Book Title: Vignptika Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ अनुसंधान-२१ छ । ८ पद्योमा पथरायेली आ विज्ञप्ति २४ मात्राना समचतुष्पदी रोला छंदमां रचायेली छे । तृतीय विज्ञप्ति गंगाजल जेवा स्वच्छ तपगच्छना मंडन एवा श्रीगुणरत्नसूरि भगवंतनी छे । अहीं रचयिता तेमना तर्कशास्त्रादिनैपुण्य-शुद्धसंयमजितेन्द्रियत्व-कर्मविदारण-संशय छेदन-उग्रतप-जिनाज्ञापालन वगेरे गुणोनुं तथा शरीरलक्ष्मीनुं वर्णन मनोहर शब्दोमां करे छे अने अंते तेमना गुणस्तवन- फल स्वर्गसुखपूर्वकनुं मोक्षसुख छे एवं जणावे छ। क्रियारत्नसमुच्चय, षड्दर्शनसमुच्चयनी टीका इत्यादिना प्रणेता आ ज गुणरत्नसूरि छे. आ विज्ञप्तिना दसेय पद्यो २० मात्राना समचतुष्पदी स्रग्विणी छंदमां रचायेला छे । ४. चोथी विज्ञप्ति श्रीचारित्रचूला नामे महत्तरा साध्वीनी छे । जैनसाहित्यमां भाग्ये ज जोवा मळती, कोई साध्वीजी विशे कोई साधु द्वारा रचायेली, आ गुणस्तवना छे । तेमना विशे जो के, बीजी कोई माहिती मळती नथी । आ विज्ञप्तिमां महत्तरा श्रीचारित्रचूला भगवतीना सम्यक्त्वचारित्र-यश:-गुर्वाज्ञापालन-जयणा-समता-सिद्धांतज्ञान-अभयदानदुष्करतप-कषायजय-वैराग्य वगेरे गुणोनुं लालित्यसभर पदोमां वर्णन कर्यु छे । अंते गुणस्तवनानु उत्तमलक्ष्मी वगेरे फल बताव्युं छे । आठ पद्यमय आ विज्ञप्ति २४ मात्राना समचतुष्पदी रोला छंदमां रचायेली छे । पांचमी विज्ञप्ति चतुर्मुख श्रीमहावीरस्वामिनी छे । आ चतुर्मुख श्रीमहावीरस्वामिनु चैत्य कया स्थळे छे ते विशे कोई संदर्भ प्राप्त थतो नथी । अहीं विज्ञप्तिकार भगवंत श्रीमहावीरप्रभुनां शरीरलक्षणोनुं तथा भयनाश-संसारतारकता- मोहजय.. सुरनरपूज्यता वगेरे गुणोनुं वर्णन अलंकारिक भाषामां भाववाही रीते करे छे । अने अंतिम पद्यमां गुणस्तुतिनुं फल उत्तमदेवपणुं जणावे छे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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