Book Title: Zaverabdhi Granthtrayi Sanuwad Nirnay Prabhakar Jinmurtipradip Jinbhakti Prakash
Author(s): Narendrasagarsuri
Publisher: Shasankantakoddharaksuri Jain Gyanmandir
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- પૂ. ઝવેરાબ્ધિ ગ્રન્થથી. સાતુવાદ
(५७ मुंडाविस्संति, सयमेव वत्थपत्ताइ. गिहिस्सति, गुरूणं अणणुण्णाओ सिरे लोयं करिस्संति सयमेव तवोकम्मं उवसंपज्जिताणंविहरिस्संति, सयमेव भिक्खाए भिक्खं करिस्संति ते जंबू ! पासंडमइया दिट्ठीओ दिट्ठा महामिच्छत्तकारिणो मिच्छत्त परिमायमवगाढा सम्मत्तपरिचाइयगा दुराचारा निद्धंधसभासिणो अन्नाण पन्ना असंजमारइगा 'अम्हे गुण संपन्ना, अम्हे सुद्धं जिणमइया' ओवं भासंता मम परंपरागतसाहुसाहुणीणं-हीलंता निंदता-खिसंताबहुभवपरंपराणुबद्धा अणंतखुत्तो संसारे भमिहिस्संति पावमइया । तेसिं निन्हवाणं सावयसाविया कुमयमइदिट्ठिराएणं गहिआ संता अबोहिं पविट्टा अणंतखुत्तो संसारे सुसढुव्व परियडिस्संति जंबू ! णत्थित्थ संदेहो । तअणं अज्ज जंबू ! जायसंसए भयकोउहल्ले उट्ठाओ उद्वेति उट्ठो उट्ठिता एवं वयासी कहण्हं भंते ! तेसिं संजम-किरिया -तवोकम्मे-निप्फले होइ? संजमपालंतावि संजमविराहगा भणिया? एवं खलु जंबू! ते अभिमाणं-गहिआ एवं पुच्छिया मम साहूहिं एवं भासिस्संति परंपरागयसाहुणो तेसिं पाविट्ठमइयाणं सुमहुराओ भासाओ एवं पुच्छिस्संति भो ! भो ! महाणुभागा! तुम्हाणं को गणो? का साहा? किंकुलं? को गुरु ? कस्स धम्मायरि यस्स परंपराए तुम्हेहिं संजमो गहिओ? केण दिक्खिया ? कस्स अणुण्णाओ उद्देसससमुद्देसे संदिस्संति ? कस्संतियं सुतत्थधारगा जाया केण महाणुभागेण कालागच्छा विहिं दंसिआ?कस्स गुरुणो अंगीकारेण दुवालसावत्त वंदणं विहियं ? कस्सायरिया सणं विहारो वट्टइ ? केण आयरियाणं दुविहं सिक्खं गाहिया ? तओ तेएवं भासिस्संति 'तुम्हारिसाणं अम्हारिसेहि आलावो-संलावो न कप्पति, तुम्हे हीणायरिया पंडुरपडपाउरणा पासत्थविहारियाओसन्नविहारियो घणकणगाइधारणा, अम्हे एगतसाहुणो सुद्धाचारपालगा, अम्हाणं कायपडिसिद्धो-जहां हंसकायाणं तुरग खराणं, महिसगइदाणं सूय-कायराणं समवाओ? ॥ होंति -तहा तुम्हाणं अम्हेहि पडिवादो कओ- तओ तब्भत्तिया सावय सावियाविओ अवइस्संति सच्च एए संजया महाणुभागा मलमलीणसरीरा निलोहा अरसविरसाहारिणो एए पसत्था इट्ठा बलियसरीरा अविचार भासगाएएसिं का पडिसिद्धि तेसिं पुरओ एवं कहंता विहरिस्संति इत्यादि- जाव जंबू !
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