Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-३ // 7 // श्रीभगवत्यङ्गसूत्रस्य विषयानुक्रमः 819 विषयः सूत्रम् पृष्ठः क्रम: विषयः सूत्रम् पृष्ठः आकर्षाः सामायिकादीनां कालान्तरादि-सामायिकादि एकादशोद्देशकः। 818 1563 संयता: प्रतिसेवादि-सामाचार्यः प्रायश्चित्तानि-तपोभेदा: करणाधिकारः। 818 1563 ध्यानानि व्युत्सर्गः। 797-804 1524-1537 [28] अष्टाविंशं शतकम् / 1564-1566 25.8-12] अष्टमोद्देशकत: [28.1] प्रथमोद्देशकः। 1564-1566 द्वादशोद्देशकः। 805-810 1543-15451 पापस्यार्जनाचारौ / 819 1564 नारकभव्यादीना-. अनन्तरोत्पन्नादीनां च तौ 820-821 1565-1566 मुत्पत्तिरीतिः। 805-810 1543-1544 [29] एकोनत्रिंशं शतकम्। 822-823 1567-1570 [26] षड्रिंशं शतकम्। 811-817 1546-156229.1-11] प्रथमोद्देशकतः [26.1] प्रथमोद्देशकः। 811-814 1546-1556 एकादशोद्देशकः। 822-823 1567-1570 जीवादीनां पापबन्धादि-नारकादीनां समविषमप्रस्थापननिष्ठापने। 822 1567-1568 पापज्ञानावबन्धित्वादि-जीवानामायुः अनन्तरोत्पन्नादीनां कर्मबन्धित्वादिः। 1546-1554 पापसमप्रस्थापनादिः।। 1569 26.2-12 द्वितीयोद्देशकतः [30] त्रिंशं शतकम्।। 824-828 1571-1580 द्वादशोद्देशकः। 815-817 1557-1562 30.1-11] प्रथमोद्देशकतः अनन्तरोत्पन्नानां बन्धित्वादि परम्परोत्पन्नानां एकादशोद्देशकः। 824-828 1571-1580 पापबन्धित्वादि-बन्ध्यादि / 815-8171557-15601 क्रियावाद्यादीनि समवसरणानि-क्रियावाद्यायुर्बन्धादि[२७] सप्तविंशं शतकम्। 818 1563-1562 अनन्तरोत्पन्नादीनां समः / 824-828 1571-1580 [27.1-11] प्रथमोद्देशकतः [31] त्रिंशं शतकम्। 829-841 1581-1585 // 7 //
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