Book Title: Vinit Kosh Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad View full book textPage 7
________________ आधुनिक वहेणनी विश्म उपर कहयुं छे तेम, लौकिक - स्थानिक भाषाओ पण ए मूळ स्रोतने वहन करे ज छे. एटले प्रजानो मोटो भाग ए लौकिक - स्थानिक देशी भाषाओ द्वारा ज पोताना लोकात्माने ओळखीने संस्कार-रस मेळवतो रहेवानो. परंतु समग्र देशनी संस्कृतिना धारण-पोषण-संशोधननी रीते विचारीए, तो प्रजाना अमुक वर्गनो पेला मूळ स्रोत साथेनो संपर्क चालु रहेवो ज जोईए. __ तेथी ज स्वराजनी चळवळ वखते आपणी प्राचीन संस्कृति अने भाषा के भाषाओना स्रोतमां नाहीने शुद्ध - संस्कृत थवानो प्रयत्न विशेष तीव्र बन्यो हतो. परंतु आजे स्वराज आव्या पछी, ए बाबतमां ओट ज आव्यानां, एटलं ज नहि पण, विपरीत वहेण शरू थयानां लक्षण वरताय छे. आजे ए मूळ संस्कृत भाषा तो शं, पण आपणी लौकिक - देशी भाषाओनां मान पण छेक ज ओसरी गयां छ; अने केटलाक लोको समाजवादी संस्कृति साथे तेना वाहन रूपे अंग्रेजी भाषाने भारतवर्षमा कायम करवाना पोकार पाडे छे. अने ए अंग्रेजी भाषा द्वारा तेओ शुं जाळववा के लाववा मागे छ ? थोडीक यांत्रिक कसब के थोडु भौतिक विज्ञान. ए बे चीजोनो आपणे कशो उपयोग नथी एम न कहीए; तोपण ए बे विना जाणे भारतनो उद्धार नहि थाय एम मानवामां आवे छे, ए तो केवळ अतिरेक छे. भारतवर्षनो उत्कर्ष यांत्रिक - भौतिक संस्कृतिथी साधवानो प्रयत्न अत्यारे ज पहेलवहेलो थाय छे, एम नथी. आपणो प्राचीन इतिहास ए प्रयत्नो अने तेमने मळेली निष्फळतानां प्रकरणोथी अंकित छे. जूना ब्राह्मणग्रंथोथी मांडीने देव-असुर संग्रामना रूपकथी एवा प्रयत्नो वारंवार आपणा इतिहासमां नोंधाया छे. अने छेक छेवटे गीताकारे पण 'आसुरी संपत्' उपर पोताना सचोट चाबखा लगाव्या छे. एटलं ज नहि, पण ए आसुरी संपत् ज्यारे जोर पकडे छे, त्यारे त्यारे भगवान पोते अवतार लई तेनो विनाश करवा प्रवृत्त थाय छे, एम पण नोंध्युं छे. भारतवर्षनी भौतिक साधनसंपत्ति एवी छ के, आवी आसुरी संस्कृतिओ त्यां झट प्रवर्ती शके. परंतु एवी आसुरी संस्कृतिओने रवाडे चडी, केटलांय साम्राज्यो नामशेष थई गयां, ए पण भारतवर्षनो इतिहास कहे छे. आधुनिक युगमां पाछी विदेशोमांथी शरू थयेली प्रबळ भौतिक संस्कृतिनी संगठित चडाई सामे गांधीजीए सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह वगेरे बाबतोवाळी आध्यात्मिकरचनात्मक संस्कृतिनुं जोर ऊभुं कर्यु हतुं. तेनी साथे ज राष्ट्रभाषा अने मातृभाषानो नारो पण बुलंद थयो. अने आपणी मूळ संस्कृति (अने तेना वाहन संस्कृत भाषा) तरफ पण वहेण वळयु हतुं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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