Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 15
________________ संस्कृत-गुजराती विनीत कोश अ संस्कृत वर्णमाळानो पहेलो अक्षर; एक ह्रस्व स्वर (२) पुं० विष्णु (३) अ० नकारार्थ दर्शावतो पूर्वग; उदा० अभाव (४)दया, निंदा, ठपको, संबोधन, निषेध -ए बतावतो उद्गार न होय तेवू अऋणिन वि० करज विनानं; देवादार अक न० सुखनो अभाव ; दुःख (२)पाप अकच वि० माथे वाळ वगरनु; टालियुं (२) पुं० केतु ग्रह अकथ्य वि० न कहेवा लायक अकरण वि० स्वाभाविक; अकृत्रिम (२) सर्व इंद्रियोथी रहित (परब्रह्म) (३) न० कामकाज न करवू ते अकरणि स्त्री० निराशा; निष्फळता अकर्ण वि० कान वगरनु; बहेरं (२) पुं० साप अकर्मक वि० जेने कर्म नथी तेवू अकर्मण्य वि० कर्म करवाने शक्तिमान नहि तेवू (२) न करवा लायक अकर्मन् वि० काम वगरनुं; आळसु (२) अकुशळ (३) अकर्मक (व्या०) (४) न० कर्मनो अभाव (५)अयोग्य कर्म ; गुनो; पाप अकल वि० अंश-भाग विनानुं अकल्प वि० निरंकुश(२)निर्बळ(३)जेनी तुलना न थई शके तेवं [भाविक अकल्पित वि० कृत्रिम नहि तेवं; स्वाअकल्य वि० अस्वस्थ रोगी(२)साचु;खरुं अकस्मात् अ० एकाएक; अणधारी रीते (२) निष्कारण अकाम वि० इच्छारहित(२)कामपीडा- रहित (३) हेतुरहित; इरादा वगरनुं अकामतः अ० अनिच्छाए (२) इरादा वगर; असावधपणे ग्रह अकाय वि० शरीर वगरनुं (२)पुं० राहु अकारण वि० कारण विनानुं (२) प्रयो जन विनानुं निष्कारण ; व्यर्थ अकारणम्, अकारणात्, अकारणे अ० अकार्पण्य वि० कृपणता विनानुं (२) दीनता दाखव्या विना मळेलू अकार्य वि० नहि करवा योग्य (२) न० अयोग्य कार्य; खोटुं कार्य अकाल वि० कवखतर्नु; अयोग्य वखतनुं (२) पुं० अयोग्य समय; कवखत अकालज, अकालजात वि० अकाळे जन्मेलं; कवखते उत्पन्न थयेलं अकालसह वि० विलंब सहन न करतुं: __ अधीरु (२)लांबो वखत टकी न शके तेवं अकालिकम् अ० अचानक (२)तरत ज अकांड वि० अणधार्यु ; आकस्मिक (२) अवसर विना- (३) थड विनानुं अकांडपात पुं० अकस्मात् बनेलो बनाव अकांडे अ० अचानक; अकस्मात् अकिल्बिष वि० निष्पाप । अकिंचन वि० निर्धन; गरीब अकिंचनता स्त्री० दरिद्रता (व्रत) अकिचिज्ज्ञ वि० थोडं पण नहि जाणनारुं; अज्ञानी अकिंचित्कर वि० कशुं न करी शकनारं (२) निरुपयोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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