Book Title: Yogdarshan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlal Sanghavi

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Page 2
________________ समर्पण | श्रीमान् प्रवर्त्तक कान्तिविजयजी ! आपके प्रति मेरी अनन्य - साधारण पूज्य बुद्धि है, इसका कारण न तो स्वार्थ ही है और न अंधश्रद्धा: आपके विद्यानुराग, शास्त्रप्रेम और निरवद्य साधुभावसे मैं आकर्षित हुआ हूं - इसीसे यह पुस्तक आप के करकमलोंमें सादर समर्पित करता हूं. 84 Pre GC G ॐ ॐ ॐ आपका सेवक, - सुखलाल. Sandhaarasahatva

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