Book Title: Vignptika Sangraha Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ विज्ञप्तिका संग्रह सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय - प्राकृत-अपभ्रंशभाषामय आ विज्ञप्तिकासंग्रहमा छ विज्ञप्तिओ छे. जेमां प्रथम त्रण विज्ञप्तिओ तपगच्छना त्रण आचार्योनी, चोथी महत्तरा साध्वी श्रीचारित्रचूलानी, पांचमी चतुर्मुख श्रीमहावीरस्वामिनी अने छठ्ठी श्रीसीमंधरस्वामिनी छे. अत्यंत सुंदर विशेषणोथी गर्भित स्तुतिओ अने विनंतिओ आ विज्ञप्तिओनी लाक्षणिकता छे. वळी, उत्तम शब्दो अने अलंकारोना प्रयोगो साथे व्यवस्थितपणे छंदोमां गूंथायेली होवाथी रचयिताना काव्यकौशलने रजू करे छे. १. प्रथम विज्ञप्ति तपगच्छाचार्य श्रीज्ञानसागरसूरि भगवंतनी छे। तेओ प्रसिद्ध आचार्य सोमसुंदरसूरिना शिष्य छे अने देवसुंदरसूरिना गुरु छे। आ विज्ञप्तिमां विज्ञप्तिकार आचार्यभगवंतना विविध गणोनं उत्तम रीते वर्णन करे छे । जेमां तेमना ज्ञान-दर्शन-चरित्र-जनप्रतिबोध-मोहजय-तप वगेरे गुणो तथा शरीरनां विविध लक्षणोनुं वर्णन छे । छेल्ला (१०मा) पद्यमां गुणकीर्तन- फल जणावतां का छे के - आ रीते जे आपना गुणोने स्तवे छे तेओ शीघ्र मोक्षना सुखने पामे छ । १० कडीनी आ विज्ञप्तिमा १ थी ९ कडीओ २० मात्राना समचतुष्पदी स्त्रग्विणी छंदमां छे अने छेल्ली कड़ी अपभ्रंश साहित्यमां प्रसिद्ध ३२ मात्राना द्विपदी घत्ता छंदमां छे जेमा यति १०-८-१४ मात्रा पर थाय छ । द्वितीय विज्ञप्ति विशाल तपगच्छरूपी गगनमा दिनकर समान तेजस्वी आचार्य श्रीकुलमण्डनसूरि भगवंतनी छे । अहीं पण विज्ञप्तिकार पूर्ववत् तेमना शरीरनां लक्षणोनुं तथा कुमतभेद-उत्तमधर्मदेशना-जिनागमपारगामिता-समिति-गुप्तिपालन-क्षमा वगेरे विविध गुणोनुं वर्णन सुंदर शब्दोमां करे छे अने अंते गुणकीर्तननुं फल मोक्षसुख छे तेवू जणावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10