Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03 Author(s): Divyakirtivijay Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust View full book textPage 8
________________ प्रकाशकीयम् श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 6 // पासे आ कार्यनो प्रतिषेध निर्णीत को अने आगमकक्षमां पण प्रवेश निषेध कर्यो अने कम्प्युटरोमां कम्पोजींग-प्रूफरीडींग कार्य मात्र पुरुषवर्गनां आपरेटरो-एडीटरो द्वारा कराववानो अमल कर्यो / दररोज आ कार्य ना प्रारंभथी अंत सुधी धूप-दीपना प्रज्वलनपूर्वक अपवित्रतानो नाश अने अर्चनीयतानुंस्थापन करवापूर्वक परममंगलकारी अने परमपवित्र आगमग्रंथोनी गरिमा जाळववानो यथाशक्य प्रयास कर्यो। जो के आकार्य तो मात्र पुनःसम्पादन- छ। प्राचीनहस्तप्रतोमांथी संशोधनकार्यनो अथागप्रयत्न तो आगमोद्धारक पूज्य सागरजी महाराज (पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज) आदिओको छ जेनो श्रेय तोतेओना फाळेज जाय छ / अन्य संशोधको अने संपादनोनो आ संपादनमा उपयोग कर्यो छे तेनो उल्लेख ते ते स्थळोओको छ। गणिपिटक अटले आचार्यभगवंतोनी अत्यंत किंमती अने गुप्त संपत्ति / तेनो दुरुपयोगन थाय माटे साधु-साध्वीभगवंतोने उपयोगमां आवतां ज्ञानभंडारो तथा पू. आचार्यादिगुरुभगवंतो जेमने जरूर हशे तेमने वितरण करवानुनक्की कर्यु छ। ट्रस्टीगण श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्रीपालनगर, 12 जमनादास मेहता मार्ग, वालकेश्वर, मुंबई - 400006. विक्रम सं०२०६३ वीर सं०२५३३ // 6 //Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 562