Book Title: acharanga sutra part 05
Author(s): Manekmuni
Publisher: Mohanlal Jain Shwetambar Gyan Bhandar
View full book text
________________
[ 33२] इज्जा मोसं वयणाए, कोहं परियाणइ से निग्गंथे न य कोहणे सियत्ति दुच्चा भावणा । अहावरा तच्चा भावणा-लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो अलोभणए सिया, केवली बूया-लोभः पत्ते लोभी समावइजा मोसं वयणाए, लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा । अहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया, केवली व्या-भयपत्ते भीरू समावइजा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-हासं परियाणइ से निग्गंथे नो य हासणए सिया, केव० हासपत्ते हासी समावइजा मोसं वयणाए, हासे परियाणइ से निग्गंथे नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा ५ । एतावता दोच्चे महव्वए सम्म कारण फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ दुच्चे भंते ! महव्वए ॥ अहावरं तच्चं भंते ! महव्ययं पञ्चक्खामि सव्वं अदिन्नादाणं, से गामे वा नगरे वा रत्ने वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिव्हिन्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिण्हाविजा अदिन्नं अन्नंपि गिण्हतं न समणुजाणिजा जावजीवाए जाव बोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइ. मिउग्गहं जाई से निग्गंथे, केवली बूया-अणणुवीइ मिउ. ग्गहं जाई निग्गंथे अदिन्नं गिण्हेजा, अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा १। अहावरा दुच्चा भावणा-अणुन्नविय पाणभोयणभोई से

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372