Book Title: Vignptika Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ अनुसंधान-२१ नरवइ-सुरवइहारिनारिवरचक्ख(क्खु)सहंजण लक्खणलक्खियपाणिपाय जिणसज्जणरंजण / सुह सुह हर हर मोहकोहबलिकुंजरगंजण जय जय जय जयकारि मारिगुरुभूरहभंजण ||5|| दमसमसंजमतार पारगयवम्महदुद्धर विसहर विसहर सोम सोम गइनिज्जियसिंधुर / भव भवभयभरभंगरंग जणमोहग सोहग- . दायग नायग पावदाव जय दोहगखोहग // 6 // जणमणपंकयभाणु माणुकरिमारणवारणरिउसम समसमसारुदार भवसायरतारण / निग्गयदुग्गयतिक्खदुक्ख जय दारिददारणजलहर जलहरराव भावरिउवारणकारण // 7 // जय गयरय रयमाय रायनयसंनयसज्जलसरवर सिरिवर संत दंत बहुबाहुमहाबल / पणिमिरसुरवरमौलिमौलिमणिसुंदरभासुर रइभररंजियपायपीढ जय विस्सदिणेसर // 8 // ससहरहरहिमहारिहार हस सेससहोदर सियजसपूरियविस्स विस्सगुरु पत्तमहोदर / संजय संजयहारिहारितर वाणिविनिज्जि(ज्जि)यसारसियामय नंद देव दहदोसविवजि(ज्जि)य ||9|| इय जिणवरथुत्तं गुणगणजुत्तं, जंपइ गुणइ जो भवि(य)जणु / सो दुहतरुखंडण जय जणमंडण लहइ सिक्लह(सुह) सुद्धमण(णु) // 10 // // श्रीसीमंधरस्वामिविज्ञप्तिः पं.धर्मशेखरगणिकृता / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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