Book Title: Yashovijay Smruti Granth
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 11
________________ ફર व्यापारी अने १६८८ नां तेनी पत्नी सोमागई, श्रनयविजयजी पंडित जयपुर पाटलां . 'गुजरातमां नोडुं नाम गाम, नागयण नाले तेनने पदमसिंह ने जननामे पुत्रो हना. सं. कुणगेलां चोमा नो गया, एसा उपदेशय जय श्रीनयविजयत्री पांडे हांका टीवी. नाम यशोविजय गये. नोटामाई पदमसिंह पत्र मात्र दीक्षा लांबी अने नाम पद्मविनय रात्र्युं यशोविजयी [गुरुपाएँ] अभ्यास ट्र्र्यो. वि०सं० १६९९मां अमावादकां seers are saare कर्या. एनी प्रतिमाथ ग्रसन्न यई शा धनजी नाना ठ श्रीलयविजयजी न०ने ऋं के. - साधु (यशोविजयजी ) या लुयोग्य है, मग तो हमाचार्यजी सेवा थशे. ए. शेटली प्रेरणायी यशोविजयजी काशी बहु ए ननो अन्यायों ने न्यायविद्याद था. बनजी गए यशोविजयजीना पटना के हजार सोनाम्होतुं खर्च . मनाने पाछा अमदाबाद आया. श्रीमं मनोसकारों नागानां तयां, महाननी सभा समक्ष अहार अनी. एग्री प्रसन्न थई यशोविजयजीने उपाध्याय पदवी अपना नामाने जाते व श्रीविजयदेवसूलिं विनंति को उने सं. १७१८ कां तेनी उपाध्याय पदवी थई, सं. १७१३ मां इमोहनां त्रोमा नेत्यांजवर्गवाडी या. सीन कावडी पासे तेनुं धूम त्र्यं के". 66 उपाध्यायजीना सुमन्त्राधीन (1) सुनिने मुनवेडी मामां आवडी विगत रडू कडे. परंतु आजे आपणा यांचा पुरावाओ विद्यमान है नामांना संवदो गोते कारणे दो विदित है. १. माल उपाध्यायश्री तोडानां चन्या ना. 'ए · मापदानां नाम आपवानां आय हे, पण मत्रन ने दीक्षा समये उपाध्याय ग्रीनी केट हवी! ते विभाकर सोन है. २. भावना उपाध्यायश्री दो वर्ष सं. १६८९ (३) बगा है. परंतु काजे कापणा झाले श्रीनयविनयत्री महाताने श्रीविजयजी म० मां सं. १६६३ मां मेहपर्वनो चित्र, मन श्रीयशोविजयजी महाराजे से. १६६५ नांवापाटनी प्रति उन सं. १६६९ म कन्वेन्द्र चन्नपुरवन यदि विद्यमान है. ए स्थितिमांना दोन मे केल एक कोयडा देना है. ३. सं. १६९९ अमदावादमा आठ अवधान पढो यद्योषिदर्शनयो खास श्री नत्र्यन्यायना अन्यास कांटे की लगनुं मासकार बमायुं है. प्यारे न्याहादहत्य सेवा समर्थ प्रत्यती रचना सं. १७०१ म कपडा पाउना बांदोडी गामां करी हे अने ते पहला मारहस्य, श्रीश्यकेन्द्र, चाइनाडा आहे या समये दानिक आदि ग्रन्योनी रचना तेयो की चूच्या हे. पटुले प्रश्न कम या ई के ओ काशी पहांच्या क्यारे ! अध्ययन के समय ! ने

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