Book Title: Vignptika Sangraha Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ अनुसंधान-२१ अह-निसिझाईयपंचजुत्तपरमिट्ठिसुमंता नारयखेवगरागदोसबलभेइणि दंता । नमह नमह भो भवियलोय ! सिरिमहतरपाया मुक्किय दुट्ठपमायसंग नियचित्तणुराया ॥७॥ महतर सिरिचारित्तचूलविन्नत्तिऽभिरामा पढइ गणइ जे निय[य] भावसंजुत्त अकामा । विलसह ते सुह मही(हि)(य)लंमि गुरुलच्छिविसाला जायग-जण-मणवंछियत्थपूरणसुरसाला ॥८॥ ॥ महत्तराश्रीचारित्रचूलाविज्ञप्तिः समाप्ता || चतुर्मुखश्रीमहावीरस्तवनम् ॥ सिरिमंदिरसुंदरकायजाय, मयसंनय संनयरायजाय । भयभंजण भवदवनीरवाह, जय चउमुहगुरुमहावीरनाह ॥१|| तुह सेवगु मुहजियसोम सोम, हुइ कोमल कोमलरोमतोम । दुहनासण सासणतायसाय, सिरिभायणु गय गयमायताय ।।२।। जय सज्जणरंजण कोहलोह-दुहवज्जिय निज्जियमोहजोह । सिवकामिणिकंठसुहारसार, कलकंचणरुइतणु तार तार ॥३।। चिरमावयमहियलसीर धीर, जणलंभिय भवनववी(ती)र वीर । विभासुर-भासुर-चंद-वंद, नर-किन्नर-निज्जर-वंद नंद ||४|| मुणिपं(पुं)गव कयगुरुतोस पोस-मणवंछियमुज्झियरोसदोस । मह पूरय चूरय लक्ख लक्ख, छहजीवह निम्मियसुख(क्ख)-- दुख(सुक्ख ?) ||५|| जय जिणवर जियरइकंत कंत, गुणसंमणिरोहण संत दंत । जमसंजमतमदुमनाग नाग, सुहसंपयपय हयरागनाग ।।६।। कर(रु) मह लहु मद्दियकम्ममम्म, सिववासय सासयरम्मसम्म । भवतारग पारग रोगसोग-हर छिडियनेहललोगभोग ॥७|| सम्मंडिय खंडियसाम काम-परिहरिय मणोहरधामराम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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