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वीरवाण
दलैपान विचार कर परधान पठाया। लप वर वीरम कनै ए जाब कैवाया ॥ तगड़ तषी षग झार सै भंग वीरम आया।
आया कुआदर दिया हम लीध वघाया। लख रो रहवास कुदलजी दरवाया। धरती चोवी गांमड़ा सब राज समाया । उस मांसु वीरम तनै आधा वगसाया। डांण वलै उचका दिया आदा अपणाया। चोत्री गास चबुतरा कि काज बैठाया। पोसे इकसठ पाजरु सफरै रापाया । जोइया पग मांडे जिती धरे नीही रहाया। हाती रहै न जुटिया कैहर उकराया ॥ मीलीयां चिडीयां महलै अहि जाणक आया । जांणक डोकर पोलडै विच बाद्य वसाया। . क्या तेरा अवगुण किया हम लीध नीभाया।
पायरहिं दुगुण कियां सब जाय भुलाया ॥ वीरम जी की रानी मांगलियाणी भी जिसने सातों जोहियों को अपना राखी भाई बनाया था समझौते का प्रयत्न करने लगी किन्तु उसका कोई परिणाम न हुआ।
. युद्ध का मुख्य कारण यह हुआ कि वीरमजी ने दरगाह के "फरास" पेड़ को काट . . हाला जिसका वर्णन करते हुए मुस्लिम कवि ने अपनी श्रद्धा इस प्रकार व्यक्त की है
दरपत हरीपल पीरदां विच दरगह सोवै। जोइया देस वीदेस मै जिण सांमो जोवै ॥ पीर प्रचाइल प्रगट दुप दालद पौवै । राम रहिम जु एक हैं कबु दोय न होवै ॥ वीर फरासा बाढ़ बाढ़ वपाती ढोवै। .
के मुलां तागा करै हुब हाका होवै ॥ फ़रहास के कटने का समाचार सुन कर दला जोहिया को बहुत दुख हुआ और उसने एक दिन जाकर वीरमजी की गायों को घेर लिया
जेज न कीधी जोइयां, घेरी जायर गाय । सुण बीरम ग्वाला सवद, लागी उर मैलाय ।। दस हजार जोया दुझल, कठठ साररा कोट। ‘ढाला जंगा चालणा, ढाला करै न ठोट ॥