Book Title: acharanga sutra part 05
Author(s): Manekmuni
Publisher: Mohanlal Jain Shwetambar Gyan Bhandar

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Page 350
________________ [ 3310 क्खेवणासमिए से निग्गंथे, नो अणायाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए, केवली बूया०-आयाणभंडमत्तनिक्खेवणाअसमिए से निग्गंथे पाणाइं भूयाई जीवाई सताइं अभिहणिजा वा जाव उदविज वा, तम्हा आयाणभंडमत्त निक्खेवणास मिए से निग्गंथे, नो आयाणभंड निक्खेवणाअसमिएत्ति चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणभोई, से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोयणभोइ, केवली बूया०-अणालोईयपाणभोयणभोई से निग्गंथे पाणाणि वा ४ अभिहणिज वा जाव उद्दविज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोयणभोईत्ति पंचमा भावणा ५ । एयावता महव्वए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं ॥ अहावर दुच्चं महत्वयं पञ्चक्खामि, सव्वं मुसावायं वइदोसं, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं भासिजा नेवन्नेणं मुसं भासाविजा अन्नंपि मुसं भासंतं न समणुमनिजा तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिकमामि जाव वोसिरामि, तस्ति माओ पंच भावणाओ भवंति-तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइभासी, केवली बूया० - अणणुवीइभासी से निग्गंथे समावजिज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइभासित्ति पढमा भावणा। अहावरा दुच्चा भावणा-काहं परियाणइ से निग्गंथे नो कोहणे सिया, केवली बूया-कोहप्पत्ते कोहत्तं समाव

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