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समर्पण |
श्रीमान् प्रवर्त्तक कान्तिविजयजी !
आपके प्रति मेरी अनन्य - साधारण पूज्य बुद्धि है, इसका कारण न तो स्वार्थ ही है और न अंधश्रद्धा: आपके विद्यानुराग, शास्त्रप्रेम और निरवद्य साधुभावसे मैं आकर्षित हुआ हूं - इसीसे यह पुस्तक आप के करकमलोंमें सादर समर्पित
करता हूं.
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Pre GC G ॐ ॐ ॐ
आपका सेवक, -
सुखलाल.
Sandhaarasahatva