Book Title: Yashovijay Smruti Granth Author(s): Yashovijay Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti View full book textPage 6
________________ नहि, नामश्रवणथी पण वंचित छीए. जेम जेम तेमना अलभ्य ग्रंथोनी प्राप्ति थती जाय छे तेम तेम तेमना नवा नवा अलभ्य ग्रंथोनां नामो मळतां ज जाय छे. छेल्लां वर्षोमा अणधारी रीते तेमना अप्राप्य जे ग्रंथो प्राप्त थया, ते द्वारा अलभ्य ग्रंथोनां नामो जाणवामां पण आव्यां छे. एटले आपणे निरंतर अप्रमत्त रही आपणा स्थान-स्थानना नाना-मोटा ग्रंथमंडोरोमां तेओश्रीना अलभ्य ग्रंथोने काळजीपूर्वक शोधवा-तपासवाना ज रहे छे. जो झीणवट पूर्वक आपणा प्राचीन ज्ञानभंडारोने तपासीद्यु तो आशा छे के-हजु पण आपणे तेमना अनेक ग्रंथो मेळवी शकीशु. ठेल्लां वर्षोमां ज्ञानभंडारना ख़तभर्या अवलोकनने प्रतापे आपणे नीचे मुजवना सत्तर ग्रंथो मेळची शक्या छोए१ अस्पृशद्गतिवाद अपूर्णनी पूर्णता २ आत्मख्याति ३ आपभीयचरितमहाकाव्य अपूर्ण ४ काव्यप्रकाश टोका खंडित, ५ कूपदृष्टान्तविशदीकरण अपूर्णनी पूर्णता ६ प्रमेयमाला अपूर्ण ७ वादमाला ८ वादमाला अपूर्ण ९ विजयप्रभसूरि क्षामणक विज्ञप्तिपत्र १० विषयतावाद ११ वैराग्यरति किंचिदपूर्ण १२ स्याद्वादरहस्य (लघु) १३ स्याद्वादरहस्य (मध्यम) अपूर्ण १४ स्याहादरहस्य (बृहद् ) अपूर्ण १५ सिद्धान्तमंजरी शब्दखंड टीका अपूर्ण. १६ योगविन्दुअवचूरि १७ योगदृष्टिसमुच्चय अवचूरि अपूर्ण. आ सत्तर ग्रंथो पैकी नव ग्रंथो अधूरा ज मळ्या छे, वे ग्रंथो के जे पहेला अपूर्ण मळ्या हता ते पूर्ण थया छे अने बाकीना छ ग्रंथो नवा संपूर्ण मळ्या छे. आ ग्रंथो सूरिसम्राट श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी म०, श्रीविजयउदयसूरीश्वरजी म०, श्रीविजयमनोहरसूरिजी म०, पं० श्रीरमणीकविजयजी अने श्रीयशोविजयजी म. आदिना परिश्रमपूर्वकना ज्ञानभंडारोना अवलोकनथी प्राप्त थया छे. उपरोक्त ग्रंथोना उपलक अवलोकनथी श्रीपूज्यलेख, सप्तभंगीतरंगिणी न्यायवादार्थ आदि अलन्य ग्रंथोनां नामो नवां पण जाणवा मळ्यां छ. श्रीपूज्यलेख ए कोई सामान्य विज्ञप्तिलेख नथी, परंतु ए एक दार्शनिक पदार्थोनी चर्चा करतो प्राकृत भापानो पत्ररूप ग्रंथज हतो. सत्तभंगीतरंगिणी ए नामनो दिगंबराचार्यकृत ग्रंथ होवानी जाण तो आपणने हती ज, परंतु श्रीउपाध्यायजी महाराजे पण ए नामनो ग्रंथ रच्यो हतो ए जाणवामां आव्यु होई हवे दरेक विद्वानोए सप्तमंगीतरंगिणी नामना ग्रंथनी प्रति कोई पण भंडारमा होय तो तेने चोकसाइथी तपासवी जोइए. उपाध्यायश्रीए न्यायविशारद थया पछी सो ग्रंथोनी रचना करी त्यारे तेमने न्यायाचार्य तरीके संबोधवामां आव्या हता, प सो ग्रंथो कया? तेनीकशो पत्तो नथी. परंतु तिङन्चयोक्ति विपयताबाद काव्यप्रकाशटीका अलंकारचूडामणिटीका वगैरे साहित्यिक ग्रंथो न होइ शके! ए विचारवा जेवो प्रश्न है. एज प्रमाणे रहस्य. पदांकित १.०८ अंथो रचवानो तैमनो संक्रप हतो, ते पैकीना केटला ग्रंथोतमणे रन्या हता अने पोताना ए संकल्पने तेओ सर्वाशे पार पाडी शक्या हता के नहिं !-ए वात पण अज्ञात ज है. आज मुधीमां आपणे तेमना रहस्यपदांत प्रमारहस्य, नयरहस्य, स्याद्वादरहस्य, भापारहस्य अने उपदेशदस्य ए पांच ग्रंथोनां नामोने जाणी शक्या लीए. मा सिवाय वीजा कोई रहस्यपदांत प्रथना नागनो उन्टेल आपणने तेमना कोई प्रथमांथी हजी सुधी मळ्यो नथी, पटले मा विषयमा केम यन्यु होप शंकास्पदPage Navigation
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