Book Title: Yashovijay Smruti Granth
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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स्नेह, वात्सल्य अने भक्तिनी ऊर्मिओने अनुभवी केटली मलकाती हशे ? ए तो तेथा. जाते. क्रे.. ज्ञानी ज जाणी शके.
उपाध्यायजीनी अनेकरूपता
"
मानवस्वभाव सामान्य रीते हंमेशां संयोगवशवर्त्ती ज छे, अने प्रसंग आवतां तेमां विविध भावो जागी ऊठे छे. एटले उपाध्यायजीना ग्रंथो अने तेमना जीवनप्रसंगोनो आपणे विचार करीए तो तेमनामां अनेक भावो जोवामां आवे छे. तेओश्री एकांत गुरुभक्त हता. एज कारणसर तेमणे गुरुतत्वविनिश्चयना प्रारंभमां " अम्हारिसा वि मुक्खा पंतीए पंडियाण पविसंति । अण्णं गुरुभत्तीए कि विलसियमन्यं इत्तो ? || एम गायुं छे. पोताना विचारो माटे तेओ अङग थने निर्भय हता. न्यायालोकना अंतमां तेमणे " अस्मादृशां प्रमादग्रस्तानां चरणकरणहीनानाम् । अच्धौ पोत इवेह प्रवचनरागः शुभोपायः ॥ " एम लखी पोतानी वास्तविक अपूर्णताने व्यक्त करी छे. कारेक पोतानी ग्रन्थ रचनाना विषयमा विषम वातावरणनो अनुभव थतां तेमना अंतरमांथी "अनुग्रहत एव नः कृतिरियं सतां शोभते, खलमलपितैस्तु नो कमपि दोपमीक्षामहे । " तेमज " ग्रन्थेभ्यः सुकरो ग्रन्थो मूढा इत्यवजानते । " इत्यादि कटु अने हृदयनो उकळार दर्शावती उक्तिओ पण नोकळी पडी छे. प्रतिमाशतकनी टीकामां "एतेन लुम्पाकानां मुखे मपीचको दत्तः । " ए प्रमाणे सांप्रदायिक कठोरताने रजू करता पण तेओ जोवामां आवे छे. दार्शनिक पदार्थनुं विवेचन करतां दार्शनिकोनी अहंता पण जोवा मळे छे. सीमंधर जिनविनतिस्तवन आदिमां साधुजीवन अन गृहस्थजीवननी सदोषता जोई ते उपर कटाक्ष करता पण तेओ देखाय छे। अने ज्ञानसार, अध्यात्मसार, द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका अने सुजसविलासमांना आध्यात्मिक पदोमां तेओ मध्यस्थभाव, असाम्प्रदायिकता अने समरसमां झीलता दृष्टिगोचर थाय है. हात्रिंशद्वात्रिंशिकानी २० मी द्वात्रिंशिकामां " महर्षिभिरुक्तम् " एम लखीने ते ओश्रीए दिगंबराचार्यकृत ग्रन्थनी साक्षी आप्या पछी आ प्रमाणे जणान्युं न च एतद्द्वाथाकर्तुर्दिगम्वरत्वेन महर्पित्वाभिधानं न निरवयम्' इति मूढधिया शंकनीयम्, सत्यार्थकथनगुणेन व्यासादीनामपि हरिभद्राचार्यैस्तथाभिधानादिति " अर्थात् " आ गाथाना कर्ता आचार्य दिगंबर होवाथी तेमने महर्षि तरीके लखवुं योग्य नथी- एवी कोइए शंका न करवी. कारण के तात्विक वस्तुने कहेबाना गुणने ध्यानमां लई श्रीहरिभद्राचार्ये व्यास आदिने पण महर्षि तरीके जणान्या छे." आ प्रमाणे तेओश्री विविधभावोथी भरपूर देखावा छतां समप्रभावे विचार करतां तेओ तात्विक ज्ञान अने शुद्रजीवनसाधनाना पिपालु साधक महापुरुष हता. सुजसवेलीभा
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श्रीयशोविजयजी मन्ना जीवनचरित्रने लगती ड्रंक माहिती आपणने मुनि श्री कांतिविजयजी ( अनुमान महोपाध्याय श्री चिनयविजयजीना गुरुभाई ) एरीनारदाने ५२ गाथा प्रमाण सुजसवेलीभासनांधी मी आहे हे. जेनो ट्रंक सार आ प्रमाणे छे.

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