Book Title: Yashovijay Smruti Granth
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 5
________________ पांडित्य उपाध्यायनीनुं पांडित्य मात्र ग्रंथोना अध्ययन के वाचन मुधी ज मर्यादित न हतुं, तमनु पांडित्य घणु ऊ९ अने व्यापक हतुं, ए आपणे तेमणे रचेला ग्रंथराशि उपरथी समजी ऋल्पी शकीए छोए. संस्कृत-प्राकृत-गूजराती आदि अनेक भाषाओ, छंद-अलंकार-कान्य आदि साहित्यग्रंथो, जैन आगमो, कर्मवाद अने जैन तत्वज्ञानना प्राणरूप अनेकान्तवाद उपर तेओश्रीन विश्वतोमुखी आधिपत्य हतुं. प्राचीन अने अर्वाचीन वन्नेय न्यायप्रणालिकाओने तेमणे एक सरखी रीते पचावी हती. पोताना नीवनमा तेओ सर्वदेशीय विशाळ ग्रंथराशिनुं अवगाहन अने पान करी गया हता. तेओश्री समर्थ तत्वचिंतक अने प्रौढ ग्रंथकार हता. जैन संप्रदायमा रहेली खामीओनी 'तलस्पर्शी समीक्षा करनार पण हता. एन कारणसर तेमना युगमां तेओ साधु यतिवरो अने गृहस्थ श्रीसंघने घणा कडवा थइ पढ्या हता, अने तेथी तेमनी तथा तेमना ग्रंथराशिनी अक्षम्य उपेक्षा के अवज्ञा थई हती. तेम छतां तेमना पांडित्यने छाजे तेवी निर्भयता अने धीरता तेमनामांसदाय एक घारी रीत टकी रयां हता. आपणने जाणीने आश्चर्य अने दुःख थाय तेवी बावत छे के-तेओनीना अनेकानेक ग्रंथो लगभग बीजी नकल थया सिवाय न रही गया छे. जैन श्रीसंघना सौभाग्यनी ए खरेखर खामी छे के-तेने त्या सिद्धसेन दिवाकर, यशोविजयोपाध्याय आदि जेवी ज्ञानस्वरूप विभूतिओ द्वेष्य बनी छे. श्रीसिद्धसेन दिवाकर तो विंशतिद्वात्रिंशिका ग्रंथना अंतमा पोता माटे "द्वेष्य श्वेतपट" एवं विशेषण पण आप्यु छे, ए एक विचारवा जेवी वस्तु छे, पूनाना मांडारकर इन्स्टीट्युटना संग्रहनी विंशतिद्वात्रिंशिकानी प्राचीन ताडपत्रीय प्रतिमां "द्वेप्य श्वेतपट" ए प्राचीन विशेषण आजे पण सचवाएलं छे. आवी न फरियाद आचार्य श्रीहरिभद्र, आचार्य शीलांक, श्रीयशोविजयोपाध्याय आदिए पण पोताना ग्रंथोमां करी छे. ग्रंथनिर्माण उपाध्यायग्रीए पोताना नीवनमा विशाल ग्रंथराशिनु निर्माण कयु हतुं. अनेक विषयोने स्पर्शतो तेमनो ए ग्रंथराशि छे. तेश्रोधी प्राचीन-अर्वाचीन बन्नेय न्यायप्रणालीओमां पारंगत होवा छता तेमणे पोताना ग्रंथोमां नव्यन्यायनी सरणिने न अपनाबी छे. गमे तेवो नानो के मोटो, दार्शनिक के आगमिक, कर्मवादविषयक के अनेकान्तवादविपयक, स्तुति के स्तोत्र आदि गमे ते विपयनो ग्रंथ होय, तेमा उपाध्यायनीनु नैयायिकपणं झळक्या सिवाय क्यारेय रह्यं नथी. एकना एक विषयने तेओ गमे तेटली वार चर्चे तो पण तेमां नवीनता न नोवामां आवे, ए उपाध्यायधीना चिंतन अने प्रतिपादननी महत्ता अन विशेषता छे. उपाध्यायजीए पोताना जीवनमा केटला ग्रंथो रच्या हता! तेनी निश्चित संख्या क्याय नोंघाई नथी, तैम छतां तेमणे पोते पोगना ग्रंथोमा नाते व जे जे ग्रंथोनां नामोनो उल्लेख कयों है, ते द्वारा जाणवा मळ छ के-आने आपणे तेमना संख्यावंध ग्रंथोना दर्शनथी न

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