Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri Charitam Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Abhaychand Seth View full book textPage 9
________________ केवल अपने शिष्यों को ही उन्होंने अध्ययन कराया अपितु जो भी आया उसे खूब विद्या दान किया। श्री जिनरत्नसूरि जी के शिष्य अध्यात्म-योगी सन्त प्रवर श्रीभद्रमुनि (सहजानंदघन) जी महाराज के आप ही विद्यागुरु थे। उन्होंने विद्यागुरु की एक संस्कुत व छः स्तुतियाँ भाषा में निर्माण की जो 'लब्धि जीवन प्रकाश' में प्रकाशित हैं । उपाध्यायजी महाराज अधिक समय जाप में तो बिताते ही थे पर संस्कृत काव्य रचना में आप बड़े सिद्ध-हस्त थे। सरल भाषा में काव्य रचना करके साधारण व्यक्ति भी आसानी से समझ सके इसका ध्यान रख कर क्लिष्ट शब्दों द्वारा विद्वता प्रदर्शन से दूर रहे। आप संस्कृत भाषा के विद्वान और आशुकवि थे सं० १६७० में खरतर गच्छ पट्टावली की रचना आपने १७४५ श्लोकों में की। सं० १६७२ में कल्पसूत्र टीका रची नवपद स्तुति, दादासाहब के स्तोत्र, दीक्षाविधि, योगोद्वहन विधि आदि की रचना आपने १६७७-७६ में की। सं० १९६० में श्रीपाल चरित्र रचा। __ सं० १९८२ में युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि ग्रन्थ प्रकाशित होते ही तदनुसार १२१२ श्लोक और छः सर्गों में सस्कृत काव्य रच डाला। सं० १६८० में आपने जेसलमेर चातुर्मास में वहाँ के ज्ञानभंडार से कितने ही प्राचीन ग्रंथों की प्रतिलिपियां की थी। सं० १९६६ में ६३३ पद्यों में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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