासेइ ॥३॥ मज्मम्मि बंध. वाणं इको. मरद कलुण रुयंताणं । न य णं अनेति तओ बंधुजणो नेच दाराई ॥४॥ इको करेइ कम्मै फलमवि तस्सेकओ समणुहवइ । इको जायइ मरद य परलोयं इकओ जाई ॥५॥ पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफलमणहवंतार्ण। को कस्स जए सयणो? को कस्स ब परजणो मणिओ?॥६॥ को केण समं जाय? को केण समं च परमर्व जाई?। को वा करइ किचा? कस्स व को के नियत्तेइ ? ॥७॥ अणुसोअइ अण्णजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो। नवि सोयइ अप्पाणं किलिस्समार्ण भवसमुद्दे ॥८॥ अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवावि मे अन्ने। एवं नाऊण खम कुसलस्स न तं खमं काउं? ॥९॥ हा ! जह मोहियमइणा सग्गइमग अजाणमाणेणं। भीमे भवकतारे सुचिर भमियं भयकरम्मि ॥५९० ॥ जोणिसयसहस्सेसु य असई जायं मयं चऽणेगासु। संजोगविप्पओगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि ॥१॥ समोसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं। जायं मयं च बहुसो संसारे संसरतेणं ॥२॥ निभस्थणाबमाणणवबंधणरुंधणा धणविणासो। णेगा य रोगसोगा पत्ता जाईसहस्सेसुं ॥३॥ सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि। जम्मणमरणाबाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता ॥४॥ सवाणि सबलोए रूबी दवाणि पत्तपुवाणि । देहोवक्खरपरिभोगयाइ दुक्खेसु य बहुमुं ॥५॥ संबंधिबंधवत्ते सके जीवा अणेगसो मझं। विविह्ववेरजणया दासा सामी य में आसी ॥६॥ लोगसहावो धी धी जत्थ व माया मया हवइ धूया। पुत्तोऽविय होइ पिया पियावि पुत्तत्तणमुवेद ॥ ७॥ जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया छाया भवंतरगयस्स। तुट्ठा खायइ मंसं इत्तो कि कट्ठयरमन्नं १ ॥८॥धी संसारो जहियं जुवाणओ परमरूवगवियओ। मरिऊण जायइ किमी तत्येव कलेवरे नियए॥९॥ बहुसो अणुभूयाई अईयकालम्मि सबदुक्खाई। पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जणो धम्म ॥६००॥ धम्मेण विणा जिणदेसिएण नन्नत्य अस्थि किंचि सुई। ठाणं चा कर्ज वा सदेवमणुयासुरे लोए॥१॥ अत्थं धम्म कामं जाणिय कजाणि तिन्नि मिच्छत्ति(न्ति)। तत्थ धम्मकजं तं सुभमियराणि असुभाणि ॥२॥ आयासकिलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो या बहुदुक्खदुग्गइकरो अत्यो मूलं अणत्थाणं ॥३॥ किच्छाहिं पाविउं जे पत्ता बहुभयकिलेसदोसकरा। तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविक्दणा कामा॥४॥नस्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निस्वदुयं नाम। ससुरासुरेसु मणुए नरएम तिरिक्खजोणीसुं ॥५॥ बहुतुक्सपीलियाणं मइमूढाणं अणप्पक्सगाणं । तिरियाणं नत्यि सुह नेरइयाणं कओ चेव? ॥६॥ह्यगम्भवासजम्मणवाहिजरामरणरोगसोगेहिं। अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिं न सुहमस्थि ॥ ७॥ मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिड्डे । असुई परिस्सवंते सुई सरीरम्मि किं अस्थि ॥८॥ इट्ठजणविप्पओगो चवणभयं चेव देवलोगाओ। एयारिसाणि सम्गे देवावि दुहाणि पाविति ॥९॥ ईसाविसायमयकोहलोहदोसेहिं एक्माईहिं। देवावि समभिभूया तेसुवि य कओ सुहं अत्यि ? ॥६१०॥ एरिसयदोसपुण्णे खुत्तो संसारसायरे जीवो। जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेउयं सच्वं ॥१॥ रागदोसपमत्तो इंदियवसओ करेइ कम्माई। आसवदारेहिं अविगुणेहिं तिविहेण करणेणं ॥२॥ धीधी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावमायरइ। न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स ॥३॥ रागस्स य दोसस्स य धिरत्यु जं नाम सइहंतोऽवि। पावेसु कुणइ भावं आउरविजन | अहिएम् ॥४॥ लोभेण अहव पत्थो कवं न गणेइ आयअहियाई। अइलोहेण विणस्तइ मच्छुव जहा गलं गिलिओ ॥५॥ अत्यं धम्म कामं तिण्णिवि बुद्धो जणो परिचयइ। ताई करेइ जेहि उ (न) किलिस्सह इह परभवे य॥६॥ ९ति अजुतस्स विणासमाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स। उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहिं विणा ॥७॥ आसवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासबइ। जह नावाइ विणासो छिदेहिं जलं उयहिमज्झे ॥८॥ कस्मासवदाराइं निरंभियवाइं इंदियाई च। हतशा य कसाया तिविहंतिविहेण मुक्खत्वं ॥९॥ निमगहियकसाएहि आसवा मूलओ हया हुंति । अहियाहारे मुके रोगा इव आउरजण ॥६२०॥ नाणेण य झाणेण य तबोबलेण य बला निरंभंति। इंदियविसयकसाया घरिया तुरगा व रहि ॥१॥ ९ति गुणकारगाइं सुयरतहिं धणियं नियमियाई। नियगाणि इंदियाई जइणो तुरगा इव सुदंता ॥२॥ मणपयणकायजोगा जे भणिया करणसणिया तिषिण । ते जुत्तस्स गुणकरा हुँति अजुत्तस्स दोसकरा ॥३॥ जो सम्मं भूयाई पासइ भूए अ अप्पभूए य। कम्ममलेण न लिप्पड़ सो संवरियासबदुवारो ॥४॥ धण्णा सत्तहियाई मुणंति धण्णा करंति सुणियाई। घण्णा समगइमम्गं मरंति धण्णा गया सिदि ॥५॥ घण्णा कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्को सुसत्तसंजुत्ता। वारीओव गयवरा घरवारीओवि निफिडिया ॥६॥धण्णा (उ) करंति तवं संजम जोगेहि कम्ममढविहं । तवसलिलेणं मुणिणो धुणंति पोराणयं कम्मं ॥७॥ नाणमयवायसहिओ सीलनलिओ तवो मओ अम्गी। संसारकरणवीयं दहा दवग्गीव तणरासिं ॥८॥ इणमो सुगइगइपहो सुदेसिओ उक्खिओ य जिणवरेहिं । ते धन्ना जे एवं पहमणवजं पवजति ॥९॥ जाहे य पावियर्थ इह परलोए य होइ कालाणं । ता एवं जिणकहियं पडिवजइ भावओ धम्म ॥६३०॥ जह जह दोसोवरमो जहजह विसएसु होइ वेरगं । वह वह विजाणयाहि आसन से पयं परमं ॥१॥ दुग्गो भवकतारे भममाणेहिं सुचिरं पणद्वेहिं। दिह्रो जिणो९४७मरणसमाधिप्रकीर्णकं OET-५२-६३२ मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003933
Book TitleAagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages16
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_maransamadhi
File Size11 MB
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